आघात
डॉ. कविता त्यागी
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बच्चों को स्कूल भेजकर पूजा दरवाजा बन्द करके जैसे ही अन्दर आयी, तभी रणवीर का फोन आया कि वह एक घंटे में घर पहुँच जाएगा। उसके आने की सूचना मिलने के पश्चात् पूजा ने एक बार पुनः अपना संकल्प दोहराया और स्वस्थ-चित्त से अपने कार्य में व्यस्त हो गयी। रणवीर ने एक घण्टा में घर पहुँचने की सूचना दी थी, किन्तु वह लगभग चालीस मिनट पश्चात् ही घर आ पहुँचा। रणवीर को अभी तक अपनी माँ के वहाँ आने की सूचना नहीं मिली थी, इसलिए वह दरवाजा खुलते ही पूजा के साथ-साथ अपने कमरे की ओर बढ़ रहा था, लेकिन बेटे के आने की भनक लगते ही माँ ने उसको अपने पास बुला लिया ।
रणवीर को अपने पास बिठाकर उसकी माँ ने पाँच-सात मिनट तक कुशल-क्षेम आदि की औपचारिक बातें की । तत्पश्चात् उन्होंने पिछली शाम घटित घटना का वृतान्त शिकायत के लहजे में सुनाना आरम्भ कर दिया। सर्वप्रथम माँ ने पूजा की शिकायत करते हुए कहा -
‘‘घर की बहू के क्या फर्ज होते हैं, ससुराल से अलग, अकेली रहकर , यह बिल्कुल ही भूल चुकी है ! फोन पर यह पता चलते ही कि पति घर नहीं आ रहा है, इसने पाखण्ड शुरू कर दिया और सास के लिए खाना बनाना न पड़ जाए, इसलिए रसोई में जाकर भी नहीं झाँका !’’ रणवीर चुपचाप बैठा हुआ माँ की बातें सुनता रहा । अपने वृतान्त को आगे बढ़ाते हुए माँ ने पूजा के विषय में वह सब कुछ बता दिया, जो रणवीर के घर न आने की सूचना के बाद उन्होंने देखा था और जैसी पूजा की दशा थी। उन्होंने अपने वृतान्त में इतना परिवर्तन अवश्य किया था कि अपनी प्रत्येक बात में वे पूजा की उस दशा को उसका पाखण्ड कह रही थी ।
पूजा के विषय में पिछली शाम का अपने मनोनुकूल वृतान्त सुनाकर सन्तुष्ट होने के पश्चात् माँ ने प्रियांश और सुधांशु की शिकायत करते हुए कहा -
पिता का नियन्त्रण न होने के कारण दोनों च्चे बड़े-छोटे का सम्मान नहीं करते हैं । यदि अभी इन पर नियन्त्रण नहीं रखा गया, तो ये बहुत बिगड़ जाएँगे, इसलिए इन पर नियन्त्रण रखना अत्यन्त आवश्यक है !"
माँ ने प्रियांश और सुधांशु की शिकायत तो रणवीर से की थी, किन्तु उसका सारा दोष पूजा के ऊपर डालकर अन्त में अपना विचार-सार सुनाते हुए कहा था-
‘‘ये दोनों तो बालक हैं ! इन्हें डाँटने-फटकारने से भी क्या फायदा होगा ? इन बेचारों को तो जैसा इनकी माँ ने बताया-सिखाया था, वैसा ही इन्होंने कह दिया, कर दिया !’’
पोतों के लिए माफीनामा तैयार करने के पश्चात् उनकी आँखों से दो बूँद आँसू टपक पडे़, गला भर आया और फिर भर्राये गले से उन्होंने पुनः मिर्च-मशाला लगाकर क्रमशः एक लय में पिछली शाम की घटना का वह अंश बताना आरम्भ किया कि कैसे प्रियांश और सुधांशु ने उन्हें घर से बलपूर्वक निकालने का प्रयास किया था और कैसे उन्होंने अपनी बहू और पोतों से एक रात के लिए घर में आश्रय माँगा था कि बुढा़पे में घर की एकमात्र बुजर्ग का अपमान करके अँधेरी रात में वे उसे घर से न निकालें ! माँ ने रणवीर को बताया था कि बहुत प्रार्थना करने पर ही बहू और पोतों ने उन्हें केवल रात-भर के लिए घर में रुकने की अनुमति दी थी ! यदि अभी वह नहीं आता, तो सवैरा होते ही उनके दोनों पोते और बहू उन्हें घर से निकाल देते। बहू और पोतों की शिकायत करने के बाद रणवीर की माँ उसकी ओर कूटदृष्टि से देखते हुए अपनी आँखें पोंछने लगी और अपने भाग्य को कोसते हुए रोने लगी ।
रणवीर अपनी माँ के पास बैठकर पत्नी तथा बेटों की शिकायत सुनते-सुनते ऊब चुका था । उसने मुस्कराते हुए माँ से कहा -
‘‘अगर आपकी नौटंकी खत्म हो गयी हो, तो मैं जाऊँ ?’’
रणवीर का प्रश्न सुनते ही उसकी माँ ने रोना बन्द कर दिया और क्रोधित होकर बोली -
‘‘जब अपना ही सिक्का खोटा है, तो परखने वाले का क्या दोष ? मेरा तो अपना बेटा ही मेरी इज्जत नहीं करता, बहू और पोते कैसे मेरा मान-सम्मान रखेंगे और मैं भी उनसे क्या उम्मीद करूँगी !’’
माँ अपना असन्तोष व्यक्त करती रही, किन्तु रणवीर ने शायद एक शब्द भी नहीं सुना था । अपना प्रश्न पूछने के तुरन्त पश्चात् वह माँ के उत्तर की प्रतीक्षा किये बिना उठकर चला गया था।
माँ के पास से उठकर रणवीर अपनी पत्नी पूजा के पास आया । उसने आते ही सप्रेम मधुर व्यवहार करते हुए पूजा से पिछली शाम की घटना की चर्चा करते हुए उसके स्वास्थ के विषय में संवेदना व्यक्त की और उस समय घर न आने के बारे में खेद व्यक्त किया। रणवीर ने पूजा से उसके स्वास्थ्य के विषय में पूछते हुए कहा कि यदि वह आवश्यकता अनुभव करे, तो रणवीर उसी समय उसकौ डॉक्टर के पास परामर्श-परीक्षण के लिए ले जाएगा, परन्तु पूजा ने कहा कि अब वह पूर्णरूप से स्वस्थ है । पिछली शाम के विषय में पूजा ने बताया कि वह कुछ समय कि लिए केवल यह सोचकर दुःखी हो गयी थी कि विवाह की वर्षगाँठ होने के बावजूद उसका पति अपनी पत्नी और बच्चों के लिए काम से समय नहीं निकाल सकता है ! वह काम में इतना व्यस्त रहता है कि उसे अपने विवाह की वर्षगाँठ का स्मरण भी नहीं रह गया है । पूजा की व्यथा का कारण सुनकर रणवीर ने अपनी भूल स्वीकार कर ली और उस भूल के दण्डस्वरूप उसने छुट्टी के दिन बच्चों के साथ पिकनिक पर चलने का वचन दे डाला।
पूजा भी अब रणवीर की भाँति उसके साथ मधुर व्यवहार करने लगी थी। वह न रणवीर के प्रति अपनी कोई शिकायत प्रकट करती थी और न ही अपनी पीड़ा प्रकट करके रणवीर से सहानुभूति की अपेक्षा रखती थी। अब वह अपने हृदय की व्यथा को छिपाकर अपने पति के साथ एक प्रकार का औपचारिक-सा सम्बन्ध जीने लगी थी और अपने पति के प्रति अविश्वास या सन्देह को व्यक्त न करने के अपने संकल्प का दृढ़तापूर्वक निर्वाह कर रही थी। यद्यपि पूजा के लिए यह अत्यन्त कठिन था, फिर भी उसने रणवीर को अपने सन्देह तथा उसके प्रति अपने अविश्वास का बिल्कुल भी आभास नहीं होने दिया था । वह चाहती थी कि घर का वातावरण बोझिल न होने पाए और उसके बेटों की प्रतिभा के विकास पर कोई नकारात्मक प्रभाव न पड़े !
पूजा और रणवीर के संयमित व्यवहार से सबकुछ सामान्य-सा हो गया था । परिवार में प्रत्येक व्यक्ति प्रसन्नचित् दिखाई देने लगा था। रणवीर प्रसन्न था, क्योंकि उसे लगता था कि उसने अपने मधुर सम्भाषण और प्रेमपूर्ण व्यवहार से पूजा पर पुनः प्रभावित कर लिया है और पूजा को उसके छल-कपट से परिपूर्ण व्यवहारों के विषय में तनिक भी सन्देह नहीं हुआ है। प्रियांश और सुधांशु अपने मम्मी-पापा को तनाव और मतभेद से मुक्त साथ-साथ प्रेम से रहते हुए देखकर प्रसन्न थे। इनके साथ ही पूजा भी अत्यन्त प्रसन्न थी कि वह अपने संकल्प पालन में सफलता प्राप्त कर रही थी । उसकी इच्छा के अनुरूप उसके बेटों को घर में स्वस्थ वातावरण मिल रहा था और दोनों बेटे सारा दिन प्रफुल्लित होकर चहकते रहते थे।
परन्तु, घर के प्रत्येक सदस्य के प्रसन्न रहने पर भी घर का प्रत्येक सदस्य उस समय द्विधा-जीवन जी रहा था। रणवीर एक जीवन पूजा के साथ जी रहा था, जो समाज और कानून की दृष्टि में वैध था, मान्य था, तो साथ ही दूसरा जीवन समाज और कानून की आँखों में धूल झोंककर वाणी के साथ जी रहा था। इसी प्रकार पूजा भी एक जीवन सामान्य नारी का-सा, अपने पति के साथ, पति के अनुरूप, पति के लिए तथा बच्चों के लिए जी रही थी और दूसरा जीवन पति के प्रति विश्वास-अविश्वास के हिंडोले में झूलता हुआ निराशा और व्यथा से भरा हुआ जीवन जी रही थी। उन दोनों के समान ही प्रियांश और सुधांशु का जीवन चल रहा था । एक क्षण के लिए उनका चित्त अपनी पढ़ाई, खेल और किशोरवयः के अनुरूप मस्ती भरे जीवन की ओर आकर्षित होता था, तो दूसरे ही क्षण दोनों बच्चों का चित्त चिन्ता के समुद्र में गोते लगाने लगता था कि भविष्य में उनके सपनों को साकार करने में उनके पिता का यथासामर्थ्य सहयोग रहेगा भी या नहीं ? और रहेगा, तो कब तक ? चिरकाल तक उन्हें पिता का साथ, पिता का स्नेह और सहयोग मिलता रहेगा अथवा यह स्नेह और सहयोग अल्प काल के लिए है ?
प्रियांश और सुधांशु अब बड़े हो गये थे। प्रियांश अपने आस-पास की प्रत्येक घटना पर गम्भीरता पूर्वक विचार करता था। अतः पूजा अब हर संभव प्रयास करती थी कि उसके परिवार का वातावरण सामान्य रहे। भले ही रणवीर को लगता था कि उसके मिथ्या और कपटपूर्ण मधुर सम्भाषण ने पूजा के हृदय पर विजय पताका फहराकर उस पर अपना नियन्त्रण कर लिया है । परन्तु, पूजा के चित्त में चिन्ता और अविश्वास का अपना अस्तित्व बना हुआ था, जिसका तनिक-सा भी आभास रणवीर को नहीं था। चूँकि झूठ और फरेब की नींव पर टिकी प्रेम-सम्बन्धों की इमारत अधिक टिकाऊ नहीं होती है, इसलिए रणवीर द्वारा बनाया गया मिथ्या सम्भाषणों का आधार लेकर अपने प्रति पूजा के विश्वास का प्रासाद भी हल्का-सा झटका लगते ही तहस-नहस होने के कगार पर खड़ा रहता था। ऐसा प्रतीत होता था कि ऐसी नाजुक परिस्थिति में रणवीर छल-कपट से युक्त मधुर व्यवहार का थोड़ा-सा सीमेंट लगाकर उस प्रासाद को स्थायित्व देने का प्रयत्न कर रहा था, या शायद प्रयत्न करने का अभिनय ही करता था।
डॉ. कविता त्यागी
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