आघात
डॉ. कविता त्यागी
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बाहरी रूप से पूजा के घर में सब कुछ सामान्य-सा दिखाई देने लगा थे, यथा - समय पर खाना बनता था, परिवार के सभी सदस्य समय पर खाते थे। दोनों बच्चे स्कूल जाते थे । पति-पत्नी में आवश्यक कार्यों के लिए बातचीत भी होती थी । किन्तु, रणवीर अभी भी नियमित रूप से निश्चित समय पर घर नहीं लौटता था । इसी कारण अभी तक न तो दोनों के बीच पुराना प्रेम लौट सका था और न ही पूजा के चित्त में रणवीर के प्रति पहले जैसा विश्वास लौटा था । पहले जैसा तो क्या, विश्वास के नाम पर उसके हृदय में अब रणवीर के प्रति केवल अविश्वास ही था । रणवीर अपने प्रति पूजा के हृदय में भरे अविश्वास को कम करने का प्रयास भी नहीं कर रहा था । न ही वह ऐसा करने की आवश्यकता का अनुभव कर रहा था । उसे इतना अवकाश ही नहीं था कि वह इस विषय में सोच सके । उसकी सोच और कार्यशैली अपने क्षणिक सुख तक सिमटकर रह गयी थी ।
इधर, आर्थिक-सामाजिक रूप से पति पर निर्भर और पति से उपेक्षित पूजा अपनी विवशताओं और विषमताओं पर विचार करते-करते इतनी तनावग्रस्त हो गयी थी कि उसका मस्तिष्क उस तनाव को वहन न कर सका । वह अर्द्धविक्षिप्त-सी हो गयी। अपनी अर्द्धविक्षिप्तावस्था के कारण वह कई बार गम्भीर दुर्घटनाओं का शिकार हो चुकी थी, जिससे बच्चों को तथा स्वयं उसको अत्यधिक कष्ट भोगना पड़ा था । दुर्घटना के बाद चेतनावस्था मे उसको अनुभव होता था कि अनजाने में ही उसके हाथों से एक बड़ी दुर्घटना हो गयी है ।
इस क्रम में एक दिन सुधांशु को स्नान कराने के लिए उसने पानी गर्म किया और उबलते हुए पानी में ठंडा पानी मिलाये बिना सुधांशु के शरीर पर डाल दिया। सुधांशु के रोने-चीखने पर उसे अनुभव हुआ था कि उसने कुछ गलत किया है । सुधांशु के शरीर पर गर्म पानी पड़ते ही त्वचा जगह-जगह से फूल गयी थी । जब दर्द से बेटा दिन-रात तड़पता था, तब बेटे के दर्द से पूजा का हृदय भी तड़पता था । तब पूजा अपनी भूल पर पश्चाताप् करके रोती-सिसकती रहती थी या बिल्कुल शान्त होकर लेटी रहती थी । कुछ समय रोने-सिसकने या शान्त रहने के बाद वह पुनः कोई ऐसी दुर्घटना कर बैठती थी, और फिर रोना-सिसकना या शान्त हो जाना उसकी दिनचर्या का क्ष स्सा बन जाता था !
इसी प्रकार एक दिन कड़ाही में पकवान तलते हुए गर्म घी में अपना हाथ डाल दिया। महीना-भर तक उसके हाथ में गम्भीर घाव बना रहा था । उस समय तो बच्चों के लिए खाना भी बाजार से मँगाना पड़ा था।
ऐसा भी नहीं था कि पूजा सदैव अर्द्धविक्षिप्त ही रहती थी । कुछ क्षण ऐसे भी होते थे, जब वह सोचने-विचारने की सामान्य अवस्था में होती थी । उन क्षणों में वह अपने स्वास्थ्य को लेकर बहुत चिन्तित होती थी और संकल्प करती थी कि अब प्रत्येक क्षण सावधन रहेगी, ताकि बच्चे अथवा वह स्वंय वह किसी दुर्घटना का शिकार न हो जाए ! लेकिन तनावग्रस्त रहने के कारण विक्षिप्तता का दौरा अचानक इस प्रकार उस पर हावी होता था कि स्वयं पर से उसका नियन्त्रण खो जाता था ! एक दिन अपनी सामान्यावस्था में उसने निर्णय लिया कि वह किसी मनोचिकित्सक विशेषज्ञ से परामर्श करेगी ! अपनी इस समस्या के विषय में उसने रणवीर से भी चर्चा की थी, किन्तु रणवीर ने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया। पति की उपेक्षा से पूजा की चिन्ता तथा तनाव और बढ़ गया। परिणामतः उसकी मानसिक स्थिति तीव्र गति से बिगड़ने लगी।
निरन्तर बिगडते हुए मानसिक स्वास्थ्य के कारण दिन-प्रतिदिन के असामान्य व्यवहारों से तथा रणवीर की उपेक्षा से चिन्तित होकर पूजा ने अपनी बुआ चित्रा को बुलाने का निश्चय किया। अपने निश्चयोपरान्त उसने तुरन्त ही बुआ से फोन द्वारा सम्पर्क किया और शीघ्रतिशीघ्र आने के लिए निवेदन किया। चित्रा बुआ अगले दिन पूजा के घर आ गयी। वहाँ आकर चित्रा ने पूजा की स्थिति को समग्रतः समझा और पूजा को सान्त्वना देते हुए आश्वस्त किया कि वह उसकी सभी समस्याओं को दूर करने में अपनी सामर्थ्य-भर सहयोग करेंगी और जब तक वह पूर्णतः स्वस्थ नहीं होगी, तब तक उसकी बुआ उसके साथ रहेगी ! चित्रा का आवश्वासन मिला, तो पूजा ने स्वयं को पर्याप्त हल्का अनुभव किया और राहत की साँस ली।
थोडी देर तक पूजा से बातें करने के पश्चात चित्रा ने रणवीर से फोन पर सम्पर्क किया और उससे शीध्र घर लौटने का आग्रह किया। चित्रा को विश्वास नहीं था कि रणवीर उसके आग्रह पर घर लौटकर आयेगा, फिर भी वह उसकी प्रतीक्षा में बैठी रही । चित्रा ने पूजा से कहा था, यदि रणवीर दो घंटे तक नहीं आया, तो वह स्वयं अकेले ही उसे किसी मनोचिकित्सक के पास लेकर चली जाएगी ! चूँकि रणवीर ने आग्रह को सकारात्मक-भाव से ग्रहण किया है, इसलिए कम-से-कम दो घंटे तक उसकी प्रतीक्षा करनी ही चाहिए। पूजा भी अपनी बुआ चित्रा की बात से सहमत हो गयी।
आधा घंटा पश्चात् ही रणवीर घर लौट आया, तो चित्रा की प्रतीक्षा-समय समाप्त हो गयी । रणवीर के लौटने पर चित्रा ने धैर्य से काम लिया। उसने रणवीर के आते ही उससे पूजा के विषय में बातें नहीं की, बल्कि कुशल-क्षेम पूछने की औपचारिकता में ही आधा घंटा व्यतीत कर दिया। तत्पश्चात् उसने रणवीर से पूजा की अर्द्धविक्षिप्तावस्था के विषय में बातें की। चित्रा बुआ के साथ चर्चा करते समय पूजा के विषय में रणवीर ने पर्याप्त चिन्ता प्रकट की। उसने बुआ के समक्ष पूजा के प्रति अपनी उपेक्षा या उदासीनता का भाव प्रकट न होने दिया। बुआ द्वारा पूजा की उस दशा के निवारणार्थ किसी मनोचिकित्सक से परामर्श लेने का सुझाव देने पर रणवीर ने अपनी ओर से कोई टिप्पणी नहीं की, न ही अपना कोई निर्णय दिया। हाँ, इतना विचार रणवीर ने अपनी ओर से प्रस्तावित अवश्य किया कि इस अवस्था में पूजा की तथा दोनां बच्चों की देखभाल करने के लिए अपने ही किसी हितैषी व्यक्ति की आवश्यकता है। इस समस्या के समाधन के विकल्प के रूप में उसने समयाभाव की विवशता बताते हुए स्वयं को असमर्थ घोषित करके तत्काल पूजा को तथा बच्चों को सम्भालने का दायित्व-भार चित्रा पर डाल दिया। रणवीर इस दायित्व से मुक्ति पाना चाहता था और चित्रा इस भार को लेना चाहती थी। पूजा भी आज यही चाहती थी कि रणवीर बुआ की बातों से सहमत होकर उसे डॉक्टर से परामर्श की अनुमति तथा इलाज के लिए अर्थ उपलब्ध करा दें !
अपनी बातों को आगे बढ़ाते हुए चित्रा ने बच्चों की पढ़ाई और रणवीर के व्यवसाय के विषय में चर्चा की, तो उसने यथावश्यक स्पष्टीकरण देकर स्वयं को निर्दोष सिद्ध करते हुए पूजा पर आरोप लगाया -
"पूजा के अविवेक के कारण हमारे जीवन में और घर में अव्यवस्था का साम्राज्य हो गया है ! यहांँ तक कि पूजा की इस दशा की जिम्मेदार भी वह स्वयं है, क्योंकि वह बेबुनियाद शक की शिकार हो गयी है ! घर में धन का अभाव नहीं है, न ही इस प्रकार की कोई अन्य समस्या है ! केवल एक समस्या है, पेजा का सन्देह करना और आवश्यकता से अधिक सोचना ! आवश्यकता से अधिक सोचने की प्रवृत्ति से ही पूजा की यह दशा हो गयी है!"
रणवीर की इन सभी बातों को चित्रा ने सकारात्मक रूप में ग्रहण किया। वह रणवीर तथा उसके परिवार की इस प्रकृति से पहले ही परिचित थी कि यदि उनके साथ रहकर पूजा की सहायता करनी है और रणवीर से पूजा के लिए सहायता लेनी है, तो उसकी प्रत्येक बात को सकारात्मक भाव से ग्रहण करना होगा। अपने पक्ष में उसका समर्थन लेने के लिए उसको अपना समर्थन देना भी पडे़गा, भले ही वह समर्थन झूठा अथवा औपचारिक ही क्यों न हो !
अपनी वाक्पटुता तथा व्यवहार कुशलता के बल पर रणवीर की सहमति से चित्रा पूजा को मनोचिकित्सक के पास ले गयी । पूजा के सभी आवश्यक परीक्षण कराये और चिकित्सक के परामर्शानुसार पूजा की परिचर्या करने लगी। चित्रा द्वारा की गयी देखभाल से तथा चिकित्सक की दवाइयों से पूजा की दशा में सुधर होने लगा था। चिकित्सक के परामर्श और चित्रा बुआ के आग्रह से अब रणवीर भी घर में समय पर आने लगा था। वह चित्रा की दृष्टि में एक लापरवाह या पति-धर्म का निर्वाह न करने वाला पुरुष प्रमाणित नहीं होना चाहता था, इसलिए फूँक-फूँककर कदम रख रहा था और पूजा के इलाज में हर सम्भव सहयोग कर रहा था। पूजा के मनोनुकूल एक साथ इतनी बातें घटित होने का ही शुभ परिणाम था कि एक सप्ताह में पूजा की दशा में पचास प्रतिशत सुधार हो गया था । इसके पश्चात् चित्रा बुआ समय-समय पर पूजा का परीक्षण कराती रही ; उचित समय पर औषधि का सेवन कराती रही और उसके पथ्य का विशेष ध्यान रखती रही। लगभग एक महीना में पूजा स्वस्थ हो गयी। उस एक माह में रणवीर ने कभी भी चित्रा बुआ को यह अनुभव नहीं होने दिया कि उसके परिवार में कभी किसी प्रकार का मनमुटाव हुआ था अथवा धन का अभाव है !
पूजा का स्वास्थ्य ठीक हो चला था। उसका दाम्पत्य-सम्बन्ध भी अब सकारात्मक परिवर्तन की दिशा में बढ़ते हुए मधुरता को प्राप्त हो रहा था। बुआ यह सब-कुछ देखकर सन्तुष्ट और प्रसन्न थी। अब अपने परिवार को छोड़कर पूजा के घर रहने की कोई आवश्यकता या औचित्य उन्हें अनुभव नहीं हो रहा था। बुआ ने वापिस लौटने के विषय में रणवीर तथा पूजा से चर्चा की, तो रणवीर ने औपचारिकता का निर्वाह करने के लिए कुछ दिन और रुकने का निवेदन किया । किन्तु, पूजा ने भविष्य में आते रहने का वचन लेकर उन्हें जाने की सहमति दे दी । इसके बाद चित्रा ने रणवीर और पूजा को परस्पर प्रेम से रहने के लिए कुछ औपचारिक-अनौपचारिक निर्देश दिये और अपनी ससुराल के लिए विदा हो गयी। बुआ के जाने के बाद भी उनका दाम्पत्य-जीवन प्रेम-रस से परिपूर्ण तथा तनावमुक्त ही रहा ।
पूजा अब पूर्णतया स्वस्थ हो चुकी थी । ऐसे समय में अनुकूल अवसर देखकर रणवीर ने पूजा को बताया कि जिस रात पूजा को उसने घर से निकाला था, उसकी अगली सुबह पूजा के घर लौटने से कुछ समय पहले मकान-मालिक घर पर आया था और एक माह के अन्दर मकान छोड़कर जाने का नोटिस देकर चला गया था । उसके अस्वस्थ होने तथा घर पर चित्रा बुआ की उपस्थिति के कारण वह इस बात को पूजा से नहीं कह सका था और परिस्थितियों का वास्ता देकर मकान मालिक से उसने उस घर में रहने के लिए एक माह का अतिरिक्त समय माँगा है, जिसके लिए मकान मालिक सहमत हो गया है ।
उस मकान को छोड़कर दूसरा मकान ढूँढने की बात सुनकर पूजा दुखी हो गयी। ससुराल से आने के बाद से अब तक वह दो मकान बदल चुकी थी। अब तक उसे अनुभव हो चुका था कि किराये के मकान में रहना सुखदायी नहीं है, क्योंकि मकान मालिक द्वारा निर्धरित नियमों का पालन करना अत्यन्त कठिन कार्य है । यही नहीं, प्रति एक-दो वर्ष में एक मकान को छोड़कर दूसरे मकान में जाकर रहना उससे भी कठिन है। इन सभी बातों के सन्दर्भ मे पूजा ने रणवीर के समक्ष प्रस्ताव रखा कि अभी ऐसा उपयुक्त समय है, जबकि अपना घर बनाया जा सकता है। अब से आगे बच्चे बडे़ हो जाएँगे, तो घर का खर्च बढ़ जाएगा ! महँगाई भी बढ़ेगी, इसलिए अपना मकान अभी बना लेना चाहिए ! रणवीर ने पूजा की बात का पूर्ण समर्थन किया, परन्तु धन के अभाव की समस्या बताते हुए मकान बनाने या खरीदने के लिए असमर्थता प्रकट कर दी।
मकान बदलने की समस्या से रणवीर तथा पूजा दोनों तनाव में थे । पूजा को रणवीर की अपेक्षा अधिक तनावग्रस्त थी । चूँकि रणवीर प्रायः घर से बाहर रहता था और पूजा सदैव घर में रहती थी, इसलिए घर से सम्बन्धित सभी समस्याओं से पूजा को अकेले ही जूझना पड़ता था । एक मकान को छोड़कर दूसरे मकान में जाकर घर के सामान को व्यवस्थित करने में भी पूजा तनाव का अनुभव करती थी । इसलिए वह न तो मकान बदलने में प्रसन्न थी और न ही किराये के मकान में रहने में । रणवीर पूजा की इस स्थिति से भली-भाँति परिचित था । वह जानता था कि मकान बदलने के बाद महीने-भर तक पूजा घर का सामान व्यवस्थित करने में व्यस्त रहती है, जिसमें परिश्रम भी होता है और तनाव भी । रणवीर यह भी जानता था कि पास-पड़ोस में मकान-मालिक परस्पर जैसा सम्मान एक-दूसरे को देते है, वैसा किरायेदार को नहीं देते हैं ! पास-पडोस के इस उपेक्षापूर्ण व्यवहार का सामना सदैव पूजा को ही करना पड़ता था, क्योंकि वह ही सारा दिन घर में रहती है।
पूजा की इन दुर्बलताओं का लाभ उठाकर रणवीर ने मकान की समस्या से मुक्त होने की एक युक्ति सोची, जिससे उसकी स्वतन्त्रता भी बनी रहे और गृहस्थी भी । रणवीर ने उसके समक्ष एक प्रस्ताव रखा, जिसमें दो विकल्प थे - या तो पूजा ससुराल में जाकर सास के पास रहे, या अपने पिता के घर ...!
पूजा को दोनों मे से एक भी विकल्प उपयुक्त नहीं लगा । उसने रणवीर से स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि वह ससुराल में जाकर नहीं रहेगी और न ही अपने पिता को अपनी समस्याओं का भार वहन करने के लिए विवश करेगी ! पूजा की प्रकृति को रणवीर भली-भाँति जानता था कि यदि उसने ससुराल नहीं जाने का निश्चय किया है, तो वह नहीं जायेगी !
पूजा का उसके पिता के घर नहीं जाने का नकारात्मक उत्तर पाकर रणवीर को भी पूजा का तर्क उचित लगने लगा था । उसको अतीत की वे सब बातें याद आने लगी, जो पिछली बार पूजा के अपने पिता के घर रहने पर उसे समाज में सुननी पड़ी थी । अब वह पुनः ऐसी स्थिति उत्पन्न करके उन बातों को पुनः नहीं सुनना चाहता था । रणवीर की प्रत्युत्पन्नमति प्रकृति से उसके मस्तिष्क में तुरन्त एक नया विचार कौंध आया। उसनें पूजा से सहज विनम्र भावपूर्ण शैली में कहा - ‘
"पूजा, तुम गलत समझ रही हो ! मेरा आशय यह नहीं था कि तुम अपने पिता के घर जाकर रहो या उन पर अपना बोझ डालो ! अब तुम अकेली भी नहीं हो, तुम्हारे साथ मेरे दो बेटे भी हैं ! तुम्ही बताओं, मैं क्या करूँ ? अपने प्राणों से प्रिय परिवार को मैं भी स्वयं से अलग नहीं करना चाहता हूँ ?’’
‘‘यही तो मैं भी कह रही थी ! मायके में जाकर रहना मुझे ठीक नहीं लगता !’’
‘‘मैं तुम्हें वहाँ जाकर रहने के लिए थोडे ही कह रहा था ! मैं कह रहा था कि .......! छोड़ो, जाने दो, मुझे कुछ भी कहना उचित नहीं लग रहा है ! न जाने तुम मेरे कहने का क्या अर्थ निकालो !’’
‘‘मैं क्या अर्थ निकालूँगी ? जो तुम कहोगे वही तो......!’’
‘‘कुछ नहीं, अब कुछ नहीं कहूँगा !’’
‘‘कहो, तुम जो कुछ भी कहना चाहते हो ! मैं.........!’’
‘‘तुम ज़िद कर रही हो, तो कहना ही पडे़गा ! मैं कह रहा था कि तुम अपने पिताजी से कहोगी, तो वे तुम्हारे लिए मकान खरीदकर दे सकते है !’’
‘‘नहीं ! मैं पिताजी से मकान खरीदकर देने के लिए कैसे कह सकती हूँ !’’
‘‘क्यों नहीं कह सकती ?..... देखो, हम उनसे दहेज में मकान नहीं माँग रहे है ! आज हमारे पास इतने रुपये नहीं हैं कि अपना एक छोटा-सा मकान खरीद सकें ! एक साथ इतने रुपयों की व्यवस्था करना भी मेरे लिए कठिन है, लेकिन उनके लिए यह कार्य जरा-सा भी कठिन नहीं है ! अपनी बेटी के लिए मकान खरीदकर देना उनके लिए कोई बड़ी समस्या नहीं है ! आज वे हमारे लिए मकान खरीदने में जितने रुपये खर्च करेंगे, बाद में हम धीरे-धीरे उनका सारा रुपया लौटा देंगे !’’
‘‘मों जानती हूँ, उनके पास भी इतने रुपये अतिरिक्त नहीं होंगे कि हमारे लिए मकान खरीद दें ! उन्होंने अभी कुछ दिन पहले ही तो प्रेरणा का विवाह किया है !’’
‘‘पूजा, तुम एक काम करो ! तुम उन्हें इस बात के लिए तैयार कर लो कि वे एक प्लॉट खरीदकर दे दें, उसमें मकान बनाने के लिए रुपयों की व्यवस्था मैं कर लूँगा ! यदि तुम इतना भी नहीं कर सकती हो, तो फिर अपने घर का सपना देखना छोड़ ही दो ! तुम्हें पता है ना, मैं अभी इतने रुपयों की व्यवस्था एक साथ नहीं कर सकता कि इतनी मँहगाई में तुम्हे अलग घर बनाकर वे सकूँ ! हाँ, मैं तुम्हें यह वचन दे सकता हूँ कि धीरे-धीरे मैं तुम्हारे पिताजी का सारा रुपया अवश्य लौटा दूँगा !’’
रणवीर की बातों का पूजा पर इतना प्रभाव हो चुका था, जितना रणवीर चाहता था । अब वह उसे स्वयं उस दिशा में आगे बढ़ने का समय देना चाहता था, जो उसके लक्ष्य-प्राप्ति के लिए आवश्यकता थी । दो-तीन दिन मे पूजा उस लक्ष्य प्राप्ति के लिए पूर्णरूपेण तैयार हो गयी, जो रणवीर का अभीप्सित था ।
रणवीर की योजनानुसार उसी सप्ताह पूजा उसके साथ अपने पिता के घर गयी और वहाँ जाकर पिता से प्लॉट खरीदने के लिए यथावश्यक सहायता देने का आग्रह किया। चूँकि बेटी का घर बसाना कौशिक जी की कई प्राथमिकताओं में से एक था, इसलिए बेटी की समस्याओं और विवशताओं को देखते हुए वे उसके आग्रह को टाल न सके ।
पूजा को लगता था कि अपना मकान होने पर घर में सुख-शान्ति का निवास होगा ! परन्तु, ऐसा सोचना उसकी भूल थी । जमीन का एक टुकड़ा खरीदने के लिए पूजा के पिता से रुपये मिलते ही रणवीर ने अपना पुराना रंग-रूप दिखाना आरंम कर दिया । शराब पीकर देर रात में घर लौटना और पूजा के साथ मारपीट करना उसकी दैनिक जीवन शैली का भाग बन गये ।
डॉ. कविता त्यागी
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