भाग – १ - बिछड़ने का दर्द
"उफ्फ... अब यह दर्द सहन नहीं होता..." उस सिपाही के घावों से भरे शरीर ने जैसे चलने से इनकार कर दिया।
"कुछ ही देर की बात है, तुझे बॉर्डर के पार पहुँचा दिया जायेगा, आर्मी के राज़ जो तेरे पास हैं, हमें बता कर अपने मुल्क में ऐश की ज़िन्दगी जीना।" दुश्मन देश की सेना के अफसर ने कहा।
"पहले ही बात मान लेता तो इतना दर्द सहना ही क्यों पड़ता?" दूसरे अफसर ने भी अपनी बात कही।
"उस पर भी विश्वास कहाँ है, कहता है जिन राज़ों को लिखा है, वो कागज़ बॉर्डर पर पहुँच कर ही दूंगा और कागज़ तभी काम आयेंगे जब यह उन्हें समझायेगा।" पहले अफसर ने फिर कहा।
"लो आ गया... सामने 300 मीटर पर है बॉर्डर... अब राज़.."
"हाँ..." उस सिपाही ने जेब में हाथ डाल कर बहुत सारे कागज़ निकाल लिये और आधे-आधे दोनों अफसरों को दे दिये। दोनों अफसर कागज़ खोल कर देखने ही लगे थे कि, सिपाही ने लपक कर एक की जेब से पिस्तौल निकाल ली और दोनों अफसरों को गोली मार दी।
गोली मार कर वह सीमा की तरफ दौड़ पड़ा, दुश्मन देश के सिपाहीयों ने यह देखते ही उस पर दूर ही से गोलियों की बारिश शुरू कर दी, कुछ गोलियां उसे लगी, लेकिन वह सीमा पार कर ही गया।
देश की सीमा में आते ही वह गिर पड़ा, लेकिन अब उसके चेहरे पर दर्द के स्थान पर मुस्कराहट आ गयी और उसने कहा, "माँ...! तू ठीक है ना, बस तुझसे बिछड़ने का दर्द था।" आखिरी सांस लेते-लेते उसने अपने सिर पर देश की मिट्टी लगा ली।
और दुश्मन देश में "भारत माता की जय" लिखे हुए कितने ही कागजों ने वहां की मिट्टी को ढक दिया।
सेना को वह मरा हुआ मिला था, उसके शव को उसके घर पहुंचाया गया।
"ये लो इस गद्दार की लाश" एक सैनिक उस घर के बाहर खड़ा होकर चिल्लाया। आवाज़ सुनकर मोहल्ले के लोगों की भीड़ जमा हो गयी।
भाग – २
गद्दार
"इनका परिवार पुश्तों से सेना में है और आखिरी वंशज गद्दार निकला" मोहल्ले के लोगों में फुसफुसाहट होने लगी।
उसका पिता सिर झुकाये चुपचाप घर से बाहर निकला। उसकी लाल आँखें और उतरा हुआ चेहरा बता रहा था कि कुछ रातों से वह सोया नहीं है।
"देश के लोगों के खून के साथ होली खेलनी थी ना, तो आज होली के दिन ही लाये हैं।" दूसरा सैनिक तल्खी से बोला।
"अब इस पर हस्ताक्षर करो, और हमें छुट्टी दो..." पहले सैनिक ने एक कागज़ देते हुए सख्ती से कहा।
उसके पिता ने कागज़ लिया और एक दूसरा कागज़ उसके हाथ में थमाया, सैनिक ने आश्चर्य से देखा और उस कागज़ को पढने लगा, वो एक पत्र था,
"पिताजी, मेरे कमरे में जो सैनिक साथ रहता है, वह दुश्मन देश का एजेंट है। वह मेरे मोबाईल से दस्तावेजों के चित्र भेजता है, आज फोटो हटाना भूल गया तो मैनें पकड़ लिया, उसने मुझे धमकी दी है कि मुझे दुश्मन के हाथों पकड़ा देगा। मुझे कुछ हो जाये तो आर्मी को सच बता देना।"
पत्र पढ़ते हुए सैनिक सोचने लगा कि मृतक के कमरे के साथी ने ही तो उसे लापता बताया और उसके फ़ोन में दस्तावेजों के चित्र दिखाये थे, जो विदेशों में भेजे जा रहे थे।
उसने लाश पर लपेटे हुए कपड़े को खोला और गाड़ी से तिरंगा निकाल कर उसे ओढ़ा दिया, तब उसने देखा कि एक गोली सिर के आर-पार हो गयी थी और लहू जम गया था। उसने वहाँ हाथ रखा, लहू पाउडर की तरह था। उसने उसे अपने हाथ में लिया और उससे खुदको तिलक लगाया और अपने साथी को कहा
"चल...! अब होली खेलने की बारी हमारी है।"
भाग – ३
मृत्युंजय
पूरे परिवार के सब्र का बाँध टूट गया। शहीद की माँ और पत्नी का क्रंदन हृदय विदारक था।
जब से उसकी शहादत का पता चला था, उसी समय से उसकी पत्नी उसकी तस्वीर को लेकर केवल रो ही रही थी। अपनी उस तस्वीर पर शहीद सैनिक ने अपने ही हाथ से लिखा था - 'मैं' ।
उस विलाप में एक दूसरी महिला बिलखती हुई बोली, "इतनी सी उम्र में देश पर कुरबान हो गया, अभी तो ज़िन्दगी देखी ही कितनी थी..."
एक अन्य महिला ने उसकी पत्नी को देखते हुए कहा, "कोई बेटा भी नहीं है, किस आसरे से जियेगी ये?"
उसी समय उस शहीद सैनिक की बेटी वहां आई, और अपनी माँ का चेहरा अपने दोनों में हाथों में ले लिया। आंसूओं से भरी थकी हुई आँखों से माँ ने अपनी बेटी को देखा तो आँखें नहीं हटा पायी।
उसकी बेटी एक सैनिक की वेशभूषा में थी, ठीक उसी तरह जिस तरह शहीद सैनिक रहता था। उसकी बेटी ने रूंधे गले से कहा, "माँ, पापा देश के लिए शहीद हुए हैं... मुझे गर्व है उन पर... लेकिन जिन लोगों ने उनको... पापा जैसी बनकर मैं उनसे बदला लूंगी..."
कहते-कहते बेटी की आँखें लाल होने लगीं थी। उसने माँ के हाथ में रखी तस्वीर को एक सैनिक की तरह जोश के साथ सैल्यूट किया, वहीँ पास रखी सिन्दूर की डिबिया उठाई, उसमें से सिन्दूर निकाल कर अपनी अंगुली पर लिया, और तस्वीर में लिखे ‘मैं' के आगे लिख दिया - ‘हूँ’।