छत से निकल कर रौशनी की किरणों ने स्टेज के अंधेरे को चीरते हुए एक भाग को जगमगा दिया। वहां एक आदमी खड़ा था। नैपथ्य से आवाज़ आई, "स्वागत है आज के मुख्य अतिथि प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रोफेसर रमन का, जिन्होंने कृत्रिम सूर्य का निर्माण कर पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया।" और पूरा हॉल तालियों के स्वर से गुंजायमान हो उठा। पृष्ठभूमि से पुनः आवाज आई, " सबसे बड़ी बात यह है कि आज प्रोफेसर रमन हमारे साथ उनकी सफलता का राज़ साझा करेंगे।“ तालियां दोगुने जोश से बज उठीं। प्रोफेसर रमन ने हाथ जोड़ कर सभी का अभिवादन किया और कहना प्रारम्भ किया। तब तक पूरे हॉल में शांति छा चुकी थी।
रमन ने कहा, "दोस्तों, आपके प्रेम से अभिभूत हूँ। कुछ सालों पहले मैंने कृत्रिम सूर्य निर्माण का एक प्रोजेक्ट बनाया था। तब इतना ही जोश मेरे अंदर भी था, जितना आपकी तालियों में है।"
दो क्षण चुप रह कर उन्होंने आगे कहा,"लेकिन... उस प्रोजेक्ट को ना तो देश ना ही राज्य सरकार ने स्वीकार किया। निजी संस्थाओं ने भी हँसी उड़ाते हुए फंडिंग देने को मना कर दिया। उन्हें यही लगता था कि सूर्य जितना तापमान, रौशनी और ऊर्जा का कार्यकारी मॉडल बनाना तो सम्भव है, लेकिन एक ऐसा प्रयोग जो सूर्य की तरह ही कार्य करे, वास्तविक ऊर्जा और रौशनी उत्पन्न करने में सक्षम हो, बनना असंभव है। तब मैंने निर्णय लिया कि यह प्रोजेक्ट मैं मेरे रुपयों से पूरा करूंगा।"
हॉल में फिर तालियां बज उठीं।
उन्होंने खांसते हुए आगे कहा, "मैंने एक वातावरण का निर्माण किया। निर्वात में उस वातावरण पर हाइड्रोजन, हीलियम, आयरन, ऑक्सीजन, सिलिकॉन, सल्फर, मैग्नीशियम, कार्बन, कैल्शियम और क्रोमियम के अणुओं को सूर्य के अनुपात में लेकर गोल-गोल घुमाया। मेरा यह प्रयोग सफल रहा, एक छोटे ब्रह्माण्डीय पिण्ड का निर्माण हो गया।"
दर्शकों की उत्सुकता की वजह से हॉल में खामोशी छाई हुई थी।
रमन गला खंखारते हुए आगे बोले, "इस प्रयोग तक मेरी सारी जमा-पूंजी खत्म हो चुकी थी, पुरखों का मकान तक बेच चुका था। मैंने इधर-उधर से रुपये मांगे, लेकिन पागल समझकर किसी ने भी रुपये नहीं दिए। मेरी रिसर्च तो आगे बढ़ गयी थी, लेकिन बच्चों के खाने तक के लिए रुपये नहीं बचे।"
दर्शकों के चेहरों पर दया के भाव आ गए। वैज्ञानिक स्टेज के कोनों के अंधेरों को निहारता हुआ बोला, "आगे किसी तरह पैसे इकट्ठे कर मैंने अपने प्रयोग में हाइड्रोजन को हीलियम में रूपान्तरित… कर लिया। उन्हीं दिनों मेरे बच्चों की भूख के कारण मेरे अंदर के आदर्श - हाइड्रोजन की तरह ही रूप बदल गये और मैंने चोरियां शुरू कर दीं।"
पहली पंक्ति में बैठे एक आदमी को देखते हुए उन्होंने कहा, "जीवनदाता सूर्य स्वयं तो निर्वात में ही रहता है, रोशन बाबू! आपकी सोने की चेन, आपको शराब पिलाकर, मैंने ही निकाली थी।" दर्शक अचंभित रह गए। रोशन बाबू सहित कुछ के चेहरों पर क्रोध भी आ गया।
प्रोफेसर रमन फिर बोले, "सारी हाइड्रोजन तो हीलियम में नहीं बदली, कुछ ऊर्जा में बदल गयी। उस ऊर्जा का मैनें परिक्षण किया वह बिलकुल सूर्य की ऊर्जा के समान ही थी। मेरा सूर्य रोशन हो चुका था। साथ-ही-साथ अपने पद का उपयोग कर मैनें कार्यालय में भी गबन किया और बहुत रुपया इकठ्ठा कर लिया। मेरा परिवार ऐश करने लगा।"
रमन की खांसी बढ़ती जा रही थी, उसी हालत में वह बोल रहे थे, “धीरे-धीरे मेरे बनाये सूर्य की सारी हाइड्रोजन हीलियम और ऊर्जा में बदल गयी। फिर वह फूलने लगा। लाल रंग का छोटा सूर्य मेरे पूरे कमरे में समा गया। फिर सिकुड़ने लगा, पहले से बहुत छोटा। लाल से सफेद कफ़न सा ओढ़ लिया उसने। उसके बाद जली हुई लकड़ी के कोयले के नीचे दबी हुई राख की तरह दिखाई देने लगा और अंत में वह विलीन हो गया। ब्रह्माण्ड ने उसे आकाशगंगा के किसी भाग में प्रवाहित कर दिया।”
कहते हुए वह लड़खड़ा रहे थे, किसी तरह खुद को संयत कर वे बोले,
"यदि सूर्य हाइड्रोजन को हीलियम में ना बदले तो उसका अंत भी ना हो।"
और यह कहकर वे स्टेज पर ही गिर पड़े।