"ट्रिन ट्रिन" घंटी बजते ही रानू और शानू दोनों दरवाज़े की तरफ भागीं। डैडी के घर आने का वक्त हो चला था और हमेशा की तरह जो बेटी दरवाज़ा खोलेगी, उसे डैडी चॉकलेट गिफ्ट करेंगे और जो नहीं खोल पाई उसकी पसंद का खाना बनेगा। आज रानू ने बाजी मार ली और डैडी को देखते ही बोली, "डैडी मेरी चॉकलेट... "। डैडी ने हाथ पीछे बाँध रखे थे, उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, "आज चॉकलेट नहीं, बल्कि आप दोनों के लिए एक ऐसा गिफ्ट लाया हूँ, जिसे आप दोनों ने बहुत बार माँगा है।"
रानू और शानू दोनों सोच में पड गयीं। उन्होंने सवालिया नज़रों से डैडी की तरफ देखा, डैडी ने अपने पीछे बांधे हुए हाथ खोले और गणेश जी की मूर्ती उन दोनों के सामने कर दी। शानू ने पूछा, "डैडी! ये हमने आपसे कब मांगे?" डैडी ने जवाब दिया, "कितनी ही बार आपने हमसे अपना भाई माँगा था ना, अब ये आपके भैया हैं।"
"लेकिन ये तो गणेशा की मूर्ती है! ये हमसे बात कैसे करेंगे?" रानू ने आश्चर्य से पूछा।
"कल कौनसा दिन है बेटे?" डैडी ने पूछा तो दोनों एक साथ बोलीं "राखी..."
"तो कल इस गणेशा को आप राखी बांधोगी। " डैडी ने बहुत प्यार से बोलै और दोनों यह सुनकर नाच उठीं। दोनों के कोई भाई नहीं था और वे कभी किसी को राखी नहीं बाँध पाती थीं। आज गणेश जी की प्रतिमा के रूप में उनका भाई आ गया था। उनकी ख़ुशी स्वाभाविक ही थी।
अगले दिन दोनों बहनें सवेरे जल्दी ही नहा कर नए कपडे पहन कर तैयार हो गयीं। गणेश जी की मूर्ति को भी पानी से बहुत अच्छी तरह धोकर नए कपडे पहनाये गए। धोती कुर्ते में छोटी सी मूर्ति छोटे से बालक के सामान ही लग रही थी। दोनों बहनों ने अपने भाई गणेश की पूजा की, उन्हें तिलक कर के राखी बाँधी और लड्डू का भोग लगाया। उसके बाद दोनों बहने देर तक गणेश जी की मूर्ति से बातें करती रहीं, खेलती रहीं। उसी तरह जैसे कोई छोटा बच्चा हो। रात हो चली थी, दोनों गणेश जी की मूर्ति को अपने बिस्तर के पास टेबल पर रख कर सो गयीं। दोनों गहरी नींद में ही थीं कि एक आवाज़ ने उन्हें जगा दिया। दोनों चौंक कर जागीं, देखा कि गणेश जी की मूर्ति में से रौशनी बाहर आ रही है। एक बार तो दोनों डर गयीं, फिर शानू ने कहा, "ये तो अपने भैया हैं, हम क्यूँ डरे?" और तब उन्होंने देखा कि गणेश जी की मूर्ति मुस्कुरा रही है। वे दोनों और भी ज़्यादा चौंक गयीं, जब गणेश जी की मूर्ति के होंठ हिले और उनमें से आवाज़ आई, "कैसी हो रानू - शानू?"
शानू ने हिम्मत कर के बोला, "हम ठीक हैं... गणेशा।"
मूर्ति फिर बोली, "अपने भैया का हाल नहीं पूछोगी?"
अब रानू बोली, "आप तो खुद दुनिया का हाल अच्छा करने वाले हो। आपका हाल हम कैसे पूछें?"
मूर्ति हँसने लगी, हँसते-हँसते कहा, "मेरा भी हाल खराब होता है.. क्यूँ नहीं होगा? मेरी भी तीन बहनें हैं अशोक सुंदरी, जवालाईमुची और मनसा देवी, तीनों अलग-अलग जगहों पर रहती हैं। उनसे रोज़ मिल नहीं पाता और फिर ये भक्त - ये भी पीछा नहीं छोड़ते।"
तब तक रानू-शानू भी सहज हो गयीं थीं, शानू ने पूछा, "भक्त! वे क्या कहते हैं आपको गणेशा?"
मूर्ति के फिर होंठ हिले और आवाज़ आई, "कभी कहते हैं गणेशा मेरी शादी करा दो, मैं आपको मोदक चढ़ाऊंगा, कभी कहते हैं गणेश जी मुझे ठीक कर दो मैं नंगे पांव पैदल चल कर आपके मंदिर आऊंगा, कभी धन मांगते हैं तो कभी गाडी। मैं सबको देना चाहता हूँ, लेकिन मैं भी थकता हूँ, आराम चाहता हूँ।"
"ओह! तो आपको आराम करना चाहिए, हमने भी तो आपको दूसरे भक्तों की तरह एक भाई के रूप में माँगा ही है।" रानू समझदारी भरे शब्दों में बोली।
मूर्ति फिर मुस्कुराई और बोली,"इसलिए तो मैं यहाँ आया हूँ, सब अपने स्वार्थ के लिए कुछ न कुछ मांगते हैं, लेकिन किसी ने मेरे लिए नहीं सोचा। तुम दोनों ने मुझे सवेरे से इतना प्यार दिया, मेरी बहनों की तरह, दिन भर खेलती रहीं... मुझे आना ही पड़ा। यही तो मेरा आराम है। मुझे निस्वार्थ प्रेम मिला।"
दोनों बहनें हँसने लगीं। शानू बोली, "ओह! तो गणेशा आप भी इतने परेशान रहते हो, हमें तो पता ही नहीं था।" शानू की बात सुनकर मूर्ति रुपी गणेश जी फिर मुस्कुरा दिए और वे तीनों रात भर बातें करते रहे। गणेश जी के कारण रानू-शानू को रात भर जागने के बाद भी बिलकुल भी थकान नहीं हुई।
अगले दिन सवेरे दोनों बहनों ने गणेश जी की मूर्ति को सजा-धजा कर अपने साथ नाश्ता करने बैठा लिया। मूर्ति को भोग लगाया और अपने साथ बाग़ में खेलने को भी ले गयीं।
वहाँ वे तीनों आपस में खेल रहे थे कि कुछ बदमाश लड़के आकर कहने लगे, "अरे! ये क्या गणेश जी की मूर्ति के साथ खेल रही हो, डैडी ने टेड्डी बियर नहीं दिलाया तो टेड्डी एलिफेंट के साथ ही खेलना शुरू कर दिया।"
रानू-शानू से गणेशा का अपमान सहन नहीं हुआ, रानू चिल्ला कर बोलीं, "चुप करो! ये हमारे भैया हैं।" शानू भी कम नहीं थी, वो भी चिल्लाई, "इनके बारे में कुछ भी कहा ना तो अच्छा नहीं होगा।" वे बदमाश लड़के आगे बढे और रानू के बाल खींचने लगे। शानू ने उस लड़के को पीछे से पकड़ कर खींचा और धक्का दिया। छोटी सी शानू में पता नहीं कहाँ से इतनी ताकत आ गयी कि वो लड़का हवा में तैरता हुआ दूर जा गिरा। यह देखकर बाकी सब लड़के भाग गए। शानू ने देखा गणेशा की मूर्ति मुस्कुरा रही थी। उसने उसे अपनी गोद में लिया और कहा, "चलो गणेशा यहाँ से चलते हैं, यहां लोग अच्छे नहीं हैं।"
गणेशा ने गोद में बैठे-बैठे ही कहा, "मुझे तो बहुत मज़ा आया। मैं सबके लिए लड़ने जाता हूँ, आज कोई तो मेरे लिए लड़ा।"
"लेकिन मुझमें ताकत कहाँ से आई? हाँ गणेशा! बोलो तो।" शानू ने गणेशा की मूर्ति से आँखे मिलाते हुए कहा तो मूर्ति की आँखें चमकने लगीं और मूर्ति बोली, "वो तुम्हारे अंदर की ताकत थी, मैं तुम्हारे अंदर भी हूँ, हमेशा के लिए।"
"अच्छा!" शानू चहकते हुए बोली।
"हाँ! तुम्हारे ही नहीं मैं तो रानू के अंदर भी रहता हूँ। उन लड़कों के अंदर भी जो हमें परेशान करने आये थे, मैं तो सबके अंदर रहता हूँ। लेकिन, कोई मुझे पहचानता ही नहीं, सब के सब दुनिया को पहचानते हैं, खुद के शरीर को पहचानते हैं, मुझे बाप्पा कहते हैं, लेकिन मानते नहीं। तुमने भाई माना तो देखो मैं आया ना!" गणेशा की आवाज़ में बच्चों जैसे खनक थी।
रानू-शानू को अब जैसे दुनिया से कोई मतलब नहीं था। वे दोनों गणेशा के साथ दिन भर खेलती रहीं। उस दिन दोनों स्कूल नहीं गयीं। शाम को जब डैडी फिर से आये तो मम्मी ने बताया कि दोनों बेटियां स्कूल नहीं गयीं। डैडी ने दोनों को बुला कर पूछा तो शानू बोली, "कैसे जाते, कल ही तो हमारे भैया आये हैं, एक दिन भी उनके साथ नहीं खेलेंगे क्या?"
रानू भी बोली, "सच्ची डैडी! आज बहुत मज़ा आया, हमारे भैया हमारे सबसे बड़े गिफ्ट हैं... थैंक्यू डैडी।" कहते हुए दोनों बहनों के अपने डैडी के दोनों गलों को चूमा और अंदर भाग गयीं। डैडी भी दोनों बेटियों के प्यार से भर गए और गुनगुनाते हुए अपने कमरे में चले गए।
उस दिन रात को भी दोनों बहनों ने गणेश जी की मूर्ति से जी भर कर बातें कीं, लेकिन सवेरे मम्मी ने हुक्म जारी कर दिया कि आज तो स्कूल जाना ही है। मां का फरमान सुनकर दोनों बहने ग़मगीन हो गयीं, गणेशा ने पूछा,"क्या हुआ?" तो रानू बोली,"गणेशा आपको छोड़कर अब हम स्कूल नहीं जाएंगी। आप हमारे लिए इतनी दूर से आये हो, हम दोनों आपको अकेला नहीं छोड़ेंगी। "
"बस इतनी सी बात है।" गणेश जी की मूर्ति फिर अपने ही अंदाज में मुस्कुरा दी और बोली, "देखो! तुम मुझे अपने बैग में छिपा दो, फिर हम इंटरवेल में खूब खेलेंगे।" सुनकर दोनों बहनें चहक उठीं। शानू ने गणेशा को अपने बैग में छिपा दिया।
स्कूल के इंटरवेल में भी वे दोनों गणेशा की मूर्ति के साथ खेलने और बातें करने लगीं। वहीँ प्रिंसिपल सर भी खड़े थे, उन्होंने यह देखा तो उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ। प्रिंसिपल सर ने उन दोनों को अपने कमरे में बुलाया और पूछा तो दोनों बहनों ने सच-सच बता दिया। प्रिंसिपल सर को उन दोनों की बातों पर विश्वास नहीं हुआ, दोनों के बार-बार कहने पर उन्होंने जब गणेश जी की मूर्ति से बात की तो वो कुछ नहीं बोली, हिली तक नहीं।
प्रिंसिपल को दोनों बहनों में कुछ गड़बड़ लगी और उन्होंने उनके डैडी को फ़ोन कर के बुलाया, डैडी भागे-भागे आये और सब बात जानकर रानू और शानू को अपने साथ घर लेकर चले गए।
घर पर पहुँचते ही रानू ने कहा, "डैडी आप ने ही तो कहा था कि ये हमारे भैया हैं। फिर आप ही हमारी बात पर विश्वास नहीं कर रहे। "
डैडी ने कहा, "वो तो ठीक है लेकिन मैं कैसे मान लूँ कि एक मूर्ति बात कर सकती है?"
"अब नहीं कर रही, लेकिन हमारे साथ करती है डैडी।" शानू ने भी कहा।
डैडी को बिलकुल विश्वास नहीं आया और उन्होंने गणेश जी की मूर्ति के सामने बार-बार पूछा कि कहलवाओ लेकिन मूर्ति टस से मस नहीं हुई। गुस्से में डैडी ने रात को खाना भी नहीं खाया और दोनों बहनें भी चुपचाप भूखी ही सो गयीं। उस रात गणेशा की मूर्ति उनके साथ नहीं थी। डैडी ने उसे घर के मंदिर में रख दिया था।
रात थोड़ी बीती ही थी कि शानू की आँख खुली, उसने देखा गणेशा की मूर्ति उसके सामने खड़ी है, उसने झकझोर कर रानू को भी जगाया। रानू आँखें मसलती हुई जागी। दोनों ने गणेशा को देखकर बुरा सा मुंह बनाया और आँखे दूसरी तरफ फेर लीं। गणेशा ने कहा, "मैं जानता हूँ तुम दोनों मुझसे नाराज़ हो, मेरे कारण तुम दोनों ने बहुत बुरा भला सुना है। "
"भला नहीं सिर्फ बुरा। " शानू ने आँखे फेरे-फेरे ही तीखे स्वर में कहा।
“हाँ!हाँ! सिर्फ बुरा...” गणेश जी बोले, "लेकिन मैं चुप क्यूँ रहा, इसका कारण भी नहीं पूछोगी?"
"नहीं, भाई होकर आप बहन की रक्षा के लिए नहीं आये..." शानू की आवाज़ तब भी तेज़ ही थी।
गणेशा ने आँखें नीची कर लीं, "इसलिए कि प्रिंसिपल साहब और डैडी मुझे सिर्फ एक मूर्ति मानते हैं, उनकी मान्यता है कि मुझमें प्राण नहीं हैं, जो मुझे जैसे मानता है मैं वैसा ही बन जाता हूँ। तुम दोनों ने मुझे अपना भाई माना तो भाई बन गया। अगर मैं उनके सामने बात करना शुरू कर देता तो जानती हो क्या होता?"
"क्या होता?" रानू ने पूछा
"बंटाधार हो जाता और क्या? अरे! वे दोनों इस बात को कहाँ-कहाँ नहीं करते, पूरे विश्व में बात फ़ैल जाती। सारे अखबार, टीवी, सोशल मीडिया में सब जगह फ़ैल जाता। लोग पागल हो जाते। यह जो घर है ना वो तीर्थ स्थान बन जाता। मैं आया हूँ, तुम दोनों का स्नेह पाने के लिए यह मेरा तीर्थ स्थल है। यह सब काम करने नहीं। मैं कोई चमत्कार नहीं हूँ। मुझे भी प्यार चाहिए, अगर मैं प्रिंसिपल सर और डैडी के सामने बात करता तो चमत्कार हो जाता।"
गणेशा एक पल को रुके और बोले, "तब मेरा क्या होता, मुझे बहनों का स्नेह नहीं मिलता। मिलती वही पुरानी भक्ति - वही बातें।"
"ओह! तो ये बात थी।" रानू की समझ में बात आई और शानू भी सिर खुजाते हुए समझ गयी।
"जानती हो आज कौन आया है?" गणेशा दोनों बहनो से स्नेह से मुखातिब हुए।
"कौन?" दोनों आश्चर्यमिश्रित आवाज़ में एक साथ बोली।
"मेरा मूषक राज!" गणेशा ने इशारा किया।
वहां एक मोटा-तगड़ा चूहा खड़ा था। गणेशा उन दोनों के लिए मोदक लाये थे जिन्हे चारों ने मिलकर खाया और खाने के बाद गणेशा ने कहा, "मुझे वापिस जाना है। मूषक राज मुझे लेने ही आये हैं।"
सुनकर दोनों बहने रोने लगीं, गणेशा ने वचन दिया कि जब भी दोनों बहने उन्हें बुलाएंगी वे आएंगे। वैसे तो हर राखी पर आएंगे ही और मूर्ति रूप में उनके साथ ही रहेंगे लेकिन वे दोनों कभी भी किसी से ये नहीं कहेंगी कि ये गणेशा ही असली गणेशा हैं। दोनों बहनों ने भी वचन दिया।
जाते-जाते मूषक राज बोलें, "गणेशा तो सबके साथ रहते हैं, सिर्फ बुलाने वाला चाहिए।"
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