अतृप्त आत्मा - 3 - अंतिम भाग pratibha singh द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अतृप्त आत्मा - 3 - अंतिम भाग

वो चुड़ैल अपनी भयानक शक्ल लिए मेरे सामने खड़ी थी , और डर के मारे मेरी घिग्घी बंधी हुई थी न तो मैं आगे बढ़ पा रही थी न ही पीछे , कहते है न की डर में भी एक सम्मोहन होता है।

मैं अपनी सारी इच्छा शक्ति को समेट के आगे बढ़ी बस एक छोटा सा कदम आगे रखा , और फिर चुड़ैल को देखा उसने कोई हरकत नही की , मेरी थोड़ी हिम्मत बढ़ी मैंने एक कदम और आगे बढ़ाया और मेरे कदम बढ़ाते ही चुड़ैल गायब हो गयी
अब मुझे थोड़ी हिम्मत और बढ़ी और मैं हॉल में अंदर आ गयी , मैं जैसे ही हॉल में अंदर आयी तो हॉल इतनी गन्दी बदबू से भर उठा की मेरी नाक फटने लगी ऐसा लग रहा था जैसे वहा पे सैकड़ो चिताएं एक साथ जल रही हो
मांस और बालों के जलने की विकट दुर्गन्ध , और चारों तरफ से आती ठहाको की आवाज
बड़ा ही भयावना माहौल हो रहा था
चारो तरफ उसी चुड़ैल की हसने की आवाज गूंज रही थी वो हसती जाती और कहती जाती " नही बचोगे तुम दोनों मरोगे कोई नही बचेगा "
अब मुझे युवी को ढूढ़ना था आखिर वो गया तो गया कहा , तभी अचानक मुझे ख्याल आया कि बेहोश होने से पहले मेरा फ़ोन यही गिरा था और मैं दीये की रौशनी में अपना मोबाइल ढूढ़ने लगी
वही थोड़ी ही दूरी पर मुझे फ़ोन मिल गया गिरने के कारण वो बन्द हो गया था मैंने उसे फिर से चालू किया और युवी के नंबर पर कॉल किया
रिंग जा रही थी मुझे युवी के फ़ोन की रिंग टोन उसी हॉल में सुनाई दी
मैं घूम घूम के उसे ढूढ़ने लगी पर वो कही दिख ही नही रहा था मैं रिंग की आवाज का पीछा करते करते हॉल में एक दिशा में बढ़ी
पर ये क्या युवी यहां भी नही दिखा मैंने ध्यान देके सुनने की कोशिश की
आवाज ऊपर की तरफ से आ रही थी और मैंने जैसे ही नजरें ऊपर उठायी मेरा कलेजा धक हो के रह गया
युवी ऊपर दीवाल से चिपका लटका हुआ था फ़ोन उसकी जेब में पड़ा हुआ था
मैं चीख चीख के उसको आवाज देने लगी पर वो ऐसे लटका रहा जैसे उसे मेरी आवाज ही ना सुनाई दे रही हो।
दीये की रौशनी में ऊपर का कुछ साफ़ भी नही दिख रहा था
मैंने अपने गले का स्टोल निकाला और दीये की लौ में उसे जला के नीचे डाल दिया उसकी रौशनी पुरे हॉल में फ़ैल गयी
अब मैंने युवी की तरफ देखा वो बेहोश दीवाल से चिपका लटक रहा था तभी मेरी नजर छत के दायीं तरफ गयी वो चुड़ैल घुटनो के बल रेंगती हुई युवी की तरफ बढ़ रही थी और अब उसका सिर उसकी गर्दन पर था
युवी को इस हाल में देख के मैं अपना डर भूल गयी और मैं चिल्ला चिल्ला के उसे आवाज दिये जा रही थी
पर उसे होश होता तब वो कुछ सुनता वो चुड़ैल उसके पास आके अपनी लम्बी सी जीभ से युवी को चाटने लगी
मैंने पहले सुन रखा था कि भूत आग से डरते है ये ध्यान आते ही मैंने जलते स्टोल का एक टुकड़ा उठाया और उसकी तरफ उछाल दिया
वो वहा से गायब हो गयी अचानक और पूरा हॉल ठहाको की आवाज से गूँजने लगा
तभी मुझे अपने पीछे से बहुत बुरी दुर्गन्ध आयी तो मै पीछे पलटी पीछे तो कलेजा मुह को आ गया
वो चुड़ैल खम्बे पर उलटी रेंगती हुई नीचे उतर रही थी वो मेरी तरफ देख देख के हसती जाती थी
डर के मारे रोंगटे खड़े होने की बाते सुनी थी पर आज तो मेरे रोंगटे को बैठने की फुर्सत नही थी जबसे महल के अंदर आयी थी तबसे ही खड़े थे
पर डर का सामना तो करना ही था ,
मैंने वो जलता टुकड़ा फिर उठाया और बढ़ी उसकी तरफ आगे
वो चुड़ैल गुस्से में आ नीचे उतर के खड़ी हो गयी और फुफकारती हुई बोली "तू मेरा कुछ नही बिगाड़ सकती"
मैंने बिजली की भी ज्यादा तेजी से वो टुकड़ा उसकी तरफ फेंका
टुकड़ा जाके सीधे उसके मुह पे गिरा और वो चीखती हुई फिर से गायब हो गयी
अब मैं खुश थी क्योंकि मैंने उसकी कमजोरी जान ली थी अभी तक वो हावी थी मुझपे अब बारी मेरी थी
मैंने गीता में पढ़ा था कि" क्षत्रिय के लिए युद्ध स्वर्ग का द्वार है" और अब मुझपे एक जूनून सा छाने लगा था मैंने अब चुड़ैल से लड़ने की ठान ली या तो आज वो हारेगी या फिर वो मुझे मारेगी
और मैंने ललकारते हुए उसे आवाज दी "आ अब कहा है तू डर गई मुझसे आ देखते है आज कोन किसको खत्म करता है "
मेरे इतना बोलते ही सरसर की आवाज के साथ वो चुड़ैल मेरे सामने आके खड़ी हो गयी वो भयंकर गुस्से में थी उसकी लटकी हुई आँखे गुस्से से लाल हो रही थी
मैंने अपने कपड़ों के ऊपर पहना हुआ श्रग उतारा उसका एक छोर हाथ में पकड़ दूसरा आग में लगा दिया
जैसे ही वो जला मैं उसे लेके चुड़ैल की तरफ बढ़ी उसने अपना रूप और भयानक बना लिया अपने बड़े बड़े नाख़ून मेरी तरफ करके बढ़ी ,
जब तक की वो मुझपे हमला करे मैंने जलता हुआ श्रग घुमा के उसके मुह पे मारा
वो चीख के दो कदम पीछे हटी इससे मेरा जोश और बढ़ गया अब मैंने उसपे अंधाधुंध वार करने शुरू किये और उससे पूछा"बता क्या बिगाड़ा है हमने तेरा क्यों पीछे पड़ी है"
वो दहाड़ती हुई चिल्लाई "नही छोडूगी"और गायब हो गयी
अब तक मुझे एक बात समझ नही आयी थी कि ये चुड़ैल आखिर मुझपे हमला क्यों नही करती जिस तरह इसने युवी की हालत की मेरी भी कर सकती थी आखिर क्या वजह है जो मैं अब तक बची हूँ, ये रहस्य अगर मैं जान लेती तो मेरा उससे मुकाबला करना और आसान होता
मगर इतना तो हुआ था कि अब तक मैं डरी हुई थी चुड़ैल से और अब वो डरी हुई थी मुझसे कहते हैं ना की डर के आगे जीत है मैंने आखिरी आखिरी तक उम्मीद का साथ नही छोड़ा था और ये शायद मेरी उम्मीद ही थी जो अब तक बची हुई थी
अब मैंने फिर चुड़ैल को ललकारा "कहाँ छिप के बैठ गयी आ बाहर सामना कर मुझसे तू भी याद करेगी किसी राजपूत से पाला पड़ा था"
मुझे हॉल के अंदर बने एक छोटे से दरवाजे पे चूड़ियों की खनक सुनाई दी इस वक़्त मुझपे एक अजीब सा नशा छाया हुआ था , मैं पुरे जोश के साथ उस दरवाजे के अंदर हो गयी
दरवाजे के अंदर ही एक कोने में मैंने उसे बैठे देखा उसकी मेरी तरफ पीठ थी उसके पास से अजीब सी चप चप की आवाज आ रही थी
मेरे आते ही वो मेरी तरफ घूमी उसका हाल देख के जी मितलाने लगा
वो हाथो में किसी का कलेजा लिए थी और बड़े मजे ले लेकर उसे खाये जा रही थी हाथ मुह से खून बह बह कर टपक रहा था जिसे वो अपनी लम्बी जीभ से चाटती जाती थी अगर यही सीन मैंने थोड़ी देर पहले देखा होता तो यकीनन मैं डर के मारे बेहोश हो जाती
पर इस वक़्त मुझ पर जूनून सवार था उसे मात देने का और ये चुड़ैल लड़ाई अधूरी छोड़ यहां डिनर कर रही थी
मैंने उसे हमला करने का मौका दिए बगैर वो जलता हुआ कपड़ा सीधा उसके ऊपर फेक दिया आग सीधी उसके कपड़ो में लगी और वो जलने लगे और सेकंड के सौवे हिस्से में दौड़ के मैंने उसके बाल पकड़ लिए
कही सुना था चुड़ैल की शक्ति उसके बालो में होती है मेरा जैसे ही उसके बाल पकड़ना था कि वो एकदम असहाय सी हो गयी आग से जलती चीखती चिल्लाने लगी
मैं उसको घसीटती हुई बाहर लायी , बाहर आके देखा तो युवी नीचे गिरा हुआ था , मुझे अपनी जीत पे बहुत ख़ुशी हुई
मैंने उस चुड़ैल को वही लाके पटका जहाँ वो दिया रखा हुआ था उसके बाल पकड़े पकड़े मैंने दिया हाथ में उठाया और एक पैर उसके सीने पे रख कर कहा"अब जल्दी बता तू कौन है और क्यों परेशान किया वरना अभी तेरी चोटी में आग लगा दूँगी "

इतना सुनते ही वो हँसी और बोली"मरे हुए को तुम क्या मारोगी जाओ तुम दोनों जाओ यहां से मैं तुम दोनों को छोडती हूं तेरी किस्मत अच्छी थी जो तू मेरे हाथों बच गयी वरना आज तक कोई नही बचा मुझसे "

"तो तू मुझे मार क्यों नही पायी" मैंने उससे पूछा

"तेरे गले का ताबीज और तेरे पूर्वजन्म के संस्कार जिनकी वजह से तू बच गयी "

इतना सुनते ही मेरा ध्यान अपने ताबीज पर गया ये ताबीज मेहंदीपुर बालाजी का था जो मेरी मम्मी ने मुझे बांधा था।
अब मुझे समझ आया की मैं अब तक क्यों बची रही ये सुन के मेरी हिम्मत और दूनी हो गयी मैंने उससे कहा"अब तू कोन है और क्यों लोगो को मारती है ये भी बता दे "

"नहीँ बताऊँगी , बस इतना जान ले जो यहाँ जोड़े में आएगा वो मारा जायेगा"
उसके ना करते ही मैंने उसकी चोटी को दिए की लौ में लगा दिया और उसको छोड़ दिया

मेरे ये करते ही हाहाकार मच गया ऐसा लगा जैसे उस हॉल में प्रलय सा आ गया हो , चारो तरफ से ऐसा लगा जैसे लपटे उठने लगी हो पूरा महल जैसे जल रहा हो उस चुड़ैल की चीखें मेरे कान फोड़ने लगी और ये होते ही युवी को भी होश आ गया

वो भाग के मेरे पास आया और बोला"तुम ठीक तो हो और ये सब क्या है"
मैंने उसे बोला"रावण मर चुका है अब सिर्फ दहन होना बाकी है"

अचानक उस चुड़ैल की आवाज गूंजी "क्या बिगाड़ा था मैंने किसी का क्यों मुझे मरने के बाद भी जलना पड़ रहा है" और दहाड़े मार मार के रोने लगी

काफी देर के हाहाकार के बाद एकदम शांति सी हो गयी और वो चुड़ैल पड़ी पड़ी जल रही थी अब खड़ी हुई अब उसकी सूरत एकदम बदली हुई थी जो कपड़े उसके जल रहे थे अब एकदम बदले हुए दिखने लगे उसका चेहरा भी एकदम बदल गया था अब उसका चेहरा देख के कोई भी कह सकता था कि ये कोई खूबसूरत रानी है।

खड़े होके उसने मेरी तरफ देखा और बोली "जाओ तुम दोनों यहाँ से मैं तो अनंत काल से इस आग में जल रही हूँ पर तुमने उस पवित्र आग से मुझे जला के मेरे पिशाच रूप को तो मुझसे दूर कर दिया पर मेरी आत्मा को मुक्ति नही मिलेगी" उसकी आवाज में उसकी सदियों की पीड़ा साफ़ झलक रही थी ।
मैंने उससे पूछा तुम कौन हो और क्या रहस्य है तुम्हारा , युवी ये सारा माजरा देख के हक्का बक्का खड़ा था ।

"मैं कभी इस महल की रानी थी "वो आंसू बहाते हुए बोली "राजा मान सिंह की बड़ी रानी नयनतारा "

मैं समझ गयी की ये वही जौहर करने वाली 8 रानियों में से एक है।

"पर तुम इस रूप में कैसे आयी
"
अपने पति के के युद्ध में जाने के बाद हम आठों रानियों ने जौहर कर लिया पर मेरा असली जौहर तो उसी दिन हो गया था जिस महाराज मृगनयनी को इस महल में लेके आये"

मृगनयनी मुझे याद आया राजा मानसिंह की प्रेमिका थी और उनकी नोवी पत्नी जो उनके साथ युद्ध में मरी थी

"हाय मेरा दुर्भाग्य बनके आयी वो "वो फिर दहाड़े मार के रोने लगी "एक विवाहित स्त्री के लिए पति की उपेक्षा से बड़ा कोई कष्ट नहीँ मैंने सारे जीवन उस कष्ट को झेला , जौहर की अग्नि भी मेरे उस दर्द को भस्म नही कर पाई और मैं इस रूप में आ गयी तबसे लेके आज तक मैं जब भी किसी प्रेमी जोड़े को देखती हूं तो मेरी वही ईर्ष्या जाग जाती है "
उसकी ये बाते सुन मुझे भी उससे सहानुभूति हुई
"तो तुम्हारी मुक्ति का कोई तो उपाय होगा"
"सम्भव नही जाओ तुम दोनों तुम्हारा एहसान है मुझे पिशाच रूप से मुक्त किया अब मेरी आत्मा को इसी महल की दीवारों में कैद रहना है" इतना कह वो गायब हो गयी।
मैं और युवी वहाँ से चल दिए हम दोनों चुप थे बोलने की स्थिति में नही थे
ऊपर आके समस्या थी दरवाजा खोलने की वहाँ पास में पड़ा एक पत्थर ले युवी ने अंदर से बड़ी मुश्किल ताला तोड़ा ।
बाहर निकल के हमने मोबाइल में टाइम देखा तो सुबह के 4 बज रहे थे इसका मतलब हमारी पूरे 12 घण्टे इसके अंदर बन्द थे ।
हम दोनों ने अंदर जो कुछ देखा और भुगता था उससे हालत ये थी की अब चला नही जा रहा था बाहर निकल के उस चढ़ाई वाले रास्ते में हनुमान जी का मंदिर था हम दोनों वही बैठ गए ।
अब मैंने युवी से पूछा "तुम अचानक गायब कैसे हुए "
मुझे कुछ याद ही नही ह बस इतना याद है कि जब हॉल में अंदर तुम उस खम्बे की तरफ बढ़ी तभी ऐसा लगा की जैसे मेरे सर पे किसी ने हथौड़ा मारा हो और मैं बेहोश हो गया , होश तब आया जब वो चुड़ैल को तुम जला रही थी, अब तुम बताओ की हुआ क्या था"
मैंने सारी बात उसको बताई जो जो मेरे साथ हुई किस तरह मैंने चुड़ैल से लड़ाई लड़ी।
सब कुछ सुन के वो मुझे गले लगाते हुए बोला" आज तो मुझे मेरे राजपूत लड़ाके ने बचा लिया "
अचानक उसका ध्यान मेरे हाथों पर गया जो उस चुड़ैल को जलाने में झुलस गए थे और उनमें फफोले पड़ गए थे वो अपना रुमाल निकाल उनपे बांधते हुए बोला "अब आगे से भूत प्रेत से मत लड़ना मेरे लड़ाके तुम्हें कुछ हो गया तो मैं क्या करूँगा"
"पर युवी एक बात समझ नही आयी "
"क्या"
"वो तो पिशाच थी मान सिंह की रानी जिसने हमे परेशान किया पर वो कोन थी जो मेरी मदद करने आई थी , और मुझे वो दिया देके गयी थी "
"हम्म क्या पता होगी कोई भली आत्मा पर ये चुड़ैल आग से इतना क्यों डरी" वो अपना सर खुजाते हुए बोला
" अरे एक तो भूत वेसे भी आग से डरता है और फिर ये जौहर में जलके मरी थी इसलिये इसकी आत्मा आग से डरती है"
"हम्म"

उसके बाद हम दोनों वहाँ से लौट आये और फिर कभी उस किले पर नही गये , पर एक सवाल मुझे आज तक परेशान करता है कि जो औरत मेरी मदद करने आई थी वो आखिर कौन थी !