अतृप्त आत्मा भाग-2 pratibha singh द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अतृप्त आत्मा भाग-2

मुझे होश कब आया मैं कितनी देर बेहोश रही कुछ नही पता

पर जब मेरी आँख खुली तो रात हो चुकी थी ,क्योंकि आसमान में तारे दिख रहे थे , पर तभी अचानक मुझे याद आया कि मैं तो उस नीचे वाले हॉल में बेहोश हुई थी फिर ये आसमान कैसे दिख रहा है।

मैंने अपने आस पास नजर दौड़ाई तो पाया कि मै उस झरोखों वाले आंगन में हूं

और युवी अभी भी मुझे कही नही दिखा पता नही वो कहा गया था , मुझे कुछ समझ नही आ रहा था क्या वो मुझे अकेला छोड़ के भाग गया था या फिर वो खुद किसी मुसीबत में था।
मैं उस अँधेरे आंगन में बैठे बैठे ये सब सोच रही थी
हालाँकि मैं काफी डरपोक किस्म की हूँ, और अँधेरे में अकेले होने से बहुत ही डर लगता है तिस पर ऊपर से उस खतरनाक चुड़ैल से सामना ,
पर कहते है न की डर तभी तक है जब तक मुसीबत सामने नही आयी
मैं उठ के वहा से बाहर के लिए चली शायद बाहर कोई मिल जाये मदद के लिए
पर पता नही आज किस्मत कौन सा खेल खेलने वाली थी
पर ये क्या बाहर महल के दरवाजे तो बन्द है और उसमें बाहर से ताला भी पड़ा था , इसका मतलब किले का गार्ड महल को बंद कर जा चूका था , एक आखिरी थी उम्मीद वो भी खत्म
पर ऐसा हो कैसे सकता क्योंकि महल बन्द करने से पहले गार्ड हर जगह देखता है कि कोई सैलानी तो नही है , मेरी किस्मत क्या इतनी खराब की आज गार्ड ने भी चेक नही किया ।
मेरा दिमाग अब पूरी तरह सुन्न था अब ना मैं कुछ सोच पा रही थी ना ही कुछ महसूस कर पा रही थी
मैं बस उस जालियों वाले दरवाजे के सामने खड़ी बाहर की ओर देखे जा रही थी
पर तभी एक उम्मीद की किरण चमकी बाहर से एक औरत हाथ में जलता हुआ दिया लिए महल की तरफ आती दिखी
मैं चिल्ला चिल्ला के उसे आवाज देने लगी ,, प्लीज यहां आइये , मैं यहां अंदर फस गयी हूँ मुझे बाहर निकलने में मदद करिये ,,
वो औरत जैसे जैसे मेरे नजदीक आ रही थी उसका हुलिया स्पष्ट होता जा रहा था
उसने काफी भारी भरकम जेवर और कपड़े पहने हुए थे , दोनों हाथों में वो दिया पकड़े चेहरे पर घूंघट डाले चली आ रही थी
उसके कपड़ो और जेवरों से मैंने इतना तो समझ ही लिया की ये भी कोई रहस्मयी औरत ही है या हो सकता है वही चुड़ैल हो पर ये उसकी तरह वीभत्स और डरावनी नही लग रही थी ।
अब वो औरत मेरे ठीक सामने आकर खड़ी थी
मैंने टूटी टूटी आवाज में उससे कहा" आप कौन है और यहां कैसे इतनी रात में "
मैं तुम्हारी मदद करने आई हूं "उसने गूंजती हुई आवाज में कहा
दिल को बड़ा ही सुकून मिला इन शब्दों से मैंने उससे कहा" प्लीज मुझे कैसे भी बाहर निकलने में मदद करो " और मैंने अब तक जो देखा था वो सब उसे बता दिया और आखिरी में कहा " मेरे साथ मेरा मंगेतर भी था पर वो मुझे इस मुसीबत में अकेला छोड़ के भाग गया "
"नही वो भागा नहीँ है वो बहुत बड़ी मुसीबत में है और तुम्हें उसको बचाना है प्रीत"

उसके मुंह से अपना नाम सुन मैं चोंकी "आपको मेरा नाम कैसे पता "

"मुझे सब पता है प्रीत अब तुम नीचे उसी जगह जाओ जहा तुमने उसे देखा था , और ये दिया अपने साथ लेती जाओ और याद रहे ये दिया बुझने ना पाये " इतना कह उसने दरवाजे की जाली से हाथ अंदर डाल दिया मुझे पकड़ा दिया ।
मैंने दिया लेके जैसे ही मुह ऊपर उठाया तो सामने कोई नही था
मैं डर के मारे गिरने को हुई पर खुद को समझाया कि ये थी तो आत्मा पर अच्छी आत्मा थी और मेरी मदद के लिए ही आयी थी।
मैं जब दिया लिए आंगन की तरफ बढ़ी तो ये क्या अभी तक जो सूना पड़ा था वह महफ़िल सजी हुई थी
और आंगन की तरफ जाने वाले दरवाजे पर दो पहरेदार तलवारे लिए खड़े थे
मैं वही खड़ी रह गयी अब आगे कैसे जाऊ तभी अचानक उसी औरत की आवाज गूंजी
" प्रीत आगे बढ़ो ये सब एक छलावा है मत भूलो तुम्हारा युवी मुसीबत में है"
मुझे थोड़ी हिम्मत बढ़ी और मैं आगे बढ़ी तो वो पहरेदार जो अभी तक मुह सीधा किये शांत खड़े थे दोनों ने मेरी तरफ गर्दने घुमा दी उनकी आँखे आग सी दहक रही थी मैंने डरते डरते एक कदम आगे बढ़ाया ही था कि दोनों अपनी नंगी तलवारे लिए मेरे ऊपर झपटे मैंने सोच लिया आज अंत है जीवन का और आँखे खुद ब खुद बन्द हो गयी ।
पर जब काफी देर तक कुछ ना हुआ तो धीरे धीरे आँख खोली पर ये क्या आंगन तो पहले की ही तरह सुनसान था ।
अब मैं युवी को आवाज देते हुए आगे बढ़ी और नीचे की ओर जाने वाली सीढियो पे आ गयी।
मैं डरते डरते एक एक कदम रख रही थी मैं पहली मंजिल पर आ गयी पर मुझे युवी को ढूढ़ने तीसरे तल में जाना था जहाँ उस चुड़ैल से मेरा सामना हुआ था
अब मैं दूसरी मंजिल के रास्ते पर थी पर तभी अचानक हवा का बहुत तेज झोंका आया मैं दिए को सीढ़ी पर रख उस पर पूरी तरह झुक गयी
पता नही कब तक वो आंधी चलती रही क्योकि मुसीबत का एक एक पल युग के समान लगता है ।
जैसे ही वो आंधी बन्द हुई मैं दिया उठा के फिर नीचे की ओर चल दी
अब तक मेरी समझ में इतना आ चुका था कि ये दिया कोई मामूली नही है ये अवश्य ही मेरा कोई रक्षा कवच है वरना आम दीया उस आंधी में नही टिक सकता था ।
अब मैं तीसरी मंजिल के दरवाजे पे आके खड़ी हो गयी थी और युवी को आवाज दिए जा रही थी
तभी एक कोने से मुझे किसी औरत के रोने की आवाज आती है मैं उस तरफ जैसे ही कदम बढाती हूँ तो फिर से उसी औरत की आवाज आती है "खबरदार प्रीत एक कदम भी आगे मत बढ़ाना "
इतना सुनना था कि वो चुड़ैल भयंकर गुस्से में चिल्लाती है "नही बचोगे तुम दोनों नही बचोगे " इतना कह वो गायब हो जाती है
अब मैं धीरे धीरे उसी दरवाजे की तरफ जाती हूं पहला दरवाजा बिना किसी दिक्कत पार कर जाती हूं पर जैसे ही दूसरे दरवाजे पर पहुचती हूँ सामने दिल दहलाने वाला नजारा होता है
वो चुड़ैल अपना ही सर बालो से पकड़ कर हाथो में लटकाये खड़ी थी उसकी आँखे बाहर को लटकी थी और जीभ अभी भी लपलपा रही थी
डर का एहसास इतना ज्यादा था कि मुझे अपनी टांगे बेजान होती महसूस हुई
तभी बाहर हॉल से धीमी सी आवाज आई
"प्रीत अब आगे मैं तुम्हारी मदद नही कर पाऊँगी वहा अंदर मैं नही आ सकती तुम हिम्मत रखना जब तक वो दिया जलता रहेगा वो तुम्हारा कुछ नही बिगाड़ सकती"



आगे क्या हुआ क्या प्रीत युवी को बचा पायी या नही क्या हुआ उन दोनों का

समयाभाव के कारण कहानी को पूरा नही कर सकी पर इसका अगला पार्ट जल्दी ही आप लोगो के सामने लाऊँगी आप लोगो की प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा

copyright@pratibharathore