Atrupt aatma - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

अतृप्त आत्मा भाग -1

ग्वालियर का किला अपने में बेजोड़ है , इसे भारत का जिब्राल्टर भी कहते हैं ।
आज हमने ग्वालियर किले पे जाने का प्लान बनाया था , मैं और युवी करीब दोपहर के तीन बजे किले के मुख्य दरवाजे पर पहुँचे , अब यहां से आगे की चढ़ाई हमे पैदल ही चढ़नी थी ।
किले की चढ़ाई काफी ऊँची और सीधी है , चढ़ते चढ़ते मेरा दम फूलने लगा , तो युवी को चिढ़ाने का मौका मिल गया कहने लगा "लो तुम्हारी सांस तो इतने में ही फूलने लगा केसी राजपूत हो"
मैं कोई जवाब ना दे आगे बढ़ती रही , तकरीबन चार बजे हम किले के ऊपरी द्वार के सामने थे .
आगे जाने के लिए टिकट ले हम किले के अंदर गये , सबसे पहले हमे मान सिंह महल मिला , इसे राजा मान सिंह ने बनवाया था ,
स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है ये , इसकी जमीन के अंदर चार मंजिले है , जिनमे चौथी मंजिल को बंद कर दिया गया है अब ।
सीढिया चढ़ के हम महल के अंदर के प्रांगण में गये , एक खुला चौकोर आंगन सा और चारो तरफ झरोखे बने हुए थे ।
सोमवार का दिन होने के कारण टूरिस्ट काफी कम ही थे ,
हमारे अलावा सिर्फ दो विदेशी औरते ही थी , वो शायद महल घूम चुकी थी क्योंकि हमारे जाते ही वो भी महल से बाहर निकल गयी ।
अब महल के अंदर सिर्फ हम दोनों थे।
अकेले महल में मुझे थोड़ा अजीब सा लगा तो मैं युवी को बोलने लगी अच्छा रहता अगर हम गाइड कर लेते अब अकेले तो मुझे डर से लगेगा ।
मेरे होते हुए डर किस बात का , और फिर अच्छा है ना इसी बहाने तुमसे दिल की बाते भी कर लूंगा युवी हँसते हुए कहने लगा ।
आंगन के दायीं तरफ दोनों और से नीचे जाने के लिए सीढिया बनी हुई थी और बायीं तरफ एक काफी बड़ा हॉल सा था जो पहले जमाने में नर्तकियों का ग्रीन रूम हुआ करता था । आंगन के ऊपर आठ झरोखे थे जिनसे आठो रानिया नृत्य देखा करती थी।
हम उन सीढ़ियों से होकर नीचे की मंजिलो में जाने लगे , हालांकि उन सीढ़ियों में लाइट जल रही थी पर फिर भी अँधेरा सा था , तकरीबन चालीस सीढिया उतर कर हम ठीक नीचे वाली मंजिल में पहुँच गये ।
मैं दरअसल हिस्ट्री की स्टूडेंट थी सो मुझे ग्वालियर किले के बारे में काफी कुछ जानकारी थी , जो मैं युवी को देने लगी।
वहां एक कुंड सा बना हुआ था। मैं उसके बारे में उसे बताने लगी  , इसे केसर कुंड कहते है इसमें राजा मान सिंह की रानिया नहाया करती थी ,,
प्रीत मैं सोचता हूं मैं भी तुम्हारे लिये एक केसर कुंड बनवा दू आखिर तुम भी तो मेरी रानी हो युवी हँसते हुए बोला ।
तुम केसर कुंड रहने दो मेरे लिए सोना बाथ बनवाना मैं हँसते हुए बोली
अच्छा तुमने राजा मान सिंह और मृगनयनी की लव स्टोरी तो सुनी ही होगी मैंने युवी से पूछा।
नही मेरी जान मैंने नही सुनी तुम्ही बता दो युवी मेरे दोनों कंधे पकड़ते हुए बोला।
हां तो सुनो,  मैं सिर्फ इतना ही बोल पायी थी कि पीछे से किसी के आने की आहट हुई शायद कोई औरत नीचे की तरफ आ रही थी , उसकी पायलों की आवाज लगातार सुनाई दे रही थी ,
पर दो मिनिट के ऊपर हो गए कोई भी नीचे नही आया
हमने सीढ़ियों के पास जाके देखा तो सीढ़ियों पर कोई नही था , मुझे थोड़ा डर सा महसूस हुआ तो मैं युवी से बोली , चलो हम ऊपर चलते है मुझे डर लग रहा है
अरे फालतू में डरती हो कोई ऊपर आया होगा उसकी आवाज होगी चलो हमे अभी नीचे की दो मंजिले और देखनी है , वो मुझे खीचते हुए बोला।
हम अब एक मंजिल और नीचे आ गये , खैर लाइट यहां भी जल रही थी पर काफी धीमी धीमी।
यहां का वातावरण काफी अजीब सा हो रहा था ,
"युवी तुम्हें मालूम है मान सिंह की आठो रानियों ने जौहर किया था और मृगनयनी मान सिंह के साथ ही लड़ते लड़ते शहीद हो गयी थी " मैं चुप्पी तोड़ते हुए बोली
हम्म , युवी का ध्यान कही और ही था , "क्या देख रहे हो तुम "मैं भी उसी तरफ देखते हुए बोली ।
वो सामने आले में कुछ दिख रहा है तुम्हें " युवी ने उस तरफ इशारा किया
मैंने जब आँखे गड़ा कर देखा तो दो चमकती हुई आँखे दिखी , डर के मारे मैं उससे लिपट गयी
रुको मैं देखता हूं क्या है " वो मुझे अलग करते हुए बोला , युवी ने जैसे ही उसकी तरफ कदम बढ़ाए तो वहां आले से एक काली बिल्ली निकल के ऊपर की तरफ भागी
युवी हस हस के दुहरा हुआ जा रहा था , मुझे भी अपने डर पर खीझ हो रही थी , मैं उससे कुछ ना बोल एक दाहिनी तरफ बने एक दरवाजे की तरफ बढ़ गयी
पर ये क्या उस दरवाजे के अंदर से भी पायलों की झंकार सुनाई दी मैंने तुरन्त युवी को आवाज दी ,"यहां आओ युवी यहां इसके अंदर कोई है "
उसने आके मोबाइल की टोर्च ऑन करके देखा तो किसी औरत की झलक दिखी जो उस दरवाजे के अंदर एक और दरवाजे से होते हुए अंदर चली गयी
मैंने डरते हुए युवी से कहा"चलो हम यहां से चलते है यहां अभी तो कोई नही था फिर ये औरत कहा से आ गयी"
"अरे हो सकता है वो हमसे पहले ही यहां आयी हो और चलो ना इसके अंदर चलके देखते है क्या है"
मेरे मना करने के बाद भी वो मुझे अंदर ले ही गया। जब हम दूसरे दरवाजे पे पहुचे तो देखा ये एक बड़ा सा हॉल है जिसमें काफी खम्बे बने हुए है
देखते देखते मेरी नजर एक खम्बे पे गयी तो मुझे लगा कि उसके पीछे वही औरत खड़ी है जो हमे पहले दरवाजे पर दिखी थी , मैं मोबाइल की टोर्च उसकी तरफ किये हुए आगे बढ़ी
उसके थोड़ा करीब जाके मैंने उससे पूछा "आप यहां अकेली ही आयी है कोई आपके साथ नही आया "
उसने कोई जवाब न दिया , उसके इस तरह खड़े होने और चुप होने पे मेरा डर और बढ़ गया मैंने डरते डरते फिर पूछा "आप यहां अकेली इस तरह क्यों खड़ी है"
पर वो उसी तरह पीठ किये खड़ी रही कोई जवाब न दिया उसने , मैंने डरते डरते उसके कंधे पे हाथ रख उसको हिलाया उसके बाद जो मैंने देखा तो मेरे होश उड़ गए उसने बिना मेरी तरफ पलटे अपनी गर्दन पूरी घुमा के चेहरा मेरी तरफ कर दिया , उसका चेहरा उफ्फ बड़ा ही भयानक था पूरा जला हुआ उसकी आँखे बाहर निकल के लटक रही थी और मेरी तरफ वो अपनी जीभ लपलपा रही थी
डर के मारे चीख निकल गयी मैं पलट के युवी की तरफ भागी जिसका अब तक मुझे ख्याल ही नही था पर ये क्या पलट के देखती हूं तो वहां युवी था ही नही सिर्फ मैं अकेली थी मेरी सोचने की शक्ति लुप्त हो गयी मैं बेतहाशा बाहर की तरफ भागी पर मेरा सर अचानक किसी चीज से टकराया और मैं बेहोश हो गयी

















यह मेरा कहानी लिखने का पहला प्रयास है , यह पूरी तरह काल्पनिक नही है इसमें कुछ वास्तविकता और कुछ मेरी कल्पना है , चूँकि यह मेरा पहला प्रयास तो त्रुटियां अवश्य ही होगी , तो कृपया आप लोग पढ़ के मुझे मेरी त्रुटियों से अवगत कराएं जिससे मैं अगले अंक में सुधार कर सकू


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