देस बिराना - 26 Suraj Prakash द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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देस बिराना - 26

देस बिराना

किस्त छब्बीस

इसी हफ्ते गौरी की बुआ की लड़की पुष्पा की शादी है। मैनचेस्टर में। हांडा परिवार की सारी बहू बेटियां आज सवेरे-सवेरे ही निकल गयी हैं। हांडा परिवार में हमेशा ऐसा ही होता हे। जब भी परिवार में शादी या और कोई भी आयोजन होता है, सारी महिलाएं एक साथ जाती हैं और दो-तीन दिन खूब जश्न मनाये जाते हैं। हम पुरुष लोग परसों निकलेंगे। मैं शिशिर के साथ ही जाऊंगा।

अभी दिन भर के कार्यक्रम के बारे में सोच ही रहा हूं कि मालविका जी का फोन आया है। उन्होंने सिर्फ तीन ही वाक्य कहे हैं - मुझे पता है गौरी आज यहां नहीं है। बल्कि पूरा हफ्ता ही नहीं है। आपका मेरे यहां आना कब से टल रहा है। आज आप इनकार नहीं करेंगे और शाम का खाना हम एक-साथ घर पर ही खायेंगे। बनाऊंगी मैं। पता लिखवा रही हूं। सीधे पहुंच जाना। मैं राह देखूंगी। और उन्होंने फोन रख दिया है।

अब तय हो ही गया है कि मैं अब घर पर ही रहूं और कई दिन बाद एक बेहद खूबसूरत, सहज और सुकूनभरी शाम गुजारने की राह देखूं। कई दिन से उन्हीं का यह प्रस्ताव टल रहा है कि मैं एक बार उनके गरीबखाने पर आऊं और उनकी मेहमाननवाजी स्वीकार करूं।

मौसम ने भी आख़िर अपना रोल अदा कर ही लिया। बरसात ने मेरे अच्छे-ख़ासे सूट की ऐसी-तैसी कर दी। बर्फ के कारण सारे रास्ते या तो बंद मिले या ट्रैफिक चींटियों की तरह रेंग रहा था। बीस मिनट की दूरी तय करने में दो घंटे लगे। मालविका जी के घर तक आते-आते बुरा हाल हो गया है। सारे कपड़ों का सत्यानास हो गया। सिर से पैरों तक गंदी बर्फ के पानी में लिथड़ गया हूं। जूतों में अंदर तक पानी भर गया है। सर्दी के मारे बुरा हाल है वो अलग। वे भी क्या सोचेंगी, पहली बार किस हाल में उनके घर आ रहा हूं।

उनके दरवाजे की घंटी बजायी है। दरवाजा खुलते ही मेरा हुलिया देख कर वे पहले तो हँसी के मारे दोहरी हो गयी हैं लेकिन तुंत ही मेरी बांह पकड़ कर मुझे भीतर खींच लेती हैं - जल्दी से अंदर आ जाओ। तबीयत खराब हो जायेगी।

मैं भीगे कपड़ों और गीले जूतों के साथ ही भीतर आया हूं। उन्होंने मेरा रेनकोट और ओवरकोट वगैरह उतारने में मदद की है। हँसते हुए बता रही हैं - मौसम का मूड देखते हुए मैं समझ गयी थी कि आप यहां किस हालत में पहुंचेंगे। बेहतर होगा, आप पहले चेंज ही कर लें। इन गीले कपड़ों में तो आपके बाजे बज जायेंगे। बाथरूम तैयार है और पानी एकदम गर्म। वैसे आप बाथ लेंगे या हाथ मुंह धो कर फ्रेश होना चाहेंगे। वैसे इतनी सर्दी में किसी भले आदमी को नहाने के लिए कहना मेरा ख्याल है, बहुत ज्यादती होगी।

- आप ठीक कह रही हैं लेकिन मेरी जो हालत है, उसे तो देख कर मेरा ख्याल है, नहा ही लूं। पूरी तरह फ्रेश हो जाऊंगा।

- तो ठीक है, मैं आपके नहाने की तैयारी कर देती हूं, कहती हुई वे भीतर के कमरे में चली गयी हैं। मैं अभी गीले जूते उतार ही रहा हूं कि उनकी आवाज आयी है

- बाथरूम तैयार है।

वे हंसते हुए वापिस आयी हैं - मेरे घर में आपकी कद काठी के लायक कोई भी ड्रैसिंग गाउन या कुर्ता पायजामा नहीं है। फिलहाल आपको ये शाम मेरे इस लुंगी-कुर्ते में ही गुज़ारनी पड़ेगी। चलिये, बाथरूम तैयार है।

एकदम गरम पानी से नहा कर ताज़गी मिली है। फ्रेश हो कर फ्रंट रूम में आया तो मैं हैरान रह गया हूं। सामने खड़ी हैं मालविका जी। मुसकुराती हुई। एयर होस्टेस की तरह हाथ जोड़े। अभिवादन की मुद्रा में। एक बहुत ही खूबसूरत बुके उनके हाथ में है - हैप्पी बर्थडे दीप जी। मैं ठिठक कर रह गया हूं। यह लड़की जो मुझे ढंग से जानती तक नहीं और जिसका मुझसे दूर दूर तक कोई नाता नहीं है, कितने जतन से और प्यार से मेरा जनमदिन मनाने का उपक्रम कर रही हैं। और एक गौरी है ..क्या कहूं, समझ नहीं पाता।

- हैप्पी बर्थ डे डियर दीप। वे फिर कहती हैं और आगे बढ़ कर उन्होंने बुके मुझे थमाते-थमाते हौले से मेरी कनपटी को चूम लिया है। मेरा चेहरा एकदम लाल हो गया है। गौरी के अलावा आज तक मैंने किसी औरत को छुआ तक नहीं है। मैं किसी तरह थैंक्स ही कह पाता हूं। आज मेरा जनमदिन है और गौरी को यह बात मालूम भी थी। वैसे यहां मेरा यह चौथा साल है और आज तक न तो गौरी ने मुझसे कभी पूछने की ज़रूरत समझी है और न ही उसे कभी फुर्सत ही मिली है कि पूछे कि मेरा जनमदिन कब आता है, या कभी जनमदिन आता भी है या नहीं, तो आज भी मैं इसकी उम्मीद कैसे कर सकता था, जबकि गौरी को हर बार मैं न केवल जनमदिन की विश करता हूं बल्कि उसे अपनी हैसियत भर उपहार भी देने की कोशिश करता हूं। गोल्डी से मुलाकात होने से पहले तक तो मेरे लिए यह तारीख़ सिर्फ एक तारीख़ ही थी। उसी ने इस तारीख़ को एक नरम, गुदगुदे अहसास में बदला था। गोल्डी के बाद से जब भी यह तारीख़ आती है, ख्याल तो आता ही है। बेशक सारा दिन मायूसी से ही गुज़ारना पड़ता है।

मैं हैरान हो रहा हूं, इन्हें कैसे पता चला कि आज मेरा जनमदिन है। मेरे लिए एक ऐसा दिन जिसे मैं कभी न तो याद करने की कोशिश करता हूं और न ही इसे आज तक सेलेब्रेट ही किया है। मैं झ्टंापी सी हँसी हँसा हूं और पूछता हूं - आपको कैसे पता चला कि आज इस बदनसीब का जनमदिन है।

- आप भी कमाल करते हैं दीप जी, पहली बार आप जब आये थे तो मैंने आपका हैल्थ कार्ड बनवाया था। वह डेटा उसी दिन मेरे कम्प्यूटर में भी फीड हो गया और मेरे दिमाग में भी।

- कमाल है!! कितने तो लोग आते होंगे जिनके हैल्थ कार्ड बनते होंगे हर रोज़। सबके बायोडाटा फीड कर लेती हैं आप अपने दिमाग में।

- सिर्फ बायोडाटा। बर्थ डेट तो किसी किसी की ही याद रखती हूं। समझे। और आप भी मुझसे ही पूछ रहे हैं कि मुझे आपके जनमदिन का कैसे पता चला!!

मैं उदास हो गया हूं। एक तरफ गौरी है जिसे मेरा जनमदिन तो क्या, हमारी शादी की तारीख तक याद नहीं है। और एक तरफ मालविका जी हैं जिनसे मेरी कुछेक ही मुलाकातें हैं। बाकी तो हम फोन पर ही बातें करते रहे हैं और इन्हें ......।

मैं कुछ कहूं इससे पहले ही वे बोल पड़ी है - डोंट टेक इट अदरवाइज़। आज का दिन आपके लिए एक खास दिन है और आज आप मेरे ख़ास मेहमान हैं। आज आपके चेहरे पर चिंता की एक भी लकीर नजर नहीं आनी चाहिये.. ओ के!! रिलैक्स नाउ और एंजाय यूअर सेल्फ। तब तक मैं भी ज़रा बाकी चीजें देख लूं।

मैं अब ध्यान से कमरा देखता हूं। एकदम भारतीय शैली में सज़ा हुआ। कहीं से भी यह आभास नहीं मिलता कि मैं इस वक्त यहां लंदन में हूं। पूरे कमरे में दसियों एक से बढ़ कर एक लैम्प शेड्स कमरे को बहुत ही रूमानी बना रहे हैं। पूरा का पूरा कमरा एक उत्कृष्ट कलात्मक अभिरुचि का जीवंत साक्षात्कार करा रहा है। कोई सोफा वगैरह नहीं है। बैठने का इंतजाम नीचे ही है। एक तरफ गद्दे की ही ऊंचाई पर रखा सीडी चेंजर और दूसरी तरफ हिन्दी और अंग्रेजी के कई परिचित और खूब पढ़े जाने वाले ढेर सारे टाइटल्स। चेंजर के ही ऊपर एक छोटे से शेल्फ में कई इंडियन और वेस्टर्न क्लासिकल्स के सीडी। मैं मालविका जी की पसंद और रहन सहन के बारे में सोच ही रहा हूं कि वे मेरे लिए एक गिलास लेकर आयी हैं - मैं जानती हूं, आप नहीं पीते। वैसे मैं कहती भी नहीं लेकिन जिस तरह से आप ठंड में भीगते हुए आये हैं, मुझे डर है कहीं आपकी तबीयत न खराब हो जाये। मेरे कहने पर गरम पानी में थोड़ी-सी ब्रांडी ले लें। दवा का काम करेगी। मैं उनके हाथ से गिलास ले लेता हूं। मना कर ही नहीं पाता। तभी मैं देखता हूं वे पूरे कमरे में ढेर सारी बड़ी-बड़ी रंगीन मोमबत्तियां सजा रही हैं। मैं कुछ समझ पाऊं इससे पहले ही वे इशारा करती हैं - आओ ना, जलाओ इन्हें। मैं उनकी मदद से एक-एक करके सारी मोमबत्तियां जलाता हूं। कुल चौंतीस हैं। मेरी उम्र के बरसों के बराबर। सारी मोमबत्तियां झिलमिलाती जल रही हैं और खूब रोमांटिक माहौल पैदा कर रही हैं । उन्होंने सारी लाइटें बुझा दी हैं। कहती हैं - हम इन्हें बुझायेंगे नहीं। आखिर तक जलने देंगे। ओ के !!

मैं भावुक होने लगा हूं..। कुछ नहीं सूझा तो सामने रखे गुलदस्ते में से एक गुलाब निकाल कर उन्हें थमा दिया है - थैंक यू वेरी मच मालविका जी, मैं इतनी खुशी बरदाश्त नहीं कर पाऊंगा। सचमुच मैं .. ...। मेरा गला रुंध गया है।

- जनाब अपनी ही खुशियों के सागर मे गोते लगाते रहेंगे या इस नाचीज को भी जनमदिन के मौके पर शुभकामना के दो शब्द कहेंगे।

- क्या आपका भी आज ही जनमदिन है, मेरा मतलब .. आपने पहले क्यों नहीं बताया?

- तो अब बता देते हैं सर कि आज ही इस बंदी का भी जनमदिन है। मैं इस दिन को लेकर बहुत भावुक हूं और मैं आज के दिन अकेले नहीं रहना चाहती थी। हर साल का यही रोना है। हर साल ही कम्बख्त यह दिन चला आता है और मुझे खूब रुलाता है। इस साल मैं रोना नहीं चाहती थी। कल देर रात तक सोचती रही कि मैं किसके साथ यह दिन गुजारूं। अब इस पूरे देश में मुझे जो शख्स इस लायक नजर आया, खुशकिस्मती से वह भी आज ही के दिन अपना जनमदिन मनाने के लिए हमारे जैसे किसी पार्टनर की तलाश में था। हमारा शुक्रिया अदा कीजिये जनाब कि ......और वे ज़ोर से खिलखिला दी हैं। मैंने संजीदा हो कर पूछा है - आपके लिए तो पांच-सात मोमबत्तियां कम करनी पड़ेंगी ना!!

- नहीं डीयर, अब आपसे अपनी उम्र क्या छुपानी!! हमने भी आपके बराबर ही पापड़ बेले हैं जनाब। वैसे वो दिन अब कहां फुर हो गये हैं!! ये क्या कम है कि तुम इनमें दो चार मोमबत्तियां और नहीं जोड़ रहे हो!!

- ऐसी कोई बात नहीं है। चाहो तो मैं ये सारी मोमबत्तियां बेशक अपने नाम से जला देता हूं लेकिन अपनी उम्र आपको दे देता हूं। वैसे भी मेरी जिंदगी बेकार जा रही है। आपके ही किसी काम आ सके तो!! मैंने बात अधूरी छोड़ दी है।

- नो थैंक्स!! अच्छा तुम एक काम करो दीप, धीरे-धीरे अपनी ब्रांडी सिप करो। और लेनी हो तो गरम पानी यहां थर्मस में रखा है। बॉटल भी यहीं है। और उन्होंने अपना छोटा-सा बार कैबिनेट खोल दिया है।

- तब तक मैं भी अपना बर्थडे बाथ ले कर आती हूं।

मैं उनका सीडी कलेक्शन देखता हूं - सिर्फ इंडियन क्लासिक्स हैं। मैं चेंजर पर भूपेन्दर की ग़ज़लों की सीडी लगाता हूं। कमरे में उसकी सोज़ भरी आवाज गूंज रही है - यहां किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता। कभी ज़मीं तो कभी आसमां नहीं मिलता। सच ही तो है। मेरे साथ भी तो ऐसा ही हो रहा है। कभी पैरों तले से ज़मीं गायब होती है तो कभी सिर के ऊपर से आसमां ही कहीं गुम हो जाता है। कभी यह विश्वास ही नहीं होता कि हमारे पास दोनों जहां हैं। आज पता नहीं कौन से अच्छे करमों का फल मिल रहा है कि बिन मांगे इतनी दौलत मिल रही है। ज़िंदगी भी कितने अजीब-अजीब खेल खेलती है हमारे साथ। हम ज़िंदगी भर गलत दरवाजे ही खटखटाते रह जाते हैं और कोई कहीं और बंद दरवाजों के पीछे हमारे इंतज़ार में पूरी उम्र गुज़ार देता है और हमें या तो खबर ही नहीं मिल पाती या इतनी देर से ख़बर मिलती है कि तब कोई भी चीज़ मायने नहीं रखती। बहुत देर हो चुकी होती है।

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