स्टॉकर - 29 Ashish Kumar Trivedi द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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स्टॉकर - 29




स्टॉकर
(29)



एसपी गुरुनूर पुराने शहर के एक व्यस्त इलाके में खड़ी थी। कांस्टेबल लखन कुमार ने उसे सूचना देकर बुलाया था।
"मैडम वो जो उधर कोने में इमारत दिखाई पड़ रही है उसमें ऊपर जाकर गलियारे में जो आखिरी मकान है। वही उसका है।"
"गुड जॉब लखन....आओ ज़रा उससे मिलते हैं।"
एसपी गुरुनूर लखन के साथ पुरानी सी दिखने वाली इमारत की तरफ बढ़ी। यह शहर का बहुत पुराना इलाका था। संकरी गलियों में कई दो तीन मंजिला इमारते थीं। जहाँ छोटे छोटे दो या तीन कमरों के मकानों में लोग अपने परिवार के साथ रहते थे।
गली में ऊपर नज़र उठा कर देखो तो बस बेतरतीबी से खींचे गए तारों का जाल दिखाई पड़ रहा था। ना रौशनी पहुँच रही थी ना हवा। दोनों तरफ खुली और बजबजाती नालियों के कारण दुर्गंध इतनी तेज़ थी कि सांस लेना भी मुश्किल था।
अपनी नाक पर रुमाल रखे एसपी गुरुनूर सावधानी से चलती हुई आगे बढ़ रही थी। उसके मन में कई तरह के विचार उठ रहे थे। एक ही शहर के दो अलग अलग चेहरे। एक में जगमगाती इमारतें, चौड़ी सड़कें, बड़े बड़े मॉल्स। सब कुछ महानगरों को चुनौती देता हुआ कि देखो हम भी किसी से कम नहीं हैं। दूसरी तरफ था ऐसा शहर जहाँ संकरी गलियों में पुरानी जर्जर इमारतों में लोग छोटे छोटे घरों में रह रहे थे। इंसानी समाज की इस विविधता को देख कर एसपी गुरुनूर के अंदर बहुत ही दार्शनिक भाव उमड़ रहे थे।
लखन उसके आगे आगे चल रहा था। वह पहले भी यहाँ आ चुका था। कुछ ही पलों में वो दोनों इमारत के पास पहुँच गए। इमारत के मुख्य द्वार पर लिखा था।
'कौशल्या निवास....निर्माण का वर्ष 1921....."
मुख्य द्वार से अंदर घुसते ही ऊपर जाने की सीढियां थीं। लखन ने एसपी गुरुनूर को सावधान करते हुए कहा।
"मैडम ज़रा संभल कर....कई जगह से ईंटें निकल रही हैं।"
एसपी गुरुनूर ने इशारे से उसे निश्चिंत रहने को कहा। सीढ़ियों से ऊपर पहुँच कर जैसा लखन ने कहा था दोनों गलियारे के आखिरी मकान के सामने पहुँचे। दरवाज़े के ऊपर एक छोटा सा बोर्ड था।

'डिटेक्टिव पूरन सिंह..... किसी पर भी नज़र रखानी हो तो मिलें।'
दरवाज़े पर एक कॉल बेल लगी थी। लखन ने उसे दबाने से पहले एसपी गुरुनूर की ओर देखा। एसपी गुरुनूर ने उसे इशारे से बेल बजाने की इजाज़त दे दी। भीतर से आवाज़ आई।
"ज़रा ठहरिए.....आता हूँ।"
कुछ देर बाद जींस के ऊपर कुर्ता पहने पूरन सिंह ने दरवाज़ा खोला। बाल पोनीटेल में बंधे हुए थे। आँखों पर चश्मा था। पर सामने पुलिस को देख कर वह चौंक गया।
एसपी गुरुनूर बिना कुछ कहे लखन के साथ भीतर घुस गई। पूरन सिंह ने दरवाज़े पर पर्दा खींच दिया। फिर एसपी गुरुनूर से बोला।
"क्या पुलिस को भी जासूस की ज़रूरत पड़ने लगी। वैसे आपको निराशा नहीं होगी।"
एसपी गुरुनूर ने सख्त लहज़े में कहा।
"ज़्यादा मत बोलो। हमें तुमसे कुछ पूँछताछ करनी है।"
वह पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गई। कुछ क्षण तक पूरन सिंह असमंजस में खड़ा रहा। फिर पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गया।
"मुझसे पूँछताछ करनी है। मैडम मैं तो एक जासूस हूँ। लोगों के कहने पर उनके बताए व्यक्ति पर नज़र रखता हूँ। मैंने तो कुछ गलत नहीं किया।"
"नज़र रखने के साथ साथ तुम लोगों को किडनैप कर बंदी भी बनाते हो।"
"ये क्या कह रही हैं मैडम ? मैंने किसे किडनैप किया।"
"अंकित को...."
"मैं किसी अंकित को नहीं जानता हूँ। ना ही मैंने उसे किडनैप किया। मेरा काम ही नहीं है यह।"
एसपी गुरुनूर ने उसे घूर कर देखा।
"वही अंकित जो जिम ट्रेनर है। मशहूर व्यापारी शिव टंडन के कत्ल में हमें उस पर शक है।"
पूरन सिंह मन ही मन कुछ सोंचने के बाद बोला।
"वो लड़का जिसका टंडन साहब की बीवी के साथ लफड़ा चल रहा था।"
"तो तुम अंकित को जानते हो।"
"नाम नहीं जानता था। दरअसल टंडन साहब को शक था कि उनकी बीवी किसी जिम वाले के साथ चक्कर चला रही है। उन्होंने जिम का नाम स्टेफिट बताया था। उन्होंने मुझे दोनों की जासूसी करने का काम सौंपा था।"
एसपी गुरुनूर ने एक बार पूरन सिंह को देखा। फिर कमरे में चारों तरफ नज़र दौड़ाई। छोटा सा कमरा था। दीवारों के रंग के साथ साथ कई जगह का प्लास्टर भी निकला हुआ था। अंदर भी शायद कुछ होगा। पर दरवाज़े पर परदा था। कुछ समझ नहीं आ रहा था।
पूरन सिंह एसपी गुरुनूर के मन की बात समझ गया।
"हुनर है मैडम मेरे पास। उसी के कारण अपना काम करवाने के लिए बड़े बड़े लोग इन तंग बदबूदार गलियों में मुझसे मिलने आते हैं। मेरे क्लाइंट्स में बड़े बड़े लोगों के नाम हैं। पैसों की कमी नहीं है। चाहूँ तो किसी भी अच्छे अपार्टमेंट में फ्लैट खरीद लूँ। पर कुछ व्यक्तिगत कारण हैं कि इस घर को नहीं छोड़ता हूँ।"
"पर तुम किसी अच्छी जगह दफ्तर तो खोल सकते हो ?"
"बिल्कुल खोल सकता हूँ। पर वह भी जानबूझ कर नहीं खोलता हूँ। मैडम लोग जिस तरह से अपनों को नीचा दिखाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं उसे देखते हुए यही जगह ठीक है। उनके मन में जो गंदगी रहती है उसके सामने मेरे मोहल्ले की बजबजाती नालियां भी फेल हैं।"
पूरन सिंह की बात सुन कर एसपी गुरुनूर कुछ समय के लिए खामोश हो गई। पर यह एहसास होने पर कि बात मुद्दे से भटक रही है वह बोली।
"तो मिस्टर टंडन ने तुमको अपनी पत्नी और अंकित के बारे में पता करने को कहा था।"
"हाँ...."
"तो फिर तुमने अंकित को किडनैप क्यों किया। उसे अपने पास कैद करके क्यों रखा ?"
"मैडम मैं पैसों के लिए काम करता हूँ। जो काम मुझसे कहा नहीं गया उसे करके मेरा क्या फायदा ?"
"पर अंकित ने हमे बताया था कि तुमने उसे किडनैप कर कुछ दिनों तक कैद करके रखा। पर मौका मिलते ही वह निकल भागा।"
"उसने आपको ये सब क्यों बताया मैं नहीं कह सकता हूँ। पर मैंने उसे किडनैप नहीं किया। मैंने टंडन साहब की बीवी और इस लड़के की रंगरेलियों के बारे में उन्हें बताया था। इस काम के लिए उन्होंने मुझे पैसे भी दिए थे।"

एसपी गुरुनूर सोंच में पड़ गई। शिव टंडन ने मेघना और अंकित की जासूसी कराई होगी इसमें कोई कुछ अजीब नहीं लगता है। पर उसने अंकित को किडनैप करने को क्यों कहा होगा। उससे शिव टंडन को क्या लाभ हो सकता था।
"तुम कुछ छिपा तो नहीं रहे हो ?"
"मैं कुछ क्यों छिपाऊँगा। आप तो पुलिसवाली हैं। सोंच कर देखिए। क्या जासूसी करना या किडनैप करना एक जैसा है। टंडन साहब पैसे वाले थे। अगर उन्हें किसी को किडनैप करवाना होता तो वह ऐसे आदमी को काम सौंपते जो इसमें माहिर होता।"
पूरन सिंह का तर्क एसपी गुरुनूर को ठीक लगा। पर फिर भी उसने कहा।
"देखो मिस्टर टंडन क्या करते क्या नहीं इससे हमें मतलब नहीं है। पर अगर तुमने हमसे झूठ बोला तो ये तुम्हारे लिए बिल्कुल भी ठीक नहीं होगा।"
अपनी बात कह कर एसपी गुरुनूर खड़ी हो गई।
"अगर हमें तुम्हारी ज़रूरत पड़ेगी तो तुम्हें पुलिस स्टेशन बुलाएंगे। अपना नंबर दो।"
लखन ने पूरन सिंह का नंबर नोट कर लिया।
एसपी गुरुनूर और लखन दोनों पूरन सिंह के घर से बाहर निकल गए। लौटते हुए एसपी गुरुनूर सोंच रही थी कि अगर पूरन सिंह सही बोल रहा है तो फिर अंकित और मेघना दोनों आपस में मिले हुए हैं। दोनों एक दूसरे पर इल्ज़ाम लगा कर बस पुलिस को गुमराह करने का प्रयास कर रहे हैं। पूरन सिंह ने जो कुछ भी कहा उस पर एसपी गुरुनूर को यकीन था।
पर एक सवाल था कि अंकित ने अपने किडनैपर के तौर पर पूरन सिंह का हुलिया क्यों बताया। यह भी हो सकता था कि जिसके बारे में अंकित कह रहा था इत्तेफाक से उसका हुलिया पूरन सिंह से मिलता हो।
लेकिन एसपी गुरुनूर को एक और संभावना लग रही थी। हो सकता है कि जब पूरन सिंह उसकी और मेघना की जासूसी कर रहा था तब अंकित ने उसे देखा हो। बाद में कत्ल के इल्ज़ाम से बचने के लिए उसने खुद को कैद किए जाने की कहानी गढ़ी हो। जब उससे किडनैपर के बारे में पूँछा गया तो उसने कुछ ना सूझने पर पूरन सिंह का हुलिया बता दिया हो।
एसपी गुरुनूर ने तय कर लिया कि वह मेघना, अंकित और रॉबिन तीनों को एकसाथ बिठा कर पूँछताछ करेगी।
एसपी गुरुनूर ने तय कर लिया था कि अब वह केस सॉल्व करके ही दम लेगी।