फिर सुनना मुझे Dr Narendra Shukl द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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फिर सुनना मुझे

अमन बिक रहे हैं

अमन बिक रहे हैं , चमन बिक रहे हैं ।

लाशों से लेकर कपन बिक रहे हैं ।।

म्ंत्रियों को देखा है खुले आम बिकते

दारोगा, वकील भी हो रहे नंगे

मार ले डुबकी ... हर - हर गंगे ।

घोटाले पर घोटाले रोज़ हो रहें हैं ।

अमन बिक रहे हैं , चमन बिक रहे हैं ।

लाशों से लेकर कपन बिक रहे हैं ।।

मान बिक रहा है , ईमान बिक रहा है

मसूम ब़िच्चयों का सम्मान बिक रहा है ।

आन बिक रही है , शान बिक रही है

लूट लो कोयले की खान बिक रही है ।

पद बिक रहे हैं , मद बिक रहे हैं

कौडियों में अफसरों के कद बिक रहे हैं ।

रेल बिक रहा है , खेल बिक रहा है

सटटे पर सटटे रोज़ लग रहे हैं ।

अमन बिक रहे हैं , चमन बिक रहे हैं ।

लाशों से लेकर कपन बिक रहे हैं ।।

महंगाई का आलम देखो तो ।

बाज़ार में चल कर देखो तो

प्याज़ से लेकर रोटी तक

शर्ट से लेकर लंगोटी तक

झोपड़ों के दाम भी बढ़े जा रहे हैं ।

अमन बिक रहे हैं , चमन बिक रहे हैं ।

लाशों से लेकर कपन बिक रहे हैं ।।

दया ,प्रेम व सहानुभूति हो रहे बेमानी

नफरत, हिंसा हो गई जानी - मानी ।

दिल मंहगा पर मौत सस्ती

लहू के समुद्र में डूब रही कश्ती ।

ममता के घरोंदे उड़े जा रहे हैं ।

अमन बिक रहे हैं , चमन बिक रहे हैं ।

लाशों से लेकर कपन बिक रहे हैं ।।

आओ सब मिलकर मीत बना लें

भाईचारे का नया कोई गीत बना लें ।

जति , धर्म व माया को एक ओर रखकर

मन में प्रेम की गंगा बहा लें ।

म्ंदिर - मस्ज़िदों को छोड़कर

घर - घर प्रभू स्वयं चले आ रहे हैं

अमन बिक रहे हैं , चमन बिक रहे हैं ।

लाशों से लेकर कपन बिक रहे हैं ।

डा. नरेंद्र शुक्ल

रावण युग आ रहा है ।

देखो - देखो -

वर्तमान सभ्यता को , पैरों तले रौंदता

मानवता पर भयंकर अटटाहस करता हुआ

रावण युग आ रहा है ।

बूढ़ें इश्क फरमा रहे हैं ।

भीतरी कुंठा , उछालें मार रही है ।

जवानी की अतप्त उमगें -

नौकरानी के अर्धनग्न वक्षों को देखकर , लार टपका रही हैं ।

नफरत का ज़हर भर रहा है ।

आपसी भेदभाव रोज़ बढ़ रहा है ।

सुहागिने विधवा हो रही हैं ।

कुत्सा , अवज्ञा , अपमान का तम छा रहा है ।

सांय - सांय

ठांय - ठांय -

गोलियों से भ्ुानते , छिलते मासूम बिलबिला रहे हंै।

शहर क्या , गांव तक वीरान हो रहे हैं ।

लाशें लावारिस हो रही हैं ।

पुलिस , मालदार केस की तलाश कर रही है ।

मीडिया खबरों से खिलवाड़ कर रहा है ।

मानवीयता का सरेआम हनन हो रहा है ।

श्रद्धा , सम्मान और प्रेरणा जैसे शब्द

कोड़ियों के भाव बिक रहे हैं

गोधी , नेहरु रोज़ मर रहे हैं ।

शिक्षा आज , बेकार और व्यापार बन गई है ।

फिल्में आज़ प्रधान हो रही हैं ।

विद्यार्थी पढ़ाई में बोरियत अनुभव कर रहा है ।

चैटिंग में रस ले रहा है ।

हीरो , हीरोइनें पथ-प्रदर्शक हो रहे हैं

माता - पिता व शि़क्षक पथभ्रष्ट हो गये हैं

नौकरियां , दासी हैं ।

निर्धनता , फटेहाली और भ्ुूखमरी सांझाी है ।

शोषण , उनका हक हो गया है ।

भ्रश्टाचार फल - फूल रहा है ।

इस पर -

सुनते हैं -

पुल बनाये जायेंगे

सेनायें तैयार होंगी

मारे जायेंगे रावण

और -

मनुष्यता विजयी होगी ।

मगर -

वायदे और भविष्यवाणियां

हवा हो रही है।

और वर्तमान -

लोगों को खुले आम , चेतावनी दे रहा है

कंदराओं में छिप जाओ

रावण युग आ रहा है ।

रावण युग आ रहा है ।।