कप्तान साहिब Dr Narendra Shukl द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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कप्तान साहिब

कप्तान साहब

‘शूट हिम ।‘

‘नहीं साहब, ये बेकसूर है । इसके खिलाफ़ कोई ठोस सबूत नहीं है । यह उस मौब में नहीं था । कप्तान वीर सिंह ने पूरी दृढ़ता से कहा ।‘

‘नो, ही इज़ नॉट बेकसूर । हमारे सिपाही किसी बेकसूर को नहीं पकड़ते । यह उसी मौब में शामिल था जिसने डी.एम., सर एडमंड की कोठी पर हमला किया और उनके घर को जलाने की कोशिश की । रेंज आई जी मैक हिल्टन ने कड़कते हुये कहा ।‘

कप्तान वीर सिंह पर इसका कोई असर नहीं हुआ । उन्होंने बड़ी निडरता से कहा - ‘सर, मैंने खुद इस केस को इनवैस्टीगेट किया है। यह बिल्कुल निर्दोष है । यह तो अपनी मां को देखने सेंट मेरी मेमोरियल हॉस्पिटल गया था । वारदात के समय यह सर एडमंड की कोठी से लगभग 120 किलोमीटर दूर कुमारगंज, डिस्ट्क्टि फैजाबाद में अपनी कैंसर पीड़ित मां के साथ था । सिपाहियों को धोखा हुआ है ।‘

प्रांत के पुलिस विभाग में वीर सिंह अपनी ईमानदारी, बहादुरी व ड्यूटी के प्रति अपनी निष्ठा व लगन के लिये इस कदर प्रसिद्ध थे कि बड़े से बड़ा अंग्रेज़ अफसर भी उनका नाम बड़े आदर व अदब से लिया करता था । कुख़्यात डाकू बदन सिंह जिस पर लगभग बीस हत्याओं, लूट व डकैतियों का आरोप था । जिसने हाल ही में डिस्टिक्ट फैजाबाद के उधई गाव में लूट और बारह गाव वासियों को जिंदा जला दिया था । जिस पर सरकार की ओर से पच्चास हजार का नगद इनाम था । पुलिस महकमे में अधिकांश अफसर जिसके नाम से कांपते थे । उसी खूंखार डाकू बदन सिंह को उधई गाव हत्याकांड के चैबीस घंटे के भीतर ही वीर सिंह,उसके साथियों समेत उसके अडडे से पकड़ लाये थे । उनकी बहादूरी व निडरता के ऐसे बीसियों किस्से हमेशा लोंगों की जबान पर रहा करते थे । लोग उन्हें पद से नहीं दिल से कप्तान मानते थे ।

यह उस वक्त का दौर था जब देश में रौलट एक्ट लागू था । अंग्रेज़ी हुकूमत अपनी दमन चक्र नीति के तहत किसी को भी पकड़कर बिना किसी मुकदमें के गोली से उड़ा देती थी । लालची सिपाही अपने अफसरों को खुश करने तथा इनाम व प्रमोशन पाने के चक्कर में अधिक से अधिक संख्या में गाव के भोले - भाले मासूम नौज़वानों को झूठे केसों में फंसा कर पकड़ रहे थे । सरकार का उद्देश्य केवल नौज़वानों के दिलों में ब्रिटिश हुकूमत का खौफ़ पैदा करना था ।

‘नो ही इज़ नॉट बेकसूर । याद करो, ये उसी गाव के प्रधान का बेटा है जिशने टुमारे बेटे को पकड़वाया था । आई जी मैक हिल्टन ने कप्तान साहब को भड़काने के लिये उनके दिल पर छड़ी की नोक चुभाई ।‘

कप्तान साहब ने सामने बरगद के पेड़ के साथ बंधे अभियुक्त गणेश को ध्यान से देखा । अचानक क्रोध से उनकी भ्रूकुटिया तन गईं । आँखे लाल हो गईं । रिवाल्वर की नोक उसके माथे के बीचों- बीच रख दी लेकिन ये क्या अचानक़ कप्तान साहब के हाथ कांपने लगे । रिवाल्वर के ट्गिर पर फंसी उंगली की पकड़ ढ़ीली पड़ गई । वे यादों में खो गये । उन्हें अपने इकलौते बेटे वीरेन की याद आने लगी । प्रसव के दौरन गायत्री की आक्सिमिक मृत्यु हो जाने पर उन्होंने नन्हें वीरेन को कितनी तकलीफ़ों से पाला था । उन्होंने उस मासूम बच्चे को कभी मां की कमी महसूस नहीं होने दी । वीरेन बहुत होनहार बच्चा था । पढ़ाई में तो सदा अव्वल आया करता था । उसके स्कूल के हैडमास्टर अक्सर कहा करते थे ‘ ‘कप्तान साहब, आपका बेटा एक दिन बहुत उॅचा जायेगा ।‘ और एक दिन वह सचमुच बड़ा अफसर हो गया । सिविल सर्विसिज़ की परीक्षा में वह जिले भर में प्रथम आया । रिज़ल्ट वाला अखबार लिये जब वह घर आया तो सबसे पहले उनके पैर छू कर बोला था - ‘पिता जी, आपके आशीर्वाद से मैं सिविल सर्विसिज पास हो गया । अब देखना पिताजी, समाज में फैले भ्रष्टाचार को मैं कैसे दूर करता हू । अब कोई दीन - हीन नहीं रहेगा । उसकी बातों में आत्मविश्वास झलक रहा था ।‘

‘बेटा तू किस विभाग में नौकरी करना चाहता है ?‘

‘कोई भी विभाग हो पिताजी, पर यह तो तय है कि मेरे विभाग में बेईमानी, रिश्वतखोरी नहीं चलेगी ।‘ वे गद्गद हो गये । वीरेन को हृदय से लगा लिया - ‘, मुझे तुम पर नाज़ है वीरेन । तुमने मेरी वर्षों की तपस्या सफल कर दी मेरे बेटे ।‘ उनकी आंखों से खुशी के पवित्र आंसू छलक आये - ‘बेटा मुझे तुमसे यही आशा थी । कभी अपने फर्ज़ से मुंह न मोड़ना । वीरेन के कंधे पर हाथ रखते हुये अत्यंत भावुक शब्दों में वे बोले - बेटा, मैं पुलिस में दारोगा की हैसियत से भर्ती हुआ था । आज मैं अपनी मेहनत, लगन व कार्यदक्षता के बलबूते पर कप्तान हो गया हूँ । ब्रिटिश हुकूमत में यहाँ तक कोई - कोई ही पहुँच पाता है । मेरे साथ भर्ती दारोगा अभी दारोगा के दारोगा ही हैं ।‘

और उन्हें वह दिन भी याद आया जब वीरेन द्वारा नौकरी से इस्तीफा दिये जाने पर वे सीधे उसके पास लखनउ पहुँच गये थे । अपने बेटे वीरेन की कोठी में जाते ही उन्होंने बिना किसी भूमिका के अत्यंत गुस्से में वीरेन से पूछा था - ‘वीरेन, यह क्या हिमाकत है ?‘

‘पिताजी, आइये, बैठिये । वीरेन ने तिपाई आगे करते हुये कहा ।‘

‘मैं यहाँ बैठने नहीं आया । तूने मेरे नाम पर कलंक लगा दिया । बड़े साहब कह रहे थे कप्तान, तुम्हारा बेटा बाग़ी हो गया है । इतने सालों की इज्जत तूने एक ही क्षण में मिट्टी में मिला दी । वे रोने लगे ।‘ कप्तान साहब उपर से जितने सख़्त थे भीतर से उतने ही नरम थे । वीरेन ने उन्हें प्यार से तिपाई पर बिठाया और अपने कुर्ते की बाजू से उनके आंसू पोंछते हुये कहा -‘पिताजी सही बात तो यह है कि वे मुझसे किसानों पर अत्याचार करवाना चाहते थे । मुझसे कहा गया कि सूखे की परवाह किये बिना किसानों से निर्धारित लगान वसूला जाये । लगान न दे पाने की स्थिति में उनकी जायदाद तथा घर तक कुर्क करवा लिये जायें ।‘ वीरेन का चेहरा एकाएक कठोर हो गया । उसने धीरे किंतु दृढ़ शब्दों में कहा -‘ बेचारे किसान, जिनका गला पहले से ही जमींदारों व साहूकारों के हाथ में है । जिन्हें दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हो पाती । रहनों को कच्चे घर तक नहीं । जाड़े में जानवरों के साथ सोने को मजबूर हैं । जिन्हें मौत यहाँ - वहा अपने में समेट लेने को तैयार खड़ी रहती है । मैं उन भाले - भाले, निरीह, मासूमों पर जुल्म नहीं कर सका । मैंने इस्तीफा दे दिया ।‘ पिता ने पुत्र को गले से लगा लिया । कुछ देर तक पिता - पुत्र यू ही एक - दूसरे से लिपटे रहे ।

‘अब क्या करोगे । पिता ने पुत्र के कंधे पर हाथ रखतें हुये कहा ।‘

‘अभी कुछ खास सोचा नहीं । वीरेन ने खड़े होते हुये कहा ।‘

‘तुम मेरे साथ क्यों नहीं चलते ? कोई छोटा - मोटा व्यापार कर लेना । पिता जी ने कुछ सोचते हुये राय दी ।‘

‘अभी नहीं पिताजी, सोचता हूँ यहीं एक पाठशाला खोल लू । इन अनपढ़, अबोध किसानों में जागरुकता लाना जरुरी है । ज्ञान का प्रकाश फैलाना होगा । वीरेन ने सामने दायीं ओर बंद खिड़की को खोलते हुये कहा ।‘

‘तेरी बाते तू ही जाने वीरेन, मैं चलता हूँ । पर ख़बरदार

कोई गैर कानूनी काम न करना । वे बाहर की ओर चलते - चलते अचानक रुक गये । ‘

‘नहीं पिताजी, मैं कोई ऐसा काम नहीं करूँगा, जो मुझे नहीं करना चाहिये । वीरेन उनके पैरों को हाथ लगाते हुये बोला । ‘

और वे उस मनहूस दिन को कैसे भूल सकते हैं जब वीरेन को एक अपराधी की तरह उनकी जेल में लाया गया । वीरेन पर स्थानीय पुलिस दारोगा जॉन पर जान लेवा हमला करने तथा शहाजहापुर के किसानों को भड़काने का भी आरोप था । एकांत में वीरेन के साथ मुलाकात में वीरेन ने कहा कि उसने कोई अपराध नहीं किया है। उसे झूठे केस में फॅसाया जा रहा है । अंग्रेजी सरकार किसी भी तरह किसान आंदोलन को दबाना चाहती है । कप्तान साहब ने काफी कोशिश की कि वीरेन बच जाये । लेकिन सारे सबूत उसके खिलाफ थे । रेंज आई जी मिस्टर मैक हिल्टन उनकी तहरीर को मान भी लेते । लेकिन, ऐन वक्त पर गाव के प्रधान ने हिल्टन साहब के कान में न जाने क्या फूंक दिया कि साहब ने कहा -‘ कप्तान, हमारे पास एविडेंस है । विटनैस है । तुम्हारा बेटा हमारी हुकूमट उखाड़ना चाहता है । .. ही हैज़ नो राइट टू लिव ।‘ बिना कोई मुकदमा चलाये उन्हें हुकुम हुआ कि वीरेन को गोली से उडा दिया जाए ।

शहीद पार्क में बरगद के एक पेड़ के साथ वीरेन को बांध दिया गया । तमाम अंग्रेज़ अफसरो के साथ रेंज आई जी मिस्टर हिल्टन स्वयं मौज़ूद थे । शूट का आदेश होते ही एक पिता ने अपने पुत्र पर गोली दाग दी । धमाके की आवाज़ से कप्तान साहब जैसे नींद से जागे हों । पिस्तौल छिटक कर दूर जा गिरा । आंसुओ की बूंदे उनकी तीखी सफेद मूछों को भिगोती हुई उनकी वर्दी पर टपकने लगीं । समय का प्रभाव किसी अप्रिय घटना के घाव को अवश्य भर देता है लेकिन आज उसी प्रकार की दूसरी घटना ने कप्तान साहब को झकझोर कर रख दिया । दर्द दोगुना हो गया ।

‘कप्टान टुमारा निशाना कैसे चूक गया । हिल्टन ने बड़े क्रोध से कहा । ‘

‘सर, मैं इसे नहीं मार सकता । ये निर्दोष है । उस आगजनी में इसका कोई हाथ नहीं था । उस वक्त ... यह अपनी कैंसर पीड़ित मा के साथ हॉस्पिटल में था । कप्तान साहब ने अपने आंसू पोंछते हुये अपनी बात को दोहराते हुये कहा ।‘

‘टो टुम इसको नहीं मारेगा । हिल्टन के स्वर अत्यंत कठोर हो गये । ‘

‘नहीं साहब, मेरी आत्मा एक निरपराध मासूम की हत्या करने की आज्ञा नहीं देती । ये मुझसे नहीं होगा । कप्तान साहब ने आगे बढ़ कर मासूम गणेश का सिर अपनी छाती से लगा लिया ।‘

‘पिछले दो वर्षों से अवरुद्ध पुत्र - स्नेह की मंदाकिनी आज पूरे वेग से बह चली । वे सिसकते हुये बोले - ‘मैं वो बदनसीब बाप हू जिसने चंद मैडलस की खातिर अपने हाथों से अपने बेकसूर कलेजे के टुकड़े को मौत की नींद सुला दिया । कप्तान साहब ने अपनी वर्दी पर लगे सितारों को नोच डाला ।‘

‘ इन्हीं कंधों पर अपने इकलौते बेटे वीरेन की अर्थी उठाई है मैंने । वे फफक - फफक कर रो पड़े । ‘

‘ठीक है टुम भी बागी है । टुम्हें भी इशके शाथ ही मरना होगा । आई जी हिल्टन ने कप्तान साहब के कान पर पिस्तौल रखते हुये कहा ।‘

‘कोई परवाह नहीं । अपनी मातृ- भूमि के लाल की रक्षा करने के लिये मैं एक जन्म तो क्या सौ - सौ जन्म मरने के लिये तैयार हूँ । मैं अपने वतन के साथ गद्दारी नहीं कर सकता । आज चाहे कुछ भी हो जाये मैं इसे मरने नहीं दूंगा ।‘ वे गणेश से लिपट गये ।‘ वर्षों से धधकता ज्वालामुखी आज अचानक फूट पड़ा । फायर का आदेश होते ही एक जोरदार धमाका हुआ । पुत्र - स्नेह व देषप्रेम के झंझावत ने मिलकर गुलामी की मज़बूत सी दीखने वाली दीवार को एक ही झटके निस्तेनाबूत कर दिया । सूरत ढ़ल चुका था । बरगद के पास निष्प्राण पड़े कप्तान साहब के चेहरे वर विचित्र संतोष की गरिमा झलक रही थी ।

डॉ. नरेंद्र शुक्ल