सजा Dr Narendra Shukl द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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सजा

सजा

तुम्हारा नाम क्या है ? कटघरे में खडे खूंखार से दिखने वाले मुजरिम से सफाई वकील ने पूछा ।

विक्की उस्ताद । मुजरिम ने होंठ चबाते हुये कहा ।

तो तुमने कलक्टर साहिबा पर गोली चलाई ?

हां, चलाई गोली । विक्की उस्ताद ने सीना तानकर कहा ।

मगर क्यों ? सफाई वकील ने पूछा ।

विक्की जज साहिबा को देख रहा था । कोई जवाब नहीं दिया ।

मैं पूछता हूं कि तुमने कलक्टर साहिबा पर गाली क्यों चलाई ? इस बार वकील साहब ने थोडी सख्ती दिखाई ।

पैसा मिला था । विक्की ने बिना किसी लाग - लपट के सहज ही कह दिया ।

किसने दिया पैसा ? वकील साहब ने अगला सवाल किया ।

उसने काई उत्तर नहीं दिया । वह लगातार जज साहिबा को देखे जा रहा था । ष्षायद कुछ पहचानने की कोषिष कर रहा था ।

मैं पूछता हू कि किसने दिया पैसा ? सफाई वकील के स्वर कठोर हो गये । माथे पर त्योरियां चढर् आइंर । विक्की पर इसका र्को असर नहीं हुआ । पुलिस, वकील, जज और सजा आदि षब्द उसके लिये नये नहीं थे ।

किसी ने दिये हों तुम्हें क्या । अपुन के धंधे में यह सीक्रेट है । अपुन अपने घंधे से बेईमानी नहीं कर सकता । अपुन दागा गोली उस कलक्टर की छाती पर । तुम अपुन को सजा सुना दो । अपुन ज्यादा पचडे में नहीं पडना चाहता । विक्की ने एक पेषेवर अपराधी की तरह बिना किसी खौफ के दो टूक जवाब दिया ।

तुमने अपनी सगी बहन पर ही गोली दाग दी । इस बार सफाई वकील ने विक्की को तोडने के लिये उसके हदय पर कुठराघात किया ।

मेरी बहन । उसका मुंह खुला का खुला रह गया यह क्या कह रहे हैं वकील साहब । अपुन ने अपनी बहन पर नहीं रकाबगंज की कलक्टर मिस पांडे पर गोली चलाई है ।

क्या तुम्हारा असली नाम विक्रम देषपांडे नहीं । क्या ज्योति देषपांडे तुम्हारी बहन नहीं है ? क्या तुम विकास देषपांडे के इकलौते बेटे नहीं हो ? वकील साहब ने विक्की उस्ताद की पारिवारिक पपठभूमि की पिटारी खोल दी ।

हा, मैं श्री विकास देषपांडे का इकलौता बेटा विक्रम देषपांडे हू और मेरी बहन का नाम भी ज्योति देषपांडे है । लेकिन, ज्योति का इस केस से क्सा ताल्लुक है । विक्की ने सच्चाई बयान करते हुये हैरानी व कोतुहल से पूछा ।

मिस ज्योति देषपांडे का इस केस से गहरा ताल्लुक है योर आर्नर क्योंकि मिस ज्योति देषपांडे ही वह कलक्टर हैं जिन पर इस मुजरिम विक्की ने गोली चलाई है । वकील साहब ने विक्की की ओर इषारा करते हुये कहा । विक्की उस्ताद उर्फ विक्रम देषपांडे को अब भी विष्वास नहीं हो रहा था मैंने अपनी बहन अपनी दीदी ज्योति पर गोली चलाई है। यह कैसे हो सकता है नहीं नहीं वह ज्योति नहीं वह तो कलक्टर पांडे थी पर ष्षायद हाय ! यह मुझसे क्या हो गया वह सिसक पडा । आखों से आंसुंओं की धारा बहने लगी ।वह खडा न रह सका । अपना सिर पकड कर वहीं कटघरे में बैठ गया । उधर विक्की उस्ताद की पारिवारिक हिस्ट्री सुनकर जज साहिबा, जो अब तक केस की फाइल के पन्ने पलट रहीं थी एकाएक चैंक गईं । उन्होंने पहली बार नजरें उठाकर अभियुक्त विक्की उस्ताद के चेहरे को गौर से देखा अरे यह तो सचमुच विक्की है । मेरा छोटा भाई लेकिन अभियुक्त के रुप में ! यह कैसे हो सकता है ? इतना प्यारा बच्चा हार्ड कोर क्रिमिनल कैसे बन सकता है ? इतने वर्षो बाद भाई - बहन का यह कैसा अदभुत मिलन है । इन सभी प्रष्नों ने उनके मन में खलबली मचा दी । उन्हें याद आया जब विक्की पैदा हुआ था तो घर में कितनी खुषिया मनाई गईं थीं । सभी रिष्तेदारों को बुलाया गया था । मा और पापा दोनों ही बहुत खुष थे । दो लडकियों के बाद बेटा पैदा हुआ था । कमला चाची मा से कह रही थीं - दीदी देख लेना यह लडका अपनी दोनों बहनों से उपर जायेगा । दादी ने हा में हा मिलाते हुये कहा - और नहीं तो क्या । लडकियों को तो पढ - लिखकर भी घर का चैंका - चूल्हा ही करना होता है । नाम तो लडके रौषन करते हैं । ताई ने दादी की बात का समर्थन करते हुये कहा - तुम ठीक कहती हो दादी लडकों से ही वंष चलता है । लडके ही पिंड - दान करते हैं । विक्की जब थोडा बडा हुआ तो उसे पढने के लिये षहर के सबसे बडे कान्वेंट स्कूल, सेंट जेवियर भेजा गया । वह तब आठवीं में थी और ज्योति सातवीं में । हम दोनों बहनें पास ही के सरकारी स्कूल में पढती थीं । धीरे - धीरे विक्की बडा होता गया । मां और पापा के असीम लाड - प्यार ने उसे जिददी व मुहफट बना दिया था । घर पर वह किसी से ढग से बात नहीं करता था । मां और पापा की तो वह हर बात काट देता था । पापा ने तंग आकर उसे डून स्कूल भेज दिया । सोचा, दूर हास्टल में रहेगा तो ठीक हो जायेगा । लेकिन, वह नहीं सुधरा । विक्की दसवीं के बोर्ड इक्जाम में फेल हो गया । स्कूल वालों ने उसे स्कूल से निकालने का नोटिस भेज दिया । नोटिस में उसके आचरण को लेकर भी षिकायत की गई थी । पापा ने किसी तरह सिस्टर लुसाटा के सामने हाथ - पैर जोडकर विक्की को एक और चांस दिलवाया । लेकिन, भाग्य को तो कुछ और ही मंजूर था । एक दिन खबर आई कि विक्की अपने मैथ के टीचर को अधमरा करके स्कूल से भाग गया है । खबर सुनकर मां के तो जैसे प्राण ही निकल गये । पापा से रोते हुये बोलीं - आप कुछ भी करिये । मुझे मेरा विक्की चाहिये । मैं उसके बिना जिंदा नहीं रह सकती मुझे मेरा विक्की चाहिये मैं उसे समझाउंगी । वह मेरी बात नहीं टालेगा । वह एक समझदार लडका है । वह जरुर अच्छा बनेगा । पापा भी उदास थे । हम दोनों बहनें भी खूब रोई थीं । ज्योति तब सिविल सर्विसिस की तैयारी कर रही थी और मैं जूडिषियल की । पापा ने विक्की को खोजने में कोई कसर नही छोडी । टी.वी., अखबार, रेलवे स्टेषन, बस स्टैंड सभी सार्वजनिक स्थानों पर, जहा कहीं भी पब्लिक की नजर जा सकती थी, विक्की की तस्वीर लगाई गई । लेकिन विक्की न जाने कहा छिप गया था । न जाने कौन सी जमीन उसे निकल गई थी । उसका कहीं पता न चला । विक्की के गम में मां और पापा दोनों बीमार रहने लगे और पिछले साल पहले पापा और फिर मां हम सब को अकेला हम छोडकर इस दुनिया से चले गये । दोनो की आंखें, अंतिम सांसों तक अपने प्यारे बेटे विक्की के आने का रास्ता निहारती रहीं । मां ने जाते - जाते मुझे अपने पास बुलाकर कहा - सागरिका विक्की का ख्याल रखना । वह एक अच्छा लडका है । और आज विक्की मिला भी तो एक ऐसे अपराधी के रुप में, जिस पर अपनी ही बहन पर गोली चलाने का आरोप है । जज साहिबा ने टेबुल पर पडी अपनी ऐनक पहनते हुये कहा - द कोर्ट इज एडजर्न टिल मंडे ।

सोमवार को कोर्ट खचाखच भरी हुई थी । आज यहा एक ऐसे केस का फैसला होने वाला था जहा अभियुक्त उसी जज का भाई था जिसने उसे सजा सुनानी थी । हालांकि ऐसे केसों में जहा अभियुक्त का जज के साथ कोई पारिवारिक रिष्ता हो प्रतिवादी के आवेदन पर केस किसी दूसरे जज की अदालत में ट्रास्फर हो जाता है लेकिन यहा स्थिति इसके बिल्कुल विपरीत थी । जज साहिबा पूरे षहर में अपने तटस्थ न्याय के लिये प्रसिद्ध थीं । लिहाजा प्रतिपादी के वकील को इस संबंध में कोई आपत्ति नहीं थी । आज विक्की उस्ताद उर्फ विक्रम देषपांडे कटघरे में सिर झुकाये उस हारे हुये जुआरी की तरह खडा था जिसने जिंदगी के जुए में अपना सब कुछ गंवा दिया हो । उसका ष्षरीर ढीला पड चुका था । उसे आज अहसास हो गया था कि अपनों के मरने का क्या दु;ख होता है । उसे यह भी मालूम हो गया था कि सामने न्याय की कुर्सी पर बैठी जज साहिबा और कोई नहीं उसकी अपनी बडी बहन सागरिका है ।

क्या तुम्हारी कोई और बहन है ? वकील साहब ने अदालत में घर बनाते हुये मौन को तोडतें हुये कहा ।

हां वकील साहब मेरी एक और बहन सा गरि का है । विक्की की जबान बडी बहन के सामने लडखडा गई । सफाई वकील ने जज साहिबा की ओर उन्मुख होकर कहा - लीजिए योर आर्नर, केस एकदम साफ है । मुलजिम विक्की खुद स्वीकार कर रहा है कि उसने कलक्टर मिस ज्योति पर गोली चलाई यह तो भगवान का ष्षुक्र है कि गोली मिस ज्योति के कंधे को छूती हुइ्र निकल गई वरना कुछ भी हो सकता था । लेकिन, योर आर्नर इससे मुलजिम विक्की का अपराध कम नहीं हो जाता । मुलजिम एक पेषेवर अपराधी है इसलिये मेरी अदालत से दरख्वास्त है कि मुलजिम विक्की उस्ताद उर्फ विक्रम देषपांडे को कडी से कडी सजा दी जाये । दैटस आल योर आर्नर । वकील साहब सामने लगी कुर्सी पर बैठ गये । बहन ज्योति के बचने का समाचार सुनकर विक्रम की आंखों में चमक आ गई । उसके दोनों हाथ अपने आप भगवान का धन्यवाद करने के लिये जुड गये । होंठों से बरबस निकल पडा - परमात्मा तेरा लाख - लाख ष्षुक्र है तूने इस पापी पर रहम करते हुये दीदी को बचा लिया । उसकी आंखों में आंसू आ गये ।

तुम्हे अपनी सफााई में कुछ कहना है ? जज साहिबा ने अभियुक्त विक्की उस्ताद से पूछा ।

हां, जज साहिबा मुझे कुछ कहना है लेकिन अपने बचाव में नहीं । मैं एक मुजरिम हू एक बेहद खूंखार मुजरिम । मैंने न जाने कितने घरों को उजाडा है । लाखों लोग मेरे कारण बेघर हुये हैं । पैसा लेकर हर तरह का काम करता हूॅ मैं । यह कलक्टर क्या नाम है इसका मिस ज्योति देषपांडे यहां रकाबगंज में कानून का राज चलाना चाहती थी । वह काॅलोनी षहर के प्रसिद्ध बिल्डिर सेठ दीनानाथ की बनाई कालोनी थी वही सेठ दीनानाथ, जिनके पैसों से तमाम राजनीतिक पार्टियों के खर्च चलते हैं । षहर के कई अफसरों की अययाषी चलती है । उनके सभी प्रकार के उल-जलूल खर्च चलते हैं । उसी सेठ की कोलोनी को गैरकानूनी बताकर यह कलक्टर उसे गिराना चाहती थी । वह मीडिया के द्वारा सेठ साहब पर दवाब बनाने की कोषिष भी कर रही थी । मैंने फोन पर उसे बहुत समझाया लेकिन उस पर ईमानदारी का भुत सवार था वह नहीं मानी और मैंने उसे गोली मार दी । समाज में लोग मुझे गुंडा कहते हैं पर, अपने सााथियों के लिये मैं उस्ताद हू विक्की उस्ताद लेकिन, आज तक किसी ने जानने की कोषिष की कि पूरे ष्षहर में अपनी ईमानदारी व सच्चाई के लिये मषहूर, एक कत्र्तव्यपरायण पुलिस इ्रस्पैक्टर श्री विकास देषपांडे का इकलौता बेटा विक्की देषपांडे, विक्की उस्ताद कैसे बना । मुझे अपराधी बनाने वाले वे सभी लोग वे सभी मां - बाप हैं जो अपने बेटों को अपनी बेटियों से अधिक प्यार करते हैं । जो समाज में अपने बेटों को अपनी बेटियों से ज्यादा अहमियत देते हैं । उनकी हर नजायज मांग हर गलती यह सोचकर माफ कर देते हैं कि बच्चा है । बडा होकर ठीक हो जायेगा । कुल का चिराग है यह । इसी के हाथों मोक्ष की प्राप्ति होगी । इसी से हमारा वंष चलेगा । अगर, पापा ने मेरे फेल होने पर मुझे फटकारा होता मां मेरी गलतियों पर परदा न डालती तो आज यह विक्की विक्की उस्ताद न होता । आज यहा ंमेरी हर मां- बाप से हाथ जोड कर विनती है कि वे बेटा - बेटी में कोई फर्क न समझे । अपने बेटे को इतना लाड न दें कि उसका स्वाभाविक विकास रुक जाये । वह अपनी नजायज इच्छा ष्षक्तियों का गुलाम बन कर रह जाये । बचपन की बेलगाम बुरी आदतें ही भविप्य में व्यक्ति की मानसिक पंगुता का सबब बनती हैं । वह फूट - फूट कर रोने लगा । उसके आंसुओं की बहती धारा के सामने आज नदियां व समुद्र भी छोटे पडने लगे । जज साहिबा की आंखों में भी आंसू आ गये । खुद को संभालते हुये वे बोलीं - द कोर्ट इज एडजर्न टिल नैक्स्थ डे । घर आकर विक्रम की बडी बहन सागरिका बिना कुछ खाये - पिये ही पंलग पर लेट गई । वह उन जजों में से थी जो फजर् के लिये के अपना सब कुछ दांव पर लगाने के लिये सदैव तैयार रहते हैं । ओह आज कैसी परीक्षा की घडी आ गई है । एक ओर उसका अपना सगा भाई हैं तो दूसरी और फजर् की दीवार । उसने अपनी आंखे मूंद ली । फजर् और भ्रार्त-प्रेम में संघर्प होने लगा । कभी फजर्, भ्रार्त-प्रेम पर चढ बैठता तो कभी भ्रार्त-प्रेम फजर् की मजबूत दीवार को भेद कर उससे कह उठता नहीं सागरिका आखिर विक्की तुम्हारा वही भाई है जिसे बचपन में तुम अपने हाथों से तैयार करके स्कूल भेजती थीं । यह वही विक्की है जिसे खिलाये बिना तुम्हारा पेट नहीं भरता था । जिस दिन वह तुमसे रुठकर, ममी - पापा के साथ सोता था उस दिन तुम सारी रात करवटें बदलती रहती थीं । ममी - पापा के जाने के बाद तुम्ही उसकी ममी - पापा हो । याद है मां ने मरते हुये क्या कहा था विक्की का ख्याल रखना । आज उसी विक्की की जिदगी तुम्हारी कलम पर निर्भर है । कोर्ट में बेचारा कैसे फूट-फूट कर रो रहा था यही सब सोचते - सोचते कब उसकी आंख लग गई पता ही न चला । अगले दिन जज की कुसी पर बैठते ही वह सब कुछ भूल गईं। जज साहिबा ने अपना फैसला सुनाते हुये कहा - विक्की उस्ताद उर्फ विक्रम देषपांडे एक अपराधी है । उसने स्वयं अपना अपराध कबूल किया है । उसने साफ कहा है कि उसने कलक्टर मिस ज्योति देषपांडे को जान से मारने की कोषिष की है । अदालत विक्की को मुजरिम मानती है लेकिन विक्की उस्ताद में उत्पन्न अपराधबोध व पष्चाताप की भावना को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता । कानून हर अपराधी को सुधरने का मौका देता है । अदालतों का कार्य समाज को दुरुस्त करना भी होना चाहिये लिहाजा, अदालत विक्की उस्ताद उर्फ विक्रम देषपांडे को पांच साल की कठोर सजा सुनाती है और एक बहन ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया ।

- डा. नरेंद्र शुक्ल