एक जिंदगी - दो चाहतें - 37 Dr Vinita Rahurikar द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 37

एक जिंदगी - दो चाहतें

विनीता राहुरीकर

अध्याय-37

अभी तीन दिन ही शांती से बीते होंगे कि एक दिन सुबह-सुबह फिर खबर आयी। पास के एक गाँव का कोई आदमी था। उसने अपना नाम जमील बताया और कहा कि उसके घर पर मिलिटेंट्स ने कब्जा करके रखा है। परम को यह भी भ्रमित करने वाली सूचना लगी। भला जिसके घर पर मिलिटेंट्स घुसे हुए हैं वह बाहर आकर आर्मी ऑफिस में फोन कैसे कर रहा है। तब उस व्यक्ति जिसका नाम जमील था, ने बताया कि वे लोग तो कई दिनों से उसके घर पर हैं। उसकी तीन बेटियाँ हैं। मिलिटेंट्स ने पहले बड़ी बेटी को अपने कब्जे में करके परिवार को खामोश रहने पर पर मजबूर किया। लड़की की जान और इज्जत के चक्कर में माँ-बाप चुपचाप अत्याचार सहन करते रहे।

फिर उनकी नजर बीच वाली बेटी पर गयी। एक कमरे में माँ-बाप जार-जार आँसू बहाते बेबस बैठे रहते और दूसरे कमरे में बेटी की इज्जत तार-तार होती रहती और इन दरिंदों को घर में लाकर जबर्दस्ती पनाह दिलवाने वाला उन्हीं के ममेरे भाई का लड़का था। जमील ने लाख उसे मना किया कि वह अपने घर में अनजान लोगों को हरगिज पनाह नहीं दे सकता लेकिन बन्दूक की नोंक पर वे लोग घर में घुस ही गये। रात के ढाई बजे जमील क्या करता।

लेकिन अब पछता रहा था। अपनी पीठ के ठीक पीछे लड़की मिलिटेंट के नीचे पलंग पर नंगी पड़ी रात-दिन रोंदी जाती थी। इससे तो अच्छा था उसी दिन इनका विरोध करके, सीने पर गोलियाँॅ खाकर इज्जत से मर जाता।

दो बेटियों की इज्जत गंवाने के बाद जब दरिंदों की नजर में ग्यारह वर्षीय मासूम नाबालिग तीसरी लड़की चढ़ गई तब उनकी नजरों के वहशियाने इरादे को भांपकर जमील का कलेजा कांप गया। अब उससे रहा नहीं गया। शाम को दुकान जाकर सौदा सुलफ लाने के बहाने उसने सरकार द्वारा जगह-जगह लगाए गये सहायता हॉर्डिंग्स पर लिखे फौजी दफ्तर के फोन नम्बर को नोट किया और सहायता के लिए बड़ी बेबसी से गिड़गिड़ा रहा था और जाहिर है बहुत ही ज्यादा डरा हुआ था। परम को इसकी कहानी और आवाज में सच्चाई लगी।

उसने तुरंत ही अपनी यूनिट को तैयार होने को कहा। अरुण, शमशेर सब मना करने लगे क्योंकि हाल ही में दो खबरे बिलकुल गलत निकली थी

''रहने दीजिए सर। आप ध्यान मत दीजिए। ये तो यहाँ आजकल रोज का ही किस्सा हो गया है।" शमशेर बोला।

''और क्या। ये लोग अपने रिश्तेदार कहकर पहले तो खुद ही मिलिटेंट्स को अपने घरो में पनाह देते है और फिर परेशानी उठानी पड़ती है हमें। जब वे दरिंदे इनके सीनों पर मूंग दलने लगते हैं तब जाकर ये लोग हमें बताते हैं। सर अगर यहाँ के स्थानीय नागरिक इन लोगों को पनाह देना बंद कर दें तो नब्बे प्रतिशत तक ये समस्या अपने आप ही खत्म हो जायेगी।" अरुण भी भुनभुनाया।

''मुझे पता है। लेकिन हमारा काम है सिर्फ अपना कर्तव्य पूरा करना चाहे कुछ भी हो जाये। ओ.के.बड्डी... सो गेट रेडी।" परम ने अपनी यूनीफार्म पहनते हुए कहा।

''ओ.के.सर"

बहुत जल्दी ही परम समेत आठों जवान तैयार हो गये। परम ने बैकअप फोर्स को भी रेडी होकर गंतव्य तक पहुँचाने को कहा और परम अपनी गाड़ी में बाकी के सातों जवानों को लेकर बताए हुए गाँव की ओर निकल गया। गाँव यूनिट से चालीस किलोमीटर दूर था। आधे पौन घंटे में परम वहाँ पहुँच गया। गाँव ज्यादा बड़ा नहीं था। पहाड़ी पर दूर-दूर छितरे मकान बने थे। परम ने लोगों से पूछताछ करके वहाँ के थाने का पता लिया। पहले उसे उस गाँव के थाने पर जाकर लोकल पुलिस वालों से बात करनी पड़ेगी। तब उन्हें साथ लेकर वह आगे की कार्यवाही कर सकता था। अगर थाने वाले सर्च की परमीशन दे दें तब तो सेना घरों की तलाशी ले सकती है वरना नहीं। सर्च की परमीशन नहीं मिलने पर सेना को वापिस लौट जाना पड़ता है।

कई जगहों पर ऐसा भी हो चुका है। एक थाने का इंचार्ज अड़ गया कि नहीं मेरे इलाके में सब शांति है मैं अपने इलाके में व्यर्थ दहशत फैलाने के लिये सेना को क्यों घुसने दूँ। बहुत तरह से उसे समझाने की कोशिश की परम ने कि उसे भी कोई शौक नहीं है बेकार अपनी जान जोखिम में डालने का या बैठे-बिठाए सर्च की मुसीबत उठाने का लेकिन अगर उसे खबर मिली है तो वह सर्च कर लेने दें। लेकिन अडियल इंचार्ज नहीं माना। परम का शक गहरा गया। कुछ मिली भगत की बू भी आ रही थी। परम का खबरी सोर्स एकदम पक्का था। परम ने कुछ दिन और अपने तरीके से खबर की सच्चाई की जांच की और सर्च की परमीशन लेकर ही माना। उस इलाके से पाँच आतंकवादी पकड़े गये थे। जिनमें से तीन एनकाउंटर में मारे गये और दो ने आत्मसमर्पण कर दिया था। उस थाने के इंचार्ज को फिर निलंबित कर दिया गया था।

परम की यूनिट के जवानों ने जमकर गालियाँ बरसाई थी। ''साले हम लोग अपना घर-परिवार, रात-दिन की चैन, नींद, भूख-प्यास सबकुछ छोड़कर इनकी सुरक्षा के लिए अपनी जान जोखिम में डालते है और ये लोग उल्टा हम पर अहसान जताते है।" गुस्सा तो उस दिन परम की भी रगों में उबल गया था। पर क्या करे। फौजी को तो सरकारी कानून को मानकर उसके आदेश अनुसार ही काम करना पड़ता है ना। मिलिटेंट्स अपने अनुसार मनमर्जी से काम करते हैं लेकिन रखवालों को अपना एक हाथ कानून की बेढ़ी में जकड़कर, बंधकर काम करना पड़ता है।

जान लेने और दहशतगर्दी फैलाने के लिए किसी की इजाजत लेने की जरूरत नहीं है, वो किसी कानून में जकड़े हुए नहीं है, उन पर कोई बंधन नहीं है। पापी पाप करने के लिए मुक्त है।

लेकिन रक्षक के चारों तरफ नियम कायदों का शिकंजा कसा हुआ है। उसे किसी की जान बचाने का पुण्य भरा काम करने से पहले इजाजत लेनी पड़ती है। पचास तरह के कानूनों की हद में रहकर काम करना पड़ता है। उसका एक हाथ बंधा हुआ है।

कैसा मजाक है।

कैसी विडंबना है।

यूनिट के एक जवान अर्जुन ने एक बुरी गाली मुँह से निकाली ''इन लोगों की जान बचाने के लिए पहले इन्हीं लोगों से हाथ जोड़कर परमीशन मांगों, कि श्रीमान् जी हमें आपकी जान बचानी है, आपकी सुरक्षा करने की इजाजत प्लीज हमें दे दीजिए।" अर्जुन ने हाथ जोड़कर नाटकीय अंदाज में कहा तो सबकी हँसी छूट गयी।

जवानों के मनों में सुलगते लावे को समझता था परम। खुद उसका भी दिमाग कई बार गरम हो जाता था। पर क्या करें लाचारी है।

एक बंदे को साथ लेकर परम थाने में गया और इंचार्ज से बात की और उसे पूरी वस्तुस्थिति से अवगत कराया। इंचार्ज ठीक-ठाक था। तुरंत एक कॉन्सटेबल को साथ भेजकर सरपंच के पास भेजा। गाँव का सरपंच आया। इंचार्ज ने सरपंच को बताया कि फौज को गाँव में कुछ संदिग्ध गतिविधियों की सूचना मिली है और वो घरों की तलाशी लेना चाहते हैं। सरपंच ने इजाजत दे दी। पुलिस की गाड़ी ने एक छोटे लाउडस्पीकर से गाँव में मुनादी करवा दी कि, सब घरों के लोगों को सरपंच ने एक जगह बुलवाया है।

छोटा सा गाँव था कॉन्सटेबल दस पन्द्रह मिनिट में पूरे गाँव में सूचना दे आया। धूप चढऩे लगी थी। परम एक ऊँची जगह पर खड़े होकर चारों और देखने लगा। सब तरफ की पहाडिय़ों पर खेतों और जंगलों के बीच-बीच में थोड़े-थोड़े अंतराल पर कच्चे-पक्के घर बने हुए थे। कुछ एक मंजिल कुछ दो मंजिल। कुछ घर सामने से एक मंजिला दिखते और पीछे की तरफ पहाड़ की ढलान पर दो या तीन मंजिले और होती थी। धूप में मकानों की टिन की ढलवाँ छतें चांदी जैसी चमक रही थी।

करीब आधे घंटे में गाँव के सारे आदमी आकर इकठ्ठा हो गये। सरपंच ने जायजा लिया। हाँ सारे घरों के लोग वहाँ थे। उन्हीं में परम की नजर एक घबराए हुए बूढ़े पर पड़ी। वह फटी सी आँखों से एकटक जमीन की ओर देख्ेा जा रहा था। परम की अनुभवी आँखों ने ताड़ लिया कि यही जमील होना चाहिए। अगर तो कोई आदमी सरपंच के बुलावे पर उपस्थित नहीं होता तो स्पष्ट हो जाता था कि उसके घर में मिलिटेंट्स छिपे हुए है। अगर कोई अपने घर की तलाशी लेने से मना कर देता तो भी यही माना जाता।

सरपंच ने सभी गाँव वालों के सामने सेना के आने का उद्देश्य स्पष्ट किया और कहा कि सैनिक उनके घरों की तलाशी लेना चाहते है।

सभी गाँववालों ने मंजूर कर लिया। गाँव के पश्चिमी कोने की तरफ थोड़ी ऊंचाई पर जमील ने अपना घर होने की बात की थी। लेकिन परम सीधे उसी के घर की तलाशी नहीं ले सकता था वरना साफ हो जाता कि उसी ने सेना बुलाई है। इसलिए परम ने दिखावे के तौर पर जमील के घर के आसपास के चार-छह घरों की तलाशी लेना शुरू किया। पश्चिमी कोने पर बैक सपोर्ट फोर्स के जवान भी अपनी-अपनी पोजीशन संभाल चुके थे। जमील के घर से चारों तरफ सौ-सौ मीटर की दूरी पर हथियार बंद जवान छिपकर निगरानी कर रहे थे।

चार-आठ घरों की दिखावे के लिए तलाशी लेने के बाद परम जमील के घर की ओर बढ़ा। सब जवानों ने अपनी-अपनी पोजीशन ले ली। घर के दरवाजों और खिड़कियों पर निशाना बांधकर खड़े हो गये। अर्जुन भरोसेमंद और बहादुर निशानेबाज था। वह परम को कवरेज देकर खड़ा हो गया। परम ने आगे बढ़कर दरवाजा खटखटाया। एक अधेड़ औरत ने दरवाजा खोला। अंदर तीन लड़कियाँ भी थी। परम ने उन्हें कहा कि वह घर की तलाशी लेना चाहता है। औरत ने और बड़ी लड़कियों ने मना कर दिया कि यहाँ कोई नहीं है। परम ने उन्हें गौर से देखा। सब डर से पीली पड़ी हुई थी। परम समझ गया पूछने का कोई फायदा नहीं है। बात करने से कुछ हासिल नहीं होगा। जब बाप ने खुद ही बुलाया है तो यह तो शतप्रतिशत सत्य है ही कि घर में कोई छिपा हुआ है। परम ने दो क्षण मौन रहकर एक-एक कर सबकी ओर देखा। औरत ने गरदन नीचे झुका ली। दोनों बड़ी लड़कियाँॅ दाएं-बाएं देखने लगी। छोटी लड़की ने घर के एक बंद दरवाजे की ओर इशारा किया। परम समझ गया कि उस कमरे में कोई है। उसने औरत और तीनो लड़कियों को घर के बाहर निकाला। अपनी यूनिट को एक्शन के लिए तैयार रहने को कहा। एक ग्रेनेड निकाला उसकी पिन खोलकर बंद दरवाजे के सामने फेंका और बाहर आकर जमीन पर लेट गया। यह कम विस्फोटक ग्रेनेड था जो धमाके से दीवारे गिरा देने की जगह दीवारों, दरवाजों और आसपास की चीजों में छेद कर देता है।

ठीक तीस सेकंड बाद ग्रेनेड ब्लास्ट हुआ। परम के सीने के नीचे की जमीन थर्रा गई। परम तुरंत अपनी गन संभालकर खड़ा हो गया। उसे पता था कि ग्रेनेड ब्लास्ट होते ही अंदर जो भी होगा वो निकलकर भागेगा। क्षण भर बाद ही धूल के गुबार में से एक मानव आकृति ओपन फायरिंग करते हुए निकली। उसकी एक गोली परम के बहुत पास से निकल कर पीछे के चीड़ के पेड़ के तने में धंस गई। परम भागते हुए आदमी पर निशाना साध पाता इसके पहले ही पीछे उसे कवर करके खड़े हुए अर्जुन ने उसे अपनी गोली से ढेर कर दिया।

कुछ ही क्षणों में सब कुछ निपट गया। लेकिन अभी धर की तलाशी बाकी थी। अर्जुन और परम बंदूकें तानकर घर में घुसे और सारे कमरे देख लिये। सब खाली थे।

''इनके घरों में तहखाने भी होते हैं सर वो भी देख लेते हैं" अर्जुन ने जमीन की ओर देखते हुए कहा। दोनो ने सारे कमरों के फर्श देखे। कालीन उलट-पलट कर देखे। लेकिन न तो फर्श लकड़ी के थे और न ही कहीं से पोले थे। सर्च पूरा हो गया था। एनकाउंटर पूरा हो चुका था। परम ने बाकी मामला स्थानीय इंचार्ज को सौंपा और अपनी यूनिट को लेकर वापिस लौट गया। जमील की बूढी आँखों से आँसू बह रहे थे।

अर्जुन ने एक अफसोस और हिकारत भरी नजर जमील पर डाली और आगे बढ़ गया। परम उसका मंतव्य समझ गया। अपना हितैषी और शुभचिंतक जानकर पहले-पहल इन्ही लोगों ने मिलिटेंट्स को अपने घरों में पनाह दी। उन्हें अपना रखवाला, अपना खुदा माना। भारतीय फौज से नफरत की, हर जगह उन्हें अपना दुश्मन माना उनके काम में बड़े रोड़े अटकाये। आज भी कई स्थानीय निवासी भारतीय सेना को विदेशी और जबर्दस्ती से उनके देश में घुस आए लोग मानते है।

लेकिन आज जब उनके रखवाले उनके रक्षक ही भक्षक बन जाते हैं तब इन लोगों की आँख खुलती है। अब तीन लड़कियों की इज्जत लेकर कहाँ जायेगा जमील। अर्जुन ने चलते-चलते जमीन पर थूक दिया।

परम की जेब में वाईब्रेशन पर पड़ा मोबाइल सुबह से न जाने कितनी बार घरघरा चुका था। परम जानता था, तनु फोन लगा रही होगी। सुबह काम की हड़बड़ी में उसने तनु को फोन भी नहीं लगाया था और अब भी रिसीव नहीं कर रहा है। तनु परेशान हो रही होगी। हालांकि यहाँ के डेढ़ साल के अनुभव ने उसे सिखा दिया है कि परम फोन न उठाये तो घबराना नहीं, वो हर समय ऐसे हालात में नहीं होगा कि फोन उठा ले।

थाने में जाकर उसने इंचार्ज के साथ मुलाकात की, कुछ औपचारिकताएं पूरी की। सरपंच से बातें की और पूरी यूनिट और बैक सपोर्ट फोर्स अपनी-अपनी गाडिय़ों में सवार होकर अपने स्थान की ओर रवाना हो गये। गाँव की हद से जैसे ही गाड़ी बाहर निकली परम ने तनु को फोन लगाकर बताया कि वह जरूरी काम के सिलसिले में बाहर आया था। अभी गाडी़ में है। यूनिट पहुँचकर बात करेगा।

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