देस बिराना - 18 Suraj Prakash द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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देस बिराना - 18

देस बिराना

किस्त अठारह

समझ में नहीं आ रहा कि इन पत्रों का क्या जवाब दूं। अपने यहां के मोरचे संभालूं या देहरादून के। दोनों ही मोर्चे मुझे पागल बनाये हुए हैं। गुड्डी ने तो कितनी आसानी से लिख दिया है बेशक भारी मन से ही लिखा है लेकिन मैं कैसे लिख दूं कि यहां भी सब खैरियत है जबकि सब कुछ तो क्या कुछ भी ठीक ठाक नहीं है। मैं तो चाह कर भी नहीं लिख सकता कि मेरी प्यारी बहना, खैरियत तो यहां पर भी नहीं है। मैं भी यहां परदेस में अपने हाथ जलाये बैठा हूं और कोई मरहम लगाने वाला भी नहीं है।

तीनों चिट्ठियां पिछले चार दिन से जेब में लिये घूम रहा हूं। तीनों ही खत मेरी जेब जला रहे हैं और मैं कुछ भी नहीं कर पा रहा हूं।बात करूं भी तो किससे? कोई भी तो नहीं है यहां मेरा जिससे अपने मन की बात कह सकूं। गौरी से कुछ भी कहना बेकार है। पहले दो एक मौकों पर मैं उसके सामने गुड्डी का ज़िक्र करके देख चुका हूं। अब उसकी मेरे घर बार के मामलों में कोई दिलचस्पी नहीं रही है। बल्कि एक आध बार तो उसने बेशक गोल-मोल शब्दों में ही इशारा कर दिया था - डीयर, तुम छोड़ो अब वहां के पचड़ों को। तुम अपने नसीब को भोगो। वे अपनी किस्मत का वहीं मैनेज कर ही लेंगे।

अचानक शिशिर का फोन आया है तो मुझे सूझा है, उसी से अपनी बात कह कर मन का कुछ तो बोझ हलका किया जा सकता है।

शिशिर को बुलवा लिया है मैंने। हम बाहर ही मिले हैं। उसे मैं संक्षेप में अपनी बैकग्राउंड के बारे में बताता हूं और तीनों पत्र उसके सामने रखता हूं। वह तीनों पत्र पढ़ कर लौटा देता है।

- क्या सोचा है तुमने इस बारे में। पूछता है शिशिर।

- मैं यहां आने से पहले गुड्डी के लिए वैसे तो इंतज़ाम कर आया था। उसे मैं तीन लाख के ब्लैंक चैक दे आया था। दारजी को इस बारे में पता नहीं हैं। मैं बेशक यहां से न तो ये शादी रुकवा सकता हूं और न ही उसके लिए यहां या वहां बेहतर दूल्हा ही जुटा सकता हूं। अब सवाल यह है कि उसकी ये शादी मैं रुकवाऊं तो रुकवाऊं कैसे? वैसे नंदू इसे अप्रैल तक रुकवाने में सफल हो ही चुका है। तब तक वह बीए कर ही लेगी। मुझे कुछ सूझ नहीं रहा है इसीलिए तुम्हें मैंने बुलाया था।

- फिलहाल तो तुम यही करो कि गुड्डी को यही समझाओ कि जब तक शादी टाल सके टाले, जब बिलकुल भी बस न चले तो करे शादी। दारजी को भी एक बार लिख कर तो देख लो कि उसे पढ़ने दें। एक बार शादी हो जाने के बाद कभी भी पढ़ाई पूरी नहीं हो पाती। और अगर गुड्डी को लड़का पसंद नहीं है तो क्यों नहीं वे कोई बेहतर लड़का देखते। बीए करने के बाद तो गुड्डी के लिए बेहतर रिश्ते भी आयेंगे ही।

- हां, ये ठीक रहेगा। मैं इन्हीं लाइंस पर तीनों को लिख देता हूं। आज तुम से बात करके मेरा आधी परेशानी दूर हो गयी है।

- ये सिर्फ तुम्हारी ही समस्या नहीं है मेरे दोस्त। वहां घर घर की यही कहानी है। अगर तुम्हारी गुड्डी की शादी के लिए तुम्हें लिखा जा रहा है तो मेरी बहनों अनुश्री और तनुश्री की शादी के लिए भी मेरे बाबा भी मुझे इसी तरह की चिट्ठियां लिखते हैं। तुम लकी हो कि तुम गुड्डी के लिए कम से कम तीन लाख का इंतज़ाम करके तो आये थे और इस फ्रंट के लिए तुम्हें रातों की नींद तो खराब नहीं करनी है। हर समय ये हिसाब तो नहीं लगाना पड़ता कि तुम्हारा जुटाया या बचाया या चुराया हुआ एक पाउंड वहां के लिए क्या मायने रखता है और उनकी कितनी ज़रूरतें पूरी करता है। मुझे यहां खुद को मेनटेन करने के लिए तो हेराफेरी करनी ही पड़ती है, साथ ही वहां का भी पूरा हिसाब-किताब दिमाग में रखना पड़ता है। मुझे न केवल दोनों बहनों के लिए यहीं से हर तरह के दंद फंद करके दहेज जुटाना पड़ा बल्कि मैं तो आज भी बाबा, मां और दोनों बहनों, जीजाओं की हर तरह की मांगें पूरी करने के लिए अभिशप्त हूं। मैं पिछले चार साल से यानी यहां आने के पहले दिन से ही यही सब कर रहा हूं।

- तो बंधु, हम लोगों की यही नियति है कि घर वालों के सामने सच बोल नहीं सकते और झूठ बोलते बोलते, झूठी ज़िदंगी जीते जीते एक दिन हम मर जायेंगे। तब हमारे लिए यहां कोई चार आंसू बहाने वाला भी नहीं होगा। वहां तो एक ही बात के लिए आंसू बहाये जायेंगे कि पाउंड का हमारा हरा-भरा पेड़ ही सूख गया है। अब हमारा क्या होगा।

- कभी वापिस जाने के बारे में नहीं सोचा?

- वापिस जाने के बारे में मैं इसलिए नहीं सोच सकता कि शिल्पा और मोंटू मेरे साथ जायेंगे नहीं। अकेले जाने का मतलब है - तलाक ले कर, सब कुछ छोड़-छाड़ कर जाओ। फिर से नये सिरे से जिंदगी की शुरूआत!! वह अब इस उम्र में हो नहीं पायेगा। अब यहां जिस तरह की ज़िंदगी की तलब लग गयी है, वहां ये सब कहां नसीब होगा। खटना तो वहां भी पड़ेगा ही लेकिन हासिल कुछ होगा नहीं। जिम्मेवारियां कम होने के बजाये बढ़ ही जायेंगी। तो यहीं क्या बुरा है।

- तुम सही कह रहे हो शिशिर। आदमी जिस तरह की अच्छी बुरी ज़िंदगी जीने का आदी हो जाता है, उम्र के एक पड़ाव के बाद उसमें चेंज करना इतना आसान नहीं रह जाता। मैं भी नहीं जानता, क्या लिखा है मेरे नसीब में। यहां या कहीं और, कुछ भी तय नहीं कर पाता। वहां से भाग कर यहां आया था, अब यहां से भाग कर कहां जाऊंगा। यहां कहने को हम हांडा खानदान के दामाद हैं लेकिन अपनी असलियत हम ही जानते हैं कि हमारी औकात क्या है। हम अपने लिए सौ पाउंड भी नहीं जुटा सकते और अपनी मर्जी से न कुछ कर सकते हैं न किसी के सामने अपना दुखड़ा ही रो सकते हैं।

- आयेंगे अच्छे दिन भी, शिशिर हँसता है और मुझसे विदा लेता है।

मैं शिशिर के सुझाये तरीके से दारजी और गुड्डी को संक्षिप्त पत्र लिखता हूं। एक पत्र नंदू को भी लिखता हूं। मैं जानता हूं कि इन खतों का अब कोई अर्थ नहीं है फिर भी गुड्डी की हिम्मत बढ़ाये रखनी है। मैंने दारजी को यह भी लिख दिया है कि मैं यहां गुड्डी के लिए कोई अच्छा सा लड़का देखता रहूंगा। अगर इंतज़ार कर सकें। उस इंजीनियर से अच्छा लड़का यहां भी देखा जा सकता है लेकिन इसके लिए वे मुझे थोड़ा टाइम जरूर दें।

बहुत दिनों बाद मिला है शिशिर इस बार।

- कैसे हो, दीप, तुम्हारे पैकैजेस ने तो धूम मचा रखी है।

- जाने दो यार, अब उनकी बात मत करो। अपनी कहो, नयी फैक्टरी की बधाई लो शिशिर, सुना है तुमने इन दिनों हांडा ग्रुप को अपने बस में कर रखा है। तुम्हारे लिए एक फैक्टरी लगायी जा रही है। इससे तो तुम्हारी पोजीशन काफी अच्छी हो जायेगी।

- वो सब शिल्पा के ज़रिये ही हो पाया है। मैंने उसे ही चने के झाड़ पर चढ़ाया कि मैं कब तक गैस स्टेशनों पर हाथों की ग्रीस उतारने के लिए उससे साबुन मांगता रहूंगा, आखिर वही सबसे बड़ी है। उसके हसबैंड को भी अच्छी पोजीशन दी जानी चाहिये। बस बात क्लिक कर गयी और ये फैक्टरी हांडा ग्रुप ने मेरे बेटे के नाम लगाने का फैसला किया है।

- चलो, कहीं तो मोंटू की किस्मत चमकी।

- खैर, तुम कहो, होम फ्रंट पर कैसा चल रहा है। पूछा है शिशिर ने।

- बस, चल ही रहा है। मैं भरे मन से कहता हूं।

- क्या कोई ज्यादा डिफरेंसेंस हैं?

- हैं भी और नहीं भी। अब तो कई बार तो हममें बात तक नहीं होती।

- कोई खास वज़ह?

- यही वज़ह क्या कम है? जब आपका मन ही ठिकाने पर न हो, आप को मालूम हो कि आपके आस पास जो कुछ भी है, एक झूठा आवरण है और कदम कदम पर झूठ बोल कर आपको घेर कर लाया गया है तो आप अपने सबसे नजदीकी रिश्ते भी कहां जी पाते हैं। और उस उस रिश्ते में भी खोट हो तो .. ..। खै। मेरी छोड़ो, अपनी कहो।

- नहीं दीप नहीं, तुम्हारी बात को यूं ही नहीं जाने दिया जा सकता। अगर तुम इसी तरह घुटते रहे तो अपनी ही सेहत का फलूदा बनाओगे। यहां तब कोई पूछने वाला भी नहीं मिलेगा। मुझसे मत छिपाओ, मन की बात कह दो। आखिर मैं इन लोगों को तुमसे तो ज्यादा ही जानता हूं। सच बताओ, क्या बात है। उसने मेरे कंधे पर हाथ रखा है।

- सच बात हो यह है कि मैं थक गया हूं। अब बहुत हो गया। आदमी कब तक अपना मन मार कर रहता रहे, जबकि सुनवाई कहीं नहीं है। यहां तो हर तरफ झूठ ही झूठ है।

- बताओ तो सही बात क्या है।

- कुछ दिन पहले हम एक कपबोर्ड का सामान दूसरे कमरे में शिफ्ट कर रहे थे तो गौरी के पेपर्स में मुझे उसका का बायोडाटा मिला। आम तौर पर मैं गौरी की किसी भी चीज़ को छूता तक नहीं और न ही उसके बारे मे कोई भी सवाल ही पूछता हूं। दरअसल उन्हीं कागजों से पता चला कि गौरी सिर्फ दसवीं पास है जबकि मुझे बताया गया था कि वह ग्रेजुएट है। मुझे समझ नहीं आ रहा कि इस बारे में भी मुझसे झूठ क्यों बोला गया? मुझे तो यह भी बताया गया था कि वह अपनी कम्पनी की फुल टाइम डाइरेक्टर है। यहां तो वह सबसे कम टर्नओवर वाले फ्लोरिस्ट स्टाल पर है और स्टाल का एकाउंट भी सेन्ट्रलाइज है।

- यही बात थी या और भी कुछ?

- तो क्या यह कुछ कम बात है। मुझसे झूठ तो बोला ही गया है ना....।

- तुम मुझसे अभी पूछ रहे थे ना कि मैंने अपनी पोजीशन काफी अच्छी कैसे बना रखी है। तो सुनो, मेरी बीबी शिल्पा डाइवोर्सी है और यह बात मुझसे भी छुपायी गयी थी।

- अरे...तो पता कैसे चला तुम्हें...?

- इन लोगों ने तो पूरी कोशिश की थी कि मुझ तक यह राज़ जाहिर न हो लेकिन शादी के शुरू शुरू में शिल्पा के मुंह से अक्सर संजीव नाम सुनाई दे जाता लेकिन वह तुरंत ही अपने आप को सुधार लेती। कई बार वह मुझे भी संजीव नाम से पुकारने लगती। हनीमून पर भी मैंने पाया था कि उसका बिहेवियर कम से कम कुंवारी कन्या वाला तो नहीं ही था। वापिस आ कर मैंने पता किया, पूरे खानदान में संजीव नाम का कोई भी मेम्बर नहीं रहा था। मेरा शक बढ़ा। मैंने शिल्पा को ही अपने विश्वास में लिया। जैसे वही मेरी ज़िंदगी की सबसे बड़ी खुशी हो। उसे खूब प्यार दिया। फिर उसके बारे में बहुत कुछ जानने की इच्छा जाहिर की। वह झांसे में आ गयी। बातों बातों में उसके दोस्तों का जिक्र आने लगा तो उसमें संजीव का भी जिक्र आया। वह इसका क्लास फेलो था। पता चला, हमारी शादी से दो साल पहले उन दोनों की शादी हुई थी। यह शादी कुल चार महीने चली थी। हालांकि मैं अब इस धोखे के खिलाफ कुछ नहीं कर सकता था लेकिन मैंने इसी जानकारी को तुरुप के पत्ते की तरह इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। शिल्पा भी समझ गयी कि मुझे सब पता चल चुका है। तब से मेरी कोई भी बात न तो टाली जाती है और न ही कोई मेरे साथ कोई उलटी सीधी हरकत ही करता है। बल्कि जब जरूरत होती है, मैं उसे ब्लैक मेल भी करता रहता हूं। कई बार तो मैंने उससे अच्छी खासी रकमें भी ऐंठी हैं।

- लेकिन इतनी बड़ी बात जान कर भी चुप रह जाना.... मेरा तो दिमाग खराब हो जाता..।

- दीप तुम एक बात अच्छी तरह से जान लो। मैंने भी अपने अनुभव से जानी है और आज यह सलाह तुम्हें भी दे रहा हूं। बेशक शिल्पा डाइवोर्सी थी और यह बात मुझसे छिपायी गयी लेकिन यहां लंदन में तुम्हें कोई लड़की कुंवारी मिल जायेगी, इस बात पर सपने में यकीन नहीं किया जा सकता। अपोज़िट सैक्स की फ्रैंडशिप, मीटिंग और आउटिंग, डेटिंग और इस दौरान सैक्स रिलेशंस यहां तेरह चौदह साल की उम्र तक शुरू हो चुके होते हैं। अगर नहीं होते तो लड़की या लड़का यही समझते हैं कि उन्हीं में कोई कमी होगी जिसकी वज़ह से कोई उन्हें डेटिंग के लिए बुला नहीं रहा है। कोई कमी रह गयी होगी वाला मामला ऐसा है जिससे हर लड़का और लड़की बचना चाहते हैं। दरअसल ये चीजें यहां इतनी तेजी से और इतनी सहजता से होती रहती हैं कि सत्तर फीसदी मामलों में नौबत एबार्शन तक जा पहुंचती है। अगर शादी हो भी जाये तो रिलेशंस पर से चांदी उतरते देर नहीं लगती। तब डाइवोर्स तो है ही सही। इसलिए जब मैंने देखा कि ऐसे भी और वैसे भी यहां कुंवारी लड़की तो मिलने वाली थी नहीं, यही सही। बाकी अदरवाइज शिल्पा इज ए वेरी गुड वाइफ। दूसरी तकलीफ़ें अगर मैं भुला भी दूं तो कम से कम इस फ्रंट पर मैं सुखी हूं।

हँसा है शिशिर - बल्कि कई बार अब मैं ही रिश्तों में बेईमानी कर जाता हूं और इधर-उधर मुंह मार लेता हूं। वैसे भी दूध का धुला तो मैं भी नहीं आया था। यहां भी वही सब जारी है।

- यार, तुम्हारी बातें तो मेरी आंखें खोल रही हैं। मैं ठहरा अपनी इंडियन मैंटेलिटी वाला आम आदमी। इतनी दूर तक तो सोच भी नहीं पाता। वैसे भी तुम्हारी बातों ने मुझे दोहरी दुविधा में डाल दिया है। इसका मतलब ..

- पूछो.. पूछो.. क्या पूछना चाहते हे.. शिशिर ने मेरी हिम्मत बढ़ाई है।

- तो क्या गौरी भी...?

- अब अगर तुममें सच सुनने की हिम्मत है और तुम सच सुनना ही चाहते हो और सच को झेलने की हिम्मत भी रखते हो तो सुनो, लेकिन यह बात सुनने से पहले एक वादा करना होगा कि इसके लिए तुम गौरी को कोई सज़ा नहीं दोगे और अपने मन पर कोई बोझ नहीं रखोगे।

- तुम कहो तो सही।

- ऐसे नहीं, सचमुच वादा करना पड़ेगा। वैसे भी तुम्हारे रिश्तों में दरार चल रही है। बल्कि मैं तो कहूंगा कि तुम भी अपनी लाइफ स्टाइल बदलो। हर समय देवदास की तरह कुढ़ने से न तो दुनिया बदलेगी और न कुछ हासिल ही होगा। उठो, घर से बाहर निकलो और ज़िंदगी को ढंग से जीओ। ये ज़िंदगी एक ही बार मिली है। इसे रो धो कर गंवाने के कुछ भी हासिल नहीं होने वाला।

- अरे भाई, अब बोलो भी सही।

- तो सुनो। गौरी को भी एबार्शन कराना पड़ा था। हमारी शादी के पहले ही साल। यानी तुम्हारी शादी से तीन साल पहले। उसे शिल्पा ही ले कर गयी थी। लेकिन मैंने कहा न..ऐसे मामलों में शिल्पा या गौरी या विनिता या किसी भी ल़ड़की का कोई कुसूर नहीं होता। यहां की हवा ही ऐसी है कि आप चाह कर भी इन रिश्तों को रोक नहीं सकते। मां-बाप को भी तभी पता चलता है जब बात इतनी आगे बढ़ चुकी होती है। थोड़ा बहुत रोना-धोना मचता है और सब कुछ रफा दफा कर दिया जाता है। इंडिया से कोई भी लड़का ला कर तब उसकी शादी कर दी जाती है। अब यही देखो ना, कि इस हांडा फेमिली के ही लड़के भी तो यहां की लड़कियों के साथ यही सब कुछ कर रहे होंगे और उन्हें प्रैगनेंट कर रहे होंगे।

- लेकिन ..गौरी भी.. अचानक मुझे लगता है किसी ने मेरे मुंह पर एक तमाचा जड़ दिया है या बीच चौराहे पर नंगा कर दिया है.. ये सब मेरे साथ ही क्यूं होता है। मैं एकाएक चुप हो गया हूं।

- देखो दीप मैंने तुम्हें ये बात जानबूझ कर बतायी ताकि तुम इन इन्हीबीशंस से मुक्त हो कर अपने बारे में भी कुछ सोच सको। अब तुम ये भी तो देखो कि गौरी अब तुम्हारे प्रति पूरी तरह ईमानदार है बल्कि गौरी ने खुद ही शिल्पा को बताया था कि वह तुम्हें पा कर बहुत सुखी है। खुश है और शी इज रीयली प्राउड आफ यू। वह शिल्पा को बता रही थी कि वह एक रात भी तुम्हारे बिना नहीं सो सकती। तो भाई, अब तुम अपने इंडियन सैंटीमेंटस की पुड़िया बना कर दफन करो और अपनी भी ज़िंदगी को एंजाय करो। वैसे बुरा मन मानना, गौरी ने तो तुमसे शादी से पहले के रिलेशंस के बारे में कुछ नहीं पूछा होगा।

मैं झेंपी हँसी हँसता हूं - पूछ भी लेती तो उसे कुछ मिलने वाला नहीं था। गौरी से पहले तो मैंने किसी लड़की को चूमा तक नहीं था। बिस्तर पर मैं कितना अनाड़ी था, ये तो गौरी को पहली ही रात पता चल गया था।

- इसके बावजूद वह तुम्हारे बिना एक रात भी सोने के लिए तैयार नहीं है। इसका कोई तो मतलब होगा ही सही।

- तुम गौरी पर पूरा भरोसा रखो और उसके मन में इस बात के लिए कोई गिल्ट मत आने दो। अव्वल तो तुम बदला ले नहीं सकते। लेना भी चाहो तो अपना ही नुक्सान करोगे। खैर, अब तुम मन पर बोझ मत रखो। बेईमानी करने को जी करता है तो जरूर करो लेकिन फॉर गॉड सेक, अपनी इस रोनी सूरत से छुटकारा पाओ। रियली इट इज किलिंग यू। ओके!! टेक केयर ऑफ यूअरसेल्फ।

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