एक जिंदगी - दो चाहतें - 35 Dr Vinita Rahurikar द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 35

एक जिंदगी - दो चाहतें

विनीता राहुरीकर

अध्याय-35

तीन दिन अपनी माँ के यहाँ रहकर तनु चौथे दिन सुबह अपने घर वापस आ गयी। शारदा ने उसके साथ रहने के लिए अपनी एक बहुत पुरानी और विश्वसनीय नौकरानी जो बरसों से उनके यहाँ काम कर रही थी दयाबेन को भेज दिया। ऊपर के एक खाली कमरे मे तनु ने दयाबेन का सामान रखवा दिया। दयाबेन विधवा थी। बेटी-दामाद सूरत में रहते थे और बेटा-बहू राजकोट में। दयाबेन स्वस्थ, हट्टीकट्टी, और बहुत अच्छे स्वभाव की महिला थी। बरसों से शारदा की गृहस्थी में ही रही थी। तनु को बचपन से ही लाड-प्यार से गोद खिलाया था उसने तभी शारदा ने उसे तनु के साथ भेजा।

घर आते ही तनु ऊपर स्टडी में आकर बैठ गयी और अपना काम करने लगी। दयाबेन को पता था काम की शुरुआत करते ही तनु को चाय की जरूरत पड़ेगी। वह नीचे किचन में गयी और ढूंढकर चाय का बर्तन, चायपत्ती शक्कर सब निकाला और तनु के लिये चाय बनाई।

ऊपर आकर दयाबेन ने चाय का कप टेबल पर रखा तो तनु ने आभार के साथ मुस्कुराकर उनकी ओर देखा। दयाबेन ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा।

''तुम अपना काम करो बिटिया मैं नीचे पेड़ों को पानी डाल देती हूँ।"

दयाबेन नीचे चली गयी। तनु फिर से अपने आर्टिकल पर काम करने लगी। बीच-बीच में से परम से भी बातें करती रहती। खाना शारदा ने सुबह ही बनवाकर साथ में दे दिया था।

तनु से पूछकर डेढ़ बजे दयाबेन ने नीचे टेबल पर खाना लगा दिया। दोनों ने साथ में खाना खाया और फिर से तनु ऊपर स्टडी रूम में आकर काम करने लगी। नीचे का काम खत्म कर दयाबेन ऊपर वाले अपने कमरे में जाकर आराम करने लगी।

परम को ड्यूटी पर आए दस दिन हो गये थे। ये दस दिन फिर भी सामान्य कामकाज करते बीत गये थे। सीमा पर शांती थी और पिछले दस दिनों में घुसपैठ वगैरह की भी कोई वारदात नहीं हुई थी। सबका अपना रूटीन काम चल रहा था। दिन में कई बार तनु से बात हो जाती थी। उसने भी अपने आपको अखबार के काम में व्यस्त कर लिया था। दोनों दिन गिनते रहते थे कि कब परम को वापस छुट्टी मिले।

रात का खाना खाकर परम ने रूम में आकर ड्रेस चेंज की, यूनिफॉर्म पहनी और अपनी यूनीट को साथ लेकर पेट्रोलिंग करने निकल गया। सबके हाथों में ए.के. 47 रायफल थी। और जेब में व्हिसल। पोस्ट पर सिपाही पहरा दे रहे थे। सतर्कता से पहरा देते हुए परम और उसके छ: आदमी अपनी हद में पैदल घूमते हुए स्थिति का जायजा ले रहे थे ंकि सब ठीक-ठाक है कि नहीं। डेढ़ घन्टे में सर्कल का राउण्ड पूरा हो गया। परम और उसकी यूनीट के लोग वापस रूम में आ गये और सो गये।

आठ-दस दिन और निकल गये। एक रात पेट्रोलिंग करके परम और उसकी यूनीट के बाकी सदस्य वापस आकर सो रहे थे। रात का पौने एक बज रहा होगा सभी लोग गहरी नींद में थे। पोस्ट पर शमशेर बहादुर नाम का जवान पहरा दे रहा था। सब ठीक-ठाक चल रहा था कि अचानक शमशेर को शायद नींद का झोका आ गया और उसी झोंके में उसने एक आदमी लाल टॉर्च लिये फेन्स की तरफ से आकर बंकर की ओर जाते देखा। उसने तुरंत उसकी सूचना दी। उसने हल्ला मचा दिया। परम गहरी नींद में था कि तभी क्यू.एम. ऑफिस से फोन आया कि क्यू.आर.टी. (क्विक रिएक्शन टीम) जल्दी मौका-ए-वारदात पर पहुँचे। मैसेज में कुछ भी स्पष्ट नहीं बताया गया था कि क्या हुआ है। परम ने अपनी यूनिट के सदस्यों को उठाया और तुरंत बंकर की ओर दौड़ लगा दी।

बंकर के थोड़ी दूर पर दो-तीन जवान हथियार लेकर घूम रहे थे। उन्होंने इन लोगों को खाली हाथ देखकर पूछा कि इनके हथियार कहाँ है। परम ने कहा कि उसे स्थिति कुछ नहीं पता कि क्या हुआ है। उसे तो बस तुरंत यहाँ पहुँचने का आदेश हुआ था। तब उन लोगो ने बताया कि शमशेर ने पोस्ट पर पहरा देते हुए एक आदमी को लाल टॉर्च लेकर उधर से आकर फेंस क्रॉस करके बंकर मे जाते देखा था।

परम और उसकी यूनिट ने तुरंत दौड़ लगाई, अपने हथियार लेकर आए और बंकर को घेर लिया सबके चेहरों और दिमाग में तनाव छा गया। पता नहीं शमशेर के देखने के पहले भी अगर कोई वहाँ आकर छुपा हो। कितने लोग हैं, कौन से और कितने हथियार हैं उनके पास। कुछ भी स्पष्ट नहीं था। लेकिन फर्ज तो निभाना ही था। जान का जोखीम था। सब लोग आगे-पीछे हो रहे थे। सबके कलेजे धड़क रहे थे। परम ने अपनी रायफल मजबूती से थामी, बाकी लोगों को अपने पीछे अलर्ट रहने का इशारा किया और बंकर के दरवाजे की तरफ बेआवाज बढऩे लगा दरवाजे के आसपास कोई नहीं था और दरवाजा बंद भी था। परम ने जवानों को दरवाजे पर निशाना साधकर तैयार रहने का इशारा किया और जोर से लात मारकर दरवाजा खोल दिया। जवानों की बंदूके तन गयीं, मगर कोई हलचल नहीं हुई। परम बंकर के अंदर गया मगर वो पूरा खाली था।

शायर वह बंकर के अंदर नहीं घुसा होगा और आसपास कहीं छुपा होगा। परम ने तुरंत सर्च अलर्ट किया और दो-दो की जोड़ी में पूरे एरिया मे सबको सर्च करने भेजा। सारे जवान रात के घुप्प अंधेरे मे दबे पाँव ईलाके की तलाशी लेने लगे। जंगल मे चलते सूखे पत्तों के अपने ही पैरों के नीचे चरमराने की आवाज सुनकर शंकित हो जाते। सुबह के साढ़े चार बजे तक इलाके का चप्पा-चप्पा छान मारा मगर कोई नहीं मिला। उस ईलाके मे टॉर्च वो भी लाल रंग की रोशनी वाली दिखाई देना संदिग्ध था क्योंकि किसी को भी इसकी इजाजत नहीं थी। स्थानीय निवासी भी वहाँ से कभी नहीं निकलते थे रात के समय। और अगर निकलते भी तो टॉर्च की जगह मशाल लेकर निकलते थे। जब सब जवान खाली हाथ वापस आ गये तब परम ने शमशेर बहादुर को लताड़ा।

''कहाँ है बे साले तेरा घुसपैठिया?"

''मैंने तो देखा था जी उधर से किसी को आते और बंकर की तरफ जाते....।" शमशेर बहादुर हकलाया।

''कुछ नहीं (-)" अरुण ने एक मोटी गाली देकर कहा ''सो गया होगा साला और सपने में देखा होगा इसने। अगर कोई सचमुच में ही होता तो उसे धरती निगल गयी या आसमान खा गया।"

रात खराब होने से सब लोग पिनक गये थे। शमशेर की जगह दूसरे जवान को पोस्ट पर भेजा गया। परम का माथा भिनभिना रहा थ। साले पड़ोसी तो जब तब सिरदर्दी पैदा करते ही रहते हैं। ऊपर से मिलिटेंट्स का खतरा सिर पर हमेशा ही मंडराता रहता है और आज कुछ नहीं तो इसने बवाल खड़ा कर दिया। सारी रात बेवजह खराब हो गयी।

लेकिन वो बेचारा भी क्या करे। हालात ही ऐसे हैं।

'पत्ता खड़के बंदा भड़के'

मिलिटेंट्स की घुसपैठ का तनाव इतना हावी हो गया है सबके ऊपर कि चैबीसों घण्टे दिमाग में वही सोच चलती रहती है। और इंसान पूरे समय जो सोचता रहता है एक समय पर आकर हर जगह यही सच होता हुआ लगता है। सीमा पार से घुसपैठियों के आने की वारदातें इतनी अधिक बढ़ गयी थीं कि हर सैनिक चौबीसों घण्टे उसी दबाव में जीता है। और देश की सुरक्षा की खातिर अपने मस्तिष्क में उन्हीं विचारों को लेकर हर समय चौकस रहता है। ऐसे में कहीं भी कोई हलचल देखकर उसका तनाव में घिरकर अतिरिक्त चौकस हो जाना बहुत ही स्वाभाविक है। बरसों से निरर्थक कारणों की वजह से हमारे सैनिक सीमा और सीमा प्रांतों पर बेवजह ही परेशानियों का सामना करते चले आ रहे हैं। सारी उर्जा इन बाहरी टंटो से निपटने में ही व्यर्थ खर्च होती आ रही है।

ना जाने कब ये सीमा पार के राजनैतिक और सियासती मसले सुलझेंगे और देश में शांती बहाल होगी।

कमरे में आकर परम ने कपड़े बदले और पलंग पर लेट गया। पाँच बज गये थे। सोचा एक घण्टा सो ले। उसकी यूनिट के बाकी लोग भी आकर पलंग पर पसर चुके थे। छ: बजे परम उठा। नहाया धोया, रेडी हुआ और ऑफिस चला आया। आज उसने सुबह ही एक बंदे को भेजकर चाय मंगवाई और एक कप गरमा-गरम चाय पी पहले। चाय पीने के बाद उसे थोड़ा तरोताजा लगा। भगवान के सामने अगरबत्ती जलाकर उसने प्रणाम किया, तनु के फोटो पर सिंदूर लगाया और लॉकर से डॉक्यूमेंट्स और फाईले निकाल कर काम करने लगा।

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