सत्या - 20 KAMAL KANT LAL द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सत्या - 20

सत्या 20

महिलाओं का झुँड मुखिया के द्वार पर खड़ा था. मुखिया पूरे गुस्से में था. उसने चिल्लाकर कहा, “तुम्हारी काकी इसपर साईन नहीं करेगी. देखो ये पागलपन मत करो. इस अर्जी को सरकार कचरे का डब्बा में फेंक देगी.”

सविता, “ठीक है न. फिर साईन करने में क्या दिक्कत है. कुछ तो होगा नहीं.”

मुखिया और भी ज़ोर से भड़क गया, “ये सब बखेड़ा में तुम लोग हमको मत फंसाओ. हम बोल दिए न कि मेरा औरत साईन नहीं करेगी.”

गोमती बड़बड़ाई, “मुखिया दादा तो अपने रोज शाम को पीता है. वो साईन नहीं करने

देगा मालती बहन को,” उसने मालती को आवाज़ लगाई, “अरे ओ मालती बहन, एक बार आकर सुन तो लो.”

मुखिया ने भड़ाक से दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया.

महिलाओं ने बस्ती में घूम-घूम कर सबके हस्ताक्षर लिए. जो काम पर निकल गई थीं, उनके हस्ताक्षर लेने के लिए घनश्याम के बेटे ऋषी को साईकिल पर दौड़ाया गया. जुलुस की तैयारी पूरी करते-करते ग्यारह बज गए.

सत्या और संजय की मेज़ अगल-बगल थी. वे आपस में झुककर फुसफुसाकर बातें कर रहे थे. सत्या कह रहा था, “साहब को ज्ञापन देने यहाँ भी जुलूस लेकर आएँगी.”

संजय, “ये सब क्या हंगामा करा रहे हो? साहब को पता चला कि इन सब के पीछे तुम हो तो तुम्हारी नौकरी गई समझो.”

सत्या, “कौन बताएगा साहब को? तुम?”

“अरे नहीं. बस एक बात बोल रहे हैं.”

बड़ा बाबू ने एक बार नज़र उठाकर उनकी तरफ देखा. फिर संजय को आवाज़ लगाई, “संजय जी, वो बाज़ार समिति का फाईल हो गया हो तो पुट-अप कीजिए.”

संजय, “जी सर, बस एक घंटे में पुट-अप करते हैं.”

बड़ा बाबू कुर्सी खिसकाकर उठे और बोले, “हम आते हैं जरा डॉक्टर से मिलकर. ललिता की खाँसी ठीक ही नहीं हो रही है. साहब के आने से पहले आ जाएँगे.”

बड़ा बाबू कमीज़ की जेब में कलम डालते हुए कमरे से बाहर चले गए. सत्या उनको कनखियों से जाते हुए देखता रहा. एक चपरासी ने आकर सबकी मेजों पर चाय के ग्लास रखे. सत्या थोड़ी देर बाद चाय की चुस्कियों के बीच बड़ा बाबू के टेबल पर रखे फोन पर नंबर डायल करके बातें करने लगा, “प्रभाकर जी. नमस्कार. कैसे हैं? .... आप हमेशा न्यूज़ की तलाश में दफ्तर के चक्कर काटते हैं, आज दिखाई नहीं दिए..... नहीं-नहीं दफ्तर नहीं... सुने हैं कि मॉडर्न बस्ती की महिलाएँ बस्ती में शराब बंदी के लिए जुलूस निकाल रही हैं.... आपने नहीं सुना? लेकिन बात सच है.......बता नहीं पाएँगे...आप एक बार बस्ती का चक्कर लगा कर देख लीजिए न ....जी-जी, बाकी सब बढ़िया चल रहा है. जी धन्यवाद.”

संजय ने ग़ौर से सत्या का चेहरा देखा. सत्या मुस्कुराया और फिर फोन पर दूसरा नम्बर लगाने लगा, “नवीन जी, नमस्कार. सब ठीक तो है?..... बस यूँ ही पूछ रहा था....अरे सुना है.......”

रतन सेठ की दुकान पर कोई नहीं था. वह काऊंटर के पीछे खड़ा सामने की सड़क पर लोगों को आते-जाते देख रहा था. एक मोटरसाईकिल आकर रुकी. दो लोग उतरे. एक के हाथ में कैमरा था. देखने से ही पता चल जाता था कि वे पत्रकार थे.

एक पत्रकार ने रतन सेठ से पूछा, “क्या सेठ जी, बस्ती में क्या हो रहा है?”

रतन सेठ ने खुश होकर पूछा, “आपलोग पत्रकार हैं न? आप तक खबर पहुँच गई? अरे क्या बताएँ, कल यहाँ औरतों ने खूब बवाल किया. कालिया की शराब दुकान के पीछे पड़ गई हैं. कहती हैं दुकान हटाओ. कल थाने पर भी शिकायत लिखाने गई थीं. अब साहब, सरकारी शराब की दुकान है, इनके बोलने से तो हटेगी नहीं.”

“सुना है आज जुलूस निकाल रही हैं......सरकारी अफसरों को ज्ञापन देंगी?”

“वही हम बोले आज सविता देवी दुकान से गत्ते के डब्बे, कागज और स्केच पेन खरीद कर क्यों ले गईं.”

“तो इनकी लीडर का नाम सविता देवी है?”

तभी गली से औरतों का हुजूम निकला. सविता, गोमती और मीरा आगे-आगे चल रही थीं. कईयों के हाथों में गत्ते के टुकड़े थे, जिनपर नारे लिखे थे. सब शांति से चलते हुए सामने से निकल गईं. दोनों मीडिया कर्मी मोटरसाईकिल स्टार्ट करके उनके पीछे चल दिए. रतन सेठ यह सब देखकर बड़बड़ाया, “इस बस्ती में भगवान जाने क्या हो रहा है?”

औरतों का जुलूस ख़ामोशी से चलाता हुआ जब बाज़ार से गुज़रा तो एक स्कूटर सवार उनको देखकर रुका. आस-पास के लोग भी प्लाकार्ड पर लिखा मज़मून पढ़कर कुछ समझने की कोशिश कर रहे थे. स्कूटर सवार ने एक व्यक्ति से पूछा, “क्या है ये?... कहाँ जा रहे हैं सब?”

उस व्यक्ति ने जवाब दिया, “कैसे कहें.... कार्ड पर जो लिखा है, उससे तो यही पता चलता है कि मॉडर्न बस्ती से शराब की दुकान हटाने की माँग है. जा रही होंगी डी. सी. ऑफिस.”

“कहाँ है ये मॉडर्न बस्ती? अपने ही शहर में है?”

“पता नहीं भाई साहब. हम तो इस बस्ती का नाम कभी नहीं सुने.”

स्कूटर सवार ने तंज कसा, “आज के ज़माने में शराब बंदी? सरकार को कितना रिवेन्यू आता है शराब से, पता है? दिमाग ख़राब हो गया है इनका. कुछ नहीं होगा,” स्कूटर बढ़ाकर वह अपने रास्ते चला गया.

लेकिन इस बात की चर्चा बाज़ार के दुकानदारों के बीच होने लगी. जुलूस निकल जाने के बाद सब अपने-अपने विचार व्यक्त करने लगे. कोई मज़ाक उड़ा रहा था तो कोई तारीफ कर रहा था. शराब बंदी होनी चाहिए कि नहीं, इसपर बहस छिड़ चुकी थी. सारा दिन लगभग निठल्ला बैठे दुकानदारों को आज के सारे दिन के लिए बातें करने का विषय मिल गया था. बाज़ार की मंदी में एक दूसरे ही किस्म की गरमी छा गई थी.

इन बातों से बेख़बर, औरतें उत्पाद कार्यालय के सामने पहुँच गईं. सविता ने साथियों के साथ जब बरामदे में कदम रखा तो वहाँ के एक कर्मचारी ने हाथ उठाकर उन्हें रोका और कहा, “कहाँ चली आ रही हैं आपलोग? साहब अभी नहीं हैं. आपलोग कल आईये.”

सविता ने पूछा, “साहब छुट्टी पर हैं?”

“नहीं फील्ड में निकले हैं. शाम को लौटेंगे.”

सविता सोच में पड़ गई. मुड़कर उसने साथियों को देखा. फिर उस आदमी से बोली, “आप यहाँ काम करते हैं? हमारा यह ज्ञापन साहब को दे देंगे?”

“दे दीजिए,” कर्मचारी ने हाथ बढ़ाया.

सविता ने उसे कागज़ सौंपा. वह आदमी कागज़ लेकर सविता का चेहरा देखने लगा, मानो अब जाने के लिए कह रहा हो. सविता ने उससे ज्ञापन की रिसीविंग माँगी.

कर्मचारी भड़क गया, “ये हम नहीं कर सकते. हमको रिसीविंग देने का अधिकार नहीं है. आप जो कागज़ दिए हैं, वो साहब तक पहुँच जाएगा. इसका गारंटी हम देते हैं.”

सब असमंजस में पड़ गए. सविता भी सोचने लगी. तभी गोमती ने कहा, “चलो फिर, हम लोग कल आएँगे.”

सविता ने मुड़कर कर्मचारी से कहा, “भाई साब, आप दे देंगे न साहब को? उनको ये भी बता दीजिएगा कि इसकी कॉपी हमलोग डी. सी और एस. डी. ओ. साहब को देने

जा रहे हैं. लौटती में थाना में भी दे देंगे.”

इतना कहकर सब मुड़कर चलने लगे. कर्मचारी के चेहरे पर परेशानी के भाव थे. वह झट से अंदर गया और फोन घुमाने लगा. बाहर पत्रकार ने अपनी डायरी में लिखा – उत्पाद विभाग, अधिकारी अनुपस्थित, महिलाएँ निराश.

संजय और सत्या जानते थे कि महिलाएँ ऑफिस में आने वाली हैं, फिर भी जब कुछ औरतों ने प्रवेष किया तो दोनों हड़बड़ा गए. सविता सत्या के पास आकर खड़ी हो गई. उसने अनभिज्ञ बनकर पूछा, “क्या बात है? किससे मिलना है?”

सविता, “एस. डी. ओ. साहब से मिलना है.”

बड़ा बाबू ने पीछे से आवाज़ लगाई, “क्या काम है?”

सविता, “जी मेमोरैंडम देना है.”

बड़ा बाबू, “लाईये देखें, क्या लिख कर लाई हैं.”

सविता ने कागज़ बढ़ाई. बड़ा बाबू ने पढ़ा.

बड़ा बाबू, “साहब इसमें क्या करेंगे?”

सविता, “एक बार मिलने तो दीजिए सर.”

बड़ा बाबू, “आप लोग यहीं ठहरिए, हम साहब से पूछ कर आते हैं.”

बड़ा बाबू साहब के कक्ष में चले गए. थोड़ी देर बाद बाहर आकर बोले, “सत्या जी, साहब बोले हैं इनको अंदर ले जाकर मिलवा दीजिए.”

सत्या ने बेमन से उठने का स्वाँग किया और तीनों को लेकर कक्ष में चला गया. एस. डी. ओ. साहब का बड़ा सा कमरा था. बड़ी सी टेबल के पीछे बैठी मेम साहब ने चश्मे के पीछे से गौर से महिलाओं को अंदर आते हुए देखा. उनके सामने उनका लिखा ज्ञापन पड़ा था.

अंदर घुसते ही सविता एक महिला को साहब की कुर्सी पर बैठी देखकर थोड़ा चौंकी. उसे ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि एस. डी. ओ. साहब एक महिला हैं. उसने झुक कर उनका अभिवादन किया, “गुड आफ्टर नून मैडम. आई एम सविता. वी हैव कम फ्रॉम

मॉडर्न बस्ती.... ”

सत्या ने हल्के से खंखार कर टोका, “सरकारी कर्यालय में हिंदी में.. ”

एस. डी. ओ. मैडम ने हाथ के इशारे से सत्या को रोका. सविता ने आगे कहा, “जी सर, हम ज्ञापन देने आए हैं. हमारी बस्ती में एक सरकारी शराब की दुकान है. उसे कृपया बंद करा दें.”

मैडम मुस्कुराईं और सत्या की तरफ देख कर बोलीं, “मॉडर्न बस्ती? व्हेरी गुड.... पहले आपलोग बैठिए. ... आप लोगों का ज्ञापन हमने पढ़ा है. अच्छा काम कर रही हैं आपलोग... मैं आश्वासन देती हूँ कि जो भी उचित होगा हम ज़रूर कार्रवाई करेंगे. ….सत्या जी, इन्हीं के बच्चों के एडमिशन के लिए आपने कहा था?”

सत्या ने जल्दी से कहा, “सर, ये हैं मीरा जी. इनके बच्चे हैं रोहन और खुशी. ... सर-सर मीरा जी फिर से पढ़ाई शुरू कर रही हैं. इस बार मैट्रिक की परीक्षा लिखेंगी. पूरी बस्ती के लिए एक मिसाल कायम करेंगी.”

एस. डी. ओ. मैडम, “बहुत अच्छे मीरा जी. कीप इट अप. और आप, अच्छी इंगलिश बोल लेती हैं,” उन्होंने सविता से कहा.

सविता झेंप गई. फिर उन्होंने सत्या से कहा, “सत्या जी, ज़रा डी. सी. साहब से फोन पर बात कराईये.”

सत्या टेबल पर रखा फोन उठाकर नंबर डायल करने लगा.

सत्या, “नित्यानंद बाबू, नमस्ते. साहब डी. सी. साहब से बात करेंगी......लीजिए सर,” उसने फोन साहब की तरफ बढ़ाया.

सत्या के हाथ से फोन लेकर मैडम तन कर बैठ गईं. बोलीं, “जय हिंद सर....सर मॉडर्न बस्ती से एक विमेन डेलिगेट आया है. वहाँ की सरकारी देशी शराब की दुकान को बंद करने का मेमोरैंडम लेकर...... जी ऐड्रेस उन्हीं को किया है. उसकी कॉपी हमें मिली है. ...जी-जी,... डिमांड जेनुइन लग रही है सर.....सर सामने एक मंदिर है और दुकान पर चाईल्ड लेबर भी रखा हुआ है...... जी अभी पूछती हूँ. थैंक यू सर, पता करके फैक्ट्स से आपको अवगत कराती हूँ. जय हिंद सर.”

मंदिर का नाम सुनकर सारी औरतें घबराकर एक दूसरे का मुँह देखने लगीं. सत्या ने उनको शांत रहने का इशारा किया. साहब ने घंटी बजाई. बड़ा बाबू के अंदर आते ही उन्होंने उनसे कहा, “बड़ा बाबू, श्रीवास्तव साहब का फोन नंबर खोजकर दीजिए.”

बड़ा बाबू “जी सर अभी लाया,” कहकर फिर बाहर चले गए.

एस. डी. ओ. मैडम, “देखिए हम लोगों ने जाँच शुरू कर दी है. आप लोग निश्चिंत

होकर जाएँ. आपकी शिकायत अगर सही पाई गई तो शराब की दुकान ज़रूर हटेगी वहाँ से....लेकिन एक बात पूछनी थी. आपको क्या लगता है, शराब की दुकान हटने से आपकी बस्ती के मर्द सुधर जाएँगे? शराब पीनी बंद कर देंगे?”

सविता कनखियों से सत्या को देख कर मुस्कुराई. उसने ठीक ही आगाह किया था कि सबके मन में यही सवाल होगा. मैडम के प्रश्न का जवाब गोमती ने दिया, “मेमसाब, आप एक बार दुकान हटा दीजिए, फिर देखिए हम कैसे सुधारते हैं बस्ती का मरद लोगुन को.”

गोमती को बोलता देखकर सत्या, सविता और मीरा सकते में आ गए.

एस. डी. ओ. मैडम ने दिलचस्पी दिखाते हुए पूछा, “ज़रा हम भी सुनें, कैसे सुधारेंगी आपलोग?”

सविता ने गोमती की बात को संभालने की कोशिश की, “सर हम लोग बारी-बारी से पहरा देंगे और जो भी बाहर से पी कर आएगा उसको बस्ती में घुसने नहीं देंगे.”

सत्या ने चुप रहने का इशारा किया. ये औरतें न जाने क्या ऊल-जलूल बक रही थीं. मैडम ज़ोर से हँसीं और बोलीं, “इंट्रस्टिंग.”

तीनों स्त्रियाँ बारी-बारी से उन्हें प्रणाम करके बाहर निकल गईं. बाहर आकर उनकी जैसे जान-में-जान आई. बड़ा बाबू हाथ में पर्ची लिए अंदर गए और सत्या बाहर आया.

सीढ़ियों के पास पहुँचकर सत्या महिलाओं के कान में फुसफुसाया, “डी. सी. ऑफिस जाने की ज़रूरत नहीं है अब. नीचे पत्रकारों की भीड़ लगी है. उनसे जल्दी से निपटो और बस्ती पहुँचकर माँ चंडी की मूर्ती तुलसी के घर में स्थापित करो और चंडी पाठ शुरू कराओ. हमको भी अंदाजा नहीं था कि इतनी जल्दी कार्रवाई होगी.”

सारी महिलाएँ जल्दी-जल्दी सीढ़ियाँ उतरने लगीं. कुछ पत्रकार घेरकर सवाल पूछने लगे. एक ने पूछा, “आपकी माँग क्या है? एस. डी. ओ. साहब ने क्या कहा?”

सविता, “हम चाहते हैं बस्ती से शराब की दुकान हटाई जाय. ये रही हमारे ज्ञापन की कॉपी. इसमें सबकुछ लिखा है. साहब बोली हैं कारवाई करेंगे.”

दूसरा पत्रकार, “क्या कारवाई करेंगी?”

सविता, “ये तो साहब ही बता पाएँगी.”

पहला पत्रकार, “ठीक बोल रही हैं. चलो एस. डी. ओ. साहब से पूछते है.”

दूसरा पत्रकार, “आपलोग अपने नाम तो बताते जाइये.”

सविता, “आई एम सविता, शी इज़ मीरा ऐंड शी इज़ गोमती. आपको सबके नाम चाहिए?”

“बस हो गया मैडम जी.”

पत्रकार सीढ़ियों की तरफ बढ़े और फोटोग्राफर ने उनके फोटो लिए. गेट से बाहर आकर सविता हड़बड़ाती हुई बोली, “चलो जल्दी चलो. बस्ती में बहुत काम है. सत्या बाबू बोले हैं इन्क्वाईरी शुरू हो रही है. हमलोगों को अभी-के-अभी माँ चंडी की मूर्ती स्थापित करके चंडी पाठ शुरू कराना है.”

सड़क पर आकर तीन ऑटोरिक्शा रोककर सोलह औरतें उनमें समा गईं. तीनों ऑटोरिक्शा तेजी से बस्ती की ओर दौड़ पड़ीं.