देश-परदेश
(दृश्य- सब लोग डायनिंग टेबल पर खाना खा रहे हैं)
देव राठौर ने आज घर आते ही फरमान सुना दिया कि अगले सप्ताह 1 महीने के लिए हम सबको इंडिया जाना है। सब अपनी-अपनी पैकिंग कर लो। अपने पापा की बात सुनकर सूरज बहुत खुश हो गया।
सूरज-डैड इसका मतलब इस बार दीपावली और छठ पूजा दादाजी और दादाजी के साथ मनाएँगे। हुर्रे बड़ा मजा आएगा।
नव्या-डैड मुझे कोई इंडिया नहीं जाना है। मुझे दीपावली और छठ पूजा में कोई इंटरेस नहीं है।
(तभी शीतल भी आ जाती है और कहती है क्या बात हो रही है तीनों के बीच मुझे भी तो बताओ।)
देव राठौर-अरे! तुम सुनोगी तो खुशी से पागल हो जाओगी शीतल।
सूरज-डैड मैं बताऊँगा मम्मा को।
नव्या-इतना खुश होने की जरूरत नहीं है। अगले सप्ताह आप लोग इंडिया जा रहे हैं।
शीतल-अरे! वाह यह तो बहुत अच्छी खबर सुनाई।
देव-पूरा एक महीना रहेंगे शीतल। तुम कई सालों से कह रही थी न।
नव्या-मम्मा मैं इंडिया नहीं जाऊँगी। मैं अपने दोस्तों के साथ यूरोप घूमने जा रही हूँ।
सूरज-दीपावली और छठ पर्व के पर्व में बहुत मजा आता है। तू एक बार देखेगी तो फिर तेरा मन बार-बार देखने को कहेगा।
नव्या-भैया तुम तो ऐसे कह रहे हो जैसे कि तुम बरसों से वहाँ रहते हो।
सूरज-हाँ, बचपन में देखा है। दीपावली मेें कितनी सारी मिठाईयाँ खाने को मिलती है। घर की साज-सज्जा, लाइट की जगमगाहट देखकर मन खुश हो जाता है।
नव्या-कुछ भी हो पर मुझे इंडिया नहीं जाना।
देव-नव्या बेटा ऐसे जिद नहीं करते। देखो न दादा-दादी ने कितने प्यार से बुलाया है। तुम्हें अच्छा लगेगा।
शीतल-तुम्हारे पापा बिलकुल सही कह रहे हैं।
(नव्या मुँह बिचकाकर अपने कमरे में चली जाती है।)
(अगले दिन शाम को देव के घर आते ही नव्या पुकारती है डैड, डैड, डैड)
शीतल- क्या हुआ इतना क्यों चिल्ला रही हो?
नव्या-मम्मा मुझे छठ पूजा पर एक ऐस्से लिखना है। दो महीने बाद कॉम्पीटिशन है। बहुत गुस्सा आ रहा है। टीचर ने मुझे दूसरा टॉपिक नहीं दिया। पता नहीं उन्हें कैसे पता चला कि हम इंडिया जाने वाले हैं।
सूरज-(मुस्कराते हुए) वो मैंने प्रिंसिपल को बताया था। एक महीने की छुट्टी की परमिशन जो लेनी थी।
नव्या-भैया आप बहुत गंदे हो। (सूरज के पीछे नव्या उसे मारने दौड़ पड़ती है।)
सूरज-मैं तो रोज नहाता हूँ, तो गंदा कैसे हूँ। अब तो नव्या भी हमारे साथ इंडिया जाएगी। ओ ओ ओ। (नव्या को चिढ़ाने लगता है।)
नव्या-मम्मा देखो न भैया मुझे चिढ़ा रहे हैं।
( नव्या कक्षा-8 में पढ़ती है और सूरज कक्षा-12 में)
देव-अच्छा बहुत हो गई मौज-मस्ती। जाओ दोनों जाकर पढ़ाई करो।
(दोनों बच्चे पढ़ने चले जाते हैं।)
शीतल-मुझे नव्या की बहुत चिंता होती है। उसे तो इंडिया से कोई लगाव ही नहीं। यह अच्छी बात नहीं है।
देव-अरे! तुम बेकार में चिंता कर रही हो। अभी बच्ची है। धीरे-धीरे समझ जाएगी और फिर सूरज तो है न।
(अगले दिन सुबह-सुबह डैडी, डैडी, डैडी नव्या अपने पिता को बुलाती है। देव और शीतल नव्या के स्टडी रूम में जाते हैं।)
नव्या-देखो मम्मा और डैडा, मैंने छठ पर्व पर कुछ लिखा है।
देव-दिखाओ तो क्या लिखा है तुमने?
नव्या-नहीं, मैं पढ़कर सुनाऊँगी कि छठ पर्व क्यों मनाया जाता है? अभी थोड़ा लिखा है चार-पाँच लाइन का।
शीतल-अच्छा बाबा अब सुना भी दो।
नव्या-छठ पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाने वाला एक हिंदू पर्व है। सूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश आदि जगहों पर मनाया जाता चार दिवसीय व्रत की सबसे कठिन और महत्त्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल षष्ठी की होती है। कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को यह व्रत मनाये जाने के कारण इसका नाम छठ व्रत पड़ा।
देव- (ताली बजाते हुए) वाह नव्या तुमने तो कमाल कर दिया।
शीतल-सचमुच तुमसे मुझे इतने अच्छे की उम्मीद नहीं थी।
(एक हफ्रते बाद सब इंडिया अपने गाँव बिहार पहुँच जाते हैं।)
(गँाव का माहौल देखकर नव्या बहुत खुशी हो जाती है। वह अपनी चाची की बेटी के साथ कभी खेतों पर तो गंगा नदी के किनारे खूब धम्मा-चौकड़ी मचाती है।)
दीपावली के दिन पूरा गाँव दीयों के प्रकाश से जगमगा उठता है।
नव्या-साँवरी दीदी ओ साँवरी दीदी मैं भी दीए जलाऊँगी।
साँवरी-क्यों नहीं नव्या लो जलाओ थोड़ा ध्यान से कहीं अपने कपड़े मत जला लेना।
(देव और शीतल नव्या को देखकर बहुत खुश हो जाते हैं।)
शीतल-देखा तुमने हमारी नव्या कैसे यहाँ की संस्कृति में रच-बस गई है?
देव-हाँ, यकीन नहीं होता यह वही नव्या है। जो इंडिया नहीं आना चाहती थी।
देव के पिताजी-अरे! बेटा हमारी गुडि़या रानी बहुत समझदार है। इसने यहाँ आकर गाँव के गरीब बच्चों को पढ़ाना भी शुरू कर दिया।
देव की माँ-आखिर पोती किसकी है। (सब हँसने लगते हैं।)
सूरज-नव्या चलो पटाके जलाते हैं। बहुत मजा आएगा।
नव्या-नहीं भैया हम पटाके नहीं जलाएँगे क्योंकि इनसे प्रदूषण होता है। इन्हें बनाने वाले कई बच्चे घायल भी हो जाते हैं।
सूरज-तू यहाँ आकर कितना बदल गई नव्या।
नव्या-भैया कल मैं दूसरे गाँव में गई थी तो वहाँ में बदलू भैया से मिली वे पहले पटाके बनाते थे और एक दुर्घटना में उनकी दोनों आँखें चली गई।
सूरज-ओह! चल ठीक है आज से हम पटाके नहीं जलाएँगे।
(नव्या का मन गाँव में लग गया था और वह यहाँ से जाना नहीं चाहती थी। दीपावली बीत गई। अब सब लोग छठ की तैयारी में जुट गए। घर की साप़फ़-साप़फ़ हो रही थी। नव्या यह सब देखकर अपनी दादी से बोली।)
नव्या-दादी घर की साफ-सफाई क्यों कर रही हो?
दादी-बेटा कल छठ पर्व है इसलिए साफ-सफाई हो रही है। कल से हम सबका व्रत है।
नव्या-किस-किसका व्रत है दादी।
दादी-तुम्हारे मम्मी-पापा, चाचा-चाची, मेरा और तुम्हारे दादा जी का।
सूरज- दादी कल मैं भी व्रत रखूँगा।
दादी-बच्चे नहीं रखते व्रत।
सूरज के दादा जी अरे रखने दो अगर उसका मन है तो।
(अगले दिन सब सुबह जल्दी उठकर गंगा नदी में स्नान करते हैं।)
नव्या-मम्मा आपको नहाने में ठंड नहीं लगी।
सूरज-मम्मा छठ पर्व के पहले दिन को क्या कहा जाता है?
चाची जी-बेटा इसे ‘नहाय खाय’ कहकर पुकारा जाता है।
नव्या-चाची आज खाने में क्या बनेगा? जैसे दीपावली पर बना था। वैसा ही कुछ स्पेशल बनेगा।
दादा-बेटा आज कद्दू, चावल और चने की दाल बनेगी। यह आज का स्पेशल व्यंजन है। हाँ एक बात और आज घर में पहले जिनका व्रत है वे भोजन करेंगे और इसके बाद अन्य सदस्य।
पापा-दूसरे दिन व्रत रखने के बाद शाम को जो भोजन किया जाता है, उसे ‘खरना’ कहते हैं और खरना का प्रसाद लेने के लिए आस-पास के सभी लोगों को बुलाया जाता है। प्रसाद के रूप में गन्ने के रस में बने हुए चावल की खीर के साथ दूध, चावल का पिट्ठा और घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है। इसमें नमक या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है।
(उसी दिन शाम को आस-पास के लोगों को खरना का प्रसाद बाँटा जाता है।)
(नव्या को यह सब बहुत अच्छा लगता है। दूसरे व्रत की रात को)
नव्या-दादी मुझे बताओ न कल क्या होगा? क्या बनाया जाएगा?
दादी-तुम कल खुद देख लेना। कल ठेकुआ का प्रसाद बनता है।
(अगले दिन नव्या देखती है बांस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है और दादी-दादी, चाचा-चाची और मम्मी-पापा और पड़ोस के सारे लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने गंगा नदी की ओर चल पड़ते हैं। नव्या की दादी सूर्य को जल और दूध का अघर््य है और अन्य लोग भी तथा छठी मैया की प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाती है।)
नव्या को यह सब बहुत अच्छा लगता है।
सूरज-नव्या अब तो तुम छठ पर्व पर एस्से लिख लोगी न।
नव्या-हाँ भैया पर मुझे कल चौथे दिन के बारे में भी जानना है।
नव्या के चाचा-चलो अपनी गुडि़या रानी को चौथे दिन के बारे में बताते हैं बेटा कल सुबह भी हम सब गंगा नदी के किनारे जाएँगे जैसे आज गए थे। बिलकुल उसी प्रकार सूर्य भगवान को अर्घ्य देंगे। फिर घर वापस आकर पीपल के पेड़ पूजा करेंगे। फिर हम लोग कच्चे दूध का शरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर अपना व्रत पूरा करेंगे। जिसे पारण या परना कहते हैं।
सूरज-चाचा जी हमें इस बार इंडिया आकर बहुत अच्छा लगा।
नव्या-हाँ भैया तुम सही कहते हो। मैं अपने देश के बारे में कितना गलता सोचती थी।
दादीजी-बेटा अगर सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते।
शीतल-एक महीना कैसे बीता पता ही नहीं चला?
सूरज-परसों हमें वापस ऑस्ट्रेलिया जाना है।
देव-मन तो नहीं कर रहा है पर जाना पड़ेगा।
नव्या-डैडी क्या ऑस्ट्रेलिया जाना जरूरी है? अगर मैं चली गई, तो उन गरीब बच्चों को कौन पढ़ाएगा?
शीतल-नहीं नव्या जाना तो पड़ेगा ही।
नव्या-मम्मा मैं ऑस्टेªलिया नहीं जाऊँगी। आप लोग चले जाओ मैं दादा-दादी के पास रहकर पढ़ाई करूँगी और अन्य बच्चों को भी पढ़ाऊँगी।
सूरज-डैड मैं भी ऑस्टेªलिया नहीं जाऊँगा।
देव-अरे बच्चो तुम्हें हो क्या गया है? परसों हमें जाना है। अगले साल फिर आ जा जाएँगे।
नव्या-नहीं डैडी पता नहीं वह अगला साल कब आएगा। मैं तो अब यहीं रहूँगी। सचमुच हमारा देश बहुत प्यारा है, तो मैं विदेश में क्यों रहूँ?
सूरज-नव्या तुम सही कह रही हो? मैं भी डॉक्टर बनकर अपने गाँव की सेवा करूँगा। बस कुछ साल की बात है।
देव के पिताजी-बेटा बच्चे बात तो सही कह रहे हैं। अगर हमारे देश के बच्चे नव्या और सूरज की तरह सोचे तो फिर गाँव से पलायन रुक जाएगा।
देव-पापा ये सब बातें किताबी हैं। यहाँ भुखमरी और बेरोजगारी के सिवा कुछ नहीं मिलेगा इन्हें। मेरी गलती जो इन्हें यहाँ ले आया।
शीतल-ये आप क्या कह रहे हैं जी? बच्चे बिलकुल सही कह रहे हैं। जब आप ही अपने देश के बारे में ऐसा सोचेंगे तो दूसरों से क्या उम्मीद कर सकते हैं।
देव-अपना सामान पैक कर लो बस। मैं कुछ नहीं जानता।
नव्या-मैं तो रहूँगी डैडी।
सूरज-मैं भी यहीं रहूँगा।
शीतल-मैं बच्चों को छोड़कर नहीं जा सकती। आपको जाना है, तो जाओ।
(देव सबको वहीं छोड़कर अगले दिन गुस्से में दनदनता हुआ एयरपोर्ट के लिए चल पड़ता है। एयरपोर्ट में उसे एक अंग्रेज मिलता है। उसे भी ऑस्टेªलिया की फ्रलाइट पकड़नी थी। दोनों एयरपोर्ट पर बैठे बातें करते हैं।)
अंग्रेज-आपका देश बहुत अच्छा है। इस बार मैंने यहाँ की दीपावली और छठ पूजा देखी मन प्रसन्न हो गया।
देव-होगा। अभी आप यहाँ बस घूमने आए हैं न इसलिए ऐसा कह रहे हैं।
अंग्रेज-नहीं, मैं हर वर्ष यहाँ आता हूँ। पिछली बार होली पर आया था।
देव-बोलना बहुत आसान है पर यहाँ रहना बहुत मुश्किल है। यहाँ उतनी सुविधाएँ नहीं है जितनी विदेश में होती हैं।
अंग्रेज-यहाँ अपनापन है। यहाँ के लोग अतिथियों को बहुत आदर-सत्कार करते हैं।
देव-(हँसते हुए)-अरे! ऐसा कुछ नहीं है। न रोजगार है और न मौके। यह तो भूखे-नंगों का देश है।
अंग्रेज-आप अपने ही देश की बुराई कर रहें। अरे! अगर आप जैसे पढ़े-लिखे लोग ऐसा सोचेंगे तो आपका देश कभी आगे नहीं बढ़ पाएगा। सबसे पहले अपने देश से प्यार कीजिए।
देव-बोलना आसान होता है पर जरा यहाँ पर रहकर देखिए तो आटे-दाल का भाव पता चल जाएगा।
अंग्रेज-ताज्जुब होता है आप एक विदेशी के सामने अपने देश की बुराई कर रहें हैं। आपको शर्म आनी चाहिए। मैं तो सोचता हूँ काश! मेरी जन्मभूमि इंडिया होती।
(अंग्रेज की बातें सुनकर देव को अपनी गलती का एहसास हो गया और वह अंग्रेज को थैंक्यू कहकर अपने घर की ओर चल पड़ा।)
आशा रौतेला मेहरा