बुधिया Asha Rautela द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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बुधिया

बुधिया

आज स्कूल में जब टीचर ने पेड़-पौधों का महत्त्व समझाया तो पूर्वी को अपनी गलती का अहसास हुआ कि एक सप्ताह पहले अपने जन्मदिन पर जब उसके माली की बेटी बुधिया ने उसे आम का पौधा उपहार में दिया तो उसने उसका कितना मजाक बनाया था। सचमुच उससे कितनी बड़ी गलती हो गई जो उसने वो आम का पौधा वापस कर दिया। वह जैसे ही घर गई उसने अपनी दादी माँ से कहा, आप मेरे साथ बुधिया के घर चलो न उसकी दादी उसकी बात सुनकर हैरान हो गई और बोली अब क्या हुआ तू उस बैचारी के पीछे ही पड़ गई पूर्वी। अपनी दादी की बात बीच में काटकर ही पूर्वी बोली-अरे दादी आप मुझे गलत समझ रहे हैं मैं तो उससे माफी मांगना चाहती हूँ। उसने तो मुझे कितना अनमोल उपहार दिया था पर मैने अपने घमंड में उसे ठुकरा दिया। पर आज टीचर जी ने स्कूल में पेड़-पौधों का महत्व समझाया तो मुझे समझ में आया कि मैंने कितनी बड़ी गलती की, अपनी पोती की बात सुनकर उसकी दादी कहने लगी बेटा तो यह तो बहुत ही अच्छी बात है वह तुम्हे जरुर माफ कर देगी। आज शाम को ही चलते हैं। शाम को पूर्वी अपनी दादी के साथ बुधिया के घर पहुँची तो पहले तो बुधिया की माँ डर गई बोली मेमसाहब हमारी बुधिया से कौन सी गलती हो गई हमका माफ कर दो हम समझाइ देंगे आगे से ये कोई गलती नहीं करेगी, चल बुधिया अपने कान पकड़ और माफी माँग दादी माँ और पूर्वी बिटिया से उसकी माँ कहने लगी। तुम गलत समझ रही हो शारदा पूर्वी की दादी कहने लगी माफी किस बात की माँग रही हो, आज हम लोग बुधिया की शिकायत लेके नहीं बल्कि पूर्वी तो बुधिया से माफी माँगने आई है। हाँ काकी मैं तो आप लोगों से माफी माँगने आई हूँ मुझे माफ कर दो और आम का पौधा मेरे बाग में लगा दो। दूसरे दिन बुधिया पूर्वी के घर आई व अपने नन्हे-नन्हे हाथों से आम का पौधा लगा दिया फिर खुश होकर ताली बजाने लगी। अब अक्सर बुधिया पूर्वी के घर आने लगी और दोनो साथ-साथ खेलते कुछ ही दिनों में दानों अच्छी सहेलिया बन गई। एक दिन दोनों बगीचे में खेल रही थी तभी पूर्वी को पढ़ाने के लिए उसकी टीचर दीदी संगीता आई पूर्वी ने अपनी टीचर दीदी से बुधिया का परिचय करवाया और कहने लगी दीदी क्या बुधिया भी मेरे साथ पढ़ सकती है अबोध बालिका के मुँह से यह बात सुनकर संगीता कहने लगी क्यों नहीं बुधिया रोज तुम्हारे साथ पढ़ सकती है। तुम इसे अपनी पुरानी किताबें दे दो। बुधिया बहुत खुश हुई अब वो भी रोज पढ़ती कुछ ही महिनों में बुधिया को अक्षरों की पहचान तथा मिला-मिलाकर पढ़ना आ गया। संगीता बुधिया को जो काम देती वह उसे पूरा करती। बुधिया की पढ़ने के प्रति लगन देखकर संगीता बोली बुधिया कल तुम अपने पिता जी को ले आना मुझे उनसे कुछ बात करनी है। दूसरे दिन बुधिया अपने पिता रामचरण को साथ लेकर आई तो संगीता ने कहा चाचा आप बुधिया को स्कूल में भर्ती कर दो पढ़ने में बहुत होशियार है। संगीता की बात सुनकर उसके पिता कहने लगे अरे आप कैसी बात करती हो पढ़ाई-लिखाई आप बड़े लोगन के लिए है हमे तो दो बाबत का खाना जुटाना भी भारी पड़त है। बुधिया के पिता की बात सुनकर संगीता कहने लगी अरे आप हाँ कह दो क्योंकि सरकार की योजना के तहत बुधिया को सब कुछ फ्री मिलेगा यहां तक की स्कूल में खाना भी मिलेगा तभी पूर्वी के माता-पिता व दादी आ गए वे कहने लगे संगीता ठीक कह रही है रामचरण तुम हाँ बोल दो बस बाकी का काम हम सब देख लेंगे। रामचरण को चुप देखकर पूर्वी बोली काका हाँ बोल दो ना अपा तो मेरे अच्छे काका हो, बुधिया आपको शिकायत का मौका नहीं देगी, आपका कहना भी मानेगी। आप देखना यह भी टीचर दीदी बनेगी और आपके मोहल्ले में सभी बच्चों को पढाएगी नन्ही पूर्वी के मुँह से ऐसी समझदारी की बात सुनकर रामचरण की आँखे भर आई। वे पूर्वी के सिर पर हाथ रखकर बोले पूर्वी बिटिया जैसा तुम चाहती हो वैसा ही होगा अब बुधिया भी स्कूल जाएगी।

आशा रौतेला मेहरा
नाँगलोई, दिल्ली