सुबह की चाय Saroj Prajapati द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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सुबह की चाय

अरे रचना मैं तुम्हें एक बात बताना भूल गया । तुम तो देख रही हो ना पापा की तबीयत खराब है तो प्लीज सुबह 4:30 बजे उन दोनों के लिए चाय तुम बना देना।"
"क्या पापा मम्मी सुबह 4:30 बजे चाय पीते हैं!"
"हां यार, सुबह की चाय पापा ही बनाते हैं।"
"लेकिन तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया? मैं बना देती।"
"मैंने तो कहा था पापा को लेकिन वह कहने लगे, बहु वैसे ही इतनी जल्दी उठकर कामों में लग जाती है और सारा दिन लगी रहती है, तो तू रहने दे| इतने सालों से भी तो सुबह की चाय मैं ही तेरी मम्मी को बनाकर पिला रहा हूं, अब भी कर लूंगा। वह तो शायद अब भी नहीं चाहेंगे लेकिन एक बार तुम कोशिश कर लेना।"
"ठीक है। मैं उठ जाऊंगी" रचना ने कहा।
रचना और राहुल की शादी को अभी एक महीना ही हुआ था। शादी से पहले रचना ने अपने घर में अपनी मम्मी को सुबह जल्दी उठकर घर की साफ सफाई के बाद पूजा पाठ करते देखा था। उसका खुद का भी जल्दी उठने का नियम था । हां वह घर का काम तो नहीं करती थी, लेकिन सुबह जल्दी उठकर पढ़ना उसे पसंद था। पढ़ाई पूरी करते ही रचना के लिए राहुल का रिश्ता आया। घर परिवार अच्छा था इसलिए पापा ने शादी के लिए हां कर दी। शादी से पहले रचना की मम्मी ने उसे समझाते हुए कहा था "देखो बेटा सुबह जल्दी उठकर अपने घर में साफ सफाई कर, पूजा करने से बरकत आती है। इसका दूसरा फायदा यह भी है कि अगर हम समय से उठ कर काम निपटा ले तो अफरा तफरी नहीं रहती और मन भी शांत रहता है। घर में सुबह शाम दीया बाती करने का नियम तो तुम यहां भी करती आई हो, तो बेटा मैं चाहूंगी कि वहां भी तुम इस नियम को जारी रखो। साथ ही साथ अपने ससुराल की परंपराओं का भी अच्छे से निभा करो। सास ससुर की खूब सेवा करो और उनकी उचित बातों को सम्मान दो तथा छोटी मोटी बातों को मन से कभी ना लगाना क्योंकि तभी गृहस्थी सुचारू रूप से चल सकती है।"

रचना ने अपनी मां की सीख को गांठ बांध ससुराल में प्रवेश किया। शादी की रस्मों से निपटते ही उसने घर का कामकाज संभाल लिया। घर में सास ससुर के अलावा एक छोटा देवर था। रचना सुबह जल्दी उठकर ही घर की साफ सफाई कर ,कामकाज निपटाने में लग जाती । उसके ससुर ने तो कहा भी "बहू इतनी जल्दी क्यों उठती हो। राहुल तो 9:00 बजे निकलता है और तुम्हारा देवर तो उसके भी बाद । तो आराम से उठ कर काम कर लो।" " रचना कहती " पापा जी मुझे जल्दी उठने की आदत है। इससे सारा दिन शरीर में चुस्ती बनी रहती है।"
अगले दिन रचना सुबह चाय के टाइम पर उठ गई। उसे इतनी जल्दी उठा देख उसके ससुर बोले "बहू आज इतनी जल्दी क्यों उठ गई।" " पापा जी आपकी तबीयत खराब है ना तो आज आपकी चाय मैं बनाऊंगी।" रचना ने चाय बनाकर उन दोनों को दे दी और काम में लग गई। रचना के सास ससुर ने चाय पी तो उन्हें पसंद नहीं आई क्योंकि वह ज्यादा दूध वाली चाय पीते थे और इसमें सब चीजें एक बराबर थी। उन्होंने रचना से कुछ नहीं कहा। उन्हें लगा कि एक तो बहू ने इतनी जल्दी उठकर हमारे लिए चाय बना दी और ऊपर से हम कुछ कहे तो उसे ठेस ना लगे। अगले दिन उसके ससुर फिर चाय बनाने के लिए जैसे ही रसोई में गए, रचना तुरंत आ गई। ससुर ने उसे बहुत कहा " बेटा ठंड के दिन है । तू क्यों इतनी जल्दी उठती है। यह चाय तो हमें ही बनाने दे।" रचना ने चाय का पतीला उनके हाथ में लेते हुए कहा "कोई बात नहीं पापा जी , आधे एक घंटे में क्या फर्क पड़ जाएगा। आप बैठे मैं चाय लेकर आती हूं।" रचना ने कह तो दिया लेकिन मन ही मन वह भी यही सोच रही थी कि अगर सास ससुर इस चाय का समय 6 - 6:30 बजे कर दे दो कितना अच्छा हो। लेकिन वह भी लिहाज में कुछ कह नहीं पा रही थी। उधर उसके सास ससुर की हालत भी यही थी कि चाय ना पीते बनती थी ना छोड़ते। और सुबह की यह चाय उनकी बरसो की आदत थी तो छोड़े कैसे!

तीन-चार दिन यूं ही चलता रहा । एक दिन रचना को चक्कर से महसूस हो रहे थे इसलिए वह सुबह जल्दी नहीं उठ पाई। राहुल ने उसका हाल देखा तो उसे डॉक्टर के पास ले कर गया। टेस्ट कर डॉक्टर ने बताया कि वह प्रेग्नेंट है। घर आकर जब यह खुशखबरी उसने अपने मम्मी पापा को दी तो दोनों बहुत खुश हुए। उसकी सास ने समझाते हुए कहा "बेटा अब तुझे अपनी सेहत और खानपान का ज्यादा ध्यान रखना है। हर समय काम में मत लगी रहा कर। थोड़ा आराम भी करो।"
उसके ससुर ने तो जल्दी से बहती हुई गंगा में हाथ धोते हुए कहा "और हां रचना यह सुबह जल्दी उठकर घर की साफ सफाई का कीड़ा नन्हे मेहमान के आने तक दिल से उतार दो। कितनी सर्दी पड़ रही है आराम से उठा करो।" और अपनी पत्नी से बोले "देख रहा हूं भाग्यवान जबसे बहू आई है तुम बड़ी आराम पसंद हो गई हो| थोड़ा तुम भी हाथ पैर हिला लिया करो, बहू को भी आराम मिल जाएगा।"
रचना की सास झूठा गुस्सा दिखाते हुए बोली "क्या करूं तुम्हारी बहू कुछ करने दे तब ना!"
असली मुद्दे पर आते हुए उसके ससुर बोले "हां बहू यह सुबह की चाय के लिए तुम्हें जल्दी उठने की कोई जरूरत नहीं। अरे पूरे दिन में मैं एक ही तो काम करता हूं। मुझे कर लेने दिया कर। नहीं तो बैठे-बैठे निकम्मा हो जाऊंगा।"
"लेकिन पापा!" रचना ने कहना चाहा।
"लेकिन वेकिन कुछ नहीं। आज से तुम्हारा सुबह जल्दी उठना और हमारी चाय बनाना बंद।"
दोनों ही पक्षों ने चाय से पीछा छूटने पर तसल्ली की सांस ली। रचना को बेटी हुई। उसकी सास रचना के साथ अस्पताल में थी तो उसके ससुर सुबह की चाय बनाकर लेकर आए। चाय पीते ही उसे सारा माजरा समझ आ गया। उसने पहले अपने ससुर की ओर देखा और फिर सास की ओर। उसके ससुर उसे ऐसे अपनी ओर देखते हुए धीरे से हंसे और फिर सब एक साथ खिलखिला कर हंस पड़े। आज भी जब सब मिलकर इस किस्से को याद करते हैं तो हंस-हंसकर लोटपोट हो जाते हैं।
सरोज ✍️