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एक जिंदगी - दो चाहतें - 30

एक जिंदगी - दो चाहतें

विनीता राहुरीकर

अध्याय-30

फिर परम ने कॉलबेल बजा दी। चाचा ने तुरंत ही दरवाजा खोला। वो शायद बड़ी व्यग्रता से उन दोनों की राह देख रहे थे।

''आओ-आओ भई कब से राह देख रहा था।" चाचा उन दोनों को अंदर ड्राईंगरूम में ले जाते हुए बोले।

तनु ने चाचा के पैर छुए।

''जीती रहो बहु जीती रहो।" चाचा ने गदगद होकर आशिर्वाद दिया।

तभी सावित्री भी उन लोगों की आवाज सुनकर रसोईघर से बाहर आ गयी।

तनु ने झुककर उनके भी पैर छुए।

''जीत रहो बहु खुश रहो, दूधो नहाओ पूतो फलो।" चाची ने उसका माथा चूमते हुए आशिर्वाद दिया।

''तुम थोड़े दिन और नाराज रहती तो वो सचमुच अपने पुत्र के साथ ही पहली बार ससुराल में कदम रखती।" परम के चाचा ने सावित्री को ताना मारा।

तनु के कान शर्म से लाल हो गये। उसने नजरें झुका लीं।

तनु की यह हालत देखकर परम भी झेंप गया।

''तुम चुप तो करो जी। देखो तो कैसी शरमा गयी बेचारी बहु। जरा कभी तो अपनी उमर का लिहाज किया करो बच्चों के सामने ऐसी बातें करते हैं क्या। ससुर बन गये हो तुम अब।" सावित्री ने उन्हें झिड़कते हुए कहा।

सावित्री ने तनु की ठोड़ी पकड़कर उसके चेहरे को नजर भर देखते हुए परम से कहा-

''सुंदर, अति सुंदर। परम तेरे जैसे को यह चाँद का टुकड़ा कहाँ से मिल गया रे"

''ये समझ लो कि मेरी सेवा भावना और बहादुरी पर प्रसन्न होकर ईश्वर ने प्यारा उपहार दिया है मुझे, अपने हाथों से।" परम मुग्ध होकर बोला।

''सच में ये गोस्वामी परिवार को दिया ईश्वर का सबसे सुंदर उपहार है रे।" सावित्री अब भी मुग्ध दृष्टि से तनु के सुंदर चेहरे को एकटक देख रही थी।

''अरे अब घूरना बंद भी करो और दोनों को बैठने दो। नजर लग जायेगी उसे।" चाचा ने टोका।

''चुप भी करो तो तुम। भला अपनो की भी कभी नजर लगती है क्या।" सावित्री ने अपनी आँख की कोर से काजल लेकर तनु के माथेे पर लगा दिया। ''ना बैठना नहीं बहु पहले मेरे साथ कमरे में चलो तो जरा।" परम को वहीं चाचा के पास छोड़कर सावित्री तनु को अपने कमरे में ले गयी।

तनु ने देखा उनके पलंग पर एक बड़े से थाल में एक चौड़ी पाड़ की बंगाली साड़ी और बहुत सारा सामान रखा था ''ले बहु ये साड़ी पहन ले।" सावित्री ने साड़ी तनु को देते हुए कहा।

''मुझे बंगाली तरीके से साड़ी पहनना नहीं आती चाची।" तनु ने संकोच से भरकर कहा।

''अरे कोई बात नहीं बेटी। मैं पहना देती हूँ ना।" सावित्री ने तुरंत साड़ी की तह खोली और फटाफट तनु को बंगाली तरीके से साड़ी पहना दी। लाल चटक रंग की साड़ी में तनु का गोरा रंग और खिल गया। सावित्री थाल उठाकर तनु के साथ अपने कमरे से बाहर आ गयी।

''आ परम माँ काली का आशिर्वाद ले ले बेटा बहु के साथ।" सावित्री ने उसे पूजाघर में आने को कहा।

परम पूजाघर में चला आया। सामने ही मंदिर में विभिन्न देवी-देवताओं की प्रतिमा के बीच में माँ काली की छोटी मगर भव्य प्रतिमा विराजमान थी। पास ही दुर्गा माँ की तसवीर लगी थी। सावित्री ने दोनों को देवी माँ के सामने पटे पर बिठाया। और खुद भी पास ही में कालीन पर बैठ गयी।

''ले बेटा बहु के हाथ में चूडिय़ाँ पहना।" सावित्री ने चूडिय़ों का डिब्बा परम के आगे बढ़ाया।

परम ने डिब्बा खोला। उसमें शंख की, हाथी दांत की और सुहाग की लोहे वाली चूडिय़ों के साथ ही लाल चूडिय़ाँ भी थी। परम ने एक-एक कर सारी चूडिय़ाँ बराबर-बराबर तनु के दोनों हाथों में पहना दीं।

तब सावित्री ने परम को बिछुए दिये। परम ने बिछुए तनु को पहना दिये। तब सावित्री ने माँ काली के चरणों में रखे सिंदूर की ओर इशारा किया। परम ने चुटकी भर सिंदूर उठाकर तनु की मांग भर दी। तनु का रूप नवबधु जैसा दमकने लगा था। परम मुग्ध और प्यार भरी दृष्टि से तनु को देखता रह गया तब सावित्री ने थाल में से एक डिब्बी उठाई और उसे खोल कर सोने की एक चेन निकालकर तनु के गले में पहना दी। और एक दूसरी डिब्बी से सोने की अंगूठी निकालकर परम की अंगूठी में पहना दी।

''अरे चाची ये सब क्या है?" परम संकोच से भरकर बोला।

''ये तो वो आशिर्वाद है जो पहले ही दिन बहु को मिलना चाहिये था। लेकिन..." सावित्री की आँखें भर आयीं।

परम और तनु ने उठकर एक साथ माँ काली को प्रणाम किया और फिर सावित्री को प्रणाम किया।

सावित्री ने दोनो के सिर पर हाथ रखकर आशिर्वाद दिया। पूजाघर से बाहर आकर परम और तनु ने चाचा को भी प्रणाम किया।

सावित्री खाना लगाने के लिए रसोईघर में चली गयी। तनु भी उनकी मदद करने के उद्देश्य से उनके साथ ही रसोई में चली आयी। परम का दिल एकबारगी आशंका से घिर आया। ''कहीं चाची ने माँस-मच्छी न बना डाली हो।" लेकिन खाने की टेबल पर पूरा खाना निरामीष था। सारी चीज परम की पसंद की थीं। बेगून भाजा, परमल की मसाले वाली सब्जी, आलू का झोल, संदेश, रसगुल्ला, पुलाव और गरमा गरम पूड़ी।

परम ने चाची के प्रति गहरी कृतज्ञता महसूस की मन ही मन। उन्हें याद रहा कि तनु माँस-मच्छी नहीं खाती। सावित्री के चेहरे पर तनु के प्रति सहज, निश्चल स्नेह दिखाई दे रहा था। तनु की प्यारी सूरत और अच्छे व्यवहार ने सावित्री को अपना बना लिया था। सब लोगों ने साथ बैठकर बातें करते हुए खाना खाया। आज फिर एक बार परम को मन में अपार संतोष हो रहा था अपने परिवार की एक और कड़ी को अपने साथ जोड़कर। आज उसकी तनु को उसके कुल-घराने में प्रवेश की पहली स्वीकृति मिली है।

''अरुण भी यहाँ होता तो आज और अच्छा लगता।" परम चाचा से बोला।

''हाँ जब उसे पता चला कि नई बोऊ दी आज पहली बार घर आ रही है तो उसका जी भी बहुत किया कि वह यहाँ होता सबके साथ। लेकिन मुम्बई से एकदम आना भी संभव नहीं था फिर उसके सेमेस्टर भी चल रहे हैं अभी।’ चाचा ने उत्तर दिया।

अरुण परम का चचेरा भाई था जो मुम्बई में रहकर इंजीनियरिंग कर रहा था। चाचा-चाची भले परम से नाराज होकर उससे मिलते नहीं थे लेकिन अरुण कई बार छुट्टियों में आकर परम से और तनु से चोरी-छिपे मिल जाया करता था। लेकिन तनु और परम ने यह बात किसी को नहीं बताई।

खाना बहुत ही अच्छा बना था। परम को लग रहा था कि उसने जाने कितने बरसों बाद ठेठ बंगाली खाना खाया है। रात में देर तक चारों जन बैठ कर बातें करते रहे। देर रात गये फिर परम और तनु चाचा-चाची से विदा लेकर घर आ गये।

घर आकर जैसे ही तनु और परम नीचे के दरवाजे बंद करके ऊपर अपने बेडरूम में आए परम ने तनु के दोनों कंधों पर हाथ रखकर उसे अपने सामने खड़ा कर लिया।

''आय हाय मेरी दुलहनियाँ! कयामत लग रही है कयामत। आज तो तेरे चेहरे पर से नजरें हटाने का मन ही नहीं हो रहा है।" परम बहुत प्यार से उसे देखते हुए बोला ''रूक जा ऐसे ही खड़ी रह।"

परम मोबाइल से तनु की तसवीरें खींचने लगा। जब वो काफी सारी तसवीरें ले चुका तो तनु बोली -

''चलिये अब मुझे कपड़े बदलने दीजिये।"

''नहीं जानूं आज ऐसे ही सो जा।" परम उसका हाथ पकड़ता हुआ बोला।

''ऐसे साड़ी में?"

''हाँ प्लीज।" परम ने रिक्वेस्ट की।

''ठीक है जी।" तनु उन्हीं कपड़ों में पलंग पर जाकर लेट गयी। परम ने लाईट ऑफ कर दी और तनु के पास जाकर लेट गया। नाईट लेम्प की मद्धिम पीली रौशनी में तनु और भी अधिक सुंदर लग रही थी। कानों में सोने के प्यारे से झुमके। गले में चेन और मंगलसूत्र, माँग में लाल सुर्ख बंगाली सिंदूर, गहरे लाल रंग की साड़ी में खिलता हुआ गोरा रंग और चेहरे पर एक बहुत ही प्यारी भली सी मुस्कान।

परम ने तनु का हाथ अपने हाथ में थाम लिया। हाथों में शंख और लोहे के साथ लाल चूडिय़ाँ। मेहरून रंग की नेलपॉलिश और उंगलियों में हीरे की अंगुठियाँ, गोरे हाथों पर खिल रही थी। परम ने तनु का हाथ चूम लिया।

''क्या देख रहे हो इतने गौर से" तनु ने परम को एकटक अपनी ओर देखते हुए पूछा।

''तुम्हे देख रहा हूँ और क्या।" परम ने जवाब दिया।

''पहली बार देख रहे हो क्या।" तनु ने उसकी आँखों में झांकते हुए पूछा।

''पत्नी का यह सुंदर रूप तो आज पहली बार देख रहा हूँ ना। इस प्यारे से चेहरे पर तो आज चाची भी फिदा हो गयी फिर मैं तो पति हूँ। " परम उसके माथे पर एक चुम्बन लेते हुआ बोला।

तनु हौले से मुस्कुरा दी।

''सच में तुम्हारे चेरहे पर तो साक्षात देवी जैसा लावण्य दिख रहा है आज।" परम मुग्ध भाव से बोला।

''चलो हटो भी।" तनु शरमा गयी।

परम ने उसका सिर अपनी छाती पर रख लिया और उसके बाल सहलाने लगा।

''कैसा लगा चाचा-चाची से मिलकर?" परम ने पूछा।

''बहुत अच्छा लगा। ऐसा लगा ही नहीं कि पहली बार मिल रही हूँ या ऐसे हालातों के बाद मिल रही हूँ। भले ही डेढ़ साल बाद मिली पर अच्छा हुआ कि उनके मन का पूरा मैल घुल जाने के बाद ही मिली तो दोनों ही तरफ मन में कोई मलाल या गुस्से का अंशमात्र भी बाकी न होने की वजह से एक दम से सब सहज और सरल हो गया।" तनु खुशी भरे स्वर में बोली।

''ऐसे ही देखना एक दिन अतीत का सब मलाल और गुस्सा भुलाकर मम्मी-पापा भी एकदम से हमारे करीब आ जायेंगे।" परम उम्मीद भरे स्वर में बोला।

''जरूर आ जायेंगे जी। बस थोड़ा वक्त लगता है सारी कंडीशन्स को हमारे फेवर में होने के लिए। लेकिन कभी न कभी सारी परेशानियाँ सुलझ ही जाती हैं और फिर सब ठीक हो जाता है।" तनु ने उसके सीने पर हाथ फेरते हुए कहा।

''अब मैं सोच रहा हूँ किसी वीकेंड पर सब लोगों को एक साथ अपने घर पर बुलाने का। शनिवार शाम सब इक_ा होंगे रात यही रूकेंगे और रविवार दिन भर।" परम ने कहा ''क्या कहती हो।"

''हाँ अच्छा है।" तनु ने हामी भरी।

''तुम्हारे मम्मी पापा, मतलब मेरे सास-ससुर, मामा-मामी, आकाश, मौसी-मौसाजी, बुआ-फूफाजी और चाचा-चाची।" परम ने कहा।

''हाँ इसी बहाने सब लोग एक साथ चाचा-चाची से भी मिल लेंगे और वो लोग इन सबसे मिल लेंगे। दोनों परिवार आपस में परिचित होकर आपस में घुलमिल जायेंगे।" तनु ने कहा।

''हाँ और क्या। चलो इसी खुशी में कल बाहर फिल्म देखने चलते हैं और लंच भी बाहर ही करेंगे।" परम ने कहा।

''ठीक है जी।" तनु खुश हो गयी।

''खुश हो गया मेरा बुच्चा।" परम ने उसकी नाक हिलाते हुए प्यार से पूछा।

''आपके साथ मैं हर हाल में हर कहीं खुश हूँ जी।" तनु ने जबाव दिया।

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