राहबाज - 9 Pritpal Kaur द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

राहबाज - 9

निम्मी की राह्गिरी

(9)

वो छिप छिप कर मिलना

दोनों डब्बे उठाये अनुराग के बारे में सोचती मैं घर चली आयी थी. घर आ कर माँ को मिठाई वाला डब्बा थमा दिया था. दूसरा खुद अपने बक्से में रख लिया. सारी मिठाई भाई, पापा और माँ ने उसी वक़्त खा ली थी. भाइयों ने ये कह कर मजाक उड़ाते हुए कि तू तो वहां खा कर ही आयी है. लेकिन मुझे बिलकुल बुरा नहीं लगा था. न ही इच्छा हुयी थी उस मिठाई को खाने की.

मेरा मन और पेट दोनों भरे हुए थे. मैं तो उस रात अनुराग के सपने देखते, सोती हुयी जागती रही थी. अगले दिन भी इसी ख्याल में झूलती रही. फिर मुझे ख्याल आया कि मुझे तो पता ही नहीं कि वो रहता कहाँ है. कौन से स्कूल में है? उससे फिर मिलूंगी भी या नहीं? और मिलूंगी तो क्या कहूंगी?

फिर माला का ख्याल आया और तीसरे दिन, शादी से एक दिन पहले मैं इस बहाने से माला के घर गयी कि शादी में साथ जाने का प्लान बनाया जाए. इसी बहाने माँ से लिफाफे बनाने के काम से कुछ देर की छुट्टी भी मिल गयी थी.

माला और मैं जब शादी में जाने के प्लान पर तैयारी कर चुके तो मैंने डरते-डरते झिझकते हुए कहा था, "माला. वो अनुराग आयेगा क्या शादी में?"

माला ने मुझे आँख मारते हुए एक जोर का टहोका मारा था, "अच्छा जी. तो आँख मटक्का हो गया मैडम का."

मैं बुरी तरह शर्मा गयी और घबरा भी गई, कहीं ये मरी अनुराग को न कुछ कह दे. मैं तो शर्म के मारे मर ही जाऊंगी.

"माला. कुछ नहीं हुया है. तू निरी पागल है. यार उस दिन वो अच्छे से बात कर रहा था इसलिए पूछा. अच्छा लड़का है वो."

"हाँ भाई लड़का तो अच्छा है. बहुत अच्छा है. अच्छे घर का भी है. माँ-बाप बहुत पढ़े लिखे हैं उसके. दोनों नौकरी करते हैं बड़ी वाली. माँ स्कूल में प्रिंसिपल है उसकी और पापा इंजिनियर. बहुत बड़े अफसर हैं दोनों."

मैं घबरा गयी थी.

"अरे! ये तो बड़े घर का है."

"वो तो है. पर तू ये बता तुझे अच्छा लगा क्या?'

मैं चुप रही. क्या कहती?

"सुन, मुझे लगा वो भी तुझे में दिलचस्पी ले रहा था. तभी तो तू भी पूछ रही उसे. और उसकी कोई गर्लफ्रेंड भी नहीं है. चल मैं तेरी क्यूपिड बनती हूँ."

"क्या बनती है?'

मैं उस वक़्त नहीं जानती थी क्यूपिड के बारे में. ये सब बाद में अनुराग ने ही बताया था मुझे.

"छोड़ उस बात को. तू बता. मिलना चाहती है उसे?"

मैं मुंह नीचा किया बैठी रही. एक दिल तो बल्लियों उछल रहा था. कह रहा था.

"हाँ हाँ हाँ हाँ"

और दूसरा कह रहा था अगर घर में पता चला गया ना कि लड़के को प्रोपोज कर रही है तो खाल खींच ली जायेगी. और लोग भी क्या सोचेंगे? पर लोगों को बताएगा कौन? माला तो खुद ही बात आगे बढ़ा रही है और दोस्त है. वो क्यूँ कुछ ऐसा करेगी?

मैंने आखिर कार हामी में हल्का सा सर हिला दिया था इसके साथ ही मेरा मुंह बिलकुल लाल हो गया था और बदन जैसे दहकने लगा था.

माला ने जोर से ठहाका लगाया था.

"चल तुझे कल शाम ही मिलाती मैं अनुराग से. शादी से पहले ताकि शादी में तुम लोगों को भीड़-भाड़ में मिलने और बातें करने का मौका मिल जाए. बात साफ़ हो जाये तो अच्छा है. वरना अगर वो तेरे में इंट्रेस्टेड नहीं हुआ तो उसको कह देंगे कि वो शादी में न आये. इतना रौब है तेरी दोस्त का मोहल्ले में. हम दूसरे दोस्तों के साथ मस्ती करेंगे. "

सो बात तय हो गयी थी. अगले दिन स्कूल जाते वक़्त माला को मुझे बताना था कि अनुराग का जवाब क्या है? कि वो शाम को मुझसे मिल रहा है या नहीं. वो उसी रात अपने बॉयफ्रेंड से कहेगी जो अनुराग से बात करेगा.

हाय दैया! इसका भी एक बॉयफ्रेंड है? ये मेरे लिए खबर थी, सनसनीखेज.

मैं तो ज़मीन पर आ गिरी थी और ईर्ष्या से जल भुन गयी थी. सांवली सी डेढ़ हड्डी की माला भी एक अदद बॉयफ्रेंड संभाले बैठी थी जो रोज़ रात को उसके लिए कोई न कोई मिठाई या आइसक्रीम लेकर घर के पिछवाड़े आता था. बकौल माला के वे दोनों चुपके से कुछेक मिनट बातें करते या एकाध किस कर लेते थे. और मैं ऐसी खूबसूरत पांच फीट तीन इंच ऊंची गोरी गिट्टी पंजाबिन के पास बॉयफ्रेंड के नाम पर एक कुत्ता भी नहीं था जिसकी लीश पकड़ कर शाम को घूमने ही निकल सकूँ.

अपनी तो ज़िन्दगी लिफाफे बनाने में गर्क हुयी जा रही थी. कुछ करना होगा यार. मन में सोच लिया था. और उसी शाम को अनुराग से मिलना हुआ था.

मोहल्ले के दूसरे किनारे पे मार्किट के उस तरफ की एक चाय की गुमटी पर. अनुराग ने मेरे लिए चाट मंगवाई थी. उसके तीन दोस्तों के साथ माला पास ही एक दूसरी टेबल पर बैठी थी. वो तो हम दोनों को मिला कर वहां से चली जाना चाहती थी. लेकिन मैंने ही जिद करके उसे रोक लिया था. इस सारे तामझाम का पैसा अनुराग ने ही दिया था. ये मुझे बाद में पता चला था.

वो खुद भी अच्छी खासी उलझन में था. कोई लडकी उसे बुलाये, मिलना चाहे और वो न जाएँ? ऐसा कैसे हो सकता था. मुझे मिल कर उसे भी मैं अच्छी लगी थी.

हम दोनों एक दूसरे के सामने बैठे अपनी-अपनी प्लेट से आलू चाट खा रहे थे. मुझे तो भूख बिलकुल नहीं लगी थी. खाने में तो क्या मज़ा आता, घबराहट बहुत हो रही थी. अलबत्ता अनुराग मज़े से भुक्खड़ों की तरह पूरी प्लेट ख़त्म कर गया था चंद मिनटों में ही. फिर उसने चाय भी जल्दी से पी ली थी. मैं बैठी सोचती रही थी कि वो कुछ बोले. और वो मेरे बोलने का इंतज़ार कर रहा था.

आखिर वही बोला था, "अच्छा अब चलते हैं. सारे दोस्त बोर हो रहे होंगें. "

मैं क्या कहती? लकिन बोलना तो था.

"हाँ. सुनो. मेरे घर में किसी को पता नहीं चलना चाहिए. " मेरी आवाज़ में जो डर था उसने सुन लिया था.

"हां. मैं सब को कह दूंगा. खयाल रखेंगे इस बात का. अगर पता लग भी जाए तो मैं हूँ. न. मैं बात कर लूँगा उनसे. तुम फ़िक्र मत करो. अब तो हम साथ ही हैं न."

हमारे बीच कोई रोमांस नहीं हुआ. कोई लव यू वाला सीन नहीं हुआ. न कोई रोया-धोया न तड़पा और हमने प्यार का इज़हार बिना बोले ही कर लिया था. मेरा दिल तसल्ली से भर उठा था. यानी अनुराग मेरा बॉयफ्रेंड था आज से.

मैं गर्व से भर उठी थी. अपने आप पर अचानक ढेरों भरोसा पैदा हो गया था. अनुराग पर इतना सारा प्यार आया था. वहां और लोग नहीं बैठे होते तो मैं उससे लिपट जाती. अनुराग ने मुझे प्यार भरी नज़रों से देखा था और हम दोनों उठ कर अपने दोस्तों के बीच आ गए थे. माला फ़ौरन लपक कर उठी थी और मेरी बिना खाई हुयी आलू चाट की प्लेट उठा कर ले आयी थी. जोर जोर से बातें करते ठहाके लगाते सभी दोस्तों ने एक मिनट में पूरी प्लेट चाट कर डाली थी.

उस रात मैं बड़े चैन से सोयी थी. अब तो अकसर अनुराग से मिलना हो जाता था.

एक दिन तो कुछ यूँ हुआ कि मेरे स्कूल का एनुअल फंक्शन था. मैं डांस कर रही थी. हालाँकि ग्रुप डांस था और मैं तीसरी लाइन में थोडा सा ही डांस करने वाली थी लेकिन जैसे ही मैंने अनुराग को बताया तो वो जोश में भर गया. कहने लगा कि वो भी आयेगा देखने.

अब ये तो संभव नहीं था. हमारे स्कूल में सिर्फ लडकियां पढ़ती थीं. लड़कों का प्रवेश वर्जित. एनुअल फंक्शन के दिन भी सिर्फ अभिभावक ही आ सकते थे या भाई बहन. अब मेरी मम्मी और दो भाई आ रहे थे तो झूठ बोल कर भी अनुराग को नहीं बुलाया जा सकता था. वैसे अब तक मैं अनुराग के साथ होने से काफी बोल्ड तो हो गयी थी.

हफ्ते में दो तीन बार हम मिल ही लेते थे. कभी नुक्कड़ के उसी चाय के ढाबे पर, कभी अपने घर के पिछवाड़े, एकाध मिनट के लिए. कभी कभी मैं दोस्त के घर जाने का बहाना कर के दो तीन महीने में एकाध बार फिल्म भी देख लेती थी अनुराग के साथ. अभी तक तो मेरी चोरी पकड़ी नहीं गयी थी. और हमारा इश्क मज़े-मज़े में चल रहा था.

उस दिन अनुराग ने एक नया रास्ता निकाला था. उसने फंक्शन का इंतजाम करने वाले टेंट वाले से सांठ-गाँठ की और एक स्पीकर उठा कर स्कूल के अंदर. अब अंदर आ कर पता लगा कि वो फंक्शन पूरा होने तक अन्दर नहीं रुक सकता. सिर्फ सेटिंग करने तक ही उसे वहां होने के इजाज़त है. तो जनाब ने उस कमरे में पहुँच कर ही दम लिया जहाँ हम सब लडकियां तैयार हो कर नाश्ता कर रही थीं.

मेरी सारी सहेलिया उसे जानती थीं. उन्होंने एक स्वर में अनुराग अनुराग जो चिल्लाना शुरू किया तो मैं तो डर गयी कि कहीं टीचर्स को पता लग गया मेरी और अनुराग की प्रेम कहानी का तो घर तक बात पहुँच जायेगी और मेरी पिटाई होना तय है. सो जल्दी जल्दी मैंने उसे अपना समोसा खिलाया और ढिठाई से हँसते हुए, मेरी सहेलियों के मजाकों का फुर्ती से जवाब देते हुए अनुराग को धक्के दे कर कमरे से बाहर निकाल दिया था.

अब ये होने लगा था कि हम अक्सर ज़िन्दगी भर साथ रहने की बातें करते थे. अनुराग कहता,"यार निम्मी अब तेरे से दूर रहना अच्छा नहीं लगता. मैं सोच रहा हूँ जल्दी ही अपना बिज़नस शुरू कर दूं तो हम शादी कर लें. "

मैं सुन कर अन्दर से बहुत खुश हो जाती लेकिन बुरी तरह घबरा भी जाती. जब मेरे घर वालों को पता लगेगा कि मैं एक लड़के के साथ प्रेम में हूँ और अक्सर मिलते हैं और साथ-साथ घूमते फिरते हैं तो बवाल ही हो जायेगा. ये तो मैं पक्का जानती थी.

हमारे यहाँ लड़कियों को अपना कोई भी फैसला खुद करने का अधिकार नहीं है. उनके सारे फैसले माँ- बाप या भाई लोग करते हैं. माँ भी कहाँ कर पाती है? वो भी बाप का ही मुंह देखती है हर बात में.

यहाँ तक कि क्या कहना है और क्या पहनना है से लेकर कब फिल्म देखनी है, कौन सी फिल्म देखनी है, क्या सब्जेक्ट लेने हैं? और कितना पढ़ना है? ये सब फैसले घर के मर्द ही लेते हैं. मैंने इस वर्चस्व में सेंध लगाई थी. लेकिन इसका मतलब ये नहीं था कि मैं कोई विद्रोह कर रही थी.

मैं तो बस प्रेम के चक्कर में पड़ गयी थी. बजाय अपने पापा और भाइयों की आदेशों के पालन के एक दूसरे मर्द की हर बात पर हां कहने लगे थी. आज सोचती हूँ तो मेरी किस्मत अच्छी थी कि मुझे अनुराग जैसे शरीफ, इन्साफ पसंद और भरोसे मंद लड़के से प्यार हुया था. वर्ना कोई और बदनीयत वाल मर्द होता तो वो मेरे इस भरोसे का नाजायज़ फायदा भी उठा सकता था.

***