कार का भूत
नमन के घर के पास एक पार्क था। नमन अपने दोस्त शेखर के साथ उस पार्क में खेला करता था। उसी पार्क के बाहर एक कार हिलती रहती थी। अजीब-अजीब-सी आवाजें वहाँ से आती थी। कभी हँसने तो कभी रोने की। नमन का मन करता था कि एक बार उस कार के अंदर देखा जाए।
एक दिन वह अकेला ही पार्क में खेल रहा था अचानक उसकी बॉल कार के ऊपर चली गई। नमन हिम्मत करके उस कार के पास गया उसमें से आवाज आ रही थी-आओ, आओ हमारे पास आओ। नमन का डर के मारे बुरा हाल था उसका सरदी में भी पसीना निकल रहा था उस समय शाम के लगभग 7 बजे होंगे। नमन ने जैसे ही बॉल लेने के लिए अपना हाथ बढ़ाया उसे किसी ने ऊपर उछाल दिया। इस प्रकार उसे चारों ओर उछाला गया। वह चिल्लाता ही रहा। लगभग बीस मिनट बाद उसे नीचे पटक दिया। उसने झटपट बॉल उठा ली और एक आत्मा उस बॉल में चली गई। नमन ने हनुमान जी लॉकेट पहना था इसलिए आत्मा उसके अंदर प्रवेश नहीं कर पाई। जैसे ही वह घर गया तो जाकर अपनी मम्मी से लिपटकर गया और कहना लगा, ‘‘मम्मा, मम्मा पार्क वाली कार में भूत है।
नमन की मम्मी-बेटा मार से बचने के लिए बहाना मत कर देख तूने कपड़ों का क्या हाल कर दिया? चोट भी लगवा ली। जाओ हाथ-पैर धोकर आओ मैं डिटोल से साफ करके दवा लगा दूँगी।
नमन-मम्मा मैं सच कह रहा हूँ।
पर नमन की मम्मी को उसकी बात पर विश्वास नहीं हुआ
रात के बारह बजे नमन को आवाज सुनाई दी। वह उठा उसने देखा बॉल अपने आप उछल रही है। ठक ठक ठक। अचानक बॉल नमन के हाथ में आ गई और वह छत पर जाकर खेलने लगा तो वहीं छत पर 10-12 भूत आ गए सब क्रिकेट खेलते रहे। अमन को बहुत डर लग रहा था पर डर के मारे उसकी आवाज तक नहीं निकल रही थी। सबकी आँखें लाल थी उनके बड़े-बड़े नाखून और उल्टे पैर, उनके कपड़े भी काले थे। एक भूत ने अमन से पूछा-तेरा क्या नाम है?
नमन-नननन नमन (नमन बोलने में हकला रहा था।)
दूसरा भूत-तो तेरा नाम नमन है।
तीसरा भूत-अच्छा नाम है। तूने हमारी कार पर बॉल क्यों फेंकी अब तुझे इसका परिणााम भुगतना पड़ेगा। (वे अपने लंबे-लंबे नाखूनों वाले हाथों से नमन को डराने लगी।)
डर के मारे नमन ने अपने पैंट में ही सुसु कर दी।
हर रात नमन को उनके साथ न चाहते हुए भी खेलना पड़ता।
एक दिन न जाने कैसे नमन के गले से हनुमान जी का वह लाकेट कहीं गिर गया।
उसी रात को जब भूतों का झुंड खेलने आया तो एक भूत नमन के अंदर घुस गया।
अमन भी अब उल्टे पैर करके चलने लगा। हमेशा नहीं पर कभी-कभी। अधिकतर रात को। अगले दिन जब वह स्कूल से वापस आने लगा तो वह पैर उलटे कर चल रहा था अचानक उसके दोस्त शेखर की नजर नमन के पैरों पर गई।
शेखर-नमन तेरे पैरों को क्या हुआ? ऐसे क्यों चल रहा है?
नमन-कुछ नहीं (उसकी आवाज थोड़ी बदली हुई थी।)
(नमन ने शेखर की शर्ट पकड़कर उसे ऊपर उठा लिया।) चुप बिलकुल चुप
। अगर तूने किसी को बताया तो अंजाम अच्छा नहीं होगा। फिर नमन के अंदर जो भूत था उसने शेखर को ऊपर उठा लिया। (चारों तरफ सांय-सांय की आवाजें गूँज रही थी।) नमन भी हवा में ऊपर उठ गया और शेखर को डराने लगा। उसकी लाल-लाल आँखें देखकर शेखर डर गया। उसकी मुँह से आवाज भी नहीं निकली।
शेखर ने घर पहुँचकर अपनी मम्मी को सबकुछ बता दिया पर उसकी मम्मी ने उसकी बात पर विश्वास नहीं किया लेकिन उसकी दादी ने उसकी बात पर विश्वास किया।
शाम को जब नमन शेखर को खेलने के लिए बुलाने आया तो उसने बहाना करके मना कर दिया।
(उसी रात 12 बजे)
नमन शेखर के घर आया
नमन(भूत)-शेखर, शेखर बहुत सारी आवाजें गुँजने लगीं। अचानक नमन शेखर की आँख उसने देखा कि उसके चारों ओर बहुत सारे भूत थे जो उसे डरा रहे थे।
पहला भूत- चल पार्क में खेलते हैं। कार में बैठकर सभी शमशान घाटों की सैर करेंगे। बड़ा मजा आएगा।
शेखर-मैं नहीं जाऊँगा। मुझे छोड़ दो प्लीज।
दूसरा भूत-चल, शेखर चल।
सब भूत मिलकर शेखर को अपने साथ कार में ले जाते हैं। बाहर घनघोर अँधेरा होता है। साँय-साँय हवा चलने लगती है। कार बहुत स्पीड से चलने लगती है। शेखर डर के मारे बेहोश हो जाता है। सभी भूत कार लेकर श्मसान घाट पहुँचते हैं। वहाँ चारों ओर हड्डियाँ पड़ी होती है। शेखर को एक जगह लेटाकर सारे भूत उसके आस-पास नाचने लगते हैं। थोड़ी देर में शेखर को होश आ जाता है वह देखता है कि हड्डियाँ भी भूतों के साथ नाच रही हैं। तभी एक भूत शेखर के अंदर घुस जाती है। सुबह कार अपनी जगह पर पहुँच जाती है।
यह सिल-सिला रोज चलता रहता है।
शेखर और अमन रात को 12 बजे हाथ पकड़कर उड़कर चलते हैं और कार में पहुँचकर सभी भूताें के साथ मिलकर रोज श्मसान घाट जाते हैं।
एक दिन रात के 12 बजे शेखर और अमन हाथ पकड़कर चल रहे होते हैं तो अचानक शेखर की दादी की नजर उन पर पड़ती है तो वह उन्हें हवा में चलता देख हैरान हो जाती है। वह उनके पीछे-पीछे जाती है, तो देखती है कि शेखर और अमन कार की छत पर बैठ गए हैं और कार अपने आप चल रही है। वह सबकुछ समझ जाती है।
(अगली सुबह वह नमन के घर जाकर उसके माता-पिता को सबकुछ बता देती है। पहले तो नमन के मम्मी-पापा विश्वास नहीं करते पर दादी कहती है आज रात ठीक 12 बजे उठकर देखना।
उसी रात 12 बजे
हँसने की आवाज सुनाई देती है। शेखर के मम्मी-पापा और नमन के मम्मी-पापा देखते हैं कि नमन और शेखर हाथ पकड़कर हवा में चलकर कार के ऊपर बैठ गए हैं और कार अपने आप चल रही है। शेखर के मम्मी-पापा और नमन के मम्मी-पापा बहुत परेशान हो जाते वे भी अपनी कार निकालते हैं और भूतिया कार के पीछे चल पड़ते हैं। दादी सबके हाथों पर रक्षा का धागा पहना देती है ताकि वे भूत उन्हें नुकसान न पहुँचा सके। वह अपनी कार पर मंत्र पढ़कर ओम का चिह्न बना देती है।
दादी-इस रक्षा कवच को अपने हाथ से मत उतारना।
भूतिया कार श्मसान घाट पहुँचती है वहाँ पर एक तांत्रिक पूजा कर रहा होता है।
पहला भूत-ऐ तांत्रिक हम कब सर्वशक्तिमान बनेंगे। जल्दी बता।
तांत्रिक-बली, बली, बली, डायनों की सरदार बली चाहती है। अभी नहीं जब तक तुम दो 12 साल के बच्चों की बली नहीं देते तब तक तुम्हें सारी शक्तियाँ नहीं मिल सकती।
दूसरा भूत-दो बच्चे हैं हमारे पास। आज ही तुम इन दोनों की बली ले लो।
तांत्रिक-नहीं अभी नमन को 12 साल का नहीं हुए हैं। यह आज से एक हफ्रते बाद यानी 12 दिसबंर को 12 साल का पूरा हो जाएगा तो उस दिन तुम इन दोनों की बली दे सकते हो।
सब भूत नमन और शेखर के गले में कंकालों की माला पहना देते हैं और बली, बली, बली करके हड्डियाँ पकड़कर नाचने लगते हैं।
(दूसरी कार में नमन और शेखर के घरवाले बहुत घबरा जाते हैं।)
अगली सुबह
दादी-अगर एक हफ्रते में अगर हमने कुछ नहीं किया तो हम अपने बच्चों को खो देंगे।
नमन की मम्मी- (रो-रोकर) आँटी जी आप भी अब इस परेशानी से हमें निकालो।
शेखर की मम्मी-हाँ मम्मी जी, आप ही कुछ करो।
दादी-मैं जानती हूँ किसी को जो हमें इस समस्या से छुटकारा दिला सकते हैं। पर तुम लोग विश्वास करोगे इस सब पर।
शेखर के पापा-हाँ, माँ क्यों नहीं? आप जो कहो, जैसा कहो हम करेंगे।
नमन के पापा-आँटी जी, आप जिसे जानते हो बुला लो।
दादी-ठीक है मैं कल ही गाँव जाकर योगीराज महाराज को लेकर आती हूँ।
(दो दिन बाद दादी के साथ योगीराज महाराज का प्रवेश)
को 12 बजे योगीराज महाराज भूतिया कार में बैठकर जाते हैं और श्मशान घाट पहुँचकर सबकुछ देखते हैं। तांत्रिक कहता है बली बली दे दो तुम बली
सारे भूत-बली, बली देंगे हम बली।
(लगभग 3 घंटे बाद जब भूत चले जाते हैं।)
योगीराज महाराज-दुष्ट तू बली लेगा।
तंत्रिक-हाँ बली देने से ये सारे भूत मेरे वश में हो जाएँगे। डायनों की सरदार बली चाहती है।
योगीराज महाराज-अगर तूने मेरी बात नहीं मानी तो मैं तेरा सर्वनाश कर दूँगा।
तांत्रिक-तू मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता साधु।
योगीराज महाराज-चल देख वे मंत्र का उच्चारण कर उसे बिना आग के जलाने लगते हैं।
तंत्रिक-नहीं, नहीं मुझे छोड़ दो। आप जैसा कहेंगे मैं वैसा करूँगा।
(अगले दिन सुबह)
योगीराज महाराज-सावित्री! (शेखर की दादी) हमें कल रात को 11ः30 से 12 के बीच यह कार भस्म करनी होगी। वरना फिर बच्चों को बचाना मुश्किल हो जाएगा।
दादी-महाराज आप जैसा ठीक समझो करों। हमें बस इस समस्या से बाहर निकलो।
(उसी रात 11ः30) (बजे योगीराज महाराज सब लोगों को घर में रहने का निर्देश देते हैं। वे शेखर की दादी तथा शेखर और नमन को अपने साथ ले जाते हैं। घर के बाहर नींबू और मित्र टाँगकर। मंत्र उच्चारण कर कलावा बाँध देते हैं और गेट के बाहर अपना त्रिशूल गाड़ देते हैं। योगीराज महाराज और दादी कार के पास पहुँचते हैं।)
(नमन और शेखर कार के ऊपर बैठ जाते हैं।)
नमन रूपी भूत-ए बुढि़या तू लेकर आई है न इस योगीराज को।
शेखर रूपी भूत-अब तुझे जिंदा रहने का अधिकार नहीं।
सभी भूत दादी को पकड़कर दादी को ऊपर उछाल देते हैं और कुछ देर के लिए दादी को हवा में टाँगकर रखते। (यह सब देखकर नमन तथा शेखर के मम्मी-पापा बहुत डर जाते हैं। वे लोग अपने घर की बालकनी से सब कुछ देखते हैं।)
( थोड़ी देर में तांत्रिक भी आ जाता है।)
तांत्रिक को देखकर सारे भूत चिल्लाने लगते-तू यहाँ क्यों आया मूर्ख? आज तुझे बली देनी है। अब तू नहीं बचेगा।
योगीराज महाराज-आज तुम्हारा अंत है। बुराई अच्छाई से कभी नहीं जीत सकती।
सभी भूत-तुम हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते क्योंकि जब तक डायनों की सरदार को तुम वश में नहीं करते। तुम कुछ नहीं कर पाओगे।
तांत्रिक और योगीराज महाराज मंत्र का उच्चारण कर डायनों की सरदार को बुला लेते हैं। वह बहुत भयानक होती है। उसके हाथ-पैर सब उलटे होते हैं। उसके सर पर सिंग तथा बाल खुले होते हैं।
डायनों की सरदार-ए योगीराज तू मुझे अपने वश में नहीं कर सकता। वह अपने मुँह से आग निकालने लगती है। ही ही ही मैं अमर हूँ पूरी दुनिया पर मैं हुकूमत करूँगी।
योगीराज महाराज-मूर्ख चली जा अपनी दुनिया में। अगर यहाँ रहना है, तो नेक काम कर।
डायनों की सरदार-बड़ा आया उपदेश देने। आज बुराई जीतेगी और तू हारेगा ही, ही, ही।
(योगीराज महाराज अपने झोले में से पूजा की सामग्री निकालते हैं और कार के ऊपर हल्दी, चंदन और रोली डालते हैं। तांत्रिक अपने त्रिशूल को जमीन पर गाड़ देते और वे अग्नि कुंड बनाकर उसमें पूजा की सामग्री डालते हैं और दादी कार की छत पर बैठे नमन और शेखर को कलावे से बाँध देती है। चारों तरफ धुआँ-धुआँ हो जाता है। योगराज महाराज डायनों की सरदार को बाँध देते हैं और उसे कार के अंदर धकेल देते हैं। एक-एक करके सारे भूत कार के अंदर चले जाते हैं।)
डायनों की सरदार-बाहर निकाल योगराज। ए तांत्रिक तू कभी सर्वशक्तिमान नहीं बन पाएगा। मुझे आजाद कर दे मैं तुझे अपनी शक्तियाँ दे दूँगी।
योगराज महाराज-चुप कर अब तेरा खेल खत्म।
तांत्रिक-मुझे सर्वशक्तिमान नहीं बनना है। वह तो ईश्वर है।
योगराज महाराज अपनी आँखों से आग का गोला निकालकर कार को भस्म कर देते हैं।
नमन और शेखर दादी के गले लग जाते हैं। इस प्रकार भूतिया कार का अंत हो गया।
आशा रौतेला मेहरा