एक जिंदगी - दो चाहतें - 27 Dr Vinita Rahurikar द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 27

एक जिंदगी - दो चाहतें

विनीता राहुरीकर

अध्याय-27

परम वहाँ से निकलकर तनु के ऑफिस की ओर चल पडा। आज वह बहुत खुश था। चाचा-चाची ने उसे सही मान लिया था। उसे और तनु को स्वीकार कर लिया। कितना अच्छा लगता है जब आपकी खुशी में आपका परिवार भी साथ हो। आपके निर्णय पर घरवालों की स्वीकृति की मुहर लगाी हो। परम का चेहरा खुशी से दमक रहा था। बस अब उसके माता-पिता भी मान जायें।

जैसे ही परम ने तनु के केबिन में पैर रखा उसके चेहरे की खुशी देखकर तनु की जान में जान आयी। इतनी देर से उसका मन विचलित हो रहा था। उसे परम की चिंता हो रही थी। परम का संवेदनशील मन तुरंत ही तो आहत हो जाता है। पता नही वहाँ क्या कुछ बातें हो रही होंगी।

लेकिन अभी उसके चेहरे पर हँसी देखकर तनु का सारा तनाव खत्म हो गया। वो उत्सुकता से उसकी ओर देखने लगी।

''ये लीजिये मैडम जी। आपकी छोटी माँ ने आपके लिए संदेश भेजे है। " परम ने संदेश का डिब्बा तनु के सामने रखते हुए कहा।

''क्या बात है मेजर साहब। बधाई हो।" तनु के चेहरे पर हँसी खिल उठी।

''आज मै बहुत खुश हूँ। बहुत अच्छा लग रहा है।" परम केबिन के दरवाजे की ओर देखकर बोला ''जानू गिव की अ किस।"

''ये आफिस है जी।" तनु ने आँखें तरेरी।

''आई वॉन्ट टू किस यू। प्लीज बस एक सेकण्ड।" परम ने टेबल पर आगे की ओर झुकते हुए कहा।

''शिशिर किसी भी क्षण आता ही होगा। अभी नहीं रात में।" तनु ने कहा।

''रात का हिसाब अलग होता है यार ये अलग है...।" परम आगे और कुछ बोल पाता उससे पहले ही केबिन का दरवाजा खुला और शिशिर अंदर आ गया। वह क्षण भर को परम को बैठा देखकर झिझक गया।

''अरे आओ ना।" तनु ने उसे अंदर बुलाया। शिशिर परम का अभिवादन करके सिस्टम पर काम करने लगा।

तनु परम का खीजा हुआ चेहरा देखकर मुस्कुरा दी। तनु ने थोड़ी देर कंपोजिंग मे शिशिर को सलाह दी और काम करवाने लगी। थोड देर बाद ही प्यून ने आकर तनु से कहा कि भरत सर ने उन दोनों को उपर अपने साथ लंच करने बुलाया है। तनु ने उससे कहा कि वो थोडी देर में आ रही है। शिशिर को सारे पेजेस की कम्पोजिंग करके रखने को कहकर तनु ने लंचबॉक्स उठाया और परम के साथ उपर अपने पिता के पर्सनल ऑफिस में चली आयी।

भरत भाई के आफिस में प्रवेश करते ही परम ने झुककर अपने ससुर के पैर छुए। उन्होने मुस्कुराते हुए उसे आर्शिवाद दिया। आफिस के एक कोने में टेबल और सोफा रखे थे। प्यून इस पर खाना लगाने लगा। उन्होने बेटी दामाद के लिए न जाने क्या-क्या मंगवा लिया था।

''अरे पापा आपने ये सब कितना कुछ मंगवा लिया है मैं तो घर से खाना बनाकर लायी हूँ।" तनु ने सोफे पर बैठकर लंच बॉक्स टेबल पर रखते हुए कहा।

''कोई बात नहीं बिटिया के हाथ का बना खाना हम खा लेगें तुम दोनों ये खा लेना।" भरत भाई ने तनु के हाथों से लंच बाक्स लेते हुए कहा। ''देखें जरा क्या बनाया है हमारी बेटी ने। क्यों दामाद जी हमारी बिटिया ठीक-ठाक खाना बना लेती है ना गले से नीचे तो उतर जाता है ना?"

भरत भाई ने परम से पूछा तो तनु रोआंसी होकर बोली ''क्या है पिताजी कितनी बार आपको खाना बनाकर खिलाया है लेकिन आप अभी भी मुझे बच्ची ही समझते है।"

भरत भाई हँसने लगे।

''पंद्रह दिन तो सुबह -शाम होटल का ही खाना खाया है पापा अभी तीन-चार दिनों से ही तो घर पर बन रहा है।" परम ने भी तनु को चिढ़ाया।

'' हाँ जी और ये भी बता दीजिये कि उसमें से भी आधी चीजें आप बनाते है।" तनु ने तुनककर कहा।

सब लोग हँसने लगे। प्यून ने प्लेटों में खाना सर्व कर दिया। भरत भाई ने अपनी प्लेट में तनु का बनाया खाना ही परोसवाया और बेटी दामाद के हाथ से बने खाने को स्वाद लेकर खाने लगे। परम ने चाची के दिए संदेश भी भरत भाई और तनु को दिये। भरत भाई को सुनकर परम के लिए बहुत प्रसन्नता हुई। खाना खत्म होने के बाद तनु पिता से आज्ञा लेकर नीचे काम से जाने लगी तो भरत भाई परम से बोले।

'' घर का काम पूरा हो गया हो तो बीच-बीच में इसे आफिस ले आया करिये। बचपन से आदत है इसे हर समय अपने आस-पास देखने की। अब ये दिखती नहीं है तो दफ्तर में भी बडा खाली-खाली सा लगता है।" भरत भाई की आँखों में आर्द्र भाव थे।

परम को दिल में कुछ अजीब सा महसूस हुआ। आदमी चाहे कितने ऊँचे मुकाम पर पहुँच जाये लेकिन सबसे पहले वो अपनी बेटी का पिता होता है। तनु ने भी नजर भरकर अपने पिता को देखा।

''जी ले आया करूँगा।" परम ने आश्वासन दिया।

तनु और परम वापस तनु के केबिन में आ गये। शिशिर भी फटाफट लंच करके वापस काम पर लग गया था। थोडी ही देर बाद अनूप और आशीष भी तनु के केबिन में आ गये। सब मिलकर गप्पे मारने लगे। तनु और शिशिर का ध्यान काम में भी था और बातों में भी। अनूप और आशीष परम से जिद कर रहे थे कि वो उन्हें कोई दिलचस्प किस्सा सुनाए।

''क्या सुनाऊँ। मेरी लाईफ कैसी दिलचस्पी रही है ये तो तुम बाढ वाली जगह पर देख ही चुके हो।" परम हँसने लगा। लेकिन अनूप और आशीष नही माने। जब भी परम तनु के साथ ऑफिस आता था तो अनूप और आशीष उसे घेर कर उसके फौजी जीवन के दो-एक किस्से सुने बिना छोडते नहीं थे। आज भी वे दोनों कहाँ मानने वाले थे। परम सोचने लग गया। तभी उसे याद आया और वह बताने लगा-

''बहुत पहले की बात है। तब मुझे फौज में आए तीन-चार साल ही हुए थे तब मेरी पोस्टिंग नागालैण्ड में हुई थी। एक रात डॅयूटी खत्म करके मैं और मेरा ग्रुप रूम में पहुँचा ही था कि मुझे वायरलैस पर मैसेज मिला कि मेरे ग्रुप को अभी पोइंट 421 के लिए निकलना है। वहाँ पर कुछ संदिग्ध गतिविधियाँ देखी गयी है।

हमें बताया गया कि पोइंट 421 पर एक घर में तकरीबन 4-5 मिलिटेन्ट के छुपे होने की खबर मिली है। हम सातों ने तुंरत आदेश का पालन किया और तैयार होने लगे। हमें अपनी तैयारी करने में आधे घण्टे का समय लगा। यूनिफार्म पहनी। हथियार संभाले, बैग में पानी, ड्राय राशन और वेपन, एम्यूनेशन रखा और बैग पीठ पर लाद कर तैयार हो गये गन लेकर।"

''आपके पास कौन सी गन थी सर?" आशीष ने पूछा।

''ए.के. 47।" परम ने बताया।

''ये वेपन एम्यूनेशन क्या होता है?" बीच ही में तनु ने पूछा।

''धन्य है मेजर की बीवी।" परम ने माथे पर हाथ रखा" इतना भी नही पता कि वेपन एम्यूनेशन का मतलब होता है बंदूक की गोलियाँ।

''फिर आगे क्या हुआ सर।" आशीष ने व्यग्रता से पूछा।

''हमें तैयार होने में करीबन आधा घण्टा लगा। हम कुल सात लोग थे, मैं, अजय, जगदीप, अरुण, भरत, सुरेश और संदीप। हमें जिस पोइंट पर पहुँचने का आदेश मिला था वो हमारे स्थान से 80 किमी दूर था। हम तेज गति से गाड़ी चलाकर डेढ़ घण्टे में ही वहाँ पहुँच गये। गाड़ी हमने सड़क के किनारे खड़ी कर दी और फिर हम अपना सामान और हाथों में अपनी-अपनी रायफल संभाले पैदल ही जंगल में सर्च करने लगे। हमने पॉइंट का चप्पा-चप्पा छान मारा लेकिन वहाँ वैसा कोई घर या आस-पास किसी भी तरह की कोई संदिग्ध गतिविधियाँ नजर नहीं आयीं।

फिर मैंने हाई कमान से बात की अपने वायरलेस से कि यहाँ पर तो ऐसा कुछ भी नहीं है। किसी ने गलत खबर दी है। लेकिन वह नहीं माने। और हमें आदेश मिला कि चाहे कुछ हो जाये। खबर गलत नहीं है। हमें वह ढूंढना ही है किसी भी हाल में। और हमने आदेश का पालन किया। तीन-चार घण्टे हम सब पूरे जंगल की खाक छानते रहे। एक-एक पत्ता, एक-एक झाड़ी हमने छान मारी लेकिन हमें कुछ नहीं मिला। हाथ में 47 रायफल और पीठ पर आठ किलो का सामान और आठ घण्टे जंगल की ढूंढाई। मैं थक कर चूर हो गया था और मेरा सारा ग्रुप भी।

तब अजय ने बोला कि ''बस सर अब बहुत हो गया। यहाँ तो कोई भी नहीं मिला। या तो यहाँ कोई आया ही नहीं था या हमारी भनक पाकर फरार हो गया होगा पहले ही।" सभी को बड़े जोरों से भूख लग रही थी। हम सब नाईट ड्यूटी पूरी करके आये ही थे कि हमें यहाँ आने का आदेश मिल गया था और हम तुरंत ही यहाँ पहुँच गये थे। रात का अंधेरा घिरने लग गया था। हाई कमान का आदेश था तो हम वापस भी नही जा सकते थे। हम सातों मुँह बायें किये खड़े रह गये।

"क्या करें?"

"क्या करें?"

तभी धीमी-धीमी बारिश होने लगी। मैंने अजय से कहा कि तू क्यों चिंता कर रहा है दोस्त। चांदनी रात है, दारू हमारे साथ है और धीमी-धीमी बारीश का साथ है। तभी मेरे दिमाग में एक खुराफात दौड़ी। मिशन तो फेल ही था। वहाँ कुछ मिला ही नहीं। मैंने सबका मूड हल्का करने और तनाव और थकान को दूर करने के लिए कहा कि आज नूडल्स उबालकर नहीं खाएंगे, आज मैं तुम लोगों को पार्टी देता हूँ।

सुनकर सब हँसने लगे कुछ मुझे पागल कहने लगे और कुछ समझे मैं मजाक कर रहा हूँ।"

''अब इतनी रात में आप जंगल में पार्टी देने का बोलोगे तो सब मजाक ही तो समझेंगे ना।" अनूप हँसते हुए बोला।

''हाँ वो लोग भी मजाक ही समझ रहे थे। लेकिन मैंने कहा कि ये मजाक नहीं है भाई रुको आज तुम लोगों को मैं कुछ बढिय़ा बनाकर खिलाता हूँ। तो उन्होंने पूछा कि क्या बनाकर खिलाओगे सर इस बियावान में। तो मैंने कहा कि मैं रोस्टेड फिश खिलाता हूँ तुम लोगों को। उन लोगों को हैरानी हुई कि 'वो कैसे सर।’ मैंने कहा कि तुम लोग केले के पत्तों का बन्दोबस्त करो।" परम बताने लगा" वो लोग मान गये। फिर मैं एक बन्दे जगदीप को साथ लेकर जंगल में थोड़ी दूर एक नाले की तरफ चल दिया।

नाले पर जाकर हमने अपना मॉस्कीटो नेट नाले में डाल दिया और फिश फंसने का इन्तजार करने लगे। हम लोग नाले के पास चौकस होकर बैठ गये। करीब एक घण्टे बाद हम लोगों ने जाल निकाला तो वह खाली था। एक छोटी सी मछली भी नहीं फंसी थी। हम लोगों ने फिर से नाले में जाल डाल दिया और बैठ गये।

जैसे-जैसे रात बीतती जा रही थी भूख भी बढ़ती जा रही थी। भूख के मारे आंत कुलबुलाने लगी थीं लेकिन फिश थी कि फॅंसने का नाम ही नहीं ले रही थी। मछली पकडऩे के चक्कर में सुबह के छ: बज गये। रात भर हम जाल निकालते रहे और अबकी बार मछली जरूर फँसेगी यह सोचकर दोबारा जाल डाल देते। सुबह के छ: बजे जब जाल निकाला तो देखा कि उसमें केवल एक मछली फंसी थी।

हमने सिर धुन लिया लेकिन क्या करते। एक मछली ही सही। हम लोग वापस गु्रप की ओर चल पड़े। जगदीश बोला सर पूरी रात भर में केवल एक मछली पकड़ कर हम लोग वापस जाएंगे तो बहुत बेइज्जती होगी कि दुश्मनों को बहादुरी से पकडऩे वाले रात भर में मछली नहीं पकड़ सके। मैंने जगदीप से कहा कि जो मिल गया उसी में खुश रहना सीखो। वहाँ चल कर जो होगा देखा जायेगा।

फिर हम दोनों ग्रुप की ओर रवाना हो गये। हमारे पैरों की आहट पाते ही वे लोग बंदूकें तान कर चौकस हो गये कि कहीं दुश्मन तो नहीं हैं। फिर हमारी आवाज सुनकर सब झाडिय़ों से बाहर आ गये कि ये तो सर हैं और मछली लेकर आए हैं। सब हमारी और टूट पड़े तो जगदीप बोला कि रूको यार रूको सबको मिलेगा लेकिन पेट भर कर नहीं एक-एक टुकड़ा।

तो सब ने चौंक कर पूछा कि ऐसा क्यों तो जगदीप ने मछली दिखाते हुए कहा कि देख लो हम सात लोग हैं और मछली एक ही मिली।

सब ने घेरकर मुझे खूब गालियाँ दी सर आपके चलते रात भर भूखे रहे ये सोचकर कि आज दबाकर मछली खाने को मिलेगी और आप सिर्फ एक ही मछली लेकर आ गये।

पर फिर हमने तुरंत मछली को साफ किया सरसों के तेल में नमक मिर्च का लेप बनाकर मछली पर लगाया उसे केले के पत्ते में लपेटा और जल्दी से लकडिय़ाँ सुलगाकर उसमें मछली भूनने रख दी। हम सब जमीन पर बैठ गये। 20-25 मिनट बाद भुनी मछली की स्वादिष्ट सुगंध आने लगी तो सब लोग भूख के मारे पागल होने लगे। हमने फटाफट गिलासों मेे दो-दो पैग डाले और साथ में मछली का स्नैक। बस फिर क्या हमने खुशी-खुशी जंगल में पार्टी मनाई। हाई कमान को खबर कर दी कि यहाँ कोई नहीं है और उनका आदेश मिलते ही तुरंत हम लोग वापस अपनी यूनिट की ओर रवाना हो गये।" परम बात खत्म करने तक ठहाका मारकर हँसने लगा।

''वाह सर आप तो पिकनिक मनाने बड़ी अच्छी जगह गये थे और बड़ी अच्छी पिकनिक मनाई।" आशीष, अनूप, शिशिर सब जोर-जोर से हँसने लगे।

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