एक जिंदगी - दो चाहतें - 22 Dr Vinita Rahurikar द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 22

एक जिंदगी - दो चाहतें

विनीता राहुरीकर

अध्याय-22

दूसरे दिन तय समय पर तनु के माता-पिता उनके घर आए। तनु ने दोपहर से किचन में लगकर उनकी पसंद का खाना बनाया, अरहर की खट्टी मीठी दाल, भरवां करेला। परम पूरा समय किचन में तनु के साथ उसकी मदद करवाता रहा। दोनों के आने से पहले तनु ने सारा काम पूरा कर लिया था। तनु के माता-पिता के स्वागत में परम और तनु बरामदे में ही खड़े थे। भरत भाई का ध्यान नेमप्लेट पर गया "तनु परम गोस्वामी" बेटी के रिश्ते और भविष्य की मजबूती और सुरक्षा के अहसास ने उनके मन को अपार संतोष से भर दिया और एक खुशी और आश्वस्ती का भाव उनके चेहरे पर छा गया। परम के दिल में उनके चेहरे पर आए भावों को देखकर गहरी तसल्ली हुई।

दोनों ने बड़ी खुशी से पूरा घर देखा और सजावट की तारीफ की। परम को मालूम था उसके पूरे घर से भी बड़ा तो भरत भाई का स्टडी रूम होगा लेकिन फिर भी दोनों ने बेटी-दामाद का घर देखकर आनन्द दर्शाया। तनु ने सबके लिए खाना परोसा। बेटी की गृहस्थी, बेटी के हाथ का बना खाना। दोनों बहुत खुश लग रहे थे।

परम देख रहा था तनु के माता-पिता कितने सुलझे हुए हैं। सारी परिस्थितियों के बीच भी कितना धैर्य रखा था उन दोनों ने घर परिवार समाज सबके साथ और सबसे ज्यादा अपनी बेटी के साथ।' धैर्य भी रखा था उसके निर्णय पर भरोसा भी रखा था और सबसे बढ़कर उसे अपने जीवन और रिश्तों के बारे में निर्णय लेने की स्वतंत्रता भी दी थी।

राईट टू चूज।

चुनाव का अधिकार।

काम में, रिश्तों में, जीवन के हर पहलू में अपने लिए सही गलत या मनचाहा चुनने का अधिकार। और उस पर आपके स्वतंत्र निर्णय का या चुनाव करने का स्वागत करके साथ देने का आश्वासन... सुरक्षा के कोमल घेरे में संपूर्ण व्यक्तिगत स्वतंत्रता। परम को यह अधिकार कभी नहीं मिला।

... मिलता तो आज तनु के माता-पिता के साथ ही साथ उसके माता-पिता भी यहाँ होते और दोनों परिवार हँसी खुशी से मिलते।

डिनर के बाद तनु सबके लिए कॉफी बनाने किचन में चली गयी। तनु की माँ भी उसके साथ थी।

''तमे मजामा छो नाय बेटी?" तनु की माँ ने तनु से पूछा।

''हाँ मम्मी हूँ बहुत मजामा छू, एना माटे तेरा खूब-खूब आभार तमे मने साथ... आप्यो अतलज मने मारो पे्रम मने माल्यो।" तनु ने माँ के गले में बाहें डालते हुए खुशी से चहकते हुए कहा। माँ ने संतोष से भरकर उसका माथा चूम लिया। बेटी खुश है इससे ज्यादा एक माँ को क्या चाहिये।

परम और भरत भाई बाहर लॉन में जाकर बैठ गये। दोनों के बीच औपचारिक बातें चलने लगीं।

''आप अब आर्मी छोड़कर यहीं सेटल हो जाईये। करोबार भी बहुत फैल गया है। मुझे भी सहारा हो जायेगा। पूरा परिवार एक जगह तो रहेगा।" भरत भाई ने ऐसे स्वर में कहा कि परम के अहम को ठेस न लगे यह सोचकर कि वे उसे घर जमाई बनने का न्यौता दे रहे हैं।

''मुझसे जितना भी बन पड़ेगा सर मैं आपकी मदद करने की कोशिश करूँगा। लेकिन मेरा पहला कर्तव्य मेरे देश के प्रति है। मैंने देश की माटी को उसकी सुरक्षा का वचन दिया है और उसे मैं किसी भी कीमत पर तोड़ नहीं सकता।" परम ने कोमल परन्तु दृढ़ स्वर में कहा। "और मैं ये भी नहीं चाहता कि लोग ये समझे कि मैंने पेैसे के लोभ में तनु से शादी की है। सच कहता हूँ मुझे तो यही लगा था कि तनु आपके यहाँ रिर्पोटर है। वो आपकी बेटी है ये तो मुझे बाद में पता चला। तनु अब मेरी पत्नी है, मेरी जिम्मेदारी है। मुझ पर भरोसा रखिये सर, मैं अपने साधनों में उसे हरसंभव खुशी दूंगा। उसे कभी कोई तकलीफ नहीं होने दूंगा।"

भरत भाई क्षण भर परम का मुँह देखते रहे फिर बोले ''सर नहीं बेटा पापा बोलो।"

परम के मुँह पर चांदनी खिल गयी ''जी पापा।"

तब तक तनु सबके लिए कॉफी ले आयी। रात देर तक बातों की रंगबिरंगी फुलझडिय़ाँ चलती रहीं।

रात जब परम पलंग पर लेटा था तो बहुत खुश लग रहा था। खुश तो तनु भी बहुत थी।

''क्या बात है मेजर साहब बहुत खुश लग रहे हैं आज तो।" तनु ने परम के पास बैठते हुए कहा।

''हाँ आज तुम्हारे पापा ने मुझे पहली बार बेटा कहा और कहा कि मैं उन्हें सर नहीं पापा कहूँ। इसका मतलब जानती हो तनु? इसका मतलब है कि आज पूरे मन से उन्होने मुझे अपनी बेटी का जीवनसाथी स्वीकार कर लिया। अपने परिवार का सदस्य मान लिया। आज मैं सच में बहुत खुश हूँ। आज मेेरे दिल से एक बहुत बड़ा बोझ उतर गया।" परम ने आखरी वाक्य बोलते हुए तनु की आँखों में झांका।

''कैसा बोझ?" तनु ने सवाल किया।

''हर माता-पिता की ईच्छा होती है तनु की उनकी बेटी उनसे भी उॅंचे घर में ब्याही जाए। अगर ऊँचे नहीं तो कम से कम बराबरी के घर में तो जाए ही। लेकिन यहाँ तो ना तो परिवार और ना ही स्वयं मैं किसी भी तौर पर उनके योग्य नहीं हैं। तुम्हारे माता-पिता की ओर देखकर मुझे हमेशा एक अपराध बोध सालता रहता था। मैं एक ग्लानि से भर जाता था।" परम का स्वर भारी हो गया।

''मैंने कितनी बार बोला है आपसे। मैं सिर्फ आपके दिल से प्यार करती हूँ। आपके सुंदर चरित्र से प्यार करती हूँ। देशपे्रम और देशवासियों की निश्चल सेवा की आपमें जो निर्मल भावना है मैं उससे प्यार करती हूँ परम। मुझे हमेशा से ही बस एक सच्चे दिल से प्यार करने वाला, मेरे प्रति पूरी तरह से समर्पित पति चाहिये था और वो मुझे मिल गया है। पैसा, समृद्वि, डिग्रियाँ ये सब जीवन के सुख के लिये उतना मायने नहीं रखते जितना आपसी पे्रम और सामंजस्य रखता है। जीवन का अहम सुख है रिश्तों में प्यार विश्वास रहे। पापा ने चाहे अरबों रुपये कमाया हो लेकिन हमेशा रिश्तों को सर्वोपरी रखा। चाहे उनका घर परिवार हो चाहे साथ में काम करने वाले। वो इंसान को प्राथमिकता देते हैं पैसे को नहीं।" तनु ने परम का हाथ थामते हुए कहा।

''मुझे पता है। शुरुआत की दो तीन मुलाकातों में ही मैं समझ गया था कि तुम्हारे पापा इंसान को पैसे से ज्यादा अहमियत देते हैं लेकिन फिर भी मेरे मन में उस भले व्यक्ति के लिए एक अपराध बोध सा महसूस होता रहता था। मगर आज उन्हे खुश देखकर मन से एक बहुत बड़ा बोझ हट गया। आज ऐसा लगा कि उन्हें मेरे तुम्हारे जीवन में होने को लेकर अब कोई मलाल नहीं है।" परम भावुक मगर खुशी भरे स्वर में बोला।

''हाँ सच है।" तनु परम के कंधे पर सिर रखकर बोली ''क्योंकि उन्हे शुरू से ही पता था कि आपके जितना प्यार करने वाला पति उनकी बेटी को और दूसरा कोई नहीं मिलता।"

''सबकुछ आज भी कितना अजीब लगता है ना तनु। मेरा तुम्हारा मिलना, हमारा यूं ही एक दूसरे की ओर आकर्षित होना। अनूप का मुझसे मिलकर तुम्हारा मोबाईल नम्बर देना। हमारा आपस में बातें करने लगना। और फिर प्यार हो जाना।

तुम्हारे मन की बात तो समझ में आती है कि तुम तो कुवांरी थी और तुम्हें फौजी पसंद थे इसलिये तुम मन ही मन में मुझे पसंद करने लगी थीं। लेकिन मैं आज तक समझ नहीं पाया कि मैं तो शादीशुदा था फिर भी क्यों तुम्हारे आकर्षण में बंधने से अपने आप को रोक नहीं पाया। पता है तनु पहली बार तुम्हे देखते ही मन में एक अजीब सी फीलिंग आयी थी। बहुत अपनी सी लगी थी, ऐसा अहसास होता था कि जैसे तुम मेरी कोई बहुत अपनी हो, बहुत करीबी हो। ऐसा लगता था जैसे मैं तुम्हे बहुत पहले से जानता था, पहचानता था।" परम की आवाज में उन बातों को याद करके आज भी आश्चर्य झलक रहा था।

''ऐसा इसलिये कि नियति चाहती थी कि हम मिले। तभी देखो ना एक बार अलग-अलग हो जाने के बाद भी उसने हमें मिलने का एक और मौका दिया क्योंकि वो जानती थी कि हमारी डोरियाँ एक दूसरे के साथ बंधी हैं। हमने उसके दूसरे ईशारे को समझ लिया और हमारा आपस में संपर्क हो गया। अगर तुम अनूप से मेरा नम्बर ना लेकर मुझे फोन ही नहीं करते तो नियति जल्द ही हमें फिर किसी ना किसी बहाने से एक दूसरे के पास ले आती। क्योंकि होनी को हमेशा पता रहता है कि किसका साथ किसके लिए लिखा गया है।" तनु ने कहा।

''तब फिर मेरे जीवन में नियति ने जबरदस्ती वाणी को क्यों ला बिठाया था।" परम ने सवाल किया। उसे हमेशा इस बात का घोर दुख होता था कि उसे बेवजह वाणी के साथ क्यों बंधना पड़ा था। कुछ साल और वो शादी नहीं करता तो क्या बिगड़ जाता फिर वो बस तनु का ही होता।

''कुछ उसका ऋण लिखा होगा आपके ऊपर। वो चुकता हो गया बस।" तनु बहुत सहजता से बोली।

परम ने एक गहरी साँस ली ''मैं आज भी जब-जब तुमसे मिलने के बाद के दिनों के बारे में सोचता हूँ तो देखता हूँ कि उन दिनों जैसे कोई अज्ञात शक्ति मुझे तुम्हारे बारे में सोचने को मजबूत कर देती थी। कोई अनजान शक्ति पूरी ताकत से मुझे तुम्हारी ओर खींचती थी। कई बार मैं काम में अपने आप को इतना व्यस्त रखता कि तुम्हे भूल जाऊँ पर भूल नहीं पाता था। कई बार मैंने अपने आप के साथ बहुत कठोर होकर हफ्तो, महीनों तक तुम्हे फोन नहीं लगाया था लेकिन एक दिन अचानक मैं बहुत टूटा हुआ सा महसूस करता और तड़प उठता था तुमसे बात करने के लिए और तुम्हे फोन लगाकर जब ढेर सारी बातें कर लेता था तब जाकर मुझे चैन आता था।"

''पता है। मैं आपको फोन लगाती थी तो आप उठाते ही नहीं थे। मैसेज करती थी तो जवाब ही नहीं देते थे। मै सोच-सोचकर परेशान हो जाती कि आपको क्या हो गया है आप बातें क्यों नहीं कर रहे मुझसे। बड़ी बैचेन हो जाती थी मैं।" तनु परम के सीने पर सिर रखते हुए बोली।

''पर तेरी हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी बूची। झट से शादी के लिए प्रपोज कर दिया।" परम हँसते हुए बोला।

''जर्नलिस्ट हूंॅ जी। आए दिन समाज के अंदरूनी हिस्सों में पनपते विवाहेतर संबंधों की कहानियाँ सामने आती रहती हैं। लेकिन हमेशा देखा कि लोग भाई-बहन या देवर-भाभी के रिश्तों के नाम पर अंदर मन में कुछ और ही भावना रखते हैं। प्यार तो करते हैं पर उसे स्वीकारने की हिम्मत नहीं रखते। अपने रिश्तों को किसी अंजाम तक पहुँचाने का साहस नहीं होता है उनमें। रिश्ते तो बना लेते हैं पर रिश्तों को, व्यक्ति को अपने जीवन में सम्मान जनक स्थान नहीं दे पाते। उम्र भर एक झूठ में जीते रहते हैं।

खुद को धोखा देते हैं, परिवार को भी धोखा देते हैं और पूरी उम्र एक धोखे को जीते हैं पर रिश्तों के सच को सामने नहीं ला पाते।

मैं झूठ की जिंदगी, झूठ के रिश्ते नहीं जी सकती परम। अगर मैंने तुम्हे प्यार किया है तो उस सच को अपने, तुम्हारे, परिवार के और समाज के सामने अपने प्यार को, अपनी भावनाओं को, अपने रिश्ते को कभी एक मजाक या भावनाओं का उछाल भर नहीं बनने दे सकती थी। इसीलिए मैंने तुमसे सीधे शादी की बात की थी। मैं नहीं चाहती थी कि हम उम्र भर अपने रिश्ते को घर परिवार से छुपाकर उसे कुछेक बरस तक नाजायज तरीके से निभाएँ और फिर अलग हो जाएँ।" तनु ने जवाब दिया।

''मेरा शोना। तभी मैं तुझसे इतना प्यार करता हूँ।" परम ने उसे कस कर अपने सीने से लगा लिया।

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