मित्र हो तो ऐसा Rajesh Maheshwari द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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मित्र हो तो ऐसा

मित्र हो तो ऐसा

कुसनेर और मोहनियाँ एक दूसरे से लगे हुए जबलपुर के पास के दो गाँव हैं। कुसनेर के अभयसिंह और मोहनियाँ के मकसूद के बीच बचपन से ही घनिष्ठ मित्रता थी। वे बचपन से साथ साथ खेले-कूदे और पले-बढे थे। अभयसिंह की थोडी सी खेती थी जिससे उसके परिवार का गुजारा भली भाँति चल जाता था। मकसूद का साडियों और सूत का थोक का व्यापार था। उसके पास खेती की काफी जमीन थी। खुदा का दिया हुआ सब कुछ था। वह एक संतुष्टिपूर्ण जीवन जी रहा था।

अभयसिंह की एक पुत्री थी। पुत्री जब छोटी थी तभी उसकी पत्नी का निधन हो गया था। उसने अपनी पुत्री को माँ और पिता दोनो का स्नेह देकर पाला था, उसे अच्छी शिक्षा दी थी। वह एम.ए. कर चुकी थी। अब अभयसिंह का उसके विवाह की चिंता सता रही थी। अथक प्रयासों के बाद उसे एक ऐसा वर मिला जो उसकी पुत्री के सर्वथा अनुकूल था। अच्छा वर और अच्छा घर मिल जाने से अभयसिंह बहुत खुश था लेकिन अभयसिंह के पास इतना रूपया नही था कि वह उसका विवाह भली भाँति कर सके। उसे चिंता उसके विवाह के लिए धन की व्यवस्था की थी। जब विवाह के लिए वह पर्याप्त धन नही जुटा सका तो उसने सोचा- मेरा क्या है, मेरे पास जो कुछ है वह मेरी बेटी का ही तो है। ऐसा विचार कर उसने अपनी कुछ जमीन बेचने का निश्चय किया।

मकसूद का इकलौता पुत्र था सलीम। उसका विवाह हो चुका था। सलीम का एक छोटा चार साल का बच्चा भी था। पुत्री के विवाह के लिए जब अभयसिंह ने अपनी जमीन बेचने के लिए लोगों से चर्चा की तो बात सलीम के माध्यम से मकसूद तक भी पहुँची। मकसूद को जब यह पता लगा कि अभयसिंह बेटी के विवाह के लिए अपनी जमीन बेच रहा है तो यह बात उसे अच्छी नही लगी। एक दिन वह अभयसिंह के घर गया। उसने कहा “सुना है बिटिया का विवाह तय हो गया है।“ “हाँ। मंडला के पास का परिवार है। लड़के के पिता अच्छे और प्रतिष्ठित किसान है। लडका पढा लिखा है, पिता के साथ खेती भी देखता है। एक इलेक्ट्रानिक की अच्छी दुकान भी मंडला में है जिसे पिता पुत्र मिलकर चलाते है। सुमन बिटिया के भाग्य खुल गए है। उस घर में जाएगी तो जीवन सँवर जाएगा और मैं भी चैन से आँख मूँद सकूँगा।“

“ शादी की तैयारियों के क्या हाल है ? “

“वैसे तो मैंने सभी तैयारियाँ अपने हिसाब से कर रखी थी लेकिन उन लोगो की प्रतिष्ठा को ध्यान में रखकर कुछ और तैयारियों की आवश्यकता थी। मैंने सोचा कि मेरे बाद मेरा सभी कुछ सुमन का ही तो है। मेरे पास आठ एकड़ जमीन है अगर उसमें से चार एकड़ निकाल दूँगा तो इतनी रकम मिल जाएगी कि सभी काम आनंद से हो जाएँगे। बाकी बचेगी चार एकड़ तो मेरे अकेले के गुजारे के लिए वह काफी है।“

“ यह जमीन बेचकर तुम्हारे अनुमान से तुम्हें लगभग कितना रूपया मिल जाएगा ? “

“ एक से सवा लाख रूपये एकड के भाव से तो जाएगी ही लगभग चार पाँच लाख रूपया तो मिल ही जायेगा। इतने में सारी व्यवस्था हो जाएगी।“

“ तुमने मुझे इतना गैर समझ लिया कि ना तो तुमने मुझे यह बताया कि सुमन का विवाह तय हो गया है और ना ही तुमने मुझे यह बताया कि तुम अपनी जमीन बेच रहे हों। क्या तुम पर और सुमन पर मेरा कोई अधिकार नही है ? क्या वह मेरी भी बेटी नही है ?“

“ ऐसी तो कोई बात नही है। मैंने सोचा कि जब तुम्हारे पास आऊँगा तो सब कुछ बता दूँगा पर अभी बोनी आदि का समय होने के कारण मैं उस तरफ नही निकल पाया, वरना तुम्हें बिना बताए तो आज तक मैंने कोई काम किया ही नही है ?“

“ तब फिर जमीन बेचने का निश्चय तुमने मुझसे पूछे बिना कैसे कर लिया ? मेरे रहते तुम बेटी की शादी के लिए जमीन बेचो, यह मुझे कैसे स्वीकार होगा ? अब रही बात रूपयों की तो वे तुम्हें जब तुम चाहोगे तब मिल जाएँगे। जमीन बेचने का विचार मन से निकाल दो और बेटी की शादी की तैयारी करो।“ इतना कहकर मकसूद वहाँ से चला गया।

उनकी मित्रता ऐसी थी कि अभयसिंह कुछ ना कह सका। वह तैयारियों में जुट गया। उसने जमीन बेचने का विचार यह सोचकर त्याग दिया कि बाद में जब भी जरूरत होगी तो वह या तो जमीन मकसूद को दे देगा या उसके रूपये धीरे धीरे लौटा देगा।

विवाह के कुछ दिन पहले मकसूद का संदेश अभय के पास आया कि मेरी तबीयत इन दिनो कुछ खराब चल रही है। तुम शीघ्र ही मुझसे आकर मिलो। उस दिन रात बहुत हो चुकी थी इसलिए अभय नही जा सका। मकसूद की बीमारी की खबर सुनकर वह विचलित हो गया था। दूसरे दिन सबेरे सबेरे ही वह घर से मकसूद के यहाँ जाने को निकल पडा। अभी वह पहुँचा भी नही था कि उस ओर से आ रहे एक गाँववासी ने उसे देखा तो बतलाया कि मकसूद का स्वास्थ्य रात को अधिक खराब हो गया था और उसे मेडिकल कालेज ले जाया गया है।

यह सुनकर अभय ने उस व्यक्ति से कहा कि गाँव में वह उसकी बेटी को बतला दे कि वह मेडिकल कालेज जा रहा है, मकसूद चाचा की तबीयत खराब है। अभयसिंह वहाँ से सीधा मेडिकल कालेज की ओर चल दिया। जब वह मेडिकल कालेज पहुँचा तो मकसूद इस दुनिया को छोडकर जा चुका था।

अभय ने सलीम, सलीम की माँ और उसकी पत्नी को सांत्वना दी। वह उनके साथ गाँव वापस जाने की तैयारियाँ करने लगा। उसके ऊपर दुख का पहाड टूट पडा था। एक ओर उसका सगे भाई से भी बढकर मित्र बिछुड गया था और दूसरी ओर उसे बेटी के हाथ पीले करने थे।

मकसूद को सुपुर्दे-खाक करने के बाद अभय गाँव वापस आ गया। अगले दिन सबेरे सबेरे एक आदमी आया और उसने अभयसिंह से कहा कि उसे भाभीजान ने बुलाया है। अभय भारी मन से वहाँ गया। वहाँ जाकर वह सलीम के पास बैठा। सलीम बहुत दुखी था। अभयसिंह बडे होने के नाते उसे सांत्वना देता रहा जबकि वह स्वयं भी बहुत दुखी था। कुछ देर बाद ही सलीम की माँ उदास चेहरे के साथ वहाँ आई। उनकी आँखें सूजी हुई थी। उन्हे देखकर अभयसिंह की आँखों से भी आँसू का झरना फूट पडा। कुछ देर बाद जब उनके आँसू थमे तो कुछ बात हुई। कुछ समय पश्चात सलीम की माँ ने एक लिफाफा अभय की ओर बढाया। वे बोली - “ तीन चार दिन से इनकी तबीयत खराब चल रही थी। परसों जब उन्हे कुछ अहसास हुआ तो उन्होने यह लिफाफा मुझे दिया था और कहा था कि यह आपको देना है, अगर मैं भूल जाऊँ तो तुम उसे याद से दे देना।“

अभय ने उस बंद लिफाफे को उनके सामने ही खोला। उसमें पाँच लाख रूपये और एक पत्र था। अभय उस पत्र को पढने लगा। पत्र पढते पढते उसकी आँखों से टप टप आँसू टपकने लगे। उसकी हिचकियाँ बँध गई और गला रूँध गया। सलीम ने वह पत्र अभय के हाथ से ले लिया और हल्की आवाज में पढने लगा-

“ प्रिय अभय, तुम्हारे जमीन बेचने के निर्णय से मैं बहुत दुखी हुआ था लेकिन मेरे प्रस्ताव को जब तुमने बिना किसी हील हुज्जत के मान लिया तो मेरा सारा दुख चला गया। हम दोनो मिलकर सुमन को विदा करें, यह मेरी बहुत पुरानी अभिलाषा थी। मुझे पता है कि भाभीजान के ना होने के कारण तुम कन्यादान नही ले सकते हो इसलिये मैंने निश्चय किया था कि सुमन का कन्यादान मैं और तुम्हारी भाभी लेंगे। लेकिन कल से मेरी तबीयत बहुत तेजी से खराब हो रही है और ना जाने क्यों मुझे लग रहा है कि मैं सुमन की शादी नही देख पाऊँगा। पाँच लाख रूपये रखे जा रहा हूँ। उसका विवाह धूम धाम से करना। तुम्हारा मकसूद।“

पत्र समाप्त होते होते वहाँ सभी की आँखों से आँसू बह रहे थे। उसने भाभीजान से कहा- “ भाभीजान आज मकसूद भाई होते तो इन रूपयों को लेने में मुझे कोई गुरेज नही था लेकिन आज जब वे नही रहे तो इन रूपयों को लेना मुझे उचित नही लग रहा है। इसलिए मेरी प्रार्थना है कि ये रूपये आप वापस रख लीजिए।“

भाभीजान की रूलाई रूक गई। वे बोली-“ भाई साहब, अब हमारे पास बचा ही क्या है। उनके जाने के बाद अगर हम उनकी एक मुराद भी पूरी ना कर सके तो वे हमें कभी माफ नही करेंगें। खुदा भी हमें माफ नही करेगा।“

तभी सलीम बोला-“ चाचाजान आप नाहक सोच विचार में पडे है। दुनिया का नियम है आना और जाना। हम सब मिलकर सुमन का विवाह करेंगे। वह मेरी भी तो छोटी बहन है। मैं उसके लिए बडे भाई के भी सारे फर्ज पूरे करूँगा और अब्बा की ख्वाहिश भी पूरी करूँगा। आप ये रूपये रख लीजिए अगर और भी आवश्यकता होगी तो हम वह भी पूरी करेंगे।“

सुमन का विवाह नीयत समय पर हुआ। सलीम ने उसके भाई की सारी रस्में भी पूरी की और अपनी पत्नी के साथ उसका कन्यादान भी किया। आज भी लोग उस विवाह को याद कर उनकी मित्रता की मिसाल देते है।