अमर प्रेम - 12 Pallavi Saxena द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अमर प्रेम - 12

अमर प्रेम

(12)

तुम तो मेरी जान हो, मेरा ईमान हो मैं तो बस यह चाहता हूँ की तुम हमेशा खुश रहो सुरक्षित रहो

इसलिए जब तुम मुझसे दूर होती हो न तो मुझे हर पल तुम्हारी चिंता लगी रहती है।

अब आगे का क्या सोचा है तुमने यहीं रहने का इरादा है या हम वापस जाएँगे सब एक साथ अभी कुछ ही दिनों मेन मेरी छुट्टियाँ समाप्त हो जाएंगी फिर मुझे पापा के साथ भारत वापस लौटना होगा। यह सुनकर अंजलि का चेहरा एक डैम से उदास हो जाता है और वह उसी उदास चेहरे से राहुल से कहती है मैंने तुम्हें बताया तो था की छह महीने तो मुझे यहाँ रहना है होगा।

आखिर ज़िम्मेदारी भी तो कोई चीज़ होती है।

और तुम यह जाने की बात बार-बार न किया करो, मेरा दिल अचानक से धक कर के रह जाता है।

अच्छा इतना प्यार करती हो मुझसे, अंजलि के मुख से उदासी हटाने के ईईए राहुल अंजलि की तरफ शरात भरी नज़रों से देखते हुए कहता है।

हाँ तो तुम्हें क्या लगता है एक तुम ही जो मुझसे प्यार कर सकते हो।

मैं भी तुमसे उतना ही प्यार करती हूँ।

हम चाहे जहां रहे राहुल हमार प्रेम अमर है

बिलकुल माँ पापा जी की तरह, मैं तुम्हारा साथ कभी नहीं छोड़ूँगी चाहे जैसे हालत हों। बस तुम हमेशा मेरा साथ देना क्यूंकि यदि तुम्हारा साथ छूटा तो मैं नहीं बचुंगी राहुल मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती।

अरे- अरे यह क्या अंजलि मैं प्यारी भरी बात कर रहा था और तुम ने तो उसे गंभीरता से लेलिया

मैं तुम्हें छोड़ के कहाँ भागा जा रहा हूँ।

बल्कि सच कहूँ तो तुम यहाँ अकेली रहती हो न तो मुझे एक दर यह भी सताता है के कहीं कोई गोरा तुम्हें अपनी झूठी मूहोब्बत और शान ओ शौकत के जाल में फंसा ले

फिर मेरा क्या होगा।

हाँ हाँ क्यूँ नहीं मैं तो एक दम बच्ची हूँ। मेरी समझ में थोड़ी न कुछ आता है।

सारी समझ तो उपर वाले ने तुम्हें ही बक्शी है क्यूँ हाइना राहुल के बच्चे ....कहते हुए अंजलि एक छोड़ा टाकिया राहुल कि ओर फेंकती है।

ओ तो अब मेरी समझ में आया कि तुम क्यूँ नहीं चाहते थे मैं यहाँ अकेले काम करूँ....

कहते कहते दोनों एक दूसरे से लिपट जाते हैं और शाम घिर आती है फिर शाम के भोजन में अब क्या बने दोनों बैठकर सोच रहे होते है। इतने में नकुल कमरे से बाहर निकल कर आता है और खाता है क्या हुआ बच्चों इतनी शांति क्यूँ है भाई

अरे पापा वहीं दूनया का सबसे मुश्किल सवाल हल करने कि कोशीश चल रही है और क्या।

ओह ह अच्छा तो तुम दोनों भी वही सोच रहे हो जो मैं सोच रहा हूँ कि आज क्या बनेगा।

हाँ देखिये न समझ ही नहीं आरहा है कि क्या बनाऊँ

एक काम करो दाल चावल बना लो तुम भारत से लायी थी न या तो पुलाव बना लो या दाल चावल कुछ भी चलेगा।

हाँ यह सही रहेगा राहुल जाओ तुम बाहर जाकर दहि ले लाओ तब तक मैं पुलाव बनाने कि तयारी करती हूँ।

हाँ ठीक है राहुल बिना कोई गरम कपड़ा पहने कि घर से बाहर निकालने वाला होता है कि अंजलि पीछे से कहती है ओ हैलो जाकेट तो पहन लो मरे हीर बाहर बहुत सर्दी होगी यह विदेश है विदेश कोई अपना इंडिया नहीं है।

कुल्फी जाम जाएगी तुम्हारी

ओ हाँ मैं तो भूल ही गया था, थैंक्स अंजु कोई बात नहीं।

नकुल अंजलि से कहता है लाओ बेटा तुम मुझे प्याज़ लहसुन देदो मैं छिले देता हूँ।

अरे नहीं पापा जी मैं कर लूँगी आप आराम कीजिये ।

अरे बेटा जी मैं आराम कर कर के थक गया हूँ। इसी बहाने थोड़े हाथ पैर तो चेलेंगे और तुम्हारी भी थोड़ी सहायता हो जाएगी तो तुम्हारा क्या जाएगा, लाओ लाओ मुझे दो तुम तब तक चावल भिगो दो

आज मैं तुम दोनों को अपने हाथ से पुलाव बनाकर खिलता हूँ।

दाल चावल और पुलाव बनाना तो मेरी माँ और सुधा दोनों ने मुझे बहुतअचे से सिखाया हुआ है।

जानती हो तुम्हारी सास यानि मेरी सुधा को मासाहार खाने का बहुत शौक था।

लेकिन मेरे चक्कर में उसने छोड़ दिया था

हलकी मैंने उससे कहा भी था कि अरे प्यार का मतलब यह थोड़ी है कि तुम अपनी पसंद न पसंद भी मेरे हिसाब से बादल लो अब तुम्हें जो पसंद है सो है उसमें क्या है बचपन से जो जैसा खाता आया है उसे वही पसंद होता है, तो जानती हो उसका जवाब क्या था,

क्या था ?

उसने कहा नहीं नकुल प्यार में कोई एसएचआरटी नहीं होती प्यार में मेरा तेरा भी कुछ नहीं होता जो होता है हमारा होता है।

फिर मुझे भी उसकी बात सही लगी लेकिन अंदर ही अंदर मुझे ऐसा लग रहा था कि सारे समझौते अकेली वह ही क्यूँ करे, तो मैंने भी अंडा खाना शुरू कर दिया था

और हम जब भी एक साथ बाहर जाते थे और कुछ नहीं तो कम से कम एक एक ब्रैड ऑमलेट तो खा ही लिया करते थे कभी कभी अंडा भुरजी भी उस दिन सुधा अपने मुंह से चाहे कुछ न कहे मगर उसके चेहरे पर एक अलग सी खुशी चालक आती थी

जो मुझे बहुत पसंद थी। कहते कहते नकुल एक बार फिर मुस्कुरा दिया।

ओह तो आप अंडा खा सकते हैं फिर तो आपको यहाँ ज्यादा परेशानी नहीं होगी।

हाँ खा तो सकता हूँ मगर सुधा के जाने के बाद में वापस शाकाहारी हो गया। तब से लेकर अब तक मैंने कुछ नहीं खाया।

मैं आप कि भावनाओ को बहुत अच्छे से समझ सकती हूँ पापा।

प्याज काटने का बहाना कर के कहीं ना कहीं नकुल कि आँखों से सुधा कि जुदाई के गम के आँसू बेह रहे थे जिनहे वह प्याज कि आड़ में छिपाना चाह रहा था

इतने में राहुल आजाता है यह लो तुम्हारा दही,

पुलाव का मज़ा न बिना दहि के नहीं आता। हाँ सो तो है मगर आज कोई ऐसा वैसा पुलाव नहीं बने वाला आज बहुत खास पुलाव खाने को मिलने वाला है तुम्हें

क्यूँ? क्यूंकी आज का पुलाव पापजी बनाने वाले हैं ।

अच्छा फिर तो आज रात का खाना बहुत ही स्वादिष्ट बनने वाला है।

हाँ तुम्हें पता था, तुमने मुझे पहले क्यूँ बताया।

अरे तो उसमें क्या है आज तो तुमको पता चल ही गया न अब जाओ सीख लो तुम्हारे काम आएगा

हाँ वो तो मैं करूंगी ही।

कुछ ही मिंटो में गरमा गरम मसाले वाले पुलाव बनकर तयार है।

जिसकी खुशबू से ही अंजलि खुशी के मारे मारी जा रही है।

खैर सब एक साथ बैठकर पुलाव का आनंद लेते हुए भोजन करते हैं।

तब नकुल अंजलि से कहता है।

बेटा जी यदि तुम बुरा ना मानो तो मैं एक बात कहूँ तुमसे, हाँ हाँ पापा जी बिलकुल कहिए न क्या बात है आप तो मेरे पापा जैसे हैं मुझे बिलकुल बुरा नहीं लेगा कहिए न क्या बात है।

बेटा मैं आज तुम्हें एक सीख देना चाहता हूँ।

कल को तुम्हारा परिवार भी बढ़ेगा तब न तुम लोग हमेशा साथ साथ बैठकर ही ही भोजन करना

चाहे जितना भी गुस्सा हो मन खराब हो कोई नाराज़ हो लेकिन खाना हमेशा साथ साथ हे खाना

क्यूंकी जो परिवार साथ बैठकर भोजन करता है सही मानो में वही परिवार कहलाता है

भोजन के साथ –साथ कई समस्याओं का समाधान निकल जाता है।

मन मुटाव मिट जाते है।

और उससे भी बड़ी बात यह कि भूख कि वजह से जो व्यक्ति गुस्से में लाल पीला हो रहा होता है।

अच्छा भोजन अर्थात प्यार से बनाया हुआ कोई भी भोजन कर के उसका गुसा भी शांत हो जाता है और भूख भी मिट जाती है...कहते हुए नकुल ज़रा सा हंस देता है।

नकुल कि बातों को ध्यान से सुन रही अंजलि मन ही मन अपनी मा को याद कर रही होती है अगर आज उसकी मा ज़िंदा होती तो वह भी उसे इसी तरह से भोजन का महत्व समझती जैसे उसे नकुल ने समझाया।

सच ही तो है भोजन बनाते समय भोजन बनाने वाले के मन के भाव भी शायद उस भोजन में उतर जाते हैं। और फिर जैसे भाव हों वैसा ही भोजन बनाता है

शायद इसलिए ही बड़े बुजुर्ग यह कहते हैं कि यदि मन और घर दोनों में शांति चाहते हो तो ग्रह लक्ष्मी को सदेव खुश रखो वह खुश रहेगी तो सारा परिवार खुश रहेगा।

वैसे बहुत हुई ज्ञान कि बातें अब यह बताओ कि क्या करना है। करना क्या है अब जिसकी जो मर्ज़ी वो वो करे आपको टीवी देखना हो टीवी देख लीजिये हालांकि हिन्दी कार्यक्र्म तो आपको अभी नहीं मिल पाएँगे। लेकिन समाचार वगैरा या फूटबाल क्रिके तो आप देख ही सकते हैं मैं जब तक बर्तन साफ कर लेती हूँ फिर सुबह ऑफिस जाने से पहले यह सब करने का मन नहीं होता। अच्छा ठीक है कहकर नकुल टीवी देखने लगता है और राहुल अंजलि कि बर्तन साफ करने में मद्द करने के लिए उसके साथ रसोई में चला जाता है

फिर दोनों जन मिल्ककर फटाफट सारे काम निपटा लेते हैं

अब क्या करें राहुल कहता है अंजु यदि मैं इसी तरह खाओ सो खाओ सो करता रहा तो बहुत जल्दी बहुत मोटा हो जाऊंगा और मैं अभी से अपना फिगर खराब करना नहीं चाहता (यू नो) इसलिए मैं बहार जा रहा हूँ टहेलने

क्या आप मेरे साथ आना पसंद करेंगी सन्यूरिटा येस ओफफ़्कौरस क्यूँ नहीं राहुल दोनों ऐसे ही मस्ती मज़ाक करते हुए बहार सड़क पर टहलने निकल जाते हैं।

अरे बाप रे ! यह क्या अंजु

क्या हुआ राहुल यहाँ तो 9 बजे से ही कैसा सनाटा छा गया यह विदेश है या गाँव इतनी जल्दी तो हमरे यहाँ रात शुरू भी नहीं होती और यहाँ देखो कहकर राहुल आंजली के सामने जान बूचकर विदेश का मज़ाक बनाने लगा।

हाँ तो यहाँ तो ऐसा ही होता है। ठंड भी तो देखो कितनी पड़ती है यहाँ, ऐसे में भला कौन बाहर घूमकर लफंटेगीरी करता फिरेगा।

अच्छा तो अब तुम्हें हिन्दुस्तानी लफेंगे ही लगने लगे

वाह क्या बात है भई वाह!!!

कितनी जल्दी असर होता है सब पर विदेशी आबो हवा का दिख रहा है।

राहुल तुम भी न कहीं कि बात कहीं भी ले जाते हो। कोई असर वसर नहीं दिख रहा है

लड़कियों के पीछे घूमते रोड साइड रोमियों कि पूरी दुनियाँ में कहीं कमी नहीं होती चाहे देश हो या विदेश, इतने में पीछे से एक मोटर सकिल पर सावर कुछ लड़के नशे में धुत ज़ोर से राहुल के पास से अँग्रेजी में कुछ गाली सी देते हुए निकल गए।

उन्हे देखकर राहुल को बहुत तेज़ गुस्सा आया लेकिन अंजलि साथ थी इसलिए राहुल चुप रहा

लेकिन मन ही मन राहुल को अंजलि कि बहुत गहरी चिंता सताने लगी

कि अंजलि अकेले कैसे संभालती है यहाँ सब कुछ राहुल का चेहरा अंजलि ने तुरंत पढ़ लिया और बोली मैं जानती हूँ राहुल तुम क्या सोच रहे हो।

इसलिए तो मैं रात होने से पहले ही घर आजाती हूँ।

कहा था ना मैंने एक औरत के लिए कहीं कुछ नहीं बदलता फिर क्या देश और क्या विदेश।

चलो हम घर चलते है पापा भी अकेले बोर हो रहे होंगे।

सोचते हुए दोनों घर आ जाते हैं।

राहुल के मन में अब भी अजली को लेकर गहन चीता व्याप्त है। थोड़ी ही देर में सब सोने चले जाते हैं।

राहुल इस असमंजस में है कि उसे यहाँ अंजलि को अकेला छोड़कर चले जाना चाहिए या नहीं,

नहीं जाएगा तो उसकी खुद की नौकरी चली जाएगी,

जाएगा तो अंजलि यहाँ विदेश में आपनों से दूर यह सब सहते हुए आखिर कब तक रह सकेगी।

एसे में वह क्या करे क्या ना करे उसकी समझ में कुछ नहीं आरहा है।

आखिर कुछ भी हो वह अंजलि से प्यार करता है और अब जब दोनों शादी के बंधन में बंध चुके हैं तब अंजलि अब उसकी पत्नी ही नहीं, बल्कि उसकी ज़िम्मेदारी भी है।

***