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अमर प्रेम - 11

अमर प्रेम

(11)

कहते कहते अंजलि हँसे जा रही है और राहुल भी उसकी हँसी देखकर खुद को रोक नहीं पाया।

अपने पापा की चुटकी लेते हुए

राहुल ने कहा सच्ची पापा मैंने आपको इतना डरा हुआ पहले कभी नहीं देखा।

बच्चों की हँसी देखकर नकुल भी हँस दिया। और मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद देने लगा

हेय ईश्वर मेरे बच्चों को सदा ऐसे ही खुश रखना।

खैर हवाईअड्डे से निकल कर दोनों घर पहुंचे ना धोकर, खाना पीना खाकर

नकुल ने एक दिन आराम करने की इच्छा प्रकट की जिसे राहुल और अंजलि दोनों ने मान लिया

अगली सुबहा अंजलि को अपने ऑफिस में रिपोर्ट करना था

इसलिए सुबह जल्दी उठकर उसने सबके लिए नाश्ता बनाया और अपने लिए टिफ़िन बनाकर

एक कागज़ फिरिज पर चिपकाते हुए निकल गयी।

जेट लेग और सफर की थकान के कारण अभी राहुल और नकुल उठे नहीं थे।

अंजलि के जाने के बाद जब राहुल की आँख खुली और वह चाय बनाने के लिए रसोई में गया। फिरिज़ से दूध निकलते वक़्त राहुल की नज़र उस चपके हुए कागज़ पर जाती है

जिसमें अंजली ने लिखा था तुम्हारे और पापा जी के लिए नशता मैंने बना दिया है।

मुझे आज जॉइन करना था तो मुझे जाना पड़ा। लंच की चिंता मत करना मैं कुछ भिजवा दूँगी।

फिर शाम की शाम को देखेंगे। लव यू।

इधर राहुल अपने और पापा के लिए चाय बनाता है और नशता गरम करके नकुल को जागता है।

पापा –पापा उठो सुबह हो गयी। नशता और चाय हाजिर है।

क्या सुबह हो गयी पता ही नहीं चला भई।

कोई बात नहीं पापा यहाँ अपने को कौन सा पहाड़ खोदना है

न मुझे ऑफिस जाना है ना आपको कहीं जाना है समय ही समय है अपने पास

आपका यदि और सोने का मन हो तो आप और सो लीजिये।

अरे नहीं अब जब उठ ही गए हैं तो सुबह की चाय की तलब तो होती ही है।

हाँ और यह बात अंजलि अच्छे से जानती है इसलिए उसने ऑफिस जाने से पहेले ही सब बनाकर रखा था।

राहुलके चेहरे पर गर्व और प्यार दोनों का भाव छलक रहा है।

जिसे नकुल ने भली भांति पढ़ लिया।

वीएच राहुल के भाव को स्पष्ट रूप से समझते हुए बड़े ही प्यार और दुलार के साथ कहता है

हाँ तो मेरी बहू है ही इतनी गुणी, बहू क्या वह तो मेरी बच्ची है-बच्ची

पापा की बातों से राहुल फुला नहीं समता और बात को बदलते हुए कहता है

घर में बैठे-बैठे क्या करेंगे चलो न पापा कहीं घूमकर आते हैं।

हाँ वो तो ठीक है बेटा पर अंजान शहर में गुम हो जाने का डर होता है और फिर यह तो विदेश है कहीं हम तुम दोनों खो गए तो।

क्या पापा आप भी कभी कभी न बिलकुल बच्चों जैसी बातें करते हो।

हम दोनों क्या बच्चे हैं जो कहीं खो जाएँगे और वैसे भी मुझे पढ़ा लिखकर आपने इस काबिल तो बना ही दिया है कि मैं इतनी अँग्रेजी तो बोल ही सकता हूँ कि किसी तरह की समस्या आने पर किसी से सहयता माँग सकूँ।

चलो आप नहा धोकर तयार हो जाओ तब तक मैं भी रैडि हो जाता हूँ। फिर चलते हैं देखें ज़रा ऐसा क्या रखा है इस विदेश में जिसके लिए हमारे देश कि जनता विदेश आने को मरी जा रही है

वो सब तो ठीक है पर हम दिन के भोजन का क्या करेंगे। वहाँ तो सकु बाई आकर बना जाती थी।

यहाँ कौन बनाएगा।

अरे अभी तो घर में राशन ही नहीं है पापा आज शाम को जब अंजलि आजाएगी तब देखेंगे।

रही बात दिन के खाने कि तो आज बाहर खा लेंगे।

बाहर हरे राम-राम यहाँ लोग तो जाने क्या क्या खाते है क्या यहाँ हमारे देश जैसी थाली वगैरा

मिलेगी क्या कहीं।

मुसकुराते हुए राहुल कहता है क्या पापा आप भी यह विदेश है यहाँ कहाँ आपको थाली मिलेगी

पर हाँ शाकाहारी तो कुछ न कुछ मिल ही जाएगा।

आखिर यहाँ भी तो कुछ लोग ऐसे होंगे ही जो पूर्ण रूप से शाकाहारी होंगे हम भी वही खा लेंगे कौन सा रोज रोज़ खाना है।

हाँ खैर यह बात तो है नकुल कहते हुए नहाने चला जाता है।

कुछ देर बाद दोनों घूमने निकल जाते हैं।

वहाँ के लोगों कि वेश भूषा रहन सहन सब कुछ दोनों को बहुत अलग लग रहा है वहाँ कि इमारते बाहर से देखने में बहुत बहुत पूरानी सी है मगर अंदर से बहुत नयी और आरामदाय चीजों से परी पूर्ण हैं। फिर चाहे वह कोई होटल हो या रहने कि जगह वहाँ के बाज़ारों में घूमते-घूमते दोनों कि आँखें कहीं विस्मित है तो कहीं सदा अब नकुल को थकान सी होने लगी है।

वह राहुल से कहता है चलो बेटा अब घर चलते हैं मैं बहुत थक गया हूँ।

नकुल कि बात सुनकर राहुल तुरंत तयार हो जाता है और माफी मांगते हुए कहता है सोर्री पापा मेरे कारण आज आपको बहुत चलना पड़ गया।

क्या करें यहाँ हमारे देश कि तरह कदम कदम अपर आटो या रिक्शा नहीं मिलता न और मैं भी कैसा पागल हूँ मुझे भी ध्यान ही नहीं रहा कि आप थक गए होंगे आपने नाश्ते के बाद से कुछ खाया भी नहीं

वैसे अंजलि ने कहा तो था कि वह वहाइन कुछ भिजवा देगी। लेकिन अब मैं उसे मनाकर देता हूँ और अब हम और आप कुछ खाकर ही घर चलते हैं इस बहाने आपका आराम भी हो जाएगा और अपनी पेट पूजा भी हो जाएगी।

अच्छा जैसा तुम ठीक समझो, राहुल अंजलि को फोन कर कहता है

अंजलि तुम घर पर कुछ मत भिजवाना मैं और पापा बाहर आए थे हम यहीं कुछ खा लेंगे।

अच्छा ठीक है।

और कुछ इधर-उधर कि बातें करके फोन काट देते हैं।

अब एक रेस्टोरेंट में बैठते हैंतब कहीं जारकर नकुल के पैरों को कुछ आराम मिलता है

अब दोनों वहाँ मेनू देख रहे होते कि शाकाहार में वहाँ क्या क्या मिल सकता है।

राहुल तो मांसाहारी भी खा लेता है लेकिन नकुल पूर्ण शाकाहारी है।

भोजन कि लिस्ट देखने के बाद राहुल वेटर को बुलाने कि यहाँ वहाँ देख रहा होता कि उसकी नज़र एक बोर्ड पर लिखा होता है (सेल्फ सर्विस) अर्थात स्वयं सेवा

तो राहुल नकुल को बताकर भोजन लेने चला जाता है। अब वहाँ सम्पूर्ण भोजन तो मिलने से रहा इसलिए राहुल शाकाहारी भोजन के नामपर दोनों के लिए सेंडविच का चयन करता है।

लेकिन उसे उस वक़्त यह पता नहीं होता कि अधिकतर वेदेशी लोग अंडे को मांसाहारी नहीं बल्कि शाकाहारी ही मानते है

तो एक संडविच को बनता देखने के बाद राहुल दूसरी सेंडविच के लिए आग्रह करता है कि

वह उसमें केवल सलाद कि सामाग्री ही डालें।

दोनों सेंडविच बनाने के बाद राहुल दोनों के लिए लाकर नकुल को देता है और बता देता है कि एक में अंडा है और एक में सलाद कि सामग्री

अंडे कि बात सुनकर नकुल को सुधा कि याद आजती है।

सुधा को भी मासाहार अत्यधिक पसंद था लेकिन नकुल से मिलने के बाद और उसके परिवार के विषय में जानने के बाद सुधा ने मासाहर खाना पूर्णरूप से छोड़ दिया था

क्यूंकी सुधा का मानना था कि शादी के बाद तुम्हारा मेरा कुछ नहीं रहता सब हमारा हो जाता है

सुधा का नकुल के लिए यह प्यार था कोई त्याग नहीं क्यूंकी नकुल ने कभी सुधा को उसकी पसंद का खाना या बनान से कोई दिक्कत नहीं थी ना ही उसकी माँ को ऐसी कोई परेशानी थी

लेकिन शुरू –शूर में दोनों ने तय किया था कि यदि मसहार खाना हे तो बाहर खाएँगे

घर में कभी कुछ नहीं बनाएँगे क्यूँ नकलूल कि माँ भी पूर्णतः शाकाहारी ही थी

लेकिन सुधा का कभी अकेले खाने का मन न हुआ और इसी के चलते उसने स्वयं ही मसाहार खाना छोड़ दिया।

अभी नकुल यह सब सोच ही रहा है कि अचानक उसे अपनी बगल वाली कुर्सी पर सुधा दिखाई देने लगती है...हँसते हुए सुधा कहती क्यूँ क्या सोच रहे हो मेरे बुढ़ऊ मुझे ही याद कर रहे थे देखो मैं आ गयी।

अच्छा सुनो तुम न विदेश में हो इसलिए यहाँ शुद्ध शाकाहारी रहने कि कोशिश मत करना हो सकता है तुम्हें यहाँ हर जगह शुद्ध शाकाहार ना मिले तो तुम अंडा तो खा ही लेना।

नहीं तो फिर अपनी जेब में ब्रेड बटर या ब्रैड गेम लेकर बच्चों कि तरह घूमा पड़ेगा कहते हुए सुधा खिल खिलाकर हंस देती है। और नकुल उसकी मोहक हंसी पर फिर क बार फिदा हो जाता है।

नकुल को मुसकुराता देख राहुल पूछता है क्या हुआ पापा आप इतना क्यूँ मुस्कुरा रहे हो यह विदेशी घाँस फूंस आपको भी रास आगया क्या? हाय...! अब मेरा क्या होगा कहते हुए राहुल भी पापा के साथ हंसने हसाने लगता है।

फिर दोनों घूमते घामते घर आजते है

तब तक अंजलि भी घर आचूकी होती है। और पूछती है दोनों से और कैसा रहा आपका पूरा दिन विदेश में आप ने क्या खाया अकेले अकेले

हाँ मेरे बिना बहुत मजे किए होंगे ना आप दोनों ने कहते कहते अंजली मुस्कुरा रही है।

नकुल ने भी उसे छेड़ने के अंदाज़ में कहा हाँ भई सौ तो है बड़े मज़े किए हमने इतना खा लिया है कि पेट फटा जा रहा है। तुम बताओ लंबी छुट्टियों के बाद आज तुम्हारा पहला दिन था ना ऑफिस में तुमहरा दिन कैसा रहा।

मेरा दिन भी बढ़िया रहा मगर दिन भर यही सोचती रही कि तुम लोगो को पता नहीं कुछ ढंग का शाकाहारी भोजन मिला भी होगा या नहीं,

पर तुम कह रहे हो कि पेट भरकर खाया तो अब में निश्चिंत हूँ।

वैसे क्या खाया आप लोगों ने विदेशी गाँस फूंस दोनों एक साथ बोलते हुए हंस दिये।

आश्चर्य वाले भावों के साथ अंजलि बोली हाँ ...! मुझे लगा ही था यहाँ पापा जी कि पसंद के अनुसार यहाँ कुछ ढंग का नहीं मिलेगा।

फिर तो आप लोगों को बहुत ज़ोरों कि भूख लगी होगी।

मैं भारत से थोड़ा सामान लायी थी अभी कुछ बना देती हूँ पोहा चलेगा, कहते हुए अंजलि रसोई में चली जाती है।

कुछ ही देर में पोहा बनकर आजता है वैसे तो सही में दोनों का पेट भरा हुआ था लेकिन इंडियन स्वाद देखकर दोनों से रहा नहीं गया और दोनो ह बाप-बेटों ने प्लेट ऐसे उठाई जैसे पोहा नहीं हीरे मोती मिल गए हों।

खाते खाते अंजलि ने राहुल से पूछा अच्छा राहुल आज तो तू थक गए हो गए कल में घर से काम कर लूँगी फिर हम चलेंगे।

राशन लाने। हाँ ठीक है वैसे भी आज पापा भी बहुत थक गए हैं।

हाँ में जानती हूँ। इसलिए तो बोला कि कल चलते हैं।

नकुल ने अब दोनों को अकेला छोड़ देना उचित समझा और आराम करने के बाहने वह अपने कमरे में चला गया।

इधर अंजलि सबकी प्लेनते उठाकर रसोई में लेजाने लगी ताकि तुरन धार रख दे

क्यूंकी विदेश में नौकर तो होते नहीं वहाँ तो सब कुछ स्वयं ही करना पड़ता है।

राहुल भी अंजलि कि सहायता करने के लिये उसके साथ रसोई में चला जाता है।

दोनों एक दूसरे की सहायता करते करते सारा काम निपटा लिया।

फिर दोनों अपने कमरे में आगए, और दिन भर की बातें करने लगे फिर अंजलि बोली अच्छा अब सुनो यहाँ न ब्रेड की कोई कमी नहीं इसलिए न अब जब भी हम लोग बाहर जाएँगे न पापा जी के लिये कुछ न कुछ बनाकर लेकर जाएँगे।

ताकि उन्हें कभी कोई परेशानी न हो हाँ यह ठीक है आज भी न पापा ने बड़े बुरे मन से खाई वो घाँस फूंस वाली सेंडविच लेकिन पता है फिर भी वो खुश बहुत थे।

ऐसा क्यूँ उन्हें भी विदेशी घाँस फूंस पसंद आ गया क्या कहते हुए अंजलि भी मुस्कुरा दी

जाने क्यूँ लेकिन चलो अच्छा ही वीएच यहाँ आकार खुश हैं यही बहुत है वेरना मुझे तो लग रहा था की कहीं पापा जी नाराज़ हुए तो तुम मुझसे कहीं ज्यादा नाराज़ हो जाओगे और मैं तुम्हें किसी भी कीमित पर नाराज़ नहीं करना चाहती फिर भी हमेशा मुझसे कुछ न कुछ ऐसा हो ही जाता है की तुम मुझसे नाराज़ हो ही जाते हो, नहीं अंजु ऐसा नहीं है।

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