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अमर प्रेम - 7

अमर प्रेम

(7)

आज मुझे ऐसा चुबन चाहिए की मैं तुम्हारे होंटो अपर अपने होंटो का रस घोलते हुए तुम्हारी रूह तक उतार जाऊँ और वह अपने जलते हुए होंट अंजलि के नर्म रसेले होंटों पर रख देता है और फिर धीरे धीरे उसमें अपनी ज़ुबान से रस घोलते हुए सपनों में खोने ही वाला होता है की ठक –ठक ठक अरे अंजलि बिटिया तयार हुई के नहीं कशा का सामी हो गया है। और पंडित जी भी आगाए हैं सभी मेहमान तुम दोनों का इंतज़ार कर रहे हैं।

दरवाजे की आवाज़ सुनते दोनों जैसे सपनों से अचानक धरा पर आ गिरते हैं और अपने आप को संभालते हुए अंजलि तुरंत दरवा खोल देती है।

चलिये न मैं तो कब से तयार हूँ। राहुल को बाद में पीछे से आने का इशारा करते हुए अंजलि चाची जी के साथ पूजा घर की ओर चल देती है।

राहुल दरवाड़े के पीछा छिपा हुआ उनके जाने की प्रतीक्षा करता है।

और उनके जाने के बाद खुद को संभालते हुए बाहर आता है दोनों कथा में बैठते हैं

मंत्र उच्चारण के साथ पूजा प्रारम्भ होती है और बड़ों के आशीर्वाद के साथ खत्म

दोनों को फिर खेल खेलने के लिए बिठाया जाता है

एक प्रांत में दूध घोल उसमें गुलाब की पत्तियाँ दाल उसमें एक अंगूठी डाली जाती है

और फिर दोनों को उस अंगूठी को ढूँढना होता है

जिसे मिली वह जीता

खेल आरंभ होता है , पीछे से आवाज़ें भाभी हारना मत भाभी...भाभी

दूसरी और से भईया–भईया की आवाज़ें आरही है

अंगूठी मिली अंजलि को तो राउल ने अंजलि का हाथ पकड़ लिया

सबने कहा यह छिटटिंग है तो राहुल बड़े गर्व से अंजलि की अनहों में अंखे डालते हुए मुस्कुराहट के साथ कहता है तो क्या हुआ अब यह हाथ भी तो मेरा ही है।

और सारा कमरा तालियों से गुजाए मान हो उठता है।

अंजलि मुसकुराते हुए अपने आँखें नीचे कर लेती है।

और समय आता है दोनों के अंदर अपने कमरे में जाने का फूलों से सजा सुंदर महकदार कमरा जो अभी कुछ देर फेले तक यूँ ही पड़ा था।

जिसे कथा के दौरान दूल्हे यानि राहुल के दोस्तों यह खूबसूरत अंजाम दिया।

अंजलि का दिल ज़ोर ज़ोर से धडक रहा है।

अंजलि को अपनी बाहों में भरने के लिए राहुल बेकरार है।

आगे क्या हुआ होगा यह तो आप सभी पाठकों को भली भांति पता ही है अब मैं अपने मुंह से क्या कहूँ।

अगले दिन सुबह बहू उठो सुबहा हो गयी। चाय लायी हूँ।

जी चाची बोलते हुए अंजलि ने बालों को सवारते और सर पर पल्लू रखते हुए दरवाजा खोला तुम दोनों चाय पिलो फिर बाहर आ जाना आज सब तुम्हारे हाथों से बना खाना खाने के लिए आतुर हो रहे हैं

जी चाची जी कहते हुए अंजलि ने उनके हाथ से चाय की ट्रे लेते हुए हाँ में सर हिलाया।

चाय की ट्रे मेज पर रखते हुए अंजलि ने राहुल को उठाया। और कमरा ठीक करने लगी।

दोनो कमरे की हालत देखते हुए एक दूजे की और देखकर हँसते हैं।

चादर ठीक करते वक़्त राहुल कहता है रुको यह चादर ठेक मत करो न इन सिलवटों में तुम्हारी खुशबू रहने दो।

चलो हटो पागल हो क्या हमारे पीछे कोई आया तो क्या सोचेगा।

क्या क्या सोचेगा नये युवा दंपति का कमरा है तो ऐसा हे होगा न

तुम भी न एक दम पागल हो छोड़ो न मुझे कमरा ठीक करने दो

ना पहेले फीस दो कैसी फीस राहुल अपने होंटो पर उंगलिए से इशारा करते हुए कहता है

अंजलि आश्चर्य भाव से धत बेशर्म कहीं क मुझे नहीं देनी है कोई फीस वीस करलो अपना कमरा खुद ही ठीक।

इतने में राहुल उस चादर को ज़ोर से अपनी और खींचता है जिसे अंजली अपने हाथ से पकड़े खड़ी थी

और अंजलि चादर समेत उसकी बाहों में आगिरती है और वो अपनी तमन्ना पूरी कर के ही अंजलि को छोड़ता है अंजलि शर्माती हुई कमरे से बाहर सीधी रसोई में चली जाती है।

राहुल पीछे से सारा कमरा ठीक कर के तयार होकर बाहर आता है

घर के अधिकतर मेहमान जा चुके हैं कुछ एक खास लोग ही वहाँ मौजूद है।

जो अंजलि से कहते हैं बेटा अब तुम्हारे हाथों से बना खाना खाने का तो हमारे पास समय नहीं है लेकिन तुम खीर बनालो तो ज्यादा अच्छा है अगले घंटे में हमारी ट्रेन है।

अंजलि हाँ तो कर देती है मगर इतने सारे लोगों के लिए कभी कुछ बनाया नहीं होता तो उसे बड़ा डर लग रहा होता है कि अब कैसे क्या करे

ऐसा नहीं है की अंजलि को खीर बनाना नहीं आती

परंतु समस्या यह है की इतनी ज्यादा मात्रा में उसे खीर बनाना नहीं आती क्यूंकि उसने कभी 2 से 3 लोगों के अतिरिक्त कभी काम किया ही नहीं पहले

आज इतने लोगों के लिए वह खीर कैसे बनाए उसे समझ नहीं आरहा था

उसने बाहर आकर चाची जी को इशारे से रसोई घर में बुलाया और पूछा की कौना सा सामान कहाँ रखा है आप मुझे बता दीजिये

चाची जी ने उसे सारा सामान निकाल कर दे दिया और जाते जाते कह गयी जल्दी करो बहू सबका जाने का टाइम हो रहा है

जी चाची जी कहते हुए अंजलि के पसीने छूट रहे थे

राहुल यह बात जानता था इसलिए उसने पानी पीने के बाहने रसोई में प्रवेश किया और अंजलि उसे कुछ बताती उसके पहले ही उसने अंजलि के मुंह पर अपना हाथ रखते हुए इशारे से कहा तुम घबराओ मत मैं हूँ न

और चावल दूध घी शक्कर सब नाप कर बाहर चला गया

राहुल की समझदारी देख अंजलि ने चैन की सांस ली और मुस्कुरा कर राहुल का शुक्रिया अदा करते हुए उसे एक फ्लाइंग किस दिया और खीर बनाने में जुट गयी

कुछ ही समय में खीर बनकार तयार थी

खीर का जायजा लेने के लिए और बहू को देखने के लिए कि उसे कुछ आता भी है या नहीं ताई जी ने रसोई में प्रवेश किया

तो क्या देखती हैं की अंजिली खीर के ऊपर मेवे सजाकर उसे परोसने के लिए ला ही रही है

उन्हें बड़ा आश्चर्य होता है

यूंकी उन्होने ऐसा सोच रखा था कि बड़े घर की लड़की क्या जाने काम काज उसने कभी किया ही नहीं होगा।

अंजलि पहले भगवान को भोग लगती है और फिर सबको खीर खिलाती है

सभी उसके हाथों से बनी खीर की खूब तारीफ करते हैं

बुआ जी तो यहाँ तक कह देती हैं की अरे इतनी संतुलती मात्रा (perfection) में तो खीर बनाना उन्हें भी नहीं आया आज तक हमेशा कुछ न कुछ कम ज्यादा हो ही जाता है

और एक बहू ने खीर बनाई है एक दम परफेक्ट न कुछ कम न ज्यादा

अंजलि राहुल की ओर देखकर मुसकुराती है

और अंजलि और राहुल दोनों को देख नकुल मुस्कुरातआ है और मन ही मन ईश्वर का ध्न्यवायद देता है की ईश्वर ने उन दोनों बच्चों को इतनी समझ दी की शादी का दूसरा नाम ही आपसी तालमेल है। ना की दो जिस्मों का बंधन।

दिन यूँ ही बीत रहे थे अब वो दिन आया जब दोनों की छुट्टियाँ खत्म होने को आयी।

अभी तक तो राहुल और अंजलि अपने प्रेमालाप मेन मग्न थे।

किन्तु अब समय अगया था की दोनों आमने सामने बैठकर अपने आने वाले कल के विषय में खुले दिलो दिमाग से बात कर लें। अभी तक तो यूं प्रतीत हो रहा था जैसे सब सही होगया है, जैसे वह दोनों असल ज़िंदगी नहीं बल्कि किसी सपने को जी रहे थे।

पर अब वक़्त है सपनों से निकल कर वास्तविकता में कदम रखने का और वास्तविकता यह है कि छुट्टियाँ खत्म होते ही अंजलि को वापस विदेश जाना होगा और राहुल को यही इंडिया में अपने दफ्तर जाना होगा।

दोनों अभी आसंजस में उलझे हुए हैं कि बात की शुरुआत कैसे करें

दृश्य बदलता है मेहमानो के जाने के बाद एक दिन राहुल अंजलि और नकुल एक साथ खाना खाने क लिए मेज पर बैठे हैं।

दोनों के चेहरों का रंग कुछ उड़ा हुआ सा है।

नकुल उनके चेहरों को देखकर समझ गया की मजरा क्या है। सभी चुप चाप खाना खा रहे हैं।

ऐसा लाग ही नहीं रहा है के तीन व्यक्ति एक साथ एक ही स्थान पर बैठें हैं।

चहरे के भावों को पढ़ते हुए, नकुल ने ही बात छेड़ी हाँ तो बच्चों आगे का क्या प्लान है तुम्हारा क्या करने वाले हो, कुछ सोचा है?

आणली तुमने क्या तय किया तुम यहीं रहोगी भारत मेन या विदेश जाना चाहती हो?

और राहुल तुम तुमने क्या सोचा है तुम अंजलि के साथ विदेश जाकर काम करोगे या यही रहने वाले हो।

भई मैं तो बस इसलिए पुच रहा हूँ क्यूंकी अब तुम दोनों की छुट्टियाँ खत्म होने को हैं।

तुम दोनों को अपने अपने काम पर लौटना होगा न।

अंजलि ने किसी तरह हिम्मत करके नकुल से कहा।

पापा अभी जब तक मेरा वहाँ का प्रोजेक्ट खतम नहीं हो जाता मैं इंडिया आकर नहीं रह सकती।

नकुल हुम्म ठीक है मैं तुम्हारी मजबूरी समझ सकता हूँ। अब भला हाथ का काम कोई कैसे छोड़ सकता है। कोई बात नहीं बेटा तुम अपना प्रोजेक्ट पूरा कर लो फिर वपास भारत लौट आना क्यूंकी बच्चे कुछ भी कहो जिस तरह “अपना घर अपना ही होता है ना “ ठीक उसी तरह अपना देश भी अपना ही होता है”

आगे तुम्हारी मर्ज़ी।

जी पापा जी,

और नकुल तुम, तुम्हारा इस विषय में क्या विचार है।

पापा अब जब अंजलि ने तय कर ही लिया है की उसे मुझे और आपको छोड़ वहीं रहना है त फिर हम और आप आर ही क्या सकते है।

एक मिनट बात काटते हुए अंजलि बीच में बोल पड़ती है।

मैंने कब कहा की मुझे तुम्हारे और पापा जी के बिना रहना है, मैंने तो बस यह कहा की जब तक मैं उस प्रोजेक्ट में मैं हूँ तब तक मुझे वहीं रहना पड़ेगा में बीच प्रोजेक्ट को छोड़कर नहीं आसकती।

हाँ तो मतलब तो वही हुआ ना,

क्या ?

दिमाग तो ठीक है न तुम्हारा तुमहाइ और मेरी बात में ज़मीन आसमान का फर्क है।

और तुम कह रहे हो कि एक ही बात है।

तुम्हारी हिम्मत कैसे हुए ऐसा सब कहने कि पापजी के सामने मुझे बुरा बनाने कि ऐसा तो मैं तुम्हारे लिए भी कह सकती हूँ।

कि चलो मेरे साथ विदेश वहीं घर बननाएंगे और अपनी ज़िंदगी को वहीं आगे बढ़ाएँ गे तो क्या तुम मान लो गए।

नहीं न ?

क्यूंकी तुम अपना देश अपना शहर अपने पापा को छोड़कर नहीं जा सकते।

फिर चाहे वह तुम्हारी मजबूरी हो या तुम्हारा फर्ज़।

उसी तरह मैंने भी तो यही कहा कि मेरी भी मजबूरी है मैं भी ऐसे यूं अचानक सब कुछ छोड़-छाड़ के नहीं आसकती अब तुम जो चाहे समझो मेरी बाला से।

हाँ हाँ क्यूँ नहीं बहुत अच्छे से जानता हूँ मैं तुम्हारी मजबूरियाँ।

क्या मतलब है तुम्हारा अंजलि ने गुस्से से तिलमिलाते हुए कहा ।

बीच में नकुल दोनों को चुप कराते हुए खड़ा हो जाता है।

चुप बिलकुल चुप अब बस भी करो तुम दोनों यह मत भूल को अभी-अभी तुम्हारी शादी हुई है

कोई सुनेगा तो क्या कहेगा कि शादी हुए अभी चार दिन भी नहीं हुए और यह लोग झगड़ने भी लगे।

एक बात कान खोल कर सुन लो तुम दोनों इस विषय में जो कुछ भी करना है वह तुम दोनों को ही करना है इसलिए बेहतर यही होगा कि साथ बैठकर शांति से बात करो तुम दोनों कि कौन क्या चाहता है।

लड़ाई झगड़ा यह गली गलौच मुझे ज़रा भी पसंद नहीं है।

कहते हुए नकुल थाली छोड़कर उसे प्राणम कर अपने कमरे में चला जाता है और दरवाज़ बंद कर लेता है।

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