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अमर प्रेम - 3

अमर प्रेम

(3)

तभी सहसा काँच के टूटने की आवाज़ से नकुल की तंद्रा टूट जाती है और वह देखता है कि सुधा की वह तस्वीर जिस पर चंदन का हार टंगा हुआ था ज़मीन पर पड़ी है और उसका काँच टूटा हुआ है। जिसे देखकर नकुल के मन में विचार आता है कि शायद उसे यह एहसास दिलाने के लिए ही सुधा अब तक खुद अपनी ही तस्वीर में एक व्याकुल आत्मा के रूप में क़ैद थी और आज जब नकुल उसकी आत्मा की आवाज़ को सुन सका, महसूस कर सका, तो जैसे उसे मुक्ति मिल गयी। यह सब सोचते हुए नकुल अपने काँपते हाथों से उस तस्वीर को उठाते हुए देखता है, तो उसकी आँखों से बह रहे आंसुओं की दो बूंदें सुधा की उस तस्वीर पर भी टपक जाती है। "टप टप" और तब वह सुधा की उस तस्वीर से माफ़ी माँगते हुए उसे गले से लगा कर रो देता है।

मगर ज़िंदगी कहाँ रुकती है सुधा की याद में उसकी आत्मा की शांति क लिए नकुल एक बार फिर घर में शांति पाठ रखवाता है। शांतिपाठ में आए परिजन नकुल को सलाह देते हैं कि अब राहुल बड़ा होगया है साथ ही अपने परों पर भी खड़ा हो चुका है, अब समय अगया है एक मकान को दुबारा घर बनाने का तुम राहुल से बात क्यूँ नहीं करते, यदि वह विवाह के लिए राजी हो तो अब उसका विवाह कर दो।

अरे घर में बहू आजाएगी तो उसका मन भी घर में लगने लगेगा, घर में चहल पहल रहेगी तो तुम्हें भी अच्छा लगेगा।

नकुल को भी बात समझ में आती है और वह तय करता है कि आज शाम को ही राहुल के घर आने पर वह उससे इस विषय में बात अवश्य करेगा।

शाम होते ही जैसे नकुल की आंखे घड़ी में अटक क रह जाती है और वह बड़े ही उतावले पन के साथ राहुल के घर आने की राह देखने लगता है

राहुल के विवाह को लेकर नकुल इतना उत्सुक है कि उसे ऐसा महसूस हो रहा है जैसे राहुल के आते ही वह उससे पूछेगा और राहुल तुरंत विवाह के लिए मान जाएगा और जैसे लड़की तो हाथ में ही रखी है कि इधर राहुल ने हाँ कहा और उधर शादी हो भी गयी।

लेकिन वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं है। लड़की देखना तो दूर आज से पहले तक तो नकुल ने राहुल क विवाह के विषय में सोचा तक नहीं था।

वह तो आज लोगों के समझने पर उसे ख्याल आया कि ठीक ही तो है, अब राहुल को विवाह कर लेना चाहिए।

खैर ऐसा सब सोचते विचारते किसी तरह शाम के सात बजते है और राहुल की गाड़ी की आवाज आते ही नकुल का चेहरा खिल उठता है।

राहुल हर बार की तरह सामान्य भाव से प्रवेश करता है किन्तु पिता के चहहरे पर रोज़ से कुछ अलग भाव देखते हुए पूछता है, क्या बात है पापा आज आप बड़े खुश दिखाई दे रहे हैं।

नकुल कहता है हाँ बेटा बात ही कुछ ऐसी है।

राहुल ने कहा अच्छा तो फिर मुझे भी बताइये ऐसी क्या बात है मैं भी ज़रा खुश हो लूँ।

हाँ हाँ क्यूँ नहीं लेकिन ऐसे नहीं तू जल्दी से हाथ मुंह धोकर आजा खाना खाते खाते बात करेंगे। नकुल राहुल से ऐसा कहते हुए रसोई घर की और चला जाता है।

अच्छा ठीक है जैसी आपकी मर्ज़ी कहते हुए राहुल अपने कमरे की और मुड़ जाता है

जल्द ही दोनों बाप-बेटे अपनी अपनी थाली के साथ खाने की मेज पर नज़र आते हैं।

तब नकुल राहुल से पूछता है। तूने कभी किसी लड़की से प्यार किया है क्या

यह सुनते ही राहुल को ज़ोर से ठसका लगता है और वह पानी पीते हुए पूछता है क्या पापा आप भी न, शर्म से लाल राहुल के चहरे से उसकी चोरी पकड़ी जाती है और वह आंखे नीची किए कहता है पापा मैं आप से इस विषय में बात करने ही वाला था।

यह सुनते ही बिना कुछ आगे जाने सुने जैसे नकुल खुशी क मारे पागल हो जाता है और खुशी में सुधा की तरह गाते हुए बोलता है “ले जाएंगे ले जाएँगे दिलवाले दुलहनियाँ ले जाएँगे।“

राहुल बिना कुछ बोले अपने पापा को इतना खुश देखकर उनकी खुशी में शामिल होकर मस्ती में खुद भी गाने और नाचने लगता है।

दृश्य बदलता है और नकुल राहुल से कहता है बेटा यदि तू बुरा न माने तो क्या आज मैं तेरे साथ तेरे कमरे में सो जाऊँ

राहुल खुले दिल से पापा का स्वगत केरते हुए कहता है

हाँ हाँ पापा क्यूँ नहीं मुझे भी आपसे अंजलि के विषय में कुछ बात करनी है।

दोनों बाप बेटे बत्ती बंदकर बिस्तर पर लेटे छत को देखते हुए बतियाँना आरंभ करते है।

कब से जानते हो राहुल तुम उसे ?

पापा वो और मैं कॉलेज में साथ पढ़ा करते थे और अब भी हम साथ में एक ही ऑफिस में काम करते हैं। हम दोनों एक दूसरे को बहुत अच्छी तरह जानते हैं।

अच्छा तो लड़की नौकरी करती है।

हाँ पापा क्यूँ आपको कोई एतराज है।

अरे नहीं पगले मुझे क्यूँ एतराज होगा, तेरी माँ भी तो नौकरी वाली ही थी। मगर मेरे परिवार की खुशी के लिए उसने नौकरी छोड़ दी थी। लेकिन मैं ऐसा नहीं करूंगा मुझे कोई आपत्ति नहीं है बस तुम दोनों खुश रहो भला मुझे इसके अतिरिक्त और क्या चाहिए। मैं तो बस इतना ही चाहता हूँ के बहू क आने से अपना यह मकान एक बार फिर मकान से घर बंजाये। मेरे बाद तो वैसे भी यह सब कुछ तुम्हारा ही है। किन्तु मैं बस इतना चाहता हूँ की मेरी आखरी सांस इसी घर में टूटे क्यूंकी तेरी माँ ने बड़े अरमानो से इस घर को सजाया था, अपने मधुर व्यवहार से इस घर को महकाया था उसकी यादों का बसेरा है यह घर और मैं किसी भी कीमत पर यह घर छोड़ना नहीं चाहता।

यह आप कैसी बातें कर रहे हो पापा क्या मैं नहीं जानता की माँ को कितना प्यारा था यह घर आज जब वह नहीं है तो आपके लिए कितना अनमोल है यह घर, आप चिंता न करो हम सब यहाँ हंसी खुशी के साथ एक साथ रहेंगे। यूं भी अंजली का स्वभाव बहुत कुछ माँ के जैसा ही है, इसलिए शायद मुझे उससे प्यार हो गया।

अच्छा तब तो बड़ी अच्छी बात है।

हाँ पापा मैं जल्द ही आपको उसे मिलवाऊँगा।

हाँ बेटा तूने तेरी माँ का नाम लेकर मुझे और भी उत्साहित कर दिया है मैं भी जल्द से जल्द अंजली से मिलना चाहता हूँ।

हाँ पापा क्यूँ नहीं लेकिन अब बस बहुत रात हो गयी है अब आप सो जाइए नहीं तो फिर आपकी तबीयत बिगड़ जाती है।

अगले दिन सुबह रोज़ की तरह गुजरती है लिकिन आज की सुबह में एक आशा की नयी किरण की मिठास है। एक अजब सी उजास है। दिन बीते रिविवार आया।

राहुल अपनी अंजलि के साथ अपने घर आया और बोला पापा यह है अंजिली जिसके बारे में मैंने आपसे बात की थी।

ओह हो अच्छा यह है अंजिली आओ बेटा आओ ऐसा कहते हुए नकुल ने बड़े प्यार से अंजली का स्वागत किया।

अंजिली ने भी बड़ी शालीनता और संस्कारों के साथ नकुल के पैर छूये।

नकुल को समझ नहीं आरहा था की वह क्या कहे, क्या पूछे कुछ दो चार घिसे पिटे सवालों को पूछकर नकुल ने अंजिली और राहुल की शादी के लिए हामी भर दी। और जल्द ही उसके माता-पिता से मिलने आने के लिए कहा।

परंतु कोई बात थी जो नकुल को मन ही मन कचोट रही थी। रहरह कर उसके मन में राहुल की कहीं बात गूंज रही थी की अंजलि का व्यवहार बहुत कुछ माँ जैसा है किन्तु नकुल को अंजलि में सुधा की कोई झलक नहीं दिखाई दी फिर राहुल ने यह कैसे कहा की अंजलि में माँ की झलक है इसलिए उसे उस से प्यार होगया। नकुल ने इस विषय में राहुल से ही बात करना उचित समझा और की भी तब नकुल को राहुल द्वारा यह सुनने को मिला कि

पापा आप भी न मेरी शादी क लिए कुछ अत्यधिक ही उत्सुक हैं इसलिए आपको लगता है की पल भर में ही सब हो जाए। अंजिली आपसे पहली बार मिली थी इसलिए शायद कुछ वह सकुचाई थी और कुछ आप भी सहज महसूस नहीं कर रहे थे। तो वह आपसे खुलकर बात नहीं कर पायी। एक बार आप लोगों के बीच खुलकर बातचीत शुरू होजाए, फिर देखना आप, मुझे तो कई बार ऐसा लगता है कहीं आप दोनों मिलकर मुझे अकेला ही न छोड़ दो।

अच्छा तुम कहते हो तो ठीक होगा फिर न जाने क्यूँ मेरे मन में शंका सी आई इसलिए सोचा तुम से बात कर लेना ही अच्छा होगा।

खैर छोड़ो यह बताओ तुम लोगों ने क्या सोचा है, अभी शादी करना चाहते हो यह थोड़ा और समय चाहिए।

नहीं पापा नकुल मुसकुराते हुए बोला हम तैयार हैं आप बस अंजली के माता-पिता से एक बार मिल लीजिये।

हाँ हाँ क्यूँ नहीं मैं इस रविवार को ही उनसे मिलना चाहता हूँ तुम अंजलि को बता देना। ठीक है ! पापा की यह बात सुन राहुल खुशी से झूम उठा और उसने तुरंत अपना सेल फोन निकाल कर अंजलि को यह खुशखबरी दे डाली।

अंजलि भी यह सुनकर खुशी से झूम उठी।

सभी को इस रविवार का बेसबरी से इंतज़ार था। आखिर वो दिन आ ही गया जब राहुल के पिता अंजलि क घर राहुल का रिश्ता लेकर पहुंचे।

वहाँ जाकर जब उन्होने यह देखा की अंजलि एक बहुत ही बड़े घर से है, तो उनका मन जरा ठिटका की इतने बड़े घर की लड़की क्या मेरे साधारण से घर की बहू बनकर रह पाएगी।

दूजा विचार उनके मन में आया की यदि अंजलि इतने बड़े घर से संबंध रखती है तो फिर वह मेरे बेटे के साथ साधारण सी नौकरी क्यूँ करती है।

उसे भला पैसे की क्या कमी है।

फिर ऐसी क्या वजह हो सकती है, जो इतने बड़े और पैसे वाले घर की बेटी होने के बावजूद उसे नौकरी करनी पड़ रही है।

विचारों की इस उथल पुथल ने नकुल के चेहरे की सारी रंगत उड़ा के रख दी थी।

उसे समझ ही नहीं आरहा था कि वह किस तरीके से अपने बेटे राहुल के लिए इतने बड़े घर की बेटी का हाथ माँगेगा।

कहाँ अंजलि के पिता उस शहर के इतने बड़े उद्योगपति और कहाँ नकुल (आई.टी) कंपनी का एक साधारण सा रिटायर्ड कर्मचारी।

जिसे पेंशन तक नहीं मिलती। और फिर राहुल भी तो यही करता है। अंजली भी यही करती है ऐसे में यह रिश्ता कैसे होगा।

क्यूँ कोई बाप अपनी बेटी का हाथ किसी ऐसे परिवार में देने के लिए तयार होगा जो उनके जीवन से ज़रा भी मेल ना खाता हो।

ऐसे हजारों सवाल मन में लिए जब नकुल अंजली के पिता क सामने पहुंचा

तो अंजलि के पिता ने नकुल का स्वागत बड़े ही सम्मान से आदर पूर्वक तरीके से किया जैसा की एक लड़की वाला अक्सर एक लड़के वाले से करता है।

यह सब देखकर नकुल हैरान रह गया। उसे लगा था कि अंजलि के पिता इतने बड़े आदमी हैं की उसे उनके सामने बहुत ही झुककर व्यवहार करना होगा। किन्तु वह इतने ज़मीन से जुड़े हुए व्यक्तित्व के धनी होंगे ऐसा उसने लेश मात्र भी ना सोचा था।

अंजलि के पिता ने नकुल को बैठने के लिए कहा और अपना परिचय देते हुए बोले जी मेरा नाम दीना नाथ है और मैं अंजली का पिता हूँ। उसने मुझे आज सवेरे ही बताया कि आप लोग आज शाम को आने वाले हैं राहुल से तो मैं कई बार मिल चुका हूँ, बढ़ा ही होनहार है आपका बेटा , वैसे मेरी बेटी भी कम नहीं है।

हाँ घर क काम काज में अभी ज़रा कच्ची है लेकिन समय के साथ सब सीख जाएगी। राहुल को तो अंजलि के विषय में सब पहेले ही पता है। मैं और अधिक क्या कहूँ अब बिन माँ कि बच्ची को मैं जितना सिखा पढ़ा सकता था, उतना तो मैंने उसे सिखाया ही है।

बिन माँ कि बच्ची हाँ क्यूँ अंजलि ने आपको बताया नहीं और राहुल तुमने भी अपने पिता को यह नहीं बताया कि अंजलि कि माँ इस दुनिया में नहीं है। राहुल कि आंखे नीची हो जाती हैं।

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