chintu - 23 books and stories free download online pdf in Hindi

चिंटू - 23

रात में बेला सुमति को अपने साथ सोने के लिए ले जाती है। अभी दोनों बाते ही कर रही थी। बेला सुमति से पूछती है- चिंटू कैसा लड़का है?
सुमति- अच्छा लड़का है, क्यों?
बेला सुमति का दिमाग टटोलने की कोशिश करती है- जी मुझे.. वो.. अच्छा लगता है।
सुमति हैरानी से उसे देखती है। उसके मन में आया कि एक जोरदार लप्पड़ लगा दे उसके मुंह पर। फिर तुरंत ही सोचती है,' इससे मुझे क्यों फर्क पड़े? फर्क तो रिया को पड़ना चाहिए।' वो उसकी गर्लफ्रेंड है, मै नहीं। पर मै क्यों नहीं हुं उसकी गर्लफ्रेंड? और मै पुनिश के साथ क्यों हुं जबकि मै उसे प्यार भी नहीं करती। क्या यही लिखा है मेरे भाग्य में?
बेला उसे सोच मै डूबा देख कहती है - किस सोच में पड़ गई?
सुमति- कुछ नहीं।
बेला- अच्छा ये बताओ, तुम कहती हो तुम चिंटू को बचपन से जानती हो।
सुमति- हां, जानती हु।
बेला- तो तुम्हे उससे कभी प्यार नहीं हुआ?
सुमति- प्यार है न। दोस्ती वाला प्यार।
बेला- दोस्ती वाला या...।
सुमति- सो जाओ रात बहुत हो चुकी। कल जल्दी भी उठना है।
बेला- क्यों?
सुमति- क्यों तुम हमे अपने गांव नहीं ले जानेवाली?
बेला- अरे हां, मै भूल ही गई।

****
अगले दिन पुनिश इंस्पेक्टर के साथ निकल पड़ता है अपनी सौम्या को ढूंढने। और चिंटू और उसके साथी निकल पड़ते हैं एक गांव की ओर। चिंटू ने एक हाथ में एक नुकीली लकड़ी का टुकड़ा आ गया था। वह उससे ही पेड़ो पर एक लकीर कि तरह निशान किए जा रहा था। वह और उसके साथ चल रहा दिग्विजय का आदमी पीछे चल रहे थे। उस आदमी की नजर से बचकर वह निशान बनाए जा रहा था। इवान के साथ एक आदमी था और सुमति के साथ बेला। हां पर उन सबके हाथ खुले हुए ही थे। किसीको बांधा नहीं गया था। इवान बार बार कोई न कोई बात निकालकर बेला से बात करता रहता था।
इवान- बेला जी अब तो आपकी उम्र हो गई है तो शादी नहीं करनी?
बेला हंसते हुए- करूंगी न। क्यों नहीं करूंगी? पर कोई ढंग का लड़का भी तो मिलना चाहिए न।
इवान- अरे... आस पास नजर करो, कोई न कोई मिल ही जाएगा।
सुमति और चिंटू समज रहे थे वो क्या कहना चाहता था।
इवान- अभी कितनी दूर तक चलना है?
बेला- दो घंटे।
इवान- क्या?? दो घंटे? मै तो थक गया। कुछ देर आराम करके चले? भूख भी लगी है। वो आंटी ने खाना बनाकर दिया है उसमे से थोड़ा खाले? देखो अब तो धूप भी निकल आईं है।
बेला- ठीक है। हीरा भैया आप इन्हे साथ लाया हुआ खाना परोस दे। और मोहन भैया आप इन लोगो पर निगरानी रखे। कोई चालाकी करे तो... समज गए न?
मोहन- हां, बहना। समज़ गया।
इवान उन दोनों की बात सुनकर पूछता है- क्या समज गए भाई। हमे भी तो बताओ।
मोहन- ज्यादा होशियारी करी तो गोली से उड़ा दूंगा।
इवान- बेला जी ये क्या कह रहे है? गोली और मुझे? मेरा मतलब हमे?
बेला- बाबा का हुक्म है। मै इस में कुछ नहीं कर सकती।
इवान- ऐसा मत बोलो यार। तुम्हारे लिए ही तो आया हूं साथ।
बेला- क्या??
इवान- मेरा मतलब तुम सब साथ आ रहे थे इस लिए तो आया हुं अभी। नहीं तो मै इतना चल ही नहीं पाता।
चिंटू पीछे से कहता है- मोटे अपना वजन कम कर फिर चल सकेगा।
इवान- मोटा? किस एंगल से मै मोटा लग रहा हुं।
यह सुन हीरा भी बोल पड़ता है- किस एंगल से नहीं लग रहे? चरबी के थर लग गए है तेरी तोंद पे। और अपने आप को मोटा नहीं मानता।?
इवान का मुंह यह सुन बिगड़ जाता है। वह कहता है- ठीक है, ठीक है। कहलो जो मर्जी आए। पर इस वक्त मै बिल्कुल नहीं चलनेवाला। मुझे भूख लगी है।
चिंटू- इसे खाना दे दो वरना कहीं बेहोश हो गया तो इसे कौन उठाएगा।
उसकी बात पर हंसते हुए मोहन अपने थैले से खाना निकालकर सबको दे देता है। साथ में वो और हीरा भी थोड़ा खा लेते है।

खाने के बाद वे फिर से चलने लगाते है। इस बार इवान बेला के साथ हो लेता है। उसके पीछे हीरा और मोहन थे और आखिर मै चिंटू चल रहा था। हीरा और मोहन को पता चल गया कि ये लड़का अपने साथी को छोड़कर भागनेवाला नहीं है। चिंटू पीछे पीछे पेड़ो पर निशान बनाते हुए गीत गुनगुनाता है, ' ये मोह मोह के धागे, तेरी उंगलियों से जा उलझे'। यह गीत वह सुमति के लिए ही गा रहा था।
उसे सुन सुमति पीछे मुड़कर कहती है- ये गाने का शोक कहा से पाला है?
चिंटू- जबसे तुम गई हो।
सुमति- अच्छा? रिया को सुनाते हो क्या गाने?
चिंटू- उसे तो पता तक नहीं के मै गा भी लेता हुं।

सुमति फिर धीरे से चिंटू के साथ चलने लगती है। अब वे दोनों को बीच मै रखकर हीरा उन दोनों के पीछे चलने लगता है और मोहन सबसे आगे चलता है। इवान को अब बेला से बात करने का मौका मिला था जो वह गवाना नहीं चाहता था।
इवान बेला से कहता है- बेला जी आप कभी गई है कहीं पे लूट चलाने? मेरा मतलब किसी जमीनदार के यहां?
बेला- ऐसा मौका नहीं आया अब तक। बाबा या मां कभी ऐसा नहीं चाहेंगे उसकी बेटी बाहर जाए। ये काम के लिए मेरे भाई काफी है।
इवान- ओह..., अच्छा है। (फिर मन में ही बोलता है,- अच्छा है शादी के बाद घर पर हाथ साफ नहीं करेगी ?)
बेला- तुमने ऐसा क्यों पूछा?
इवान- बस ऐसे ही।
हीरा अब थकने लगता है। वह कहता है- अबे जल्दी चलो यार। कितना धीरे चलते हो तुम लोग।
तो चिंटू कहता है- हम थोड़े आपके जैसे है जो फटाफट चलने लगे। हमे आपके जितना एक्स्पीरियंस नहीं है ऐसे रास्तों पे चलने का।
मोहन- हा ठीक है, ठीक है। अब मुंह बंद रखो और पैर जल्दी चलाओ।
इवान- बिना बोले इतना लंबा रास्ता कैसे ख़तम होगा भाई? पहले बता दिया होता तो मै आता ही नहीं। चल चलकर दो किलो वजन तो कम हो ही गया होगा।?
सुमति भी अब तो थक गई थी। वह बेला से पूछती है और कितना दूर है?
बेला जवाब देती है- बस थोड़ी ही देर।
सुमति- तुम्हे रास्ता कैसे याद रहता है बेला?
बेला- बस रहता है। अब हमे थोड़ा जल्दी चलना होगा। मौसम कुछ बदल रहा है। अगर बारिश हो गई तो मुश्किल होगी।

सबने थोड़ी स्पीड से चलना शुरू किया और गांव पहुंच गए। गांव में वे सीधे बाज़ार में चले गए। बेला का मन था अपने घर को देखने जाने का। पर वह कुछ बोली नहीं। इवान को लगा बेला कुछ व्याकुल लग रही है तो वह इसे पूछता है- बेला जी आप कुछ परेशान लग रही है?
बेला के बदले हीरा जवाब देता है कि यह इसका गांव है। पुरानी यादें जुड़ी है यहां से। परेशान तो होगी ही बेला बहन।
बेला- नहीं नहीं ऐसा कुछ नहीं है। चलो कपड़ों कि दुकान की ओर चले।
सुमति और चिंटू साथ साथ चल रहे थे। चिंटू बेला से पूछता है- तुम्हारे गांव का नाम क्या है?
बेला- संग्रामपुर। वो देखो सामने मेरे बचपन की सहेली रानी आ रही है।

बेला खुश होते हुए रानी से मिलने चली जाती है। रानी का ध्यान बेला पर पड़ते ही वो भी सीधे दौड़ ही लगा देती है। दोनों एक दूसरे को गले लगा लेते है। गांव वाले भी बेला को देख खुश होते है। एक बुजुर्ग उसे अपने पास बुलाकर कहते है- दिग्विजय सरदार कैसे है। तुम्हे अच्छे से रखते तो है न?
बेला (बुजुर्ग के पांव छुते हुए)- हा दादाजी! वो बहुत अच्छे से रखते है मुझे। बिल्कुल अपनी बेटी बनाकर।
बुजुर्ग- वे तो भले इंसान है ही। तुम उसकी छत्र छाया में सुरक्षित ही रहोगी।
रानी बेला से पूछती है- तुम यहां कैसे? और ये सब कौन है?
बेला- हीरा भैया और मोहन भैया को तो तुम जानती ही हो। और ये बाबा के महमान है। उन्हे यहां नए कपड़े दिलवाने आए है।
रानी- अच्छा तो इन सब को कपड़े लेने दो और तुम मेरे साथ आओ घर पे। बहुत बाते करनी है तुमसे।
बेला- माफ़ करना रानी हमे वापस भी जाना है। और मौसम के हालत भी कुछ ठीक नहीं लग रहे। मै फिर कभी आ जाऊंगी।
रानी- अच्छा तो तेरे घर तो जाएगी न। उसकी चाबी मै अभी लेकर आती हूं।
बेला के कुछ बोलने से पहले ही रानी वहा से चली जाती है। गांव छोड़ते वक्त बेला ने अपना घर बंद करके उसकी चाबी रानी को दी थी। जब कभी आने का मौका मिले तो वो वापस अपने घर आ सके।
बेला सबको लेकर एक दुकान पर चले जाती है। दुकान में जाते ही बाहर धीमी धीमी बूंदाबूंदी शुरू हो जाती है।
सुमति- आसमान पूरा बादलों से घिर गया है। लगता है बारिश जमके होगी। हम जल्दी से कपड़े खरीद लेते है और वापस चलते है।

हीरा और मोहन दुकान के बाहर ही खड़े रह गए बाकी सब खरीददारी करने में व्यस्त हो गए।
बेला- यहां शहर जैसे कपड़े तो नहीं मिलेंगे पर...
सुमति- कोई बात नहीं, जो मिलेगा वहीं काफी है। वो क्या है कि मुझे घाघरा चोली पहनने कि आदत नहीं है। तो ...
बेला- समजती हुं। यहां पसंद न आए तो हम दूसरी जगह भी देख सकते है।
सुमति- यहां अच्छे ही है। एक बार देख ले फिर तय करते है।
बेला- चिंटू जी आप अपने लिए कपड़े देखने जा सकते है। यहां लड़कियों के ही कपड़े मिलते है।? यहां खड़े रहकर क्या करेंगे?
इवान- नहीं नहीं साथ ही चलते है। आपकी पसंद भी तो जानने को मिले।?
सुमति- तु जा न यार। जल्दी से निकलते है खरीददारी करके। आधे रास्ते पहुंचते मौसम खराब हुआ तो चलना मुश्किल हो जाएगा।
चिंटू- तुम ठीक कह रही हो। हमे जाना चाहिए इवान, चल यहां से।
बेला हीरा और मोहन को उनके साथ भेजती है।

इवान एक दुकान में खड़े कपड़े देख रहा है। वह चिंटू से कहता है- यार इसका कपड़ा तो देख। इसे पहनने में मजा नहीं आएगा।
चिंटू- कोई बात नहीं। तुम इन लोगो के कपड़े पहन लेना। मुझे तो अपने नाप के कपड़े मिल गए है।
इवान- अरे ठहर जा, ले लेता हुं यहां से। इनके कपड़े मै तो डाकू वाली फिलिंग आती है मुझे यार। क्या पता मै भी किसीको किडनैप कर लूं।
चिंटू- सोचना भी मत। वरना यही गोली खाकर जान गवाएगा।
मोहन उन दोनों से कहता है- अगर तुम दोनों का हो गया हो तो चलो यहां से।
इवान- हा मोहन भाई हो गया। गुस्सा मत करिए। आपको खरीदने है कपड़े तो ले लीजिए। पैसे हम दे देंगे।
मोहन- हमे नहीं चाहिए। अब चलो यहां से।?

बेला और सुमति भी बाहर आ गए। इवान के साथ सभी बाहर आ गए थे। इतने में रानी भी वापस आ गई थी। चिंटू सुमति को इशारा करके अपने पास बुलाया है। सुमति धीरे से इवान से बाते करते करते चिंटू के पास चली जाती है। वह इशारे से पूछती है- क्या बात है?
चिंटू धीरे से जवाब देता है- कुछ भी करके हमें यहां रुक जाना है।
सुमति- क्या? पर कैसे..?
चिंटू- सोचो कुछ।
सुमति- सोच लिया।
चिंटू- क्या?
सुमति- देखते जाओ।
सुमति अचानक से पेट में दर्द होने का नाटक करती है। उसकी हालत देख बेला ने फैसला लिया कि वो कुछ देर के लिए अपने घर पर सुमति को आराम करा दे। वैसे भी अभी दोपहर ही हुई है। एक घंटे बाद निकलेंगे तो भी शाम होने तक वापस पहुंच जाएंगे।
उसने मोहन से कहा- भैया इस लड़की की हालत अभी ठीक नहीं है। रास्ते में कुछ हो गया तो हम न यहां के रहेंगे न वहां के। हम थोड़ी देर मेरे घर पर चलते है। रानी घर की चाबी ले ही आई है तो कुछ देर आराम करके निकलेंगे।
मोहन- जैसा तुम ठीक समजो। हीरा इन दो लड़कों को संभलकर ले जाओ मै अभी आता हुं।
हीरा- पता है मुजे तुजे कहां जाना है।?
दरअसल मोहन की प्रेमिका इसी गांव में रहती है। वह उसे है मिलने जा रहा है। मोहन को पता नहीं था अपनी प्रेमिका को मिलने का मौका मिलेगा या नहीं। पर इस लड़की के पेट दर्द की वजह से उसे यह मौका मिल गया। वह मन ही मन उस लड़की को धन्यवाद देता हुआ चला गया।

बेला ने जब घर का दरवाजा खोला तो घर बहुत गन्दा पड़ा हुए था। जगह जगह धूल जम गई थी। रानी ने खेद जताते हुए कहा- माफ़ करना बेला पर घर साफ करने का मुजे सुजा ही नहीं। मुझे लगा अब तुम कभी वापस नहीं आओगी।
बेला- कोई बात नहीं, अभी ठीक किए देते है। सुमति, चिंटू आप सब कुछ देर बाहर बैठे। मै और रानी अभी घर में झाडू लगा देते है। फिर पास के कुएं से पानी ले आएंगे।
सुमति- चलो मै भी तुम्हारी मदद करती हुं।
बेला- अरे नहीं नहीं, तुम्हे पेट दर्द है। तुम आराम से बैठो।
सुमति को याद आया 'ओह गॉड मै तो भूल ही गई थी।' वह चिंटू के सामने देखती है। चिंटू उसे आंखे निकालकर डांटता है। इन सब में इवान ही बोल पड़ा- तुम रह ने दो सौम्या, मै हुं न।
बेला- ओ शाहरुख खान, तुम रहने दो। गांव की लड़कियों के मुकाबले तुम काम नहीं कर पाओगे। चल रानी सफाई शुरू करे। अच्छा रानी, तु चाची को बताकर आई है न?
रानी- मा- बापू पास के गांव में बुआ के घर गए है। वह बीमार पड़ गई है तो वे दोनों आज वहीं रुकनेवाले है।
बेला- अरे वाह तो तो जल्दी जल्दी घर साफ कर देते है। फिर हमे निकालना भी है।

बेला और रानी फटाफट काम करने लगे। बीस मिनट में पूरे घर में झाडू पोछा लगा दिया। तिजोरी से साफ चद्दर निकालकर बिछाने पर लगा दी। रानी कुएं से पीने का पानी भी भर आईं। फिर सब अंदर आकर बैठे। मोहन अभी वापस नहीं आया था। सब साथ में लाए हुए खाने के डिब्बे खोलकर बैठ गए खाने। बाहर अब आसमान पूरी तरह बदल चुका था। बूंदाबूंदी ने धीरे धीरे बारिश का रूप ले लिया।
बेला- बाप रे! ये बारिश तो बढ़ती ही जा रही है। हम वापस कैसे जाएंगे। अगर नहीं गए तो बाबा परेशान हो जाएंगे।
हीरा- ऐसा करता हुं, मै चला जाता हुं। आप सब यही रुक जाईए। बहन इन सबको बांधकर ही बिठाना। कहीं भाग न जाए।
बेला- पर मोहन भैया अभी वापस नहीं आए है। उसे सलाह मशवरा कर लेते।
हीरा- कोई बात नहीं, वह समज जाएगा।
रीना पास में पड़ा छाता लेकर कहती है- हीरा भैया ये छाता लेते जाओ।
हीरा- रहने दो बहन हमे बिना छाते घूमने की आदत है। और क्या पता बीच रास्ते बारिश बंद भी हो जाए।
रीना- फिर भी लेकर जाईए। हमारी तसल्ली के लिए।

हीरा वापस अपने अड्डे पर जाने के लिए निकलता है। आधे घंटे बाद मोहन वापस आता है। हीरा को न देखकर वह बेला से पूछता है- हीरा कहीं दिखाई नहीं दे रहा।
बेला- वह हमारे ठिकाने पर चले गए। बारिश होने के कारण हम कल तक यही रुकेंगे।
यह सुनकर मोहन का दिल गार्डन गार्डन हो गया☺️। अब वह कल तक अपने प्यार से मिल सकता था। उसने कहा- पर हम सब यहां एक रूम में कैसे रुक पाएंगे?
रानी ने बेला से कहा- देख आज रात मै अकेली ही हुं तो तू मेरे घर आजा। साथ में इस लड़की को भी ले चलना।
बेला- ठीक है।
बेला की नज़र चिंटू पर पड़ती है। उसके इस फैसले से की सुमति उसके साथ रहेगी चिंटू का मुंह लटक गया था। फिर बेला कहती है- अभी तो बारिश बहुत हो रही है। अगर रात होने तक भी ऐसे ही बारिश होती रही तो हमारा अकेले रहना ठीक नहीं है। मुझे तो बिजली की गड़गड़ाहट से डर लगता है। ऐसा करो चिंटू तुम हमारे साथ चलना। वैसे भी रीना का घर दो मंजिला है। तुम वहा रह सकते हो। और तुम्हारे साथ रहने से हम लड़कियों को डर भी नहीं लगेगा।
इवान यह सुन कहता है- और मै? मै कहा रहूंगा?
बेला- तुम यहां ही रहना मोहन भैया के साथ।? यहां मै और बाबा ही रहते थे तो गद्दे और रजाई सिर्फ दो लोगो की ही है। रानी के घर हम सब का गुजारा हो जाएगा। चिंटू तो खुश हो गया यह सुनकर।

इवान- मुझे भी ले चलो plz।
बेला- नहीं, अगर तुम तीनों वहा से हमे बंदी बनाकर भाग गए तो? तुम मोहन भैया के साथ ही रहोगे ताकि ये दोनों न भाग सके। अगर ये दोनों भागे यहां से तो तुम तो गए ही समझ लो।
इवान- ए सौम्या तुम लोग मुझे छोड़कर मत भागना। नहीं तो ये लोग पता नहीं मेरे साथ क्या करेंगे?
चिंटू- सुमति देख यही मौका है इससे पीछा छुड़ाने का। इसे छोड़कर भाग चलते है।
इवान- अरे बेरहमो! अगर मुझे छोड़कर भागे तो हाय लगेगी मेरी। तुम्हारे हाथ पैर में फ्रेक्चर हो जाएगा, सौम्या तुम्हारे बाल जड़ जाएंगे देख लेना। अगर मुझे छोड़कर भागे तो।
उसकी ऐसी बचकानी बातो पर सब हस पड़ते है।
इवान- अच्छा ये बताओ रात के खाने का क्या होगा?
चिंटू- जनम जनम का भूखा है ये तो। अभी तो खाया है और अभी भूखा?
रानी- हमारे घर पर ही बना देते है। आप वहीं आ जाना करीब साढ़े सात बजे।

****
चिंटू मुस्कुराता हुआ सुमति के साथ चल पड़ता है रानी के घर। रानी का घर बेला के घर से पांच मिनट के रास्ते में ही था। सब के चले जाने से इवान बोर हो जाता है। वह मोहन से कहता है- भाई साहब अभी सिर्फ तीन बजे है।
मोहन- तो?
इवान- तो क्यों न हम भी रानी के घर चले। कुछ बाते वाते हो जाएगी। यहां अकेले बैठे क्या करेंगे?
मोहन- ठीक है चलो। रात का खाना खाकर आ जाएंगे।
इवान- आपने रानी का घर देखा है?
मोहन- हां, चलो।

दोनों दरवाजे पर लटके ताले को लगाकर रानी के घर चले जाते है। जब दोनों वहा पहुंचे तब बेला और सब सोने की तैयारी कर रहे थे। इवान को दरवाजे पर देख बेला को हंसी आ जाती है- क्यों चले आए यहां?
इवान- वहा अकेले बैठे बैठे क्या मच्छर मारता? हमे तो अभी रात को वहा सोना है न तो अभी से वहा छोड़कर क्यों आ गए इन सब को लेकर?
चिंटू कहता है- अभी हम सब सोने ही जा रहे है। सुबह जल्दी उठे थे तो अब नींद आ रही है। तु तो उल्लू है सोए या न सोएं कोई फ़र्क नहीं पड़ता होगा। पर हमे पड़ता है तो जा यहां से और हमे सोने दे।
इवान- नहीं मै नहीं जाऊंगा। यार ये क्या? मै भी यही सो जाता हुं।
मोहन बेला से कहता है- अगर ये यहां रहता है तो मै अपने रिश्तेदार के यहां हो आऊ। शाम ढलते ही वापस आ जाऊंगा। और इन दोनों लड़को को अभी बांध देता हुं। कहीं भाग न जाए।
बेला- ठीक है मोहन भैया। इन्हे बांधने की जरूरत नहीं है। ऊपर के कमरे में बंद कर देते है। वहा खिड़की भी नहीं है तो ये दोनों भाग नहीं सकेंगे। इन दोनों को ऊपर वाले कमरे में ले जाईए और दरवाजा बाहर से बंद कर देना। आप दोनों को फ्रेश होना हो तो हो आइए। दरवाजा तभी खुलेगा जब मोहन भैया वापस आएंगे।

मोहन उन दोनों को कमरे में बंद करके अपनी प्रेयसी के पास चला जाता है। बेला सुमति के हाथ में रस्सी बांधकर एक छोर से अपना हाथ भी बांध देती है। ताकि सुमति उन दोनों को छुड़ाकर भाग न जाए।

क्रमशः


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