विद्रोहिणी - 12 Brijmohan sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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विद्रोहिणी - 12

विद्रोहिणी

(12)

प्रथम उत्तीर्ण

विवेकानंद का आत्मज्ञान

मेाहन आठवीं कक्षा में पढ़ रहा था। वह पिछली कक्षा में परीक्षा में प्रथम उत्तीर्ण होता आया था।

किन्तु इस बार वह अर्धवार्षिक परीक्षा में फेल हो गया। उसे बड़ा धक्का लगा।

वह दिनरात अध्ययन में जुट गया। वह रातभर जागकर स्टडी करता। परीक्षाएं सम्पन्न हुई।

वार्षिक परीक्षा के रिजल्ट का दिन था। वह शहर का सर्वश्रेष्ठ स्कूल था। ऐक बड़े हाल में

विद्यालय के समस्त छात्र ऐकत्रित हुए। मोहन डरा सहमा एक कोने में डरते हुए दुबका बैठा था कि कही वह फ़ैल न हो जाए i सबसे पहले पूरे विद्यालय मे प्रथम उत्तीर्ण होने वाले छात्र का नाम पुकारा गया। हेडमास्टर ने घोषणा की ‘ मोहन शर्मा कक्षा 10 वीं ‘ए’ पूरे विद्यालय में सबसे अधिक अंक लेकर प्रथम उत्तीर्ण हुए हैं। ’

मोहन को अपने कानो पर विश्वास नहीं हुआ। इसके बाद तो सभी छात्र उसे हीरो के समान देखते व उसकी इज्जत करते। उनके पड़ौसी भी प्रथम आने के कारण मोहन व कुमार को इज्जत की निगाह से देखने लगे। उनके व्यवहार में भारी परिवर्तन आ गया।

मोहन को प्रथम आने पर पुरस्कार स्वरूप दो किताबें उपहार में मिली।

ऐक थी ‘रामतीर्थ संदेश’ जो महान गणितज्ञ स्वामी रामतीर्थ के उद्गार थे तथा दूसरी महान स्वामी विवेकानंद के ओजस्वी भाषणों का संग्रह थी। ये पुस्तकें वेदांत पर आधारित थी।

वेदांत के अनुसार- ‘ मनुष्य का सच्चा आंतरिक स्वरूप आनंद स्वरूप आत्मा है। आत्मा दिव्य प्रकाश स्वरूप है।

वह सत् चित् आनंद स्वरूप है। उसमें दुख का किंचित मात्र नहीं है।

मनुष्य भ्रम से अपना मूल आनंद स्वरूप भूलकर दुख रूप सांसारिक पदार्थों में सुख ढूंढते हुए भटकता रहता है। ’

यही वेद, उपनिषद् व गीता का सार है I

मोहन के परिवार की पृष्ठभूमि आध्यात्मिक व पूजा पाठी होने से ये सूक्ष्म विचार उसके अंतरतम में प्रकाशित हो

गए। उसने कुमार व माता को ये विचार सुनाए। उनके हृदय में भी ज्ञान व आनंद का आलोक प्रकाशित हो उठा।

उनका परिवार वर्षों से समाज से उपेक्षित व प्रताड़ित रहा था। वे अंदर ही अंदर हीन भावना से पीड़ित थे।

हिन्दू धर्म का सार ‘ वेदांत ’ मनुष्य का दुख व अंतर्वेदना दूर करने व उसे परम आनंद मे निमग्न करने में अद्वितिय अम्रत का काम करता है।

***

राम हनुमान प्रथम मिलन

मेाहन नित्य रामायण का पाठ करता था। वह बड़े मधुर स्वर से चौपाईयां गाया करता था व साथ ही झांझ बजाया करता था। रामायण के मार्मिक प्रसंगों का गान करते समय उसकी आंखों से आंसू बह निकलते। वह भाव विभोर हो जाता। उसे किष्किन्धाकांड का हनुमान राम का प्रथम मिलन बहुत पसंद था। वह प्रसंग इस प्रकार है

राम व लक्ष्मण, सीता को ढूंढते हुए रिष्यमूक पर्वत के पास से गुजरते हैं। उस पर्वत पर वानरो क राजा सुग्रीव अपने मंत्रियो, हनुमान व वानर सेना के साथ रहता था। जब उसने दो महा बलिष्ठ पुरूषों को अपनी ओर आते देखा तो वह अत्यंत भयभीत हो गया। उसके बड़े भाई बाली ने उसका राजपाट व पत्नि को छीन लिया था तथा उसे अपने राज्य से निर्वासित कर दिया था। वह उसके खून का प्यासा था। बाली के डर के मारे सुग्रीव उस पर्वत पर भय के मारे बाली से छुपकर रहता था। सुग्रीव ने अपने मित्र हनुमान से कहा,

‘ हे हनुमान अपना वेष बदलकर जाओ व पता लगाओ कि कहीं मुझे मारने के लिए बाली ने इन दोनों शूरवीरो को तो नहीं भेजा है। यदि ऐसा हो तो मैं शीघ्रता से यहां से भागकर अपने प्राणों की रक्षा करूं। ’

इस पर हनुमानजी ने ब्राम्हण का वेष धारण किया व राम के निकट जाकर बोले,

‘ हे महापुरूष आप लोग कौन हो ? आप इस बियाबान भयानक जंगल में भरी धूप में क्यों घूम रहे हो ? न जाने क्यों आपको देखकर मेरे समस्त तन मन रोमांचित हो रहे हैं। कहीं आप नर नारायण के अवतार तो नहीं हो ? भगवद्भक्तों, गौ, ब्राम्हणों व प्रथ्वि की रक्षा तथा दुष्ट राक्षसों के संहार के लिए आप अवतरित हुए हो ऐसा मुझे प्रतीत होता है। आपके चरण कमल बड़े कोमल है, रास्ता बड़ा कठोर है। आप किस कारण एसी भयानक धूप में विपत्तियां सहते हुए भटक रहे हो ? ’

इस पर राम ने बड़ी सरल भाषा में जबाब दिया,

‘ हे ब्राम्हण देवता! हम दोनों भाई हैं। मेरा नाम राम व मेरे छोटे भाई का नाम लक्ष्मण है। अपने पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए हमने चैादह वर्ष का बनवास ग्रहण किया है। हमारे साथ मेरी पत्नि सीता भी थी। यहां इस भयानक वन में राक्षसों ने धोखे से सीता का अपहरण कर लिया । हे ब्राम्हण देवता ! हम उसे ढूंढते हुए पूरे जंगल में भटक रहे है। ’

इतना सुनते ही हनुमानजी ने अपने स्वामी राम को पहचान लिया व वे राम के चरणों में गिर पड़े।

यह रामायण महाकाव्य का श्रेष्ठतम दृष्य है। भगवान हनुमान को उठाने का प्रयास कर रहे हैं किन्तु हनुमान राम के चरणों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। बड़े प्रयास के बाद भगवान ने हनुमान केा उठाकर गले लगा लिया व अपने प्रेमाश्रुओं से उन्हें नहला दिया। हनुमान ने बड़ी मुश्किल अपनी उफनती भावनाओं पर धैर्यपूर्वक काबू पाया व भगवान की स्तुति की।

हनुमान बाले ‘ प्रभु मैं तो वानर ठहरा। आपकी प्रबल माया के प्रभाव से मैं परिवार, व सांसारिक सुख की झूठी खोज में संसार में भूला हुआ भटकता रहता हूं। आपकी माया के प्रभाव के कारण ही आपको सामने देखकर भी मैं आपको नहीं पहचान पाया। किन्तु आपने भी अपने सेवक को भुला दिया। ’

इतना कहकर हनुमान पुनः राम के चरणों पर गिर पड़े।

इस पर राम ने हनुमान को प्रेम से गले लगते हुए कहा, ‘अरे हनुमान ! जरा भी बुरा मत मान । तू मुझे लक्ष्मण से दूना प्यारा है । यद्यपि मुझे लोग समदर्शी कहते हैं किन्तु जो भक्त सम्पूर्ण स्रष्टि के चर अचर को भगवान का स्वरूप् समझता है, वह भक्त मुझे बड़ा प्यारा लगता है और तू ऐसा ही भक्त है ‘ ऐसा कहते हुऐ प्रभु ने हनुमान को अपने प्रेमाश्रुओं से नहला दिया । इस प्रसंग को गा़ते हुए मोहन भावविभोर होकर अपना तन मन भूल जाता। उसके भक्ति रस में डूबे प्रेमाश्रु बड़ी देर तक अविरल बहते रहते।

***

सुतीक्ष्ण प्रसंग

मेाहन का रामायण का सबसे प्रिय दूसरा प्रसंग था, अरण्यकांड का सुतीक्ष्ण ऋषि प्रसंग।

जब राम सुतीक्ष्ण ऋषि के आश्रम की ओर प्रस्थान करते हैं तो वे भक्ति व प्रेम में अपना तन मन भूलकर समाधिस्थ हेा जाते है। इस प्रसंग में तुलसीदासजी अपनी भक्तिरस के उच्चतम शिखर पर दिखाई देते हैं। यह प्रसंग भक्तियोग से समाधि प्राप्ति का सर्वोत्तम उदाहरण है। मुनि सुतीक्ष्ण जैसे ही प्रभु का वन में उनकी कुतिया की और आगमन का समाचार सुनते हैं वैसे ही वे अनेक कल्पना संजोकर भगवान को ढूंढने निकल पड़ते हैं। वे भक्ति के उन्मेष में अपने आप को भूल जाते हैं। उन्हे कुछ होंश नहीं रहता कि मैं कौन हूं व कहां जा रहा हूं। प्रभु की याद में वे दिशाएं व रास्ता सबकुछ भूल जाते हैं I वे कभी आगे तो कभी पीछे चलने लगते हैं। वे कभी रूककर नाचने गाने लगते हैं तो कभी भगवान के गुण गाकर झुमने लगते है। तभी वहां श्रीराम आ पहुंचते हैं। किन्तु मुनि अपनी भक्ति में ऐसे डूबे हुए रहते हैं कि उन्हे श्रीराम के आगमन का पता ही नहीं चलता। भगवान यह द्रष्य देखकर बड़े प्रसन्न होते हैं। वे ऐक बड़े पेड़ के पीछे छुपकर मुनि की प्रेमावस्था की लीला देखते हैं। तब राम मुनि के हृदय में प्रकट हो जाते हैं। अपने हृदय में भगवान का दर्शन करके मुनि समाधिस्थ हो जाते हैं। समाधि, योग की उच्चतम अवस्था होती है। आनंदातिरेक में मुनि का रोम रोम पुलकित हो जाता है।

तब राम मुनि के समीप आकर उन्हें जगाने का प्रयास करते हैं। किन्तु मुनि अपने आनंद में इतने निमग्न रहते हैं कि वे स्वयं राम के द्वारा अनेक प्रयास करने पर भी ध्यानावस्था से नहीं उठतें हैं। तब राम मुनि के हृदय से अपना रूप तिरोहित कर देते हैं व राम रूप की जगह चतुर्भुज रूप दिखाते हैं। इस पर अपने इष्ट रूप को न पाकर मुनि व्याकुल होकर उठ खउ़े होते हैं । वे अपने सामने राम सीता व लक्ष्मण को पाकर उनके चरणों में गिर पड़ते हैं। यह महाकाव्य रामायण का भक्तिरस के भावातिरेक का सर्वश्रेष्ठ प्रसंग है।

इसे गाते हुए मोहन की अवस्था भी मुनि के समान ही हो जाती व उसकी आंखों से बहुत देर तक प्रभु प्रेम के प्रेमाश्रु अविरल बहते रहते।

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फिर झगड़ा

श्यामा के केस जीतने के बाद सभी पड़ौसी उससे डरने लगे। किन्तु प्रथम मंजिल पर रहने वाला

घनश्याम उससे बड़ी ईष्र्या रखता था। वह कोर्ट केस में श्यामा से हार मानने को तैयार नहीं था । वह सोचता था कि आखिर श्यामा भी किसी को सजा नहीं करवा पाई थी।

ऐक दिन श्यामा मकान से बाहर गलियारे में बैठकर एक पड़ौसी स्त्री से बातें कर रही थी। इतने में वहां से घनश्याम गुजरा। वह ऐक बड़ा लम्बे कद का अधेड़ व्यक्ति था। उसका पैर श्यामा को लग गया।

श्यामा ने तुनककर कहा, ‘ क्यो रे अंधे ! दिखता नहीं है ? हर किसी को ठोकर मारते चलता है। ’

इस पर घनश्याम पलटा और उसने श्यामा की पीठ पर जोर से ऐक लात मार दी। श्यामा दर्द से कराह उठी।

उसने कहा, ‘ मैं तुझे इस कमीनेपन की सजा दिलवा कर रहूंगी। मैं अभी थाने पर जाकर रिपोर्ट लिखाती हूं। ’

इस पर घनश्याम उसे गालियां देते हुए बोला, ‘ तुझसे जो बने करले, बड़ी चैाधरायन बनी फिरती है। ’

श्यामा शीघ्र नजदीक के पुलिस थाने पर पहुंची व उसने घनश्याम के विरूद्ध रिपोर्ट लिखवाना चाहा किन्तु घनश्याम पहले ही पुलिस की मुट्ठी गरम कर चुका था अतः उसकी रिपोर्ट नहीं लिखी गई व चोंट का मेडिकल कराकर सर्टिफिकेट लाने को कह दिया गया।

श्यामा ने घनश्याम को हर हाल में सबक सिखाने की ठान रखी थी। अतः रात होने पर उसने स्वयं के सिर पर चाकू मार कर घायल कर लिया व जोर जोर से ‘ घनश्याम ने मार डाला रे ’ आवाजें लगाकर चिल्लाने हुए थाने पर रिपोर्ट लिखाने जा पहुंची I

किन्तु थाने पर फिर भी उसकी रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई।

इस पर श्यामा सिर से बहते खून के साथ रात को पुलिस आई.जी. के घर के बाहर जा कर बैठ गई व जोर से रोने लगी। इस पर आफिसर ने बाहर आकर उससे सारी घटना सुनी। उसने घनश्याम उसके पुत्र को गिरफ्तार करने के आर्डर दे दिए। श्यामा ने घनश्याम व उसके पुत्र के विरूद्ध रिपोर्ट लिखवा दी । कोर्ट में मुकदमा चला । घनश्याम ने बहुत बड़ा वकील किया किन्तु श्यामा ने मोहन व एक अन्य की चश्मदीद गवाही करा दी । फलस्वरूप उसे व उसके बेटों को जेल जाने की नौबत आगई । पहले तो उसने श्यामा पर झूटे मुकदमे में फंसाने का काउंटर केस चलाने की धौंस दी किन्तु श्यामा टस से मस नहीं हुई। अंत में वकील के जरिये घनश्याम ने श्यामा को बहुत सा धन देकर व वहां से मकान खाली करने की शर्त पर समझौता कर लिया ।

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