Ek Jindagi - Do chahte - 12 books and stories free download online pdf in Hindi

एक जिंदगी - दो चाहतें - 12

एक जिंदगी - दो चाहतें

विनीता राहुरीकर

अध्याय-12

और तभी परम को लगने लगा उसके मन में तनु को लेकर कोमल भावनाएँ और ईच्छाएँ जन्म लेने लगी हैं। अपने आप में ये ईच्छाएँ बहुत पवित्र और नाजुक हैं मगर सामाजिक दृष्टि से अवांछित है। तब जब भी परम घर जाता वहाँ उसे सब कुछ काट खाने को दौड़ता। उसे लगता कि कब वह अजमेर वापस लौटे और अपने एकांत में तनु के खयालों में खोया रहे। वाणी अक्सर उसे टोकती कि आजकल वह कहाँ खोया रहता है तब परम खीज जाता। लेकिन उसे तत्काल ही खयाल आता कि वह किस राह पर चल पड़ा है। इस राह की कोई मंजिल नहीं है। यह राह ना जाने किन गुमनाम अंधेरी गलियों में भटकती रहेगी और कही नहीं पहुँचेगी।

और परम ने मन को बहुत कठोर करके एक दिन निर्णय लिया कि वह तनु से अब जहाँ तक हो सकेगा बात नहीं करेगा। अपने मन को काबू में रखेगा। और परम ने कई हफ्तों तक तनु को फोन नहीं लगाया। तनु फोन लगाती तो वह काट देता। तनु ने उसे बहुत मैसेज किये। हर बार मैसेज पढ़कर परम का दिल करता कि वह तनु को फोन लगाए मगर फिर बहुत कठोरता से वह अपने दिमाग को काम में उलझा देता और ईच्छाओं को दबा देता। आखीर में मायूस होकर तनु ने भी बहुत दिनों तक उसे कोई मैसेज भी नहीं भेजा तो परम काम में कुछ ऐसा फंसा रहा कि हफ्तों तनु से बात नहीं कर पाया। एक दिन सुबह से ही परम बहुत व्याकुल हो गया। दोपहर तक जाते - जाते परम से रहा नहीं गया। परम ने सारे विचारों को ताक पर रखकर तनु को फोन लगाया।

''हैलो" उधर से तनु का थका हुआ सा स्वर सुनकर परम के कलेजे में एक हौल सा हुआ।

''क्या बात है तुम्हारी आवाज इतनी थकी हुई क्यों लग रही है?" परम ने चिंतित स्वर में पूछा।

''कुछ नहीं बस जरा वायरल हुआ है।" तनु ने थके स्वर में ही उत्तर दिया।

''तुमने बताया नहीं।" हठात परम के मुँह से निकल गया।

''आप तो कितने दिनों से मेरा फोन ही नहीं उठा रहे हो, ना मैसेज का जवाब दे रहे हो।" तनु के स्वर में हल्की सी शिकायत थी।

''सॉरी वो मै ंबीच में काम में थोड़ा बिजी हो गया था।" परम झेंपते हुए बोला। कैसे कहता कि 'तनु' मैं जानबूझकर अपने आपको तुमसे दूर रखने की कोशिश कर रहा था।

''तो आज कैसे फुरसत मिल गयी आपको?" तनु ने सवाल किया।

''आज काम निपटाकर घर आ गया था दोपहर को तो सोचा तुमसे बात कर लूँ।" परम ने सफाई दी।

''और बताईये आप कैसे हैं?" तनु का स्वर थोड़ा संयत लग रहा था।

उस दिन परम ने देर तक तनु से बातें की। सेहत को लेकर ढेर सारी हिदायतें दी। इतनी कि बुखार में भी तनु हँसने लगी। उसकी हँसी से परम के दिल को बहुत तसल्ली हुई। उसका मन किया कि तनु ऐसे ही हमेशा हँसती रहे और वो बस उसकी हँसी सुनता रहे।

उस दिन परम ने तनु को थोड़ी-थोड़ी देर से कई बार फोन लगाया। कभी पूछता ''कुछ खाया कि नहीं" कभी कहता ''दवाई ली कि नहीं।" कभी उसका बुखार कितना है जानना चाहता।" पिछले कई हफ्तोंके बात न करने के अपने गुनाह की माफी मांग रहा था जैसे वह। पिछले दिनों की अनुपस्थिति की भरपाई कर रहा था।

जब आठवीं बार परम ने तनु को फोन लगाया तो वह मुस्कुराकर बोली

''जी बोलिये"

''नहीं बात करने को तो कुछ नहीं है। लेकिन बस ऐसे ही याद आ रही थी तो फोन फोन लगा लिया।" उधर से परम बोला।

''क्या?" तनु हँसने लगी थी ''याद आ रही थी?"

''हाँ! पता नहीं मेरे साथ ऐसा पहली बार हुआ है कि मुझे ऐसे किसी की याद आयी।" परम का स्वर अचानक भावुक हो गया।

''कैसी याद आयी?" उसके स्वर की भावुकता तनु के दिल को छू गयी ''मैं समझी नहीं।"

''कुछ नहीं बस ऐसे ही। अपना ध्यान रखो। एण्ड गेट वेल सून।" परम का स्वर अब भी भावुक था।

उस दिन के बाद परम लगभग तो रोज ही एक बार तनु से बात कर लेता था। शाद ही कोई दिन ऐसा जाता जब वो तनु से बात नहीं कर पाता। उस समय अधिकतर ही तनु ऑफिस में होती थी। अनूप रोज देखता था, नियम से परम का फोन आना। उसका फोन आते ही तनु के चेहरे पर कोमल भावनाओं के ढेर सारे रंग छा जाना। उसके अंदर की खुशी की चमक उसके चेहरे पर दिखती। परम की बाते सुनते हुए तनु की आँखेंं कुछ बयान करने लगती। बातें तो साधारण होती लेकिन आँखों के भाव असाधारण होने लगे थे। दोनों के बीच होने वाली बातों से बिलकुल अलग।

एक दिन कोई आर्टिकल टाईप करते समय तनु जिस व्यक्ति के बारे में लिख रही थी उस व्यक्ति की जगह वह बार-बार परम का नाम टाईप कर देती थी। अनूप चुपचाप उसे देख रहा था। आखीर में उससे रहा नहीं गया और वह बोल ही पड़ा -

''यह क्या है तनु?"

तनु अपनी गलती देखकर शरमा गयी जैसे उसके मन का चोर पकड़ा गया हो।

''तनु ये सब क्या है?" अनूप ने चिंतित स्वर में कहा।

''अरे बाबा कभी-कभी गलतियाँ हो जाती है।" तनु ने कम्प्यूटर स्क्रीन पर नजरे गड़ाए हुए ही जवाब दिया।

''मैं परम के संदर्भ में बात कर रहा हूँ।"

''उसके संदर्भ में क्या बात है?"

''तनु परम फौज में है। उसकी जिंदगी कितनी कठिन और अनिश्चित है वो तुम देख चुकी हो। तुम्हारी उसके साथ ऐसी नजदिकियाँ... मेरा मतलब है भावनात्मक स्तर पर, ठीक नहीं है।" अनूप ने देखा कि तनु ने फिर से एक बार आर्टिकल में परम का नाम टाईप कर दिया है।

''सॉरी" तनु ने झट अपनी गलती सुधारी" हम बस अच्छे दोस्त हैं अनूप। एक दूसरे से बातें करना, फिलिंग्स शेयर करना अच्छा लगता है और कुछ नहीं।"

''तनु मैं तुम्हारा बचपन का दोस्त हूँ। परम से बात करते हुए तुम्हारे चेहरे पर जैसे भाव रहते हैं या जो खुशी होती है वो आज तक किसी दोस्त से बातें करते हुए मैंने तुम्हारे चेहरे पर नहीं देखे। तुम परम के साथ दोस्ती की सीमा से आगे बढ़ती जा रही हो।" अनूप बोला।

''मैं अपनी सीमाएँ समझती हूँ अनूप। और फिर ये तो सोचो हम सिर्फ फोन पर ही तो बात करते है बस। एक ही शहर में तो रहते नहीं हैं कि मिल पायेंगे।" आखरी बात करने तक तनु के स्वर में दर्द उभर आया।

''हाँ लेकिन ऐसा भी नहीं है कि जिस दिन मिलना चाहो उस दिन मिल ही नहीं पाओ। अजमेर इसी देश में है। मुझे तुम्हारी फिक्र हो रही है तनु। कभी-कभी ऐसा लगता है कहीं परम को तुम्हारा फोन नम्बर देकर मैंने गलती तो नहीं की।" अनूप ने बेचेनी से अपनी गरदन पर हाथ फेरा।

''ऐसा मत कहो अनूप।" तनु ने कांप कर उसका हाथ पकड़ लिया। अब वह यह सोचना भी नहीं चाहती थी कि परम को उसका नम्बर नहीं मिला होता और वह कभी उससे बात नहीं कर पाती।

''मुझे तुम्हारे भविष्य की चिंता है तनु। ये तो अंधेरी राह है जिस पर कभी कोई पड़ाव नहीं आयेगा।" अनूप ने समझाया था।

''कुछ चीजें वक्त पर छोड़ देनी चाहिए। जैसी भगवान की मर्जी मैं अपनी तरफ से कोई इच्छा नहीं कर रही पर नियति ने जो मेरे लिए सोच रखा होगा, वह अपने आप मुझे उसी रास्ते ले जायेगी। तुम मेरी चिंता मत करो तुम्हें तो पता है तनु किसी भी परेशानी में हिम्मत हारने वालों में से नहीं है।" तनु ने अनूप का हाथ थपथपाते हुए मुस्कुराकर उसे आश्वासन दिया था।

''हाँ वो मुझे पता है कि तुम किसी भी परेशानी में हिम्मत हारने वालों में से नहीं हो लेकिन ये किसी घटना का कवरेज नहीं है कि तुमने देखा उसका आकलन किया और रात भर बैठकर एक स्टोरी बनाकर छाप दी। ये जो तुम कर रही हो ये हिम्मत नहीं दु:स्साहस है। ये एकतरफा कमीटमेंट नहीं है कि कर लिया और खुशी मना ली। इसमें दूसरे व्यक्ति का भी उतना ही गहरा और ईमानदार कमिटमेंट होना जरूरी है वरना तुम हमेशा के लिए टूट जाओगी। और जहाँ तक दूसरे व्यक्ति का सवाल है तो वह पहले से ही किसी और के साथ बंधा हुआ है वह चाह कर भी तुम्हारे साथ ईमानदार नहीं रह पायेगा। मैं उसे दोष नहीं देता लेकिन फिर भी उसे समझना चाहिये कि वह तुम्हारी तरह स्वतंत्र नहीं है, जब वो तुम्हें कुछ दे ही नहीं सकता तो अपने साथ बांधे रखने का भ्रम क्यों व्यर्थ खड़ाकर रहा है।" अनूप झल्लाकर बोला।

''वो कोई भ्रम नहीं खड़ा कर रहा बाबा। मैंने कहा ना हम बस अच्छे दोस्त हैं और कुछ नहीं।" तनु ने अनूप के हाथ पर अपना हाथ रखते हुए कहा।

''मैं भी तुम्हारा बहुत अच्छा दोस्त हूँ लेकिन आज तक किसी आर्टिकल में मेरे नाम को लेकर तो तुमसे ऐसी गलती नहीं हुई।" अनूप ने बुरा सा मुँह बनाते हुए कहा।

तनु कुछ कहती इसके पहले ही प्यून दो कप चाय टेबल पर रख गया।

''लो पहले चाय पी लो।" तनु ने मुस्कुराकर अनूप की ओर देखते हुए कहा।

जवाब में अनूप का मुँह और भी बुरा बन गया। चाय पीकर अनूप फिर से कुछ कहने जा ही रहा था कि तनु के फोन की रिंग बज उठी। परम को फोन था।

''इसकी पोस्टिंग हमेशा के लिए वहाँ पहाड़ों पर ही रह जाती तो अच्छा होता।" चिढ़कर अनूप वहाँ से उठकर अपने केबिन में जाकर बैठ गया।

तनु ने हँसते हुए फोन उठाया और कहा ''हैलो।"

''क्या बात है किस बात पर हँसी आ रही है मेडम को?"

''कुछ नहीं।"

''फिर भी।"

''यूँ ही अनूप और मेरे बीच नोंक-झोंक चल रही थी।"

तनु परम से बातें करने लगी।

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