यूँ तो श्रीमान सोमनाथ का एक मंजिला छोटा सा मकान था किन्तु अति सुन्दर था
मकान के चारो ओर चार फिट की दीवारे थी अंदर प्रवेश करने के लिए एक धातु का सुन्दर द्वार था उसके बाद एक पांच फिट चौड़ी पगडंडी थी उसके दाई ओर आँगन मे सुन्दर फूल पौधों से भरी छोटी सी वाटिका थी सामने मकान के भीतर जाने के लिए लकड़ी से बना एक मुख्य द्वार था मकान के अंदर दाई ओर दो और बाई ओर एक कक्ष था बाई ओर के दोनों कक्ष मे से एक कक्ष पति पत्नी यानि सोम और यशोदा का था दूसरा कक्ष अथिति सत्कार हेतु समर्पित था अंतिम कक्ष बच्चों का था
यशोदा देवी को सामन्य भारतीय नारी की भांति ही संतान को अलग सुलाना ना भाता परन्तु पति के तर्कों के कारण स्वीकार करना पड़ता
सोम का मानना था यदि बाल समय मे बच्चों को अत्यधिक सुरक्षा प्रदान करना उन की आत्मरक्षा की क्षमता और निर्भयता का पतन करना सिद्ध होता हैं सोम की नजर मैं बच्चों को बाल अवस्था से ही स्वम पर निर्भर होना सीखना अति आवश्यक हैं
कभी कभी परिस्थिति कुछ भिन्न भी हो जाती थी जैसे आज बालिका को ज्वर था तो माता बालकक्ष मे बच्चो के साथ सो रही थी और माता की इस ममता और स्नेह का सोम भी पूरा सम्मान करते
सोम अपने कक्ष मे निद्रा आसन मे था तभी किसी प्रकार की हलचल का अनुभव कर वो उठ बैठे वो बड़े ध्यान से किसी चीज को महसूस करने का प्रयत्न करने लगे
तभी एक और हलचल हुई इसबार ये अत्यंत त्रिव थी सारी भूमि कांप रही थी सोम बाबू को समझते देर ना लगी के भूकंप आया हैं तुरंत अपनी पत्नी और बच्चों की रक्षा के लिए उनके कक्ष मे पहुचे
यशोदा अपने नेत्रों मे भय भर के दोनों बच्चों को कलेजे से चुपका कर सहमी कांपती हुई कक्ष के एक कोने मे बैठी थी पतिदेव के आगमन से थोड़ा भय मुक्त हुई और सोम ने भी अधिक विलम्ब ना करते हुए पत्नी का हाथ पकड़ वहाँ से निकलने का जतन किया परन्तु निकल ना सके कक्ष की छत टूट पड़ी जिसके ढेह जाने से एक धूल का गुबार ऊपर उठा
आस्था उदय
घंटे भर पश्चात् सोम बाबू को चेतना प्राप्त हुई जब उठे तो देखा पत्नी और बच्चे अबतक मुर्छीत पड़े थे उन्होंने पहले स्थिति की गंभीरता का अनुमान लगाना उचित समझा उन्हें दिखा के छत एक और से जुडी रहने के कारण इस प्रकार से गिरी के सबके प्राण बच गए किन्तु इस समय उनके आगे दाँए बाँए चारो ओर से इस प्रकार मालवा गिरा था के वो किसी भी प्रकार बहार नहीं निकल सकते और उनके लिए इस समय बालको के कक्ष का एक तिहाई भाग ही था उनका दम घुटने लगा जैसे किसी कैदी का अँधेरी कोठरी मे गुटता हैं लेकिन उन्होंने ये प्रकट ना किया अगर वो ही घबराते तो पत्नी और बच्चों का भय से बुरा हाल हो जाता इसलिए अपने मनोभावो को छुपा कर पत्नी को जगाते हैं
पत्नी चौंक कर उठती हैं तो पति शांत रहने के लिए बोल स्तिथि का वरण कर देता हैं साथ मे धैर्य देते हुए बोलता हैं जल्द ही सुरक्षा कर्मी आ जायेंगे
पति की बाते सुन पत्नी की आंखे भर आई उसकी ममता ने संतान की चिंता विकसित कर दी बड़े ही धीमे क़तर स्वर मे ईश्वर से सहायता की प्राथना करने लगी
पति ने इस समय पत्नी के विलाप क्रिया की आलोचना ना करना ही उचित समझा और किसी सहायता की प्रतीक्षा करने लगा
एक घड़ी मनुष्य स्वयं पर पड़ी विपत्ति को सहन कर सकता हैं किन्तु अपनी आँखो के सामने अबोध संतान पर पढ़ती विपत्ति उसके लिए आसहनिय हो जाती हैं वो बिन पानी मछली की भाँति झटपटा जाता हैं
ठीक वैसे ही स्थिति थी सोम की जब एक दिन बीत गया और पुत्री का ज्वर अपनी चरम सीमा पर पहुंच गया
वो असफल प्रयास कर दीवारों को धकेलने लगा थोड़ी देर बेकार की कोशिश कर निढाल हो कर रोने लगा
बलशाली व्यक्ति बल का उपयोग करता हैं और बुद्धिमान बुद्धि का
परन्तु विपत्ति मे पड़ा व्यक्ति हर वो चीज करता जहाँ उसको थोड़ी सी भी आशा हो
दूसरे दिन तक बच्चे प्यास से मरणसन्न हो गए तो सोम बाबू की दृष्टी सामने लटकी छत पर पड़ी
एकाएक दीवारों मे चुनवाई पाइप लाइन का स्मरण हुआ और उत्सुकता पूर्ण नेत्रों से इधर उधर कोई ठोस पदार्थ खोजने लगे तभी उनको एक कील गड़ी दिखी बस किसी प्रकार हिला हिला कर उसको खींच निकला बहार और दिवार के उस भाग को कुरेदने लगे जिधर उनको पाइप लाइन मिलने का भरोसा था
कुछ घंटो की कड़ी मेहनत करने के बाद उनको पाइप दिखा जिसके दिखने से अपार जोश की प्राप्ति हुई और दिन ढलते ढलते सोम बाबू ने उसको इतना उभार लिया के अपने मजबूत पंजे उसके चारो और लपेट कर खींच सके मगर सारी मेहनत व्यर्थ सिद्ध हुई जब लाइन टूटी तो वो भी सोम के कंठ की भाँति खुशक थी पत्नी की स्थिति अब और भी रूद्र हो गई मन ही मन बोली
हेय ईश्वर ये कैसी परीक्षा हैं ये कैसा अन्याय हैं जिन बच्चों ने जीवन का अभी तक महत्व भी ना जाना उनके साथ इतनी कठोरता क्यों बरत रहा हैं कृपा करके उपकार कर और फुट फुट कर रोने लगी सोम भी अपने घायल हाथो से अपना सर पकड़ कर बैठ गया और बिचारा करता भी किया शोक और दुख ने उसके भीतर तक वास कर लिया था
दो दिन बीत चुके थे किसी ने पानी की एक बून्द भी ना पी थी
तीसरा दिन भी आ गया सोम दिवार के सहारे बेसुध बैठा अपने विचारों मे डूबा था भूके पियासे बच्चे बिलख बिलख कर सो गये यशोदा की भी आँख लग गई थी अचानक किसी बुरे सपने को देख कर यशोदा की आँखे खुल गई घबरा कर बच्चों को देखा दोनों बच्चे माता की एक एक जाँघ पर सर रख कर सो रहे थे माता स्नेह और चिंता के साथ दोनों का सर सेहलाने लगी
लेकिन ये क्या हुआ यशोदा एकदम से कांप उठी उसकी पुत्री का शरीर बेजान पड़ा था बालिका की सांसे थम चुकी थी उसका ह्रदय शांत हो गया था बालिका के शांत ह्रदय ने माता के ह्रदय को अशांत कर दिया माता का मन देहल उठा कंठ से रूद्र विलाप निकला
प्रभु ये क्या अनर्थ हो गया हेय प्राण दाता मुझसे ये पीड़ा ये दर्द साहा नहीं जाता मुझ अभागी पर दया करो मेरी बची को लोटा दो
जब मनुष्य को घोर निराशा होती हैं तो केवल एक ही मार्ग एक ही आशा दिखती हैं ईश्वरीय चमत्कार की आशा जो सभी तर्क वितर्क से परे हैं
परन्तु सोम को इन स्थिति मे ये विलाप कष्टदायक लग रहा था बची की स्वयं जाँच करने के पश्चात् उससे रहा नहीं गया अपनी तेज और कठोर वाणी मे बोला बस करो ये गिड़गिड़ाना ईश्वर जैसी कोई चीज नहीं हैं और अगर हैं तो ऐसा निर्दयी जो बच्चों को उनके माता पिता से ऐसी क्रूरता से छीन ले मेरी नजर मे कभी पूज्य नहीं हो सकता मृत विलाप से वापस नहीं आते इतना बोल सोम बाबू की रूद्र हिचकीया बंध गई
मगर माता कुछ क्षण रुक कर फिर प्राथना करने लगी जिसपर सोम बाबू का क्रोध चिंगारीयों की तरह नेत्रों से प्रतीत होने लगा वो पत्नी से कुछ बोलने ही वाले थे के तभी बालिका ने एक गहरी सांस भरी जैसे कोई गोताखोर गहरे पानी से निकल कर सांस खींचता हैं
ये अविश्वासनीय चमत्कार देख सोम बाबू सक पका गये माता निहाल हो उठी पुत्री को कलेजे से लगा कर रोते हुए भगवान को धन्यवाद देने लगी
सोम बाबू भी पुत्री पर रो रो कर प्रेम लुटाने लगे महाशय सोमनाथ को स्वयं के प्रति ग्लानि का आभास हुआ पत्नी से क्षमा मांगते और पहली बार ईश्वर को उसकी कृपा पर धन्यवाद देते
इस समय
ऐसी भीषण परिस्थिति मे पत्नी को अपार सुख की प्राप्ति हुई जिसका वरण शब्दो मे करना सम्भव नहीं एक तो प्राण प्रिय पुत्री पूर्ण जीवित हो गई ऊपर से पति की आस्था का उदय उसे लगा मानो उसकी पूजा अर्चना आज सफल हो गई मन मे गर्व का गुबार फूटा और नेत्रों से बहने लगा और एक बार फिर पूर्ण श्रद्धा और भक्ति से भर कर भगवान को धन्यवाद किया
अभी ये लोग इस समय की मिलने वाली ख़ुशी को संभाल भी ना पाए थे के ईश्वर ने इनपर एक और उपकार किया वहाँ पर सुरक्षा कर्मी पहुंच गये
पति पत्नी को लगा मानो ईश्वर ने अपने दूत भेजे हो
जहाँ तीन दिन इनके ऊपर ये सब बीत रही थी वही दूसरी ओर भूकंप पश्चात मकान के बहार अगली सुबह ये हुआ था
प्रताकाल तक आधे से अधिक शहर शतीग्रस्थ हो गया था सोम बाबू का घर शहर के बीचो बिच था सरकार द्वारा सहयता के लिए सेकड़ो दलकर्मी भेजे दल कर्मियों के सामने सबसे बड़ी समस्या ये थी के किस प्रकार पता लगाया जाय किस मलवे के निचे जीवित लोग हैं और किस के निचे मृत अनेको तरीके उपयोग मे लाये गए फिर भी अधिकतर वही घर खोद दिए जाते जिनके निचे मृत शरीर पड़े होते इनसब मे बड़ा समय व्यर्थ होता परन्तु दलकर्मियों का उत्साह उस समय दुगना हो जाता ज़ब कोई जीवित व्यक्ति निकलता तीन दिन के कठिन परीक्षम और निरंतर प्रयास के बाद मोहदय सोम के घर का क्रम अवसर आया और उन्हें निकाल लिया गया
अब सोमनाथ नास्तिक ना रहे आस्था के दरिया से भर गए लेकिन अंध विश्वास और पाखंड पर अब भी आलोचना करते हैं
इस संसार मे धर्म बिना व्यक्ति का जीवन नीरस हो जाता हैं
धर्म आशा की सबसे बड़ी ज्योति हैं
परन्तु अंधविश्वास समाज को खोखला करदेता हैं और खोखला समाज हलके प्रभाव से भी उत्तेजित हो कर स्वयं का सर्वनाश करलेता हैं