एक दिन प्रात काल दफ्तर के लिए घर से सोम नाथ जो निकले तो नुक्कड़ पर चायवाले के यहाँ खड़े पंडित जी ने सोम बाबू को अपनी ओर आते देख घबरा कर बचते हुए बोला राम राम सोम जी
सोम -राम राम पंडित जी क्या बात हैं लगता हैं धन्दा जोरो पर हैं जभी तो गाल पर लाली दिखाई देती हैं
पंडित जी (खिसिया कर बोले ) महोदय हमसे ऐसा कौन अपराध हो गया जो आप ऐसे तीखे और विषधारी शब्दों का हम पर प्रहार करते हैं
सोम मंदमुस्कान सँग बोले - करदी ना अपने फिर वही अज्ञानीयों की जैसी बात
आप जानते हैं सत्य सदैव विष समान लगता हैं और मिथ्या वाणी मधुरता पूर्ण होती हैं
और एक सच्चा हितेषी वही होता हैं जो विष समान सत्य को आपसे निःसंकोच बोले मिथ्या भाषी अहित ही करता हैं अब ऐसा ज्ञान किस ज्ञानी को ज्ञात नहीं होता आप ही बोले
हा यदि वो ज्ञानियों का चोला धारण करा हुआ अज्ञानी हो तो बात अलग हैं
सोम बाबू के उपदेश ने पंडित जी को लज्जित कर दिया पहले तो इसका कोई करारा जवाब अपने ज्ञान कोष के मस्तिष्क मे खोजने लगे किन्तु जब कोई उत्तर ना सुझा तो खिसक लिए तभी पीछे से आते मौलवी साहब सोम के पक्ष मे हँसते हुए बोले अजी ठीक खबर ली मिया बिलकुल दरुस्त फ़रमाया आपने
असल मे मौलवी साहब ने सोचा माखन मे सोम बाबू को लपेट कर अपनी जान छुड़ा लूंगा परन्तु सोम बाबू अलग ही मिट्टी के बने थे खुशामद उनको एक आँख ना भाँति और ऊपर से धर्म गुरु द्वारा तो कतई नहीं
सोम बोले- अजी उनकी छोड़िये अपनी बताओ ये दिन प्रति दिन कैसे तोंद निकले जाती हैं आपकी
जहाँ तक मैं समझ रखता हुँ निरंतर नमाज़ और योगा करने वाले का ऐसा हाल तो नहीं होता हा वो बात दूसरी हैं के हाथी के दाँत दिखाने के कुछ और खाने के कुछ और हो
भला उपदेश दुसरो को केवल देने के हो स्वयं पर लागु ना करने के हो ऐसा तो किसी धर्म मैं नहीं लिखा
अगर अपने भोजन का आधा भाग आप दिन हीन गरीबो को दे तो उनके साथ साथ स्वयं के स्वास्थय का भला ना करलोगे आप साथ मे पुण्य अलग मिलेगा
अब ये सुन मौलवी साहब भी लगे बगले झाँकने
जब उनको भी कोई उत्तर ना हुआ तो काम का बहाना बना कर फुर्ती से ये जा और वो जा
ऐसे तर्क वितर्क के चटपटे दृश्य को वहां उपस्थित दो चार लोग कई बार देख चुके हैं उन लोगो को इस प्रकार के विवादों से बड़ा मनोरंजन प्राप्त होता था वो लोग दोनों धर्म गुरुओ को इस प्रकार दुम दबा कर भागते देख खिलखिला कर हस्ते हुए सोम जी के लिए वाह वाह... कर जाते
उस समय सोम को अपनी विजय का बड़ा गर्व होता और छाती फुला कर दफ़्तर पहुंच जाते
भाषा
शहर हो या गॉव मुहल्ले की छोटी से छोटी बात का ज्ञान स्त्रियों से कभी नहीं छुपता इसी प्रकार से ये वाद विवाद की चर्चा यशोदा देवी के सामने किसी ना किसी तरह आ जाती और देवी जी पति पर क्रोधित होती किन्तु धार्मिक औरतों के भीतर पति सेवा का भाव कुछ ज्यादा ही होता हैं
और सोम बाबू जैसा तेज बुद्धि का आदमी इसका लाभ उठाना खूब जनता था
सो रात को दफ़्तर से आते ही पत्नी के उखड़े व्यवहार से समझ गए की आज भी वही राग बजेगा
जिस प्रकार अपराधी न्यायधीश की दंड घोषणा से पूर्व सन्न सा हो जाता हैं वही स्थिति इस समय महोदय सोम की हो रही थी
प्रतीक्षा करते के कब देवी जी बोले और कब उन्हें अपनी सफाई मे बोलने का अवसर प्राप्त हो ताकि देवी जी को ठंडा करें
जब भोजन का समय हुए तो यशोदा सीधे ना बोल कर सब को भोजन परोसते समय अपनी पुत्री से बोली बेटी संसार मे बड़े बड़े नास्तिक बैठे हैँ मगर किसी का भला नहीं हुआ आज नहीं तो कल ईश्वर उनको दंड अवश्य देता हैं तूँ मेरी एक बात की गांठ बाँध ले के कभी किसी विद्वान का अपमान मत करना नहीं तो ईश्वर का प्रकोप भोगना पड़ेगा
बालिका नादान थी माँ का सही उदेश्य ना समझ पाई और अपनी उलझन को व्यक्त करने लगी
माँ ये प्रकोप किया होता हैं
ये हुआ यशोदा के ह्रदय मे एक और घात प्रथम पूज्य पति की ओर से दूसरा प्रिय पुत्री की और से बस रोने लगी माता श्री
विलाप करते हुए बोली हय भगवान ये कैसा अनर्थ हो रहा हैं एक भारतीय कन्या अपनी मातृभाषा से वंचित कैसे रह सकती हैं
मैं तो पहले ही कहती थी मत भेजो अंग्रेजी पाठ शाला मे कन्या के संस्कारो का सर्वनाश हो जायगा भला ये कैसा ज्ञान केंद्र हैं जहाँ अपने ही भाषा का बहिष्कार हो कल को विवहा मे कितनी अरचन पैदा होंगी कुछ पता भी हैं आपको
पति देव सरलता से बोले तुम भी कैसी बे सिर पैर की बाते करती हो आज के युग मे शिक्षित कन्या से ही विवाह कर युवा गर्व करता हैं और वर्तमान मे अंग्रेजी ही शिक्षा का उच्च स्रोत हैं
पत्नी के ऊपर कोई फर्क ना पड़ा तो सोम बाबू ने अपने अचूक भ्रमास्त्र से काम लिया
बनावटी क्रोध से
सोम बोले अच्छा वैसे तो तुम पतिभक्ति का इतना बखान करती हो कहती हो पति की सेवा सर्व सेवा पति की इच्छा परम इच्छा
तो अब कियो मेरी इच्छा का विरोध करती हो क्या यही हैं पत्नी का धर्म
बिचारि सीधी साधी महिला पति की बातो को गंभीर रूप से समझा और स्वयं पर ग्लानि करने लगी अगले ही क्षण देवी रूप से क्षमाप्राथी रूप मे परी परिवर्तित हो गई
यदि इस समय पत्नीप्रकोप का मारा कोई अभागा व्यक्ति वहां उपस्थित होता तो अवश्य बोलता
वाह सोम बाबू वाह पत्नी को उसके ही हतियार से धाराशाही कर दिया धन्य हो आप गुरु देव धन्य हो आप