The Author Sarvesh Saxena फॉलो Current Read भूख... By Sarvesh Saxena हिंदी प्रेरक कथा Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books आखेट महल - 7 छ:शंभूसिंह के साथ गौरांबर उस दिन उसके गाँव में क्या आया, उसक... Nafrat e Ishq - Part 7 तीन दिन बीत चुके थे, लेकिन मनोज और आदित्य की चोटों की कसक अब... जिंदगी के रंग हजार - 15 बिछुड़े बारी बारीकाफी पुराना गाना है।आपने जरूर सुना होगा।हो स... मोमल : डायरी की गहराई - 37 पिछले भाग में हम ने देखा कि अमावस की पहली रात में फीलिक्स को... शुभम - कहीं दीप जले कहीं दिल - पार्ट 23 "शुभम - कहीं दीप जले कहीं दिल"( पार्ट -२३)डॉक्टर शुभम युक्ति... श्रेणी लघुकथा आध्यात्मिक कथा फिक्शन कहानी प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं थ्रिलर कल्पित-विज्ञान व्यापार खेल जानवरों ज्योतिष शास्त्र विज्ञान कुछ भी क्राइम कहानी शेयर करे भूख... (20) 4.5k 15.4k 3 आज मंगलवार है | मैं और श्याम चौराहे के पास वाले हनुमान मंदिर में प्रसाद चढ़ा के सीधा श्याम की बुआ जी को लेने बस अड्डे पहुंच गए, बस लेट थी, इसीलिए हमने वहीँ बैठकर बुआ जी की बस का इंतजार करना सही समझा | मुझे अक्सर भीड़ भाड़ वाली जगहों पे जाना बिल्कुल पसंद नहीं था लेकिन बात दोस्त की थी तो मैं बैठ गया | हम दोनों बस अड्डे के बाहर बात कर रहे थे और श्याम तो हर आने जाने वाली सवारी को देख के कोई ना कोई बात उसके बारे मे बताता |हमे अभी थोड़ी ही देर हुई थी कि चार पांच बच्चे आकर हाथ फैलाने लगे तो कोई पैर छूने लगा और भीख मांगने लगा,श्याम सभी को दूर भगाने लगा और बोला जाओ पैसे नहीं हैं मेरे पास, तो मैंने श्याम को इशारा किया कि बच्चों को प्रसाद बांट दे | श्याम सभी बच्चों को प्रसाद बांटने लगा, प्रसाद बांटते हुए श्याम और मैंने देखा कि दूर एक बारह साल के आसपास का बच्चा उदास बैठा हमारी ओर देख रहा था | मैंने बच्चे को बुलाकर प्रसाद देना चाहा तो श्याम बोला, "अरे ये तो मुसलमान है इसीलिए यह प्रसाद लेने नहीं आ रहा था और दूर से देख रहा था" कई बार हम लोगों ने यह देखा था कि मुस्लिम बच्चे प्रसाद नहीं लेते | मैंने श्याम को चुप रहने को कहा और बच्चे से पूछा, "प्रसाद लोगे क्या"? बच्चे ने चुप रहकर ही सर हिला कर हामी भर दी, बच्चे को मैंने एक लड्डू दे दिया उसने लड्डू ले तो लिया पर खुद देर तक खड़ा गौर से लड्डू देखता रहा और लड्डू ले कर जाने लगा तो श्याम बोला, "देखना वह लड्डू खाएगा नहीं"| मुझे लगा कि शायद उसने हमारे डर से लड्डू ले लिया तभी वो बच्चा हमारे पास आया और बोला, " भईया एक और लड्डू दे दो, अम्मी के लिए, घर में कल से कुछ भी खाने को नहीं है" | मैंने बच्चे को दो लड्डू और दिए, हम कुछ कहते इससे पहले बच्चा दौड़कर चला गया | मैं और श्याम निशब्द रह गए और सोचते रहे क्या कोई भी धर्म, जाति, रूप, रंग, लिंग, भूख और गरीबी से बड़ा है | सच ही कहा है किसी ने गरीबी ही रिश्तो की अहमियत सिखाती है और उन्हें जोड़ कर रखती है और भूख सभी भेदभाव तोड़ती है, भूख से बड़ी दुनिया मे और कोई सच्चाई नहीं | कोई भी धर्म भूख से बड़ा नहीं क्यूंकि भूख के आगे सब धर्म, जाति दम तोड़ देते हैं | तभी हमे बुआ जी की आवाज सुनाई दी और उन्हें लेकर हम गाड़ी मे बैठ गए, मैं अभी भी उस लड़के के बारे मे सोच रहा था, श्याम भी चुप था, बुआ जी अपनी बातें बराबर बोले जा रही थीं लेकिन मेरी नजर उसी बच्चे को ढूंढ रही थीं |? समाप्त ?कहानी पढ़ने के लिए आप सभी मित्रों का आभार lकृपया अपनी राय जरूर दें, आप चाहें तो मुझे मेसेज बॉक्स मे मैसेज कर सकते हैं l?धन्यवाद् ?? सर्वेश कुमार सक्सेना Download Our App