पागल Sarvesh Saxena द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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पागल

अभी कुछ ही देर हुई थी मुझे दुकान खोले कि बच्चों का शोर, सीटी और तालियां सुनाई देने लगी, दुकान से बाहर आकर देखा तो फिर वही रोज की कहानी, ये आजकल के बच्चे भी ना जरा भी भावनाये नहीं होतीं इनमे और बच्चे ही क्यों उनके साथ बड़े तो और भी ज्यादा l सब रोहित के पीछे भाग भाग के तरह तरह की बातें करते चले आ रहे थे, कुछ तो छोटी कंकड़ी चलाते कुछ एकदम से पीछे भागते और रुक जाते तो कुछ अजीब अजीब आवाज निकालते जिनसे रोहित परेशान होकर चिल्लाता और अजीब अजीब हरकतें करता और तब उस पर सब हंसते और मजा उड़ाते l

रोहित.. उसका वह भोला भाला चेहरा और खामोश नज़रें मुझे अब भी याद हैं, अक्सर दुकान पर सामान लेने आया करता और बस इतना ही कहता था, "भैया नमस्ते, यह सामान दे देना" और फिर वह चाहे जितनी देर खड़ा रहता है लेकिन उसके अलावा कोई कभी दूसरी बात नहीं करता, चुपचाप खड़ा रहता l मुझे तो याद करके आज भी हंसी आती है कि कितनी मुश्किल से उसने मुझे सौम्या के बारे मे बताया था, हजार कसमें ली थीं और बताते बताते उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया था, कितनी सादगी से परिपूर्ण था l वो तो भला हो जो उसे सौम्य के प्यार ने बोलना सीखा दिया, अब रोहित पहले से ज्यादा हंसने बोलने लगा था और बहुत खुश रहने लगा था, मुझे भी एक अच्छा मित्र मिल गया था धीरे धीरे घरवाले भी मान गए और शादी की तैयारियां होने लगीं, मैंने अभी भी उसकी शादी का कार्ड संभाल के रखा है जिसमे बड़े स्टाइल मे रोहित ने लिखवाया था "?रोहित संग सौम्या ?" l लेकिन फिर उस दिन सौम्या ने रोहित को फोन किया और बिना कुछ बोले जोर जोर से रोने लगी, रोहित घबरा गया उसके बहुत पूछने पर सौम्या ने बताया, " कि मुझे कैंसर है, अब मैं तुमसे शादी नहीं कर सकती रोहित, मुझे माफ कर दो" l ये सुनकर रोहित स्तब्ध हो गया और जोर जोर से चिल्लाने लगा, "ऐसा नहीं हो सकता तुम फिकर न करो मै अभी आता हूँ" l

ये कहकर वो तुरंत ही बाइक से सौम्या के घर के लिए निकला लेकिन कभी पहुंच नहीं सका, हाँ रास्ते मे रोहित का एक्सिडेंट हो गया, सौम्या अपनी भूल पे बहुत पछता रही थी कि उसने रोहित से अप्रैल फूल का मज़ाक किया था, लेकिन अब कुछ भी किसी के हाथ मे नही था l मां-बाप के जाने के बाद रोहित का कोई सहारा नहीं रहा, सर पर गहरी चोट लगने से उसकी दिमाग की हालत बिगड़ चुकी थी, अब उसे सिर्फ ताने और मजाक चिड या जरा सी दया के अलावा कुछ नहीं मिलता हां एक नई चीज जरूर मिली थी उसे जो था उसका नया नाम" पागल", l

बस एक मैं ही हूं जो अभी तक उसका नया नाम याद नहीं कर पाया उसे देखकर मेरे मन में यही सवाल आता है कि क्या हमें किसी से ऐसा मजाक करना चाहिए जो उसकी जान ले ले ऐसी प्रथाओं को तुरंत ही खत्म कर देना चाहिए जो किसी की जान के साथ खेलें या फिर किसी के जीवन को ही मजाक बना दें और यदि किसी से मजाक करना भी है तो ऐसा करें जिससे उस व्यक्ति को कोई हानि ना हो l

? समाप्त ?

कहानी पढ़ने के लिए आप सभी मित्रों का
आभार l
कृपया अपनी राय जरूर दें, आप चाहें तो मुझे मेसेज बॉक्स मे मैसेज कर सकते हैं l

?धन्यवाद् ?

? सर्वेश कुमार सक्सेना