इंद्रधनुष सतरंगा
(5)
पुंतुलु बीमार पड़ गए
आधी रात का वक़्त था। सारा मुहल्ला नींद में खोया हुआ था। चारों तरफ सन्नाटा था। अचानक कर्तार जी के दरवाजे़ पर किसी ने दस्तक दी। कर्तार जी चौंक उठे। उठकर दरवाज़ा खोला तो सामने घोष बाबू खड़े थे। उन्हें बड़ी हैरत हुई।
‘‘ओए की हो गिआ तुहानू? एनी रात नूँ?’’ कर्तार जी कभी-कभी जब हैरत में होते, या गुस्सा करते, तो ठेठ पंजाबी बोलने लगते थे।
‘‘पुंतुलु की तबीयत बहुत ख़राब है। उल्टियाँ बंद नहीं हो रहीं। जल्दी चलिए, अस्पताल ले चलते हैं। भगवान न करे कहीं कुछ ऐसा-वैसा---’’
‘‘ओए चोप्प---की उल्टा-सिद्धा बोलिया?’’ कर्तार सिंह एकदम चीख पड़े। पर अगले ही पल संयत होकर कहने लगे, ‘‘घबराइए नहीं, सब ठीक हो जाएगा। मैं अभी कपड़े बदलकर आता हूँ। तब तक मौलाना साहब साहब को जगा लीजिए।’’
मौलाना साहब का घर सामने ही था। उन्होंने सुना तो बड़ी हैरत हुई। कहने लगे, ‘‘शाम तक तो बिलकुल ठीक थे। अचानक क्या हो गया?’’
‘‘तबीयत तो सुबह से गड़बड़ थी। पर महाराज कुछ मुँह से भी तो बताएँ? कोई इतना बड़ा अंतर्यामी तो है नहीं कि बिना कहे सब समझ लेगा।’’ घोष बाबू चिढ़कर बोले।
‘‘पुंतुलु वैसे भी हम लोगों के बीच कम उठते-बैठते हैं। शाम को पार्क में नहीं आए तो हम लोगों ने भी ध्यान नहीं दिया,’’ कर्तार जी कहने लगे।
‘‘दरअसल उन्हें हिंदी कम आती है, इसलिए लोगों में घुलते-मिलते कम हैं। काम हुआ तो निकले, नहीं तो घर में।’’
‘‘आपने भी ख़ूब कही, घोष बाबू! हमारी दोस्ती और मोहब्बत में हिंदी-उर्दू का क्या दख़ल?’’ मौलाना साहब ने कहा।
‘‘यही तो हम सबको समझना है,’’ कर्तार जी बोले, ‘‘ख़ैर, यह तो बताओ घोष बाबू, तुम्हें ख़बर कैसे लगी?’’
‘‘दरअसल, आज उनके घर की लाइट देर तक जली हुई थी। सबको पता है कि वह साढ़े नौ-दस होते-होते सो जाते हैं। संदेह हुआ तो मैंने घर में झाँका। देखा तो बेसुध पड़े हुए हैं।’’
‘‘वाहे गुरू! वाहे गुरू!’’ कर्तार सिंह ने ठंडी साँस भरी।
मौलाना साहब भी मन ही मन कोई दुआ बुदबुदाने लगे।
पुंतुलु की तबीयत सचमुच बहुत बिगड़ गई थी। सुबह से आ रहे दस्त और उल्टियों ने उनकी हालत पस्त कर दी थी। होंठों पर पपड़ी-सी जम गई थी। चेहरा ऐसा सफेद हो रहा था जैसे किसी ने सारा ख़ून सोख लिया हो। आँखें बंद थीं। पूछने पर सिर्फ ‘हाँ-हूँ’ में जवाब देते थे।
आनन-फानन में गाड़ी मँगवाई गई। लोग उन्हें अस्पताल ले चले।
सुबह होते-होते सारी कालोनी को ख़बर हो गई। लोग हाल पूछने अस्पताल में जुटने लगे।
पटेल बाबू शहर से बाहर थे। वापस लौटे तो उन्हें भी ख़बर हुई। सामान घर पर फेंककर वह उल्टे पैरों भागे। पानी तक नहीं पिया।
हाँफते-काँपते किसी तरह अस्पताल पहुँचे। ‘रिसेप्शन’ पर पहुँचकर पूछने को थे कि काउंटर पर बैठी महिला ने पूछा, ‘‘क्या आप हिलमिल मुहल्ले के पेशेंट को देखने आए हैं?’’
‘‘जी--?---जी,’’ पटेल बाबू हडबड़ाकर बोले।
‘‘सेकंड फ्रलोर पर, प्राइवेट वार्ड नं0 3 में। इधर से चले जाइए,’’ महिला ने दाहिनी तरफ जा रही सीढि़यों की ओर इशारा किया।
पटेल बाबू धन्यवाद कहकर सीढि़यों की ओर बढ़ चले। पर उन्हें इस बात पर आश्चर्य हो रहा था कि महिला ने उनके बारे में जाना कैसे? थोड़ी देर सोचते रहे। जब न रहा गया तो ‘रिसेप्शन’ पर दोबारा जा पहुँचे।
महिला ने उन्हें प्रश्नवाचक निगाहों से घूरते हुए दोबारा बताया, ‘‘सर, ऊपर का रास्ता उधर से है।’’
‘‘नहीं, दरअसल मैं यह पूछने आया था कि--’’
‘‘--कि मुझे कैसे पता कि आप हिलमिल मुहल्ले के पेशेंट को देखने आए हैं?’’ पटेल बाबू की बात काटकर वह महिला बोल उठी।
‘‘जी---जी, यही--’’ पटेल बाबू अधीर हो उठे।
‘‘सर, आप सुबह से पैंतीसवें आदमी हैं जो उन्हें देखने आए हैं। आज जो भी आ रहा है, उन्हीं के बारे में पूछ रहा है।’’
शंका समाधान कर पटेल बाबू मुड़े, तो महिला ने टोका, ‘सर, बुरा न मानें तो एक प्रश्न मैं भी पूछना चाहती हूँ।’’
‘‘जी बिल्कुल!’’
‘‘क्या आपके पेशेंट कोई नेता हैं?’’
‘‘नहीं तो।’’
‘‘कोई धर्मगुरू?’’
‘‘नहीं।’’
‘‘कोई बड़े अधिकारी?’’
‘‘नहीं।’’
‘‘तो फिर उनका परिवार बहुत बड़ा होगा?’’
‘‘नहीं, यहाँ वह अकेले ही रहते हैं।’’ पटेल बाबू ने ऊबकर कहा, ‘‘पर आप यह सब क्यों पूछ रही हैं?’’
‘‘इसलिए कि यहाँ किसी पेशेंट को देखने इतने लोग तभी आते हैं, जब वह कोई नेता, धर्मगुरू या किसी बड़े पद पर हो, जिससे लोगों का काम अटकता हो।’’
महिला की बात पर पटेल बाबू मुस्कराए और बोले, ‘‘नहीं, हमारे पुंतुलु इनमें से कुछ भी नहीं हैं। वह सिर्फ एक इंसान हैं। क्या इंसान होना और सब चीजों से बढ़कर नहीं है?’’
इतना कहकर पटेल बाबू मुड़े और महिला की प्रतिक्रिया देखे बिना सीढि़यों की ओर बढ़ चले।
पुंतुलु दो दिनों तक भर्ती रहे। उन्हें जबर्दस्त फूड-प्वाइज़निंग हुई थी। डॉक्टर ने कुछ दवाइयाँ और परहेज़ बताकर छुट्टी दे दी। हालाँकि घोष बाबू चाहते थे कि पुंतुलु एक दिन और भर्ती रह जाएँ ताकि उनकी देखभाल और दवा-पानी में कोई कसर न रह जाए। पर डॉक्टर ने कहा, ‘‘भाई साहब, आपका पेशेंट एक दिन और भर्ती रह गया तो सारा मुहल्ला उखड़कर यहीं आ बसेगा। आप लोग इन्हें घर ले जाइए। कोई परेशानी आए तो आकर हाल बता जाइएगा। वैसे इत्मीनान रखिए, अब सब ठीक है।’’
घोष बाबू कुछ कहने को हुए पर मौलाना साहब उनकी बाँह दबाते हुए बोले, ‘‘डॉक्टर साहब ठीक कह रहे हैं। गाड़ी का इंतज़ाम करिए, वापस चलते हैं।’’
लौटते समय घोष बाबू का मूड उखड़ा हुआ था। कहने लगे, ‘‘लोग हमारे हेल-मेल और प्यार से कितना जलते हैं। आप लोगों ने सुना वह डॉक्टर क्या कह रहा था? ‘कालोनी उखड़कर आ बसेगी’। हुँह! इन स्वार्थियों के लिए पैसा ही सब कुछ है। मानवता से कुछ लेना-देना नहीं।’’
‘‘ओए छड्ड फुजूल दी गल्ल!’’ कर्तार जी पीठ पर धौल जमाते हुए बोले, ‘‘अपना पुंतुलु ठीक हो गया बस्स! और क्या चाहिए हमें।’’
‘‘लेकिन पुंतुलु को तो देखो हमें कितना पराया समझा। इतनी तबीयत खराब हो गई और हमें बताया तक नहीं,’’ पटेल बाबू बोले।
‘‘यह तो कहो घोष बाबू को ताक-झाँक करने की आदत है, नहीं तो भगवान जाने क्या होता।’’ गायकवाड़ ने मुँह छिपाकर मुस्कराते हुए कहा।
गायकवाड़ का मज़ाक़ समझकर सब हँसने लगे। घोष बाबू भी हँसते हुए बोले, ‘‘शुक्र करो कि मेरी इसी आदत ने महाराज को बचा लिया। अभी थोड़ा तबीयत सँभल जाने दो फिर ख़बर लेता हूँ।’’
पुंतुलु ने खिसियाकर निगाहें नीची कर लीं।
हँसी-खुशी बातें करते हुए सारे लोग अस्पताल से वापस लौट आए।
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