इंद्रधनुष सतरंगा - 6 Mohd Arshad Khan द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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इंद्रधनुष सतरंगा - 6

इंद्रधनुष सतरंगा

(6)

पकड़ो-पकड़ो ! चोर-चोर !

कर्तार जी को अगर कोई सोता हुआ देख ले तो उसे यह समझते देर नहीं लगेगी कि घोड़े बेचकर सोना किसे कहते हैं। कर्तार जी वैसे तो शाँत प्रकृति के व्यक्ति हैं, पर जब सोते हैं तो सारा मुहल्ला सिर पर उठा लेते हैं। इतनी ज़ोर-ज़ोर खर्राटे भरते हैं कि अगल-बग़लवालों का सोना मुश्किल हो जाता है। सोते समय वह अपनी पगड़ी उतारकर किनारे रख देते हैं। लंबे-लंबे बाल खुलकर कंधों पर बिखरते हैं, तो लगता है जैसे पहाड़ पर साँझ का अंधेरा घिर आया हो।

एक रात की बात है। कोई डेढ़-दो बजे का समय था। अमावस का आसमान एकदम साफ खुला हुआ था। तारे चंपा के फूलों की तरह बिखरे हुए थे। शाँत वातावरण में कर्तार जी के खर्राटे ऐसे गूँज रहे थे जैसे बियाबान में शेर की दहाड़। बीच-बीच में झींगुर उनसे होड़ लेने की कोशिश करते थे। पर वे भी बेचारे कब तक अपना गला बैठाते।

अचानक कर्तार जी के घर में कुछ गिरने की आवाज़ सुनकर मौलाना साहब की नींद खुल गई। मौलाना साहब नींद के बड़े कच्चे थे। ज़रा भी खटपट होती कि उनकी नींद उचट जाती। लेकिन सोने में भी उनका जवाब नहीं था। इस करवट जागते, उस करवट सो जाते। अलार्म कभी लगाया नहीं। रोज़ तड़के फजिर की नमाज़ के वक़्त अपने आप आँखें खुल जाती थीं। सर्दी, गरमी, बारिश कभी उनका क्रम टूटा नहीं।

मौलाना साहब ने उठकर दो घूँट पानी पिया और दोबारा करवट बदलकर सोने की कोशिश करने लगे। वैसे तो मौलाना साहब करवट बदलते ही नाक बजाने लगते थे। पर आज जाने ऐसा क्या था कि नींद आँखों से जैसे ग़ायब ही हो गई थी। सारा ध्यान कर्तार जी के घर की ओर लगा हुआ था। मन उस आवाज़ के रहस्य को जानने के लिए बेचैन हो रहा था। मौलाना साहब थोड़ी देर असमंजस में लेटे रहे, फिर उठ पड़े। खिड़की खोलकर बाहर झाँका। पिछले दिनों गलियारे का बल्ब फ्रयूज़ हो गया था। इसलिए गली में धुँधलका-सा छाया हुआ था। उन्होंने खिड़की की सलाख़ों से चेहरा सटाकर भरसक इधर-उधर झाँकने की कोशिश की। कहीं कोई न दिखा। वह बिस्तर पर वापस आ गए और फिर से सोने की कोशिश करने लगे। लेकिन आज जाने क्यों मन को सुकून नहीं था। थोड़ी देर लेटे इधर-उधर करवटें बदलते रहे।

आखि़रकार न रहा गया तो उठे और दरवाज़ा खोलकर गलियारे में आ गए। उन्होंने कर्तार जी की खिड़की को बाहर से धकेलकर खोलने की कोशिश की। खिड़की अंदर से बंद थी। हवा से उड़ते पर्दों के बीच अंदर का अँधेरा झलक मार जाता था। मौलाना साहब झाँकने की कोशिश करते रहे। पर अंदर अंधेरे के सिवा कुछ नहीं दिखा। पर तभी अंदर से ‘करड़-करड़’ की हल्की-सी आवाज़ आती सुनाई दी, जैसे लोहे की कोई चीज़ रेती जा रही हो।

मौलाना साहब ने हैरत से सोचा, ‘कर्तार जी तो खर्राटे भर रहे हैं, फिर यह आवाज़ कौन कर रहा है?’ उन्होंने ज़ोर से आवाज़ लगाई, ‘‘अरे कर्तार जी!’’

कर्तार जी तो नहीं जागे पर अंदर से आती आवाज़ एकदम ठप हो गई। मौलाना साहब चौंक पड़े। उन्होंने लपककर दरवाज़े सेे कान सटा दिए। पर न तो दोबारा वह आवाज़ सुनाई दी और न कर्तार जी ही जागे। मौलाना साहब ने फिर आवाज़ लगाई, साथ ही दरवाज़ा भी खटखटाया।

कर्तार जी फिर भी नहीं जागे। पर अंदर जैसे ख़लबली मच गई। अचानक कोई सामान गिरा। किसी के भागने की आवाज़ सुनाई दी। कोई किसी से टकराया। मौलाना साहब ने आव देखा न ताव। लगे ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने, ‘‘पकड़ो-पकड़ो! चोर-चोर!’’

तभी उन्हें छत पर दो साए भागते दिखे। डर के मारे उनके रोंगटे खड़े हो गए। बचाव के लिए पास कुछ था नहीं। उस वक़्त शोर मचाना ही उन्हें सबसे बड़ा हथियार मालूम पड़ा। ‘चोर! चोर!’ की आवाज़ सुनकर कर्तार जी की भी नींद खुल चुकी थी। वह चीख़ते हुए दरवाज़ा खोलकर बाहर दौड़े, ‘‘क्या हुआ? किधर हैं चोर?’’

डर के मारे मौलाना साहब के मुँह से बोल नहीं फूट रहे थे। वे ‘चोर-चोर’ चिल्लाए जा रहे थे। कर्तार जी के सवाल पर उन्होंने काँपते हाथों से छत की ओर इशारा कर दिया।

कर्तार जी धड़धड़ाकर छत की ओर दौड़ गए। मौलाना साहब उन्हें रोकना चाहते थे। डर रहे थे कि चोरों के पास कोई हथियार न हो। रोकने के लिए उनका हाथ तो उठा, पर मुँह से ‘चोर-चोर’ ही निकलता रहा।

तब तक और घरों की लाइटें जल चुकी थीं। लोग जाग चुके थे। पल भर में सबके सब दौड़े आए।

‘‘अरे क्या हो गया?’’ पंडित जी ने हाँफते हुए पूछा।

‘‘चोर थे---’’ इतने लोगों को सामने पाकर अब मौलाना साहब सहज हुए।

‘‘कहाँ हैं चोर? पकड़ो! जाने मत दो!’’ गायकवाड़ चीख़े। वह एक लंबी और मज़बूत लाठी लेकर आए थे।

‘‘भाग गए। दो थे।’’ कर्तार जी छत से उतरते हुए बोले। उन्होंने पास आकर मौलाना साहब को सटा लिया और कहने लगे, ‘‘आज बचा लिया मेरे भाई, वर्ना मैं तो तानकर सोया था। दरअसल, सुबह मुझे दूकान के काम से दिल्ली जाना था। आज ही बैंक से सवा लाख रुपए निकाले थे। जाने चोरों को कैसे ख़बर लग गई? रब राखे, अगर थोड़ी देर हो जाती तो वे तिजोरी तोड़ने में क़ामयाब हो जाते।’’

‘‘चोरों की इतनी हिम्मत कैसे हुई?’’ घोष बाबू बोले।

‘‘मुहल्ले में ऐसा पहली बार हुआ है।’’ पटेल ने कहा।

‘‘किंतु भगवान की कृपा से कुछ बिगड़ा नहीं।’’ पंडित जी कहने लगे।

‘‘हाँ, मगर अब आगे से पहरेदारी का कुछ इंतज़ाम करना पड़ेगा। शहर में चोरी की वारदातें बढ़ रही हैं।’’ मौलाना साहब ने गंभीरता से कहा।

‘‘हाँ-हाँ, बिल्कुल।’’ सब एक स्वर में बोले।

‘‘यदि संकटों से बचना है तो हमें जागते रहना होगा। असावधान देख नुकसान पहुँचानेवाली शक्तियाँ सक्रिय हो जाती हैं। हमने सोते रहने का परिणाम बहुत लंबे समय तक भुगता है---’’

‘‘पर अब ऐसा नहीं होगा,’’ पंडित जी की बात काटकर मौलाना साहब बोले, ‘‘अपनी हिपफ़ाज़त के लिए अब हम जागरूक हैं। अगर हम इसी तरह जागते रहे और मिलकर रहे तो दुनिया की कोई भी ताक़त हमें नुकसान नहीं पहुँचा सकती।’’

‘‘बिल्कुल सही कहा। हम सब एक हैं।’’ सब एक साथ मिलकर बोले।

‘‘लेकिन हमें अभी पूरे मुहल्ले का एक चक्कर लगा लेना चाहिए। अगर चोर अब भी कहीं ताक में बैठे होंगे तो भाग जाएँगे।’’ कर्तार जी ने कहा।

उनकी बात से सहमत होकर सभी कालोनी का चक्कर लगाने चल दिए।

***