Sailaab - 27 books and stories free download online pdf in Hindi

सैलाब - 27

सैलाब

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

अध्याय - 27

कुछ क्षण चुप रहने के बाद पावनी ने पूछ ही लिया, " तुम शादी क्यों नहीं कर लेती? तुम्हें सहारा मिल जाएगा और तुम्हारे भाई बहनों की जिम्मेदारी उठाने में तुम्हें मदद मिलेगी।"

उसने विस्मय से पावनी की ओर देखा और कहा," शादी और मैं ?"

"हाँ क्यों नहीं? इसमें विस्मित होने वाली बात क्या है ?"

शबनम हल्के से मुस्कुराते हुए बोली, "मुझसे कौन करेगा शादी? और करेगा भी क्यों ? सिर्फ अपनी जिम्मेदारी उसके कंधे पर ड़ालने के अलावा क्या दे सकती हूँ ? न घर, न दहेज, न ही जवानी कुछ भी तो नहीं है मेरे पास। सब गंवा चुकी हूँ। सिर्फ शरीर नाम की लाश के अलावा क्या है मेरे पास?"

"तुम्हारा दिल! उससे अनमोल और कुछ है भला? पैसा घर यह सब चीजें तो कभी भी कमाई जा सकती है और जवानी का क्या आज है तो कल नहीं जहां तक की शरीर की बात है तुम्हारे साथ जो भी हुआ वह एक हादसा था उसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं थी, फिर हादसा तो किसी के साथ भी हो सकता है ।"

"लेकिन मेरी जिंदगी तो बरबाद हो चुकी है न मैड़म... अगर मैंने शादी कर भी ली तो मेरे भाई बहन की देखभाल कौन करेगा? आप के आगे हाथ जोड़ती हूँ मैडम मुझे सपने मत दिखाइए। मुझ में इतनी हिम्मत नहीं है कि मैं फिर से सपना देख सकूँ, मैं जैसे भी जी रही हूँ, खुश हूँ। मुझे ऐसे ही जीने दीजिए। आप से हाथ जोड़ कर प्रार्थना करती हूँ मुझे अकेला छोड़ दीजिए। मुझे अकेला छोड़ दीजिए।" हाथ जोड़ कर शबनम रोती रही। पावनी के पास कहने को कुछ नहीं था बस अपने हाथों को शबनम के सिर पर रख कर आशीर्वाद दे कर वहां से चली आई ।

एक दिन शबनम शतायु के साथ उसके वकील से मिलकर अपने घर की ओर लौट रही थी कि बाजार के बीचों बीच अचानक शबनम के पैर रूक गये। किसी को देखकर वह भय और दु:ख से सकुचा गई। उसके पैर आगे बढ़ नहीं रहे थे। उसने शतायु की बाहों को कस कर पकड़ लिया और भय से उसके पीछे सिमट कर खड़ी हो गई। शतायु को उसका यह व्यवहार कुछ समझ नहीं आया। उसने इधर उधर देखा कुछ दूरी पर कुछ लोग किसी से बात कर रहे थे। उनके अलावा उसे कुछ नहीं दिखा। उसने शबनम की ओर देखा। वह बिना पलक झपकाए एक आदमी की ओर भय से देख रही थी। उसने एक आदमी की ओर हाथ से इशारा करते हुए कुछ कहने की कोशिश कर रही थी। उसकी जुबां से शब्द निकल नहीं रहे थे। भय और दु:ख से उसके होंठ काँप रहे थे। उसने उस आदमी की इशारा किया और रोने लगी ।

"यह वही है... यह वही है ।" इसके अलावा कुछ कह नहीं पा रही थी। उसके चेहरे पर भय से पसीना छूट रहा था। शतायु ने उस आदमी की ओर देखा। एक आदमी कुछ ही दूरी पर एक दुकान से कुछ खरीद रहा था। जब उस अनजान व्यक्ति ने शबनम को उसकी ओर इशारा करते देखा वह समझ गया कि शबनम ने उसे पहचान लिया है। वह वहाँ से छिप कर निकलने की कोशिश में तेजी से भागने लगा। तब पूरी बात शतायु को समझ में आ गयी और उसे पकड़ने वह उसके पीछे दौड़ा। गलियों से भागते हुए उसने बचने की पूरी कोशिश की। लेकिन उसके पीछे दौड़ता हुआ शतायु उस तक पहुंच ही गया और उस आदमी को पीछे से दबोच लिया। लोगों की मदद से उसे घसीटते हुए पुलिस स्टेशन ले गया।

शबनम भी पुलिस स्टेशन पहुँची और उस दरिंदे को पुलिस के हवाले किया। पुलिस ने शबनम की गवाही ली और उसे जेल में बंद कर दिया। पुलिस ने सारी जानकारी ले कर आगे की कार्यवाही जल्द ही करने का वायदा किया। इस लड़ाई में शतायु के हाथ पर गहरी चोट लग गयी थी जिससे रक्त स्राव हो रहा था। शबनम अपने रूमाल से उसकी चोट पर पट्टी बांधी। उस समय शतायु ने देखा कि शबनम की आँखों मे अश्रु छलक आये जो शतायु के आँखों से छुप नहीं पाये। शतायु, शबनम को उसके घर छोड़ कर अपने छोटे से कमरे में वापस लौट गया।

चोट पर पट्टी को ऐसे ही छोड़ कर वह बिना खाये ही सो गया। उसका मन बहुत प्रसन्न और शांत था। शबनम की आँखें बार बार उसकी आँखों के सामने आ जाती थी। उसके घाव पर पट्टी बाँधते हुए शबनम की आँखों में आँसू शतायु के प्रति सम्मान और प्रेम दर्शा रहे थे। उसकी आँखों में नींद नहीं थी उसने करवटें लेते हुए पलंग पर सारी रात गुजार दी ।

जब सुबह हुई, शतायु के लिए वह एक नया सूर्योदय था। उस दिन होली का त्यौहार था। लोग होली का पर्व खुशी खुशी मना रहे थे। शतायु भी बहुत खुश था। शबनम की आँखों में उसके लिए झलकते प्यार को देख कर उसकी जिंदगी में जैसे नये रंग भरने लगे थे। वह होली की खुशी में शामिल हो गया। रंगो की बौछार में भीगते हुए उसने पहली बार जिंदगी में रंगों का स्वागत किया।

पावनी के लिए शतायु के फैसले को मंजूर करना कठिन था। वह हिंदू धर्म को बहुत मानती आई है। हिंदू धर्म और पूजा पाठ उसके रग रग में बस चुका था। जब पावनी ने शतायु के जुबां से शबनम से शादी के बारे में सुना पहले तो उसे इस बात पर यकीन करना मुश्किल था। शतायु हिंदू हो कर एक मुसलमान लड़की से शादी ? और ये वही लड़की है जिसके साथ बहुत बुरी तरह से अमानुष अत्याचार हो चुका है.. उफ़। पावनी कैसे इस शादी को मंजूरी दे सकती है? ये बात पावनी के हृदय में कहीं चुभ रही थी। एक तरफ धर्म के बिरुद्ध शादी और दूसरी तरफ उस लड़की के साथ घिनौना हादसा हो चुका है जिसको अनदेखा करना भी मुश्किल है। ऐसे में शतायु को भला वह कैसे खुश रख पाएगी? तरह तरह के विचार लहरों की तरह पावनी के मन में आ-जा रहे थे। शबनम के साथ शतायु का जीवन कैसा रहेगा? शतायु के साथ मुसलमान स्त्री की शादी यह सोचना उसके लिए मुमकिन नहीं था ।

शबनम की जिंदगी दुर्भर हो चुकी थी। उसके लिए गलियों से गुजरना भी मुश्किल था। चार लोग चार बातें किस किस को भला रोकेगी। शबनम को जब भी बाहर जाना होता वह बुर्का पहन कर मुंह को पूरी तरह ढ़क कर बाहर निकलती फिर भी लोगों की दृष्टि को पार कर चलना उसके लिए आसान नहीं था। लोगों का नज़रों में लांछन या बेचारगी उसे तीर सी चुभ रही थी।

वह खुद के ही प्रश्नों के जाल से निकल नहीं पा रही थी। फिर लोगों का सामना कैसे करती? जब भी वह उसके जीवन के बारे में सोचती उसे गहन अंधेरे के अलावा कुछ नहीं दिखाई देता। उस अँधेरे में जलते हुए दिये की तरह कभी शतायु नज़र आता लेकिन इस खुशी का स्वागत करने की हिम्मत उस में नहीं थी। अपने बहन और भाई को देखते हुए असने अकेले ही जीवन व्यतीत करने का फैसला किया।

उसकी जिंदगी में जो हादसा हुआ था उसके लिए जिम्मेदार कौन है? वह भयानक रात या उस रात के अंधेरे में उसकी मौजूदगी या वह खुदा जिसने उसे गरीबी के बोझ तले दबाए रखा है। उस अंधेरी रात ने उसके सारे अरमान सारी आशाओं को कुचल कर रख दिया। आसमान की तरफ़ देख कर जोर जोर से रोने को मन करता लेकिन रो नहीं सकती थी। उन गुनहगारों को फाँसी की सजा भी सुनाई जाए तो क्या? उसकी जिंदगी में जो कालिख लग चुकी है क्या वह धुल सकेगी। उसके सारे सपने जो चूर चूर हो गए हैं क्या वे खुशियाँ उसकी जीवन में फिर लौट कर आएगी? उसके पिताजी जिन्हें उसने हार्ट अटैक में खो दिया है क्या उन्हें जीवित कर सकेगी? क्या उसकी वह मासूमियत फिर से लौट आयेगी? उसने न जाने कितनी रातें रोते हुए बिताई थी वह खुद जानती है। उसके आँखों के आँसू सूख गए थे ।

पावनी ने खुद को शबनम की जगह खड़ा कर के देखा क्या वह जो सोच रही है सही है? खुद को प्रश्न किया। जो भी कुछ हुआ उस में शबनम की गलती क्या थी? वह अब भी पाक कुरान की तरह पवित्र है। जो दाग उसके शरीर पर लगा है वह तो दुनिया का दिया हुआ है उसमें उस मासूम लड़की की क्या गलती थी, जो अनैतिक चर्या जबरन उसके साथ की गई वह एक हादसा ही तो था। ऐसे ही एक हादसा शबनम के साथ हुई जिसमें उसकी कोई मर्ज़ी नहीं थी। फिर शबनम का क्या दोष? लेकिन क्या वह इस समाज को समझा पायेगी?

***

कुछ महीने बीत गए। जिंदगी की गाड़ी यूं ही चलती रही। शबनम के साथ दुष्कर्म करने वालों की शिनाख्त हो गई। शबनम कोर्ट कचहरी के चक्कर काटने को मजबूर थी। कोर्ट में रोज़ कई नये सवाल खड़े हो जाते। रोज कई नए प्रश्न। कभी उन्हीं सवालों को तोड़ मरोड़ कर पूछा जाता था। रोज़ रोज़ अपने शरीर की दुर्दशा बताए जाने पर मजबूर किया जाता। बार बार भरी अदालत में दलीलों से उसके शरीर और मन को छलनी कर दिया जाता था। ये सब शबनम के लिए असहनीय था। भरी अदालत में कठघरे में खड़ी शबनम को रोज तरह-तरह के व्यंग बातों का सामना करना पड़ता था। लोगों की चुभती निगाहें उससे सहन नहीं होती थी। कोर्ट और घर के अलावा बाहर निकलना उसके लिए बदतर बनते गया। लोगों के तरह तरह की बातें जैसे दिल पर छुरियाँ चला जाती थी।

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