सैलाब - 20 Lata Tejeswar renuka द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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सैलाब - 20

सैलाब

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

अध्याय - 20

शतायु सालों से भोपाल शहर से बाहर नहीं गया। मगर 'इस बार उसे जाना ही होगा।' मन ही मन शतायु ने सोचा। पावनी मौसी ने इस बार कसम जो दे रखी है कि इस संक्रांति को उसे मुंबई आना ही है। शतायु भी क्या कर सकता था जब तक उसने हाँ नहीं कहा तब तक पावनी ने खाना पीना छोड़ रखा था।

शतायु ने मकर संक्रांति मनाने के लिए मुंबई जाने का फैसला लिया। जब बेबे को इसका पता चला वो ख़ुशी ख़ुशी राज़ी हो गयी, "बाबा बहुत अच्छी बात है कि आखिर तुमने मुम्बई जाने को सोचा। जरूर जाओ पावनी को बहुत अच्छा लगेगा।"

"हाँ बेबे, मौसी बहुत दिनों से कह रही थी पर मैने कभी जाने का सोचा ही नहीं। लेकिन इस बार नहीं गया तो मौसी दुखी हो जाएगी। सोहम और सेजल भी छुट्टी ले कर आ रहे हैं, उन्हें देखने का बहुत मन कर रहा है।"

"बहुत अच्छा बाबा। राम, पावनी और बच्चों को मेरा आशीर्वाद जरूर कहना।"

"जरूर बेबे।"

बेबे भी खुश थी कि कुछ दिनों के लिए ही सही शतायु ने भोपाल के माहौल से दूर जाने का सोचा अगर वह इस शहर से कुछ दिन दूर रहेगा तो उसका मन लग जाएगा और इस सदमे से बाहर निकलने में।मदद मिलेगी। शतायु आखिर मुंबई जाने के लिए तैयार होगया। भोपाल से निकलने से पहले उसे कुछ जरूरी काम पूरे करने थे इसलिए वह सुबह सुबह ही घर से निकल गया। "बाबा, कहीं जा रहा है?" बेबे ने पूछा।

"चिल्ड्रन केअर होम जा रहा हूँ बेबे, सोचा मुम्बई जाने से पहले बच्चों से एकबार मिल आऊँगा।"

"मैने कुछ सामान लेकर रखा है इन्हें बच्चों को देना और मेरा आशीर्वाद भी कह देना।"

"जरूर बेबे।"

'चिल्ड्रेन केयर होम' वह जगह है जहाँ जहरीली गैस से पीड़ित, मानसिक और शारीरिक रूप से बीमार बच्चों की देखभाल की जाती है। शतायु हर महीने उन बच्चों के साथ कुछ समय व्यतीत करता है। बच्चे भी शतायु को बहुत प्यार करते हैं उसका इंतज़ार करते हैं। बहुत कम लोग हैं जो इन मासूम बच्चों से मिलने आते हैं।

शतायु घर से सीधा जा पहुँचा चिल्ड्रेन केयर होम में। वहाँ कई तरह के व्यायाम और कसरत सिखये जाते हैं। साथ में पढाई का ध्यान भी रखा जाता है। कुछ बच्चों को शिक्षक व्यायाम सिखा रहे थे और कुछ बच्चे दूर मैदान में खेल रहे थे। शतायु गेट के पास ही रूक गया। छोटे छोटे बच्चों को देख शतायु की आंखें भर आई। कई बच्चे बीमारी से जूझ रहे हैं। किसी की आँखों की रोशनी कम है तो कोई पेट के रोग से बाधित। किसी को चलने में परेशानी तो किसी को साँस लेने में भी तकलीफ महसूस हो रही थी। कोई दिमागी हालात का शिकार है और कोई आजीवन अपाहिज जीवन बसर कर रहा है। जहरीली हवा ने जिन पर असर किया था उनकी भावी पीढ़ियाँ भी खामियाजा भोग रही थी।

चुपके से यहाँ से आगे बढ़ ही रहा था कि किसी एक बच्चे ने अपना हाथ उठा कर उसे "चाचा चाचा" कह आवाज़ दी। उसके नाक और मुँह से पानी बह रहा था। शतायु को देख कर बाकी बच्चे भी "चाचा चाचा" कह कर ताली बजा कर नाचने लगे। महेश उठने की कोशिश करते हुए गिर गया। शतायु ने दौड़ कर जाकर उस अपंग बच्चे को गोद में उठा लिया और उसके साथ ही जमीन पर बैठ गया। सारे बच्चे उसे चारों ओर से घेर कर बैठ गये।

"कैसे हो आप सब ?" पूछा शतायु ने ।

सभी ने खुशी से सिर हिलाए। शतायु को देखते ही उनके चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। व्हील चेयर पर बैठी हुई एक छोटी सी प्यारी सी बच्ची ने दोनो हाथ बढ़ा कर गोद में लेने का इशारा किया। शतायु बाकी बच्चों को छोड़ कर उसके पास गया, "बेटा आप कैसी हो ?"

उसने शतायु के हाथों को हटा कर मुँह फेर लिया। शतायु समझ गया कि वह कुछ दिनों से उन्हें मिलने नहीं आया इसलिए वह नाराज है, "बेटा नाराज़ हो चाचा से। मिलने नहीं आ सका इसलिए? सॉरी बच्चा, और बोलो मेरी बच्ची भारती कैसी हो आप? "

"जाओ आप से बात नहीं करती।" भारती ने मुँह फेर लिया।

"बच्चा सॉरी कहा ना, प्लीज़ माफ़ करदो चाचा को और मुस्कुरा दो।" कह कर शतायु ने अपने कान पकड़ लिये। भारती उसकी इस हरकत पर मुस्कुरा दी। शतायु ने अपनी पास रखी चॉकलेट निकाल कर सभी को दी। भारती ने उसे पास बुला कर उस के गाल पर पप्पी दी। कुछ समय उनके साथ बिताने के बाद उसने ऑफिस रूम में जाकर कुछ पैसे और बेबे का दिया हुआ सामान, बांटने के लिए दिया और बिदा लेकर वहाँ से लौट आया।

शतायु ने मुंबई के लिए ट्रेन में बैठने से पहले पावनी को फ़ोन किया। "मौसी, मैं ट्रैन में बैठ गया हूँ।" घर में ख़ुशी का माहौल था ही शतायु की आने की खबर से सब खुश हो गये। सेजल खुशी से नाच उठी बहुत दिनों बाद मामा के आने की ख़ुशी में घर को खूब सजाया। बिंदु ने भी उसकी मदद की। पावनी, विनिता और गौरव को भी न्यौता दे आई। सबने साथ मिल कर ढेर सारी मिठाइयाँ बनाई। संक्रांति के पावन अवसर पर आंध्र प्रदेश में नए चावल से पोंगल बनाने का रिवाज होता है। उसके साथ साथ ढेर सारे व्यंजन भी बनते हैं। नए कपड़े पहन कर भोगी(भोगी को पंजाब में लोहडी भी कहते हैं।) की आग जलाते हैं। पावनी ने इस पर्व को सारे परिवार और दोस्तों के साथ आंध्र के रिवाज अनुसार खूब मज़े से मनाने का सोचा।

सोहम छुट्टी लेकर घर आया। राम स्टेशन जा कर उसे ले आया। घर पहुँच कर वह बहुत खुश था। आँखें उसकी बार बार नम हो रही थी। महिनों बाद दोनों बच्चों को पा कर पावनी और राम बहुत खुश थे। इसलिए संक्रांति धूमधाम से बहुत ख़ुशी से मनाई गई। शतायु ने भी समय पर पहुँच कर पावनी और राम का आशीर्वाद लिया।

शाम को जब सब इकट्ठा बैठ कर चाय पी रहे थे तब सोहम ने सेजल से कहा, "सेजल कहीं घूमने का प्लान बनाते हैं।" सेजल ने सोहम के निर्णय में हाँ में हाँ मिलाई। "घूमने? हाँ जरूर पर कहाँ चलेंगे?"

सोहम ने धीरे से सेजल के कान में कहा, "माँ, पापा से बात करके देखते हैं।"

"हाँ, भाई पापा से पूछो प्लीज...प्लीज..प्लीज।" दोनों हाथ एक दूसरे से मंथते हुए कहा। उसका उत्साह देख सोहम ने माँ से पूछा, " माँ अभी संक्रांति के बाद 3 दिन की छुट्टी है हम कहीं घूमने चलते हैं। क्या ख्याल है? और पापा आप बताओ कहाँ चलेंगे?"

राम ने सोहम की ओर देखते हुए कहा, "आप सब बताओ आप को कहाँ जाना है आप जहाँ भी जाना चाहो ले जाऊंगा।"

सेजल, "भाई रॉकिंग आईडिया, लोनावला चलें तो कैसा रहेगा?"

"अरे वाह बहुत बढ़िया।"

"सो फाइनल, लोनावला चलते हैं।" सेजल उत्साहित हो कर बोली।

" ठीक है, फिर आज पिक्चर चलते हैं।" सोहम ने कहा।

"पिक्चर, याहू.... !" कहकर सेजल उछल पड़ी। सोहम पावनी को पिक्चर देखने के लिए राजी कराने लगा पर पावनी ने शर्त रखी कि पिक्चर संक्रांति के बाद ही चलेंगे। बिंदु अचानक कहने लगी, "तो लोनावला में पिकनिक के बाद क्रिकेट खेलेंगे।"

"हाँ जरूर", सेजल और सोहम राज़ी हुए।

पावनी ने भी अपनी रॉय रखते हुए कहा, "पुणे में स्थित भीम शंकर जी के दर्शन भी करेंगे।" आखिरकार सब की इच्छा से प्लान बनाया गया। पावनी ने शतायु की इच्छा जानने के लिए उससे पूछा "शतायु तुम्हें कोई आपत्ति तो नहीं है? "

"नहीं मौसी मुझे कोई आपत्ति नहीं है, मुझे भी अच्छा लगेगा।" शतायु सब का उत्साह देख कर खुश था। उसके लिए एक नया माहौल था। सब की राजमंदी से प्लान तैयार हो गया।

आखिरी में राम ने कहा, "तो फिर घूमने का प्लान तैयार हो गया हो तो बाकी मुझ पर छोड़ दो, कैसे जाना है मैं संभाल लूंगा। सेजल और बिंदु 'यस, यस' कहकर हाथ पकड़ कर बच्चों जैसे कूदने लगे। जब पिकनिक की बात छिड़ी है तो खान पान के लिए भी तैयारियाँ की गई।

तरह-तरह के व्यंजन बना कर ड़िब्बे में भरे गये। शतायु ने घर को सजाने में सोहम की मदद की। बिन्दु और सेजल ने पावनी और विनिता की खाना पकाने में मदद की। राम मार्केट जाकर जरूरत के सारे सामान ले आया। साथ ही ढेर सारे नये कपड़े खरीदे गये। बिंदु और सेजल ने मिल कर घर को रंगोली और दिये से सजाया। रंग बिरंगे कागज के फूलों और तरह तरह के ताजा सुगंधित फूलों से आँगन को सुशोभित किया।

***