सैलाब - 18 Lata Tejeswar renuka द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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सैलाब - 18

सैलाब

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

अध्याय - 18

पावनी किचन के काम में व्यस्त थी,आखिर संक्रांति की तैयारियां भी करनी थी। तब घर की घंटी बज उठी। पावनी ने अपना काम छोड़ कर दरवाजा खोला। सामने ४० साल की एक औरत खड़ी थी। उस औरत ने अपना परिचय देते हुए कहा, "मेरा नाम रेवती है, मैं एक टीचर हूँ।"

"हाँ बताइए मुझसे कोई काम था?"

"क्या मैं अंदर आ सकती हूँ? बैठ कर बात करेंगे।"

"अच्छा, आइए बैठ कर बात करते हैं." पावनी ने रेवती को अंदर बुलाया।

रेवती ने उसके पीछे खड़ी एक औरत को संबोधित करके कहा, "मौसी अंदर आ जाओ" कह कर उसके साथ आई ८० साल की एक वृद्धा को भी अंदर बुलाया। दोनो अंदर आ गए। रेवती वही रखे सोफे पर बैठ गई पर वह बुजुर्ग महिला खड़ी रही। पावनी ने जब उसे बैठने को कहा तो वह नीचे ही बैठ गई। उसने सीधे-सादे सूती कपड़े पहन रखे थे। बार बार आग्रह करने के बावजूद भी वह नीचे बैठी रही।

रेवती ने पूछा, "आप नारी कल्याण संस्था में काम करती हैं?"

पावनी ने कहा, "काम तो नहीं करती हूँ लेकिन संस्था की सलाहकार हूँ। आप का कोई प्रोब्लम हो तो निःसंकोच बता सकती है।"

"मैं इन मौसी को न्याय दिलवाने के लिए यहाँ ले कर आई हूँ। क्या आप इनकी मदद कर सकती हैं?"

" बताइए, मैं हर संभव कोशिश करूँगी की इन्हें न्याय मिले।"

रेवती कहने लगी, "मैं एक नाइट स्कूल में काम करती हूँ। वहाँ बहुत सारे बड़े बुजुर्ग भी पढ़ने आते हैं। वही स्कूल में ये मौसी साफ सफाई का काम करती है। कुछ दिन पहले की बात है। मौसी ७-८ दिन काम पर नहीं आई। उनके कई दिनों तक स्कूल में काम पर न आने से और न कोई खबर भेजने से मैं चिंतित हो गई। जब मैं इनके घर गई तो उनके घरवालों ने पहले मुझे ये बताया की वह घर पर नहीं है। कहीं चली गई है और कब तक वापस आएगी पूछने पर कुछ सही जवाब नहीं मिला। फिर उन्होंने कहा की वह गाँव चली गई, अब स्कूल नहीं आएगी।

मुझे आश्चर्य हुआ की वह स्कूल में बिना बताए कैसे जा सकती है? फिर वह कभी भी बिना बताए एक दिन भी छुट्टी नहीं लेती है। बहुत ही मेहनती और जिम्मेदार औरत है। वह इस तरह बिना बताए कैसे जा सकती है। यही बात पूछने पर वे कहने लगे किसी की तबीयत खराब होने से अचानक चली गई। मैं सच मान कर वापस आ ही रही थी तब सामने एक छोटे कमरे से कोई मेरा नाम पुकारते हुए सुनाई दिया। मैंने इधर उधर देखा पर मुझे कोई दिखाई नहीं दिया फिर जब मैंने पीछे मुड कर देखा तो एक कमरे से दो हाथ मुझे इशारा कर रहे थे।

जब मैं पास गई तो देखा कमरा बाहर से बंद था और अंदर से रोने की आवाज़ आ रही थी। मैं दरवाजा खोल कर अंदर गई। अंदर कमरा बहुत ही गंदा था बहुत दुर्गंध आ रही थी। वह कमरा मनुष्य के रहने के काबिल ही नहीं था। वह कमरा उतना ही बड़ा था जितना कि एक गाय रात को आराम से रह सके। मैं वहाँ बहुत देर रह नहीं सकी मुझे उल्टी आने लगी। मैं बाहर आ गई। थोड़ी देर बाद मौसी धीरे से बाहर आई।" रेवती कुछ देर चुप रही, पावनी चुपचाप सुन रही थी।

कुछ देर रुक कर रेवती फिर कहने लगी। "जैसे ही वह बाहर आई उसके घर वाले चारों तरफ से उमड़ पड़े। मुझे बहुत बुरा भला सुनाया और मौसी को खींच कर फिर से अंदर कमरे में ढकेल कर दरवाजा बंद कर दिया। मैं ने जब पुलिस के पास जाने की धमकी दी, तो मुझे भी पीटने के लिए तैयार हो गए थे। अच्छा हुआ की तब तक गाँव के लोग बाहर आ गए थे और उन्हें दबोच लिया और पुलिस को बुला कर हवालात में बंद कर दिया।"

"अच्छा हुआ, पुलिस के हवाले कर दिये।" पावनी ने कहा।

"मगर अब और एक समस्या है कि मौसी के रहने का बंदोबस्त कहाँ करें? इनकी सारी संपत्ति बहुत पहले इनके रिश्तेदार हड़प चुके हैं और अब इनके लिये रहने को कोई जगह नहीं। बस इसलिए आप कुछ कर सकती है सोच कर यहाँ ले आई हूँ।

पावनी मौसी को कुछ पूछती उससे पहले वह महिला कहने लगी, "कुछ दिनों से काम ढूँढ रही हूँ, घर में छोटा मोटा काम कुछ भी हो तो करूँगी , बर्तन, कपड़ा धोना, खाना बनाना या घर की साफ सफाई कुछ भी मना मत करना बीबीजी बस मुझे रहने के लिए स्थान चाहिए। कोई भी काम हो कुछ भी हो करूँगी, मेरे भाई ने मेरी सारी संपत्ति हड़प ली है अब मेरे पास रहने के लिए घर नहीं है। दरबदर ठोकर खा रही हूँ। रेवती जी के कहने पर मुझे स्कूल में फिर से काम दे दिया। अब रहने के लिए जगह चाहिए बीबीजी।" थरथराती आवाज़ में वह बृद्ध महिला बोली।

"ठीक है आप बैठो थोड़ी देर, देखती हूँ मैं क्या कर सकती हूँ।"

पावनी ने किसी को फोन कर कुछ देर बात करने के बाद एक विजिटिंग कार्ड देकर कहा, "आप इस पते पर चले जाइए कुछ दिन के लिए आप को पनाह मिल जाएगी फिर आप अपने लिए घर की तलाश कर भाड़े पर रह सकते हैं। ह्यूमन राइट्स के लोगों से भी बात हो गई है आप की जायदाद पर हक के मामले में वे आप की मदद करेंगे।

पावनी ने रेवती की तरफ देख कर कहा, "अब वह निःसंकोच वहाँ रह सकती है और कुछ मदद की जरूरत पड़े तो इस नंबर पर फोन कर सकते हैं।" रेवती और जमुना बैन पावनी से बिदा लेकर वहां से चले गये।

१२ साल पहले की बात है तब सेजल सिर्फ ८साल की थी। सेजल को गोद में लेकर पावनी सारी रात टहलती रही, गीले कपड़े को माथे पर रखती थी। उसकी पलकों पर रात भर नींद नहीं थी। शाम को जब वह मार्केट से घर लौटी तब देखा सेजल पलंग पर लेटी हुई थी और उसका शरीर बुखार से काँप रहा था। वह जल्दी से सब्जियाँ किचन में रख कर सेजल के पास आ गई।

" सोनू सोनू मेरा बच्चा अभी क्यों सोई हुई है ? क्या बात है ?" जब उसने सेजल के सिर पर हाथ लगा कर देखा उसका शरीर गरम था।

"अरे बेटा अचानक क्या हुआ? क्या कहीं गिर पड़ी? क्या हो गया मेरी बच्ची को?" कहते हुए तुरंत ही राम को फोन लगाया। पावनी की आँखें पानी से भरी हुई थी। बस रोने की ही देर थी।

" हाँ बोलो पावनी! इस वक्त क्यों फोन किया ?"

"सेजल को अचानक ही बुखार चढ़ गया है, अभी मैं जब मार्केट जा रही थी सब कुछ ठीक था सेजल खेल रही थी जब मैं वापस आई उसका शरीर तप रहा था। न जाने क्या हुआ?" उसकी आवाज़ काँप रही थी।

"चिंता मत करो मैं अभी आ रहा हूँ। बस पाँच मिनट, मेरे आते ही अस्पताल लेकर जाएंगे। ठीक है।"

"जल्दी आईए। मुझे घबराहट हो रही है ।"

"ठीक है ।"

राम तुरंत ही ऑफिस से घर आ गया। पावनी ने सेजल को अस्पताल ले जाने के लिए तैयार कर लिया। राम के घर पहुँचते ही वे दोनो सेजल को अस्पताल ले गए। बाइक पर सवार पावनी ने सेजल को हृदय से लगा कर रखा। बार बार उसका चेहरा ताकती रही। जब तक की डॉक्टर ने ये नहीं कहा कि सेजल को मामूली सा बुखार है तब तक पावनी से पानी भी नहीं पिया गया। सेजल का बुखार उतरकर ठीक होने तक पावनी की हालात खराब हो गई थी। उसकी हालत देख राम को पावनी की भी फिकर होने लगी थी।

सेजल को पलंग पर निश्चिंत सोते हुए देख कर पावनी के मन में कुछ वर्ष पुरानी यादें सजग हो उठी। पावनी जा कर सेजल के बालों को सहला कर धीरे से माथे पर चुम्बन दे कर रज़ाई ओढ़ाकर चली आई। सेजल पलंग पर लेटी तो थी लेकिन सोई नहीं थी। उसने पावनी के जाने के बाद रजाई को अपने करीब छाती तक खींच लिया। न जाने उसके मन में क्या चल रहा था ।

***