लाइफ़ @ ट्विस्ट एन्ड टर्न. कॉम
[ साझा उपन्यास ]
कथानक रूपरेखा व संयोजन
नीलम कुलश्रेष्ठ
एपीसोड - 4
उसका जीवन कैसा बदल गया है ? युवा उम्र में बाहर जाते समय वे हमेशा साड़ी पहना करती थी। हाँ, तब इक्का दुक्का स्लीवलेस ब्लाउज़ पहनने वालों में से एक थी। अब तो सलवार या चूड़ीदार सूट, पलाज़ो, गाउंस जैसी सुविधाजनक पोशाकों ने ज़िंदगी आसान कर दी है। अब पास में ही` रिलायंस फ़्रेश `खुल गया है तो बिन्दो दस बारह दिन में एक बार पीछे पड़ कर उन्हें वहां ले जाती है। रास्ते में बड़बड़ाती जाती है ``, अब कहो न मैं कभी मंडियों से सब्ज़ी फल लेने नहीं गई क्योंकि वहाँ जाने में जो पेट्रोल व समय ख़र्च होता है उसकी कीमत लगाई जाए तो सस्ती सब्ज़ी से कहीं अधिक पड़ेगी। दो कदम के इस सब्ज़ी के बाज़ार में कौन सा आपका पेट्रोल फुँका जा रहा है ?``
मन ही मन मुस्करा जाती है और सोचती है- वह पहले अपने छोटे से घर में घर के सामने फेरा लगाती लारियों से ये सब खरीदती रही थी । उसे उन घरेलु औरतों से बेहद चिढ़ होती थी जो लारी के पास खड़ी एक भारी लारी को सड़कों पर घसीटकर सब्ज़ी बेचने वालों को ताने मारतीं थीं, ``भाई !मंडी में तो लौकी बीस रूपये किलो मिल रही है और तुम तीस रूपये किलो दे रहे हो ? ``
वह हमेशा लारी वालों का पक्ष लेती, ``आप ये नहीं सोचतीं ये सब्ज़ी वाले अपने बोरे लेकर सुबह चार बजे उठकर होल सेल मार्केट में सब्ज़ी फल लेने जाते हैं और उसे गलियों गलियों फिरकर बेचते हैं। तो कुछ मुनाफ़ा भी न कमाएं ?``
उसकी पड़ौसिन उसे देखकर हमेशा आँखें तरेरती।
जब बिन्दो के साथ `रिलाइंस फ़्रेश ` से जान छूटती है तो अब इस बदले जीवन में तीन चार दिन के बाद वह सुबह के नाश्ते के बाद एंड्रॉइड मोबाइल हाथ में लेकर वॉट्स एप से ग्रॉसरी शॉप को रोज़मर्रा के सामान के लिए ऑर्डर दे देती है। वो तो उनके पास मीशा आ गई है इसलिए फ़्रिज खोलकर मीशा को दिखाया, `` ये देखो इसमें आइस क्रीम, श्रीखंड, फल, सब्ज़ी, पनीर व चीज़ भर लिए हैं। तुम्हारा जब मन करे इसमें से लेकर कुछ भी खाती रहना। ``
लेकिन वे रोज़ उदास हो जाती है। फ्रिज इन चीज़ों से वैसे का वैसा ही सजा हुआ है। मीशा के सामने मेज़ पर जब कुछ रखकर ज़बरदस्ती खिलाती है, वही मीशा खाती है।
वह कार चलाना कभी सीख नहीं पाई लेकिन मोबाइल से कैब तो बुक की जा सकती है। सोशल मीडिया ने जैसे उनके जीवन में ` सूनेपन `नाम की चिन्दी चिन्दी फाड़ के उड़ा दिया है । एक दिन वे अपना लेपटॉप खोले किसी मुम्बई लड़की की प्रोफ़ाइल देख रहीं थीं। बिन्दो उनके पास चाय का कप रखने आ गई और उसने वो हायतौबा मचाई, ``अय --हय --ये लड़की है या पतुरिया [वेश्या ]? कैसे छोटे छोटे कपड़ों में फोटू लगाये बैठी है ? और आप भी क्या आँखें फाड़े इसे घूर रही हो ? ``
``बिन्दो !ये नया ज़माना है। सब अपनी मर्ज़ी से जी रहे हैं। ये फ़ेसबुक है। इसे सोशल साइट कहते हैं। किसी को अलग अलग मुद्राओं में, नये से नये डिज़ाइनर कपड़ों में अपनी फ़ोटो अपलोड करने का शौक है, किसी को शायरी व कविता डालने का, किसी को अक्लमंदी की बात बताने का.नेट ने, वॉट्स एप ने ये दुनियाँ कितनी छोटी कर दी है। ``
अब उसे क्या समझाए कि पृथ्वी के दूसरे उत्तर्रार्द्ध की बात कुछ मिनटों में खबर बन सबको पता लग जाती है।
बस किस्मत की कोई सौ प्रतिशत भविष्यवाणी नहीं कर सकता। वीरेन के जाते ही दोनों बेटियां उसे अपने पास रखना चाहतीं थीं । चिल्लाती भी थीं क्यों नहीं बँगला बेचकर उनके पास आ जाती। वे ही अड़ी रही थी, ``जब तक हाथ पैर चल रहे हैं तब तक तुम्हारे पापा की निशानी कैसे बेच दूँ ?फिर तुम लोगों के लिए कोई जगह तो चाहिए जहाँ तुम कुछ दिन आकर चैन कर सको। ``
मीशा का छोटा भाई अयन कहता था, ``नानी !आराम करने के लिए रिज़ॉर्ट हैं न !``
`` चुप बन्दर !जब बड़ा हो जायेगा तब समझेगा नानी के घर और रिज़ॉर्ट का अंतर। ``
``अंतर तो समझ में आता है न !आपके बंगले में स्वीमिंग पूल कहाँ है ?``
`` ओये तेरे नाना ने बरसों पहले ये बँगला बनवाया था। तब कोई स्वीमिंग घर में थोड़े ही बनवाता था। ``
``यू आर राईट नानी !`` अपनी जान छुड़ाकर वह भाग जाता ।
टी वी बंद कर दामिनी व मीशा अपने कमरों में सोने चलीं जातीं हैं। आज दामिनी की आँखों में नींद नहीं है वह क्या कुछ सोचती जा रही है कि उसने किस तरह अपनी बेटियों को अलग तरह से पाला है। उनके वजूद, इच्छाओं का उसने व वीरेन ने हमेशा आदर किया है। उन्हें एक व्यक्ति की तरह पाला है लेकिन ये भी साथ वे दोनों बेटियों से कहते भी जाते थे, `` तुम कभी ये मत भूलना कि तुम लड़की हो । तुम्हें जीवन में कर्मठ बनना है लेकिन अधिक आत्मविश्वासी न होकर एडवेंचर नहीं करना, अपनी सुरक्षा का हमेशा ख़्याल रखना है। ``
सावेरी उनसे पूछती, `` कामिनी मौसी भी तो आपकी बहिन हैं फिर वे कैसे दब्बू जैसीं हैं ? ``
दामिनी उत्तर देती थी, `` कोई तेरी बात का सीधा जवाब नहीं दे सकता ऐसा क्यों होता है कि पालने वाली माँ एक ही होती है और संतानों के अलग अलग व्यक्तित्व, आदतें, पसंद बनते चले जाते हैं। कुछ शरीर की `जींस `की करामात, कुछ संगत का असर लेकिन एक ही आँगन व माहौल में पलकर सब जुदा सोच के कैसे हो जातें हैं ? भगवान ही जाने.``
कॉलेज में कोई विश्वास नहीं करता था कि ये कामिनी `मणि बेन `[जिसे हिंदी प्रदेशों में `बहिन जी `कहा जाता है ]टाइप की उस ब्वॉय काट वाले बालों वाली की बहिन है। वह उसे कितना समझाती थी, `` कामिनी! तू इस दुनिया में क्यों डरी सहमी सी रहती है ?``
यदि वह आज सामने हो तो पूछे, `` हर शुक्रवार को संतोषी माता का व्रत रखने वाली बहिन कामिनी ! तेरी बेटी ने क्यों आत्महत्या कर कर ली ? तेरा क्यों संतोष लूट लिया ? ``
शायद वह अपनी बेटी निशि को ये सब नहीं सिखा पाई कि मंदिरों में पूजा करना, व्रत उपवास करना कोई बुरी बात नहीं है लेकिन अपनी समस्यायों के सामने वज्र बनकर पहाड़ की तरह सीना तानकर कर खड़ा होना पड़ता है। इसलिए बिचारी ------।
और मीशा बिचारी किस भँवर में जा फंसी है ?दामिनी को ज़िंदगी कितना कुछ सिखा गई है । यदि सीधी राह पर बिना ट्विस्ट एन्ड टर्न के वह चलती रहे तो फिर वह ज़िंदगी ही क्या ? यदि वे मीशा को इस भंवर से नहीं उबार पाईं तो उनका ज़िंदगी का सब तजुर्बा बेकार है ।
पिछले बरस ही कावेरी ने एक लड़के की फ़ोटो वॉट्स एप पर भेजी थी, साथ में कैप्शन था, `गैस हू ? ही इज़ टू ईयर सीनियर ऑफ़ मीशा `। बाल बढ़ाये, पीछे की तरफ़ छोटा सा जूड़ा बनाये ये एक सुदर्शन युवक की फ़ोटो थी । उनके होठों पर मुस्कराहट आ गई थी -हर पीढ़ी का अपना अपना अलग अंदाज़ होता है।
कावेरी ने कुछ महीने पहले मीशा का कॉलेज प्रोग्राम में गाते हुए वीडिओ भेजा था, ``कोई बोले दरिया है- कैसा, कैसा है कैसा इश्क ---- कोई माने सहरा है -----कैसा कैसा है कैसा इश्क ---कोई सोने सा तोले रे, कोई माटी सा बोले रे, कोई बोले के चांदी का है छुरा---- ये कैसा इस्क है, अजब सा रिस्क है। ``इश्क में पगी लाल गाऊन में सजी, लहराते बालों में मीशा कैसी तन्मय होकर कॉलेज के मंच पर माइक हाथ में लेकर गा रही थी। आँखें कमल बनीं ख़ुशी से इधर उधर डोलतीं अपनी ख़ुशी छलका रहीं थीं। होठों की मुस्कराहट बता रही थी कि चुपके से कोई खजाना दिल में गुप चुप आ बैठा है। इस गीत की सुमधुर रागों नट भैरवी व ताल कहरवा की तान बन गई थी मीशा। हाथ कोमलता से किसी को थामने को आतुर, सिर किसी के सीने में छिप जाने को आतुर लेकिन ----- ।
दामिनी मोबाइल पर वॉट्स एप पर उँगलियों से सामान का ऑर्डर करती सामने सोफ़े पर अख़बार पढ़ती मीशा के पास बैठकर कनखियों से देखती है कैसे बुझे चेहरे से अपने को ख़ुश दिखाने की कोशिश कर रही है।
मीशा के फ़ाइनल एग्ज़ाम हुए अभी पंद्रह दिन ही हुए थे कि दामिनी के पास उनकी बेटी कावेरी का घबराई हुई आवाज़ में फ़ोन आया, ``मम्मी मीशा डिप्रेशन में चली गई है। ``
``क्यों ?``
``प्यार में धोखा, वह सब बाद में बताउंगी। ``
" तुमने कोशिश की कि मीशा को किसी साइकैट्रिस्ट को मिलवाओ----" दामिनी ने अपनी बेटी से पूछा था |
"माँ, वो कहीं जाने के लोए तैयार होती तो ले जाती न ! ----" दूर बैठे दामिनी कर भी क्या सकती थी सिर्फ़ दुआ करने के ?
जब कावेरी मीशा को उसके पास छोड़ने आई थी तो उसे मीशा उलझे हुए बालों में पत्थर का बुत जैसी लग रही थी। ऐसा लग रहा था शरीर तो वहां हैं लेकिन ज़िंदगी की धड़कनें उसे अलविदा कह गईं हैं। बिन्दो उनका सामान उतारने में लग गई। मीशा को माँ कावेरी हाथ पकड़कर घसीटती हुई सी कावेरी के साथ अंदर आ गई थी। कावेरी अपनी माँ के गले लगकर सिसककर रो पड़ी थी, ``मम्मी !इंसान सोचता कुछ और है लेकिन हो कुछ और जाता है। ``।
दामिनी उसे गले लगाकर सांत्वना देती रही, ``चुप हो जा मेरे बेटे। ``
बड़ी मुश्किल से उसने अपने सम्भालकर रूमाल से आंसु पोंछे। दामिनी के भी आंसू निकल पड़े। मीशा ज़बरदस्ती चाय पीने व एक बिस्कुट खाने के बाद वह बैडरूम में जाकर लेट गई थी। दामिनी ने मनुहार भी कि अभी से क्यों लेट रही है लेकिन कावेरी ने आँखों से उन्हें दवाब डालने केलिए डालने के लिए मना कर दिया। वे दोनों ड्रॉइंग रूम में आ बैठीं, ``और बताइये आपका काम कैसा चल रहा है मम्मी! ?``
``बस वीरेन के जाने के बाद अपने को व्यस्त रख रहीं हूँ। समाज के लिए कुछ करने के उनके सपने को पूरा कर रहीं हूँ। तू बता तेरा बिज़नेस कैसा चल रहा है?``
``शुरू में तो मुझे भी विश्वास नहीं था कि मैं इतना तेज़ी से काम करने लगूंगी। ``
दामिनी प्यार से उसके सर पर हाथ फेरती है, ``भगवान तुम्हें ऐसे ही सफ़लता दे.``
``वो तो ठीक है लेकिन मीशा ----.``वह सिसकने लगी।
``रो मत --क्या मुझ पर विश्वास नहीं है ?``
वह उनके गले लग गई, ``इसी विश्वास के कारण तो मैं मीशा को आपके पास लेकर आ गई । ``
रात में बुझे चेहरे से टी वी देखती मीशा को देखकर दामिनी की फिर आँखें भर आईं । कावेरी जब इसे छोड़ने आई थी तो कैसी ज़िंदगी की मार चेहरे पर फैली हुई थी। रो रोकर तड़पती आँखें सिकुड़ गईं थीं। बेजान सी पत्थर आँखें क्या सोचती रहतीं थीं। ऐसा लगता की राहत फ़तेह अली ख़ान के गाये उस गाने ``कैसा ये इस्क है ------। `` शास्त्रीय संगीत की रागें नट भैरवी व ताल कहरवा टुकड़ों में टूटकर उसके चेहरे पर बिखर, उसके वजूद पर लिपट उसे लय हीन बना गईं हैं। उसका चेहरा ऐसे हो गया है जैसे `तड़प `शब्द उस पर बिछ गया हो। । वो कौन होते हैं जो बेटियों के जीवन में आकर , ज़हर घोलकर इनके वजूद को बदल डालते हैं। दामिनी रोना नहीं चाहती तुरंत बोली, ``ओये माताओं बहिनों के सीरियल वाली एक घंटे के बाद तू सो जाना। ``
``क्यों ?``
``भूल गई ? सुबह आठ बजे हमें सेंट ज़ेवियर्स कॉलेज पहुंचना है, जहाँ नीरा जी परिचर्चा करने आ रहीं हैं। वह कॉलेज में लड़कियों के लिए अपनी सुरक्षा सिखाने वाले केम्प में चर्चा करेंगी । ``
``ओ. के.माई रिसोर्सफ़ुल नानी आप कितनी स्मार्ट हो। आपने नीरा आंटी जी को फ़ोन करके कॉलेज में मेरे व अपने आने की अनुमति भी ले ली। मेरी कॉलेज में ट्रेनिंग हो जायेगी आपका एक आर्टिकल लिख
जायेगा। ``
``मीशा ! तू बड़ी समझदार हो गई है। ``
``सच बताइये नानी !पुलिस कमिश्नर नीरा आंटी से मुझे मारपीट सिखवाकर क्या डॉन बनाना चाहतीं हैं ?``कहकर वह खिलखिला कर हंस पड़ी ।
कौन कहेगा कि ये अवसाद जकड़ी हुई है ?उसका चेहरा देखते हुए दामिनी ने सोचा फिर बोली, `` पत्रकारिता व सोशल वर्क करते रहो तो बहुत से लोगों से जान पहचान हो जाती है। आजकल के टी वी सीरियल में नहीं देखती कि रात में चार पांच गुंडों से घिरी अकेली लड़की कैसे ज्युडो कराटे से सबकी धुनाई करके अपने को बचा लेती है या चिली स्प्रे गुंडों की आँखों में डालकर वहां से भाग जाती है। नीरा जबसे अपने शहर में पुलिस कमिश्नर बनकर आईं हैं तबसे वह कॉलेजेज़ में, सोसाइटीज़ में लड़कियों के लिए सेल्फ़ डिफ़ेन्स केम्प लगा रहीं हैं। ``
``ओ --आज फ़्राइडे है, सैटरडे को वह केम्प है, मैं भूल गई थी। लड़कियों को ही क्यों भगवान ने ऐसा बनाया है कि लोग उन्हें शिकार समझते हैं ?``
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नीलम कुलश्रेष्ठ
e-mail---- kneeli@rediffmail.com
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