लाइफ़ @ ट्विस्ट एन्ड टर्न. कॉम - 2 Neelam Kulshreshtha द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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लाइफ़ @ ट्विस्ट एन्ड टर्न. कॉम - 2

लाइफ़ @ ट्विस्ट एन्ड टर्न. कॉम

[ साझा उपन्यास ]

कथानक रूपरेखा व संयोजन

नीलम कुलश्रेष्ठ

एपीसोड - 2

कावेरी को जयपुर अपने घर आये उन्नीस बीस दिन हो चुके हैं लेकिन ऐसा लगता है दिल व घर दोनों खंडहर बन गये हैं। । एक जानलेवा सूनेपन का हर समय अहसास होता रहता है। कितनी - कितनी असंख्य स्मृतियाँ बिखरी पड़ी हुई हैं । मीशा को अपने कलेजे पर पत्थर रखकर मम्मी के पास छोड़ तो आई है लेकिन एक एक दिन वह किस तरह मर रही है ये वही जानती है. रात में एक बार नींद उचट गई तो फिर आने का नाम नहीं ले रही थी। सुबह जैसे ही शांता बेन ने उसे चाय का कप पकड़ाया वैसे ही वह फूट फुट कर रोने लगी, `` कभी कभी जिंदगी हमें ऐसी जगह ले जाती है, जहाँ जाने का हमने कभी सपने में भी नहीं सोचा होता. इसी घर में छोटी सी मीशा, पायल पहन कर छम छम करती सारे घर में भागती फिरती.कितने प्यार से उसे पाला था. मैं उसके बिना कैसे रहूंगी ?``

शांता बेन ने उसके कंधे को थपथपाया, ``बेन ! रड़वो नथी। मीशा बेबी ने सु थयो ?``

कावेरी सकुचाकर अपने आँसु पोंछती कहने लगी, ``वो बीमार रहती थी इसलिए उसकी नानी के पास छोड़ आई।`` मम्मी की अहमदाबाद से भेजी शांता बेन कितनी ही अपनी हो लेकिन अब उसे क्या बताये बिटिया ने इश्क में चोट खाई है। कौन जाने हॉस्टल में रहते अयन के जीवन में भी क्या चल रहा होगा ?

अभी कल की तो बात लगती है शादी के लाल लहँगे- ब्लाउज में सजी- धजी कावेरी, पास में खड़े हुए कार्तिक । धीरे से उसकी कमर पर हाथ फिरा दिया है, गोरा रंग लाल हो गया है कावेरी का। आरती उतारती हुई सलोनी सी सास, ``कावेरी !इस घर में तुम्हारा स्वागत है। ``

चारों तरफ रिश्तेदारों का कोलाहल मचा हुआ है पर उस शोर में भी उसके कानों में बस पति का धीरे से कहा एक वाक्य गूँज रहा है, जो उन्होंने सबकी नजर बचाकर धीरे से कह दिया था, ``घबराना मत कुहू ! मैं हूँ तुम्हारे साथ. लव यू। कुहू! ``

कब वह कावेरी से कुहू बन गयी पता ही नहीं चला। बार- बार बस, ` लव यू ` शब्द उसके दिल को धड़का रहा था । सारी रस्में पूरी हो जाने के बाद आई मधुयामिनी । कितनी भोली और असाधारण अभिव्यक्ति थी, जब उसने हौले से कार्तिक की हथेली की रेखाओं को चूम लिया था।

देखते - देखते बीस बरस बीत गये । इस बीच वह दो सुन्दर से बच्चों की माँ बन गयी । मीशा और अयन । दोनों की परवरिश में वह ऐसी डूबी कि फिर कुछ याद ही ना रहा । आठ दिन बाद उसके विवाह को बीस साल हो जायेंगे, बच्चे बार- बार पीछे पड़े हैं, ``मॉम- डैड इस बार ग्रैंड पार्टी होनी चाहिए। ``

कावेरी बार- बार कहती है, ’`‘ बीस साल होने पर कोई ग्रैंड पार्टी करता है क्या। पच्चीस साल पर करते हैं - सिल्वर जुबली ‘`

कार्तिक कुछ नहीं बोलते, बस मंद मंद मुस्कुराते हैं ।

``कुछ तो बोलो तुम, कहते क्यों नहीं कुछ?``

``क्या कहूँ जान, करने दो बच्चों को अपने मन की । पाँच साल और किसने देखे हैं’?``क्या नियति ही कार्तिक के मुँह से यह सब कहलवा रही थी।

उस दिन उसकी मैरिज एनिवर्सिरी थी। । कार्तिक ने हिल्टन में पार्टी रखी थी । एक दिन पहले से ही उसने कह दिया था, `` कल कहीं मत जाना, सुबह से ही अपन साथ रहेंगे । ``

रात भर दोनों पुराने दिन याद करते रहे । जयपुर में बिताये वह दिन, जब दिन इन्द्रधनुष और रातें रंगीन होती थीं । सारे दिन जैसे दोंनो घोड़े पर सवार रहते थे, कभी हवामहल, कभी आमेर, कभी सेन्ट्रल पार्क के किसी कोने में रोमांस तो कभी नाहरगढ़ । किसी किसी दिन बस शॉपिंग और फिर कोई भी बाज़ार ना बचता। बापू बाज़ार, जौहरी बाज़ार सब जगह की खाक छानते रहते दोंनो ।

``कार्तिक, सुनो तो, मिस मेहता को भी बुला लें ?``

``मुझसे क्यों पूछ रही हो ? मैंने क्या तुम्हें आज तक किसी भी बात के लिए मना किया है जान !’`

`` तो फिर समीर को भी बुला लूँ?’`यह कहते हुए कावेरी के चेहरे पर शरारत झलक उठी.

‘` एक काम करो कुहू, तुम और समीर ही पार्टी मना आओ, तुम्हारा कितना बड़ा दीवाना है, क्या मैं नहीं जानता? एक बात कहूँ कुहू, कभी मुझे कुछ हो जाये तो तुम समीर से शादी कर लेना । ``

कावेरी की आँखें छलक गयीं, `` आज के दिन ऐसी बात कर रहे हो ? ``

कार्तिक ने उसे गले से लगा लिया, ``मज़ाक कर रहा था जान ! तुम तो रोने लगी। ``

`‘चलो अब जो रह गया हो, उसे फ़ोन कर दो.``

दोनों अपने अपने सपनों में गुम थे । दोपहर का खाना खाकर उठे ही थे कि फ़ैक्टरी से फ़ोन आ गया, ``एक वर्कर का हाथ मशीन में आ गया है, साहब! आप जल्दी से आ जाइये । ``

कावेरी ने कहा, ``’ किसी और को भेज दीजिए, आज मत जाओ। `` पर वह मानने को तैयार ही नहीं हुआ ।

``जल्दी आ जाना । ``

``बस वहाँ सब ठीक करके जल्दी से आता हूँ। ``

``तुम दुल्हन बनके तैयार रहना । ``

शादी के इतने बरस बाद भी कपोलों पर गुलाबी रंग बिखर गया कुहू के।

***

शाम के पाँच बज चुके हैं, वह सजी- धजी बैठी है, कार्तिक का कहीं अता- पता नहीं है । बच्चे बार बार परेशान हो रहे हैं। मम्मा अपन होटल चलते हैं, सात बजे से सब मेहमान भी आना शुरू हो जायेंगे, डैड सीधे वहीं आ जायेंगे । बड़ी मुश्किल से कार्तिक का फ़ोन मिला, ``तुम सब होटल पहुँचो, मैं एक घन्टे में आता हूँ। ``

सात, आठ फिर नौ बज गये । केक काटे बिना ही मेहमानों को खाने के लिए मना लिया उसने । अभी खाना शुरू ही हुआ था कि हॉस्पीटल से फ़ोन आया, `` कावेरी जी बोल रही हैं?``

`` जी हाँ, मैं कावेरी ही बोल रही हूँ। ``

``मैडम! मैं एस. एन.हॉस्पीटल से बोल रहा हूँ, आपके पति का ऐक्सीडेन्ट हो गया है, जल्दी आ जाईये। ``

उसके बाद की कहानी व्यथा, दुख और पीड़ा के सिवा कुछ भी नहीं है। जब वहाँ पहुची तो सब कुछ ख़त्म होने की तैयारी में था । कार्तिक उसे देखकर हौले से मुस्कुराया और उसके होंठ काँपे ।

`` कहो कार्तिक क्या कहना है ?``उसने अपने कान उसके होठों पर लगा दिये।

``अलविदा! कुहू ! हैप्पी एनीवर्सिरी । `` कार्तिक की साँसों ने उसके गालों को छुआ। कावेरी के आँसुओं ने उसे अंतिम स्नान करा दिया ।

उसके बाद शुरू हुई असली जीने की लड़ाई । मीशा थी पन्द्रह साल की, अयन बारह का। दोनों की पढ़ाई लिखाई, जवान होती हुई बेटी की चिन्ता । वह तो अच्छा हुआ कि कोठी उसकी अपनी है । अच्छा खासा पैसा भी है पर कब तक चलेगा ? कुछ तो करना पड़ेगा। आर्थिक मुसीबतों से भी ज़्यादा बड़ी समस्या आयी, उसकी ख़ूबसूरती और उम्र । कल तक जो उसे` भाभी `, `भाभी `कहते नहीं थकते थे, उन सबके लिए वह कावेरी हो गयी । यहाँ तक कि उसके बैंक मैनेजर ने एक दिन यहाँ तक कह दिया, ``आपको बैंक आने की ज़रुरत नहीं है, मैं खुद घर आकर पेपर ले जाऊँगा। आपके बच्चे कितने बजे स्कूल जाते हैं ?``

वह सब समझ गयी, फिर व उस ने उस बैंक में अपना अपना एकांउट ही बन्द करवा दिया। एक लड़का जो उसकी कॉलोनी में ही रहता था और उसे बहिन कहता था, कार्तिक के जाते ही उसकी नज़रों में उसने उभरती लोलुपता देखी और एक दिन उसने कह ही दिया, `‘आज से अपन फ़्रेंड । ‘`

`‘हैं ! क्या बोला, फिर से बोलना’

`` आज से अपन फ़्रेंड। ``

``वाह मेरे शेर !कल तक तू मेरा भाई था, आज दोस्त बन रहा है। बड़ी हिम्मत है तुझमें। आज के बाद आस- पास भी दिखा तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा.``

उसके जाते ही फूटफूट कर रो पड़ी वह। उधर ससुराल की तरफ़ के एक महानुभाव बहाने ले लेकर फ़ोन करने लगे थे, उनकी भी अक्ल ठीक करनी पड़ी थी।

कार्तिक के जाते ही वह इन गिजगिजी लोलुप आँखों से घिरी घबरा गई थी। धीरे धीरे उसने अपने आप को फ़ैक्टरी के और सोशल वर्क में अपने आपको डुबो दिया । कितना भी औरत अपने को मज़बूत बनाये लेकिन उसके आस पास की दुनियां कितनी क्रूरता से याद दिलाती रहती है कि तुम्हार पति क्या गया तुम अशुभ हो गईं। ननद की बेटी की शादी में उसे हल्दी की रस्म के समय उन्होंने लताड़ दिया था, ``भाभी !तुम कमरे में जाकर बैठ जाओ। चौक पर रक्खे इस शुभ सामान पर तुम्हारी परछाईं भी नहीं पड़नी चाहिए। ``

कैसे मीशा चीख पड़ी थी , ``बुआ जी !आपको ऐसा कैसे कहने की हिम्मत हुई ?वी आर प्राउड ऑफ़ आवर मदर । आपने देखा नहीं है किस तरह इन्होंने पापा की फ़ैक्टरी संभाल ली है। ``मीशा लड़कियों का ग्रुप छोड़ उसके पास आकर खड़ी हो गई थी।

कुछ रिश्तेदार खुलकर ननद का साथ नहीं दे रहे थे लेकिन उनकी नज़रें बता रहीं थी कि उसे अंदर कमरे में चला जाना चाहिए लेकिन उसकी छोटी ननद तो पीछे ही पड़ गई, ``भाभी !आप भी टिम्मी के हल्दी चढ़ायेंगी। ``

ये तो स्वयं कावेरी ने मना कर दिया, `` यहां रहने दीजिये, आपके बेटे की शादी में ज़रूर उसे हल्दी चढ़ाउंगी। ``

उसकी चाची सास तो रो उठीं, ``कावेरी !तुम्हारी बेटी तो कम से कम समझदार है। मेरी बेटी ने करवा चौथ से तीन दिन पहले कोलकत्ता से फ़ोन किया कि भाभी की पहली करवा चौथ है। तुम उनके साथ सुहाग का सामान लेने बाज़ार मत जाना। सुहाग के सामान पर आप जैसों की परछाईं भी नहीं पड़नी चाहिये। जैसे इनके जाते ही मैं कोई अभागा श्राप हो गई थी। ``

कावेरी व मीशा भी सिसकियों से रो उठीं थीं.

कितनी पीड़ा, कितनी ज़िम्मेदारी होती है बिना पति के बच्चों को बड़ा करने में। अयन इंजीनियरिंग परीक्षा में चयनित होकर रुड़की चला गया था । मीशा को बी बी ए में एडमीशन मिल गया। जबसे उसे उस वेलेंटाइन डे से मीशा व मिहिर के विषय में पता चला था । उसने चुपके से उसके परिवार की छानबीन करवा ली थी। तबसे उसके होठों पर मुस्कान थिरकने लगी थी.ये मुस्कान और गहरी हो गई थी जब उसने कॉलेज की स्टेज पर मीशा को गाते देखा, ``ये कैसा इस्क है ----अजब सा रिस्क है। ``

कैसी होतीं हैं बेटियां ? जैसे ही जीवन में कुछ नया होता है सब कुछ माँ के आँचल में उड़ेल देतीं हैं। मीशा का गाते हुए वीडिओ माँ को वॉट्स एप कर दिया था।

उसने सोचा भी नहीं था कि जीवन फिर ऐसा झटका दे जाएगा। बी बी ए फ़ाइनल की परीक्षा के बाद अचानक मीशा गुम सुम अपने कमरे में बंद रहने लगी। कुछ दिनों से वह देख रही थी मीशा एकदम उदास, चुपचाप एकटक दीवारों को देखती रहती है। कभी- कभी बेवजह उसके आँसू गिरते रहते. उसने उससे बहुत पूछने की कोशिश की, `` तुझे क्या हो गया है मीशा !?बताती क्यों नहीं हैं ?``

मीशा की हरकतों से उसे पता लग गया कि वह डिप्रेशन में जा रही है। उसने जो कावेरी को बताया उससे तो उसकी जान ही निकल गई। ग़मग़ीन मीशा को अकेले घर पर कैसे छोड़े ? कावेरी भी एक दो घंटे फ़ैक्टरी का काम देखकर घर आ जाती।

अचानक उस दिन मम्मी का फ़ोन मिला था, ``मुम्बई में हमारी बिट्टो मौसी की बेटी निशि ने अपने बेटे बंटी सहित आत्महत्या कर ली है। ``

``ओ --नो , आई कांट बिलीव दिस। ``

दामिनी की आवाज़ थर थर कांपे जा रही थी, ``कामिनी रास्ते में हैं। उसके पति देवेश जी दिल्ली टूर पर हैं। वे वहाँ से ही मुम्बई पहुँच रहे हैं। मैं भी फ़्लाइट बुक होते ही निकल जाउंगी। ``

``मम्मी !ये क्या हो गया ? मैं भी मीशा के साथ मुम्बई पहुंचतीं हूँ । ``

``अभी कामिनी ठीक से बात भी नहीं कर पा रही। कामिनी पहले मुम्बई पहुँच जाए, तब उससे बात करतीं हूँ। मेरे फ़ोन का इंतज़ार करना , तब तक बुकिंग नहीं करवाना। ``

शाम तक दामिनी का फ़ोन आ गया था, ``कामिनी ने कहा है कि ये आत्महत्या का मामला है इसलिए उसके दामाद नहीं चाहते कोई यहाँ आये। वैसे भी उनके दो रूम के फ़्लैट में पानी की कमी है। निशि एक पत्र छोड़ गई है जिसमें उसने लिखा है कि मेरी आत्महत्या के लिए कोई ज़िम्मेदार नहीं है। पड़ौसियों ने भी दामाद जी के फ़ेवर में गवाही दी है कि कभी उन्होंने पति पत्नी के झगड़ने की आवाज़ नहीं सुनी। दामाद जी तीजे की पूजा करवा कर अपने पेरेंट्स के साथ उनके घर चले जायँगे। ``

``फिर तो आप भी नहीं जा रही होंगी ?``

``नहीं जा रही। अगर जा पाती तो मन हल्का हो जाता। ``

मौसी कामिनी के उनके घर भोपाल पहुँचते ही मम्मी तो तुरंत मिल आईं थीं। उसकी फ़ेक्टरी में ऑडिट चल रहा था, वह जा नहीं पाई थी। उधर निशि की आत्महत्या ने उसे बुरी तरह डरा दिया था । उसके काम इतने फैल चुके थे कि उसका हर समय घर रहना सम्भव नहीं है । हर समय सोच व दुःख मे डूबी मीशा कहीं कुछ ------अरे !नहीं प्यार के झटके बहुत लोगों को लगते रहते हैं ---लेकिन फिर भी कहीं ----नहीं, नहीं, कुछ तो इंतज़ाम करना ही होगा।

दामिनी भी निशी की आत्महत्या से घबरा गई थी, उन्होंने भी यही सुझाव दिया था, ``कावेरी !तू बिलकुल रिस्क मत ले। मीशा को मेरे पास छोड़ जा। ``

मीशा को डिप्रेशन में से नानी ही निकाल सकती थी । ये सोचकर वह उसे दामिनी के पास छोड़ आयी है । कौन जाने अयन के जीवन में भी क्या चल रहा होगा ? थक चुकी है कावेरी। लेखा जोखा लगाने में लगी है, जीवन में क्या खोया क्या पाया । आँसू हैं कि रूकने का नाम ही नहीं

``कुहू!``

``कौन, कार्तिक? ``

कोई नहीं है। सब मन का वहम

`` आ जाओ कार्तिक !बच्चों को तुम्हारी ज़रूरत है, मुझे भी । ’`

उसकी आवाज़ सन्नाटे के शोर में दब कर रह गयी । उसके कलेजे में एक हूक उठी -इस समय क्या कर रहीं होंगी मम्मी व मीशा ?

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निशा चंद्रा

ई-मेल ---nishachandra60@gmail.com

परिचय -जन्म स्थान— आगरा, शिक्षा ——- एम. ए, हिन्दी,

प्रकाशित कृतियां—— चार कहानी संग्रह- बोनसाई, कैनवास, श्रृंखला और डैफोडिल तथा एक संस्मरण व यात्रा वृतान्त प्रकाशित । इसके अलावा विभिन्न साहित्यिक व प्रतिष्ठित पत्रिकाओं, ` अभिनव इमरोज`, ` वर्तमान साहित्य, `कथादेश`, `समावर्तन`, भाषा सेतु `व `फ़ेमिना`, `वनिता`, ` होम मेकर`, `जागरण सखी`, `संगिनी `इत्यादि में समय समय पर कहानियां प्रकाशित ।

पुरस्कार——— प्रथम कहानी संग्रह बोनसाई और दूसरा कहानी सग्रंह डैफोडिल ‘ हिन्दी साहित्य अकादमी ‘ द्वारा पुरस्कृत। हिन्दी साहित्य परिषद द्वारा आयोजित कहानी प्रतियोगिता में क्रमश: प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय पुरस्कार प्राप्त। कहानी मदर्स-डे को प्रथम पुरस्कार व रजत पदक राज्यपाल श्रीमती कमला बेनीवालजी के वरद हस्तों द्वारा प्राप्त। इसके अलावा विभिन्न पत्रिकाओं मे आयोजित प्रतियोगिताओं मे कहनियां व कविताएं पुरस्कृत।

सम्प्रति——- अस्मिता महिला बहुभाषी संस्था की सचिव, इन्डो जर्मन लैग्वैंज एन्ड कल्चरल सोसायटी की ट्रस्टी, कर्मा फाउन्डेशन की कोर कमेटी की सदस्य व स्वतन्त्र लेखन।

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