अदृश्य हमसफ़र - 27 Vinay Panwar द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अदृश्य हमसफ़र - 27

अदृश्य हमसफ़र…

भाग 27

दोनो ही काफी देर तक एक दूसरे के गले लगी खड़ी रही। अंततः ममता ने ही देविका को खुद से अलग कर जाकर सोने को कहा।

ममता-" देविका जाकर सो जाओ। सुबह भी तो जल्दी उठने की आदत है तुम्हें। देखो नींद से आंखे भी बोझिल होने लगी हैं। "

देविका ने ममता को छोड़ा तो न जाने क्यों उसे लगा जैसे कुछ छूट सा रहा है। जैसे मन प्राण तो यहीं ममता के पास ही रह गए और शरीर को वह लेकर जा रही है। ममता को छोड़कर जाने के लिए उसे खुद से ही संघर्ष करना पड़ रहा था। लेकिन जाना तो था ही। जाते जाते भी दरवाजे के बीचोंबीच रुक गयी और मुड़कर फिर से ममता को देखने लगी। ममता भी उसे ही जाते हुए देख रही थी तो नजरें मिलते ही हौले से मुस्कुरा दी।

देविका पलटकर कमरे में वपिस आई और धीरे से कहा-" जिज्जी, इन दो दिनों में मैंने इतना तो जान ही लिया कि उनका कोई कसूर नही। आप हैं ही इतनी प्यारी कि कोई भी प्यार किये बिना कैसे रहे। "

ममता के गाल शर्म से गुलनार हो उठे।

भवें सिकोड़ती हुई झूठ मूठ नाराजगी के अंदाज में देविका से कहा-" धत्त, पगली हो तुम देविका। "

देविका-" सच्ची जिज्जी, आपमें गजब का आकर्षण है। आपकी आंखों की सच्चाई किसी को भी खींचने का सामर्थ्य रखती है। "

ममता-" अब तुम जाती हो या मैं खुद छोड़ने चलूं तुम्हें। "

कहते कहते ममता ने देविका का हाथ पकड़ लिया।

देविका-" अरे अरे, जाती हूँ न बाबा। "

मुस्कुराती हुई देविका उसके कमरे से निकल गयी और जाते जाते दरवाजा भी भिड़ा गयी।

देविका के जाने के बाद ममता ने सबसे पहले अपनी टिकट बुक की और फिर बिस्तर पर लेट गयी सोने की कोशिश तो की लेकिन उसकी आंखों से नींद उड़ चुकी थी। सुबह क्या कुछ कहूँ जिससे कि घरवाले शांति से मान जाएं। बच्चों की तबियत का बहाना भी नही लगा सकती क्योकिं अभी तो सभी यहाँ आये ही थे।

बिजनेस के किसी काम का बहाना ही लगाना पड़ेगा। हम्म, यही ठीक रहेगा।

ये अनुराग ने मुझे किस उलझन में फंसा दिया है।

अपने मन की बात न कहते तो आराम से दस दिन सभी के साथ कैसे बीत जाते पता भी न चलता।
अगर उनकी अभी की वर्तमान स्थिति को देखूं तो उन्होंने जो भी कहा ठीक ही रहा कम से कम सारी तस्वीर साफ तो हो गयी।

अब जो स्थिति है उसमें मेरा जाना ही बेहतर है।

मैं भी न जाने कैसी मूढ़मति हूँ जो इतना भी नही समझ पायी कि अनुराग मुझसे ही प्रेम करते हैं।

अगर समझ जाती तब कौनसा उनको चैन से जीने देती।

हर बात पर तो लड़ने बैठ जाती थी।

ममता एक के बाद एक खुद से सवाल करती जा रही थी और जवाब भी तलाशती जा रही थी। कभी अनुराग पर गुस्सा आता तो कभी खुद पर, कभी किसी लम्हें पर मुस्कुराती तो कभी खुल कर हंसी छूटती। अनुराग से विचारों की दिशा बदली तो देविका पर आकर अटक गई। कितना शांत और निर्मल चेहरा है देविका का। रंगत भले ही सांवली हो लेकिन गजब का आकर्षण है चेहरे में। सहनशीलता का तो कोई जवाब ही नही। कौन ऐसी महिला होगी तो अपने ऊपर लगते बांझ के इल्जाम को भी चुपचाप स्वीकार कर ले और पति को भनक तक न लगने दे। पति के ह्रदय में दूसरी महिला के साथ उनको ह्रदय से स्वीकारना और सब कुछ जानते हुए भी चेहरे पर शिकायत की एक शिकन भी नही। ईश्वर ने फुरसत में बैठकर जोड़ी बनाई होगी। भगवान भी तो जानते हैं अनुराग के हठी स्वभाव को। उसके हाथ खुद ब खुद प्रार्थना के लिए जुड़ गए-" हे माँ, मुझे इस अनजाने अपराध से मुक्त करना। देविका को उसकी साधना का फल अवश्य देना माँ नही तो न जाने कितने लोगों का ईश्वरीय आस्था से विश्वास खत्म हो जाएगा। "

दो दिन अनुष्का के ब्याह की गहमागहमी में,

तीसरे दिन बारात और फिर अनुराग के साथ छत पर किया रतजगा,

आज चौथे दिन भी 4 घण्टे दिमागी कसरत से जूझना। ममता शारीरिक थकान की अपेक्षा मानसिक थकान से त्रस्त थी।

अब भी सुबह जल्दी उठकर समान समेटना और फिर 11 बजे की फ्लाइट पकड़ने के लिए घर से 9 बजे निकल जाना होगा। 9 बजे तक कुछ जन तो सोते ही रहेंगे लेकिन बाकियों से निबटने के लिए मुझे जूझना पड़ेगा। निसन्देह, सभी को झटका तो लगेगा मेरे यूँ अचानक जाने की खबर से।

इन सवालों और जवाबों में उलझते हुये ममता कब नींद के आगोश के जाती गयी उसे खुद ही पता नही चला।

सुबह आंख खुली तो सर्वप्रथम देविका के ही दर्शन मिले। हाथों में चाय की ट्रे लिए उसे जगाए जा रही थी। ममता अपलक उसे देखती रह गई। इतनी सुबह सुबह नहा चुकी थी देविका और प्रातः पूजन भी कर चुकी थी। उसके बाल गीले थे जिनमें से पानी मोतियों की लड़ी की तरह टपक रहे था। माथे पर वही केसर का तिलक। आंखों में काजल और माथे के बीचोंबीच लाल सिंदूर से भरी हुई मांग।

न जाने एकदम से क्या हुआ कि ममता का हाथ उसके सिर पर आशीर्वाद की मुद्रा में चला गया स्वतः ही उसके मुँह से निकला-" देविका, तुम्हारे सिंदूर की ये लाली ताउम्र कायम रहे। तुम्हारा यह रूप जीवन भर यूँ ही खिला रहे। "

"जिज्जी"- देविका का भीगा स्वर निकला और आंखों में बूंदे छलक आयी। "ईश्वर करे आज आपकी वाणी पर सरस्वती का वास हो और आपका दिया आशीर्वाद सफ़ल हो जाये। बड़ी माँ से सुना था कि जिनके दिल साफ होते हैं न, उन पर ईश्वरीय कृपा कुछ ज्यादा ही होती है। सालों से देख रही थी और सभी से सुन भी रही थी। अब जबकि यह दो दिन आपके साथ बहुत करीबी में बीते हैं आपके निश्छल ह्रदय ने तो मुझे भी अपना मुरीद बना लिया। "

ट्रे को पलंग की बगल में रखे स्टूल पर रखकर देविका तुरन्त झुक गयी और ममता के पैर पकड़ कर चूमने लगी।

ममता ने तुरन्त उसे पकड़ कर अपनी तरफ खींचा और गले से लगा लिया और उसके सिर पर हाथ घुमाने लगी।

ममता-" देविका, ईश्वर करे आज सच में मेरी जिव्हा पर माँ सरस्वती का वास हो। मुझे खुशी होगी अगर तुम्हें तुम्हारी साधना का मनचाहा परिणाम मिले। देख रही हूँ अनुराग के लिए दिन रात एक कर रखा है तुमने। मैंने और भी कैंसर से पीड़ित लोगों को देखा है कैसे हिम्मत हार कर बैठ जाते हैं। तुम दोनो का ही जीवन के प्रति सकारात्मक रवैया और एक भयावह बीमारी को जानते हुए भी उससे जूझने का तुम दोनो का हौसला अद्वितीय और प्रेरक है। यकीनन तुम दोनो की जोड़ी कोई साधारण नही अपितु दैवीय अनुग्रह से अनुग्रहित है। अनुराग से प्रेम तो हम दोनों ने ही किया है भले ही प्रेम का स्वरूप जुदा रहा हो। मेरे लिए भी भले ही उनकी वर्तमान स्थिति असहनीय है लेकिन तुम्हारी लगन पर ऐतबार भी बहुत है। देवी माँ इतनी भी अन्यायी कभी नही हो सकती कि हमारे विश्वास और तुम्हारी आस्था को चोट पहुंचाएं। तुम्हारे जैसे भक्त भी तो माँ को मुश्किल से मिलते होंगें न। " ममता ने गम्भीर हुए माहौल को हल्का करने की नीयत से कहा और मुस्कुरा दी। "आओ चलो चाय पी लो मेरे बाबू नही तो दोनो की ही ठंडी हो जाएगी। "

चाय पीते वक़्त दोनो के बीच अब मौन बातें कर रहा था। सुकून भरी शांति थी। देविका का चित्त प्रसन्न था कि सुबह सुबह ममता से बिन मांगे मनचाहा आशीर्वाद मिला था। दूसरी ओर ममता देवी माँ से अपने कथन की सत्यता के लिए अनुग्रह में रत थी।

क्रमशः

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