अदृश्य हमसफ़र - 26 Vinay Panwar द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • मुक्त - भाग 4

        मुक्त -----उपन्यास की दर्द की लहर मे डूबा सास भी भारे छो...

  • इश्क दा मारा - 39

    गीतिका बहुत जिद करने लगती है।तब गीतिका की बुआ जी बोलती है, "...

  • My Wife is Student ? - 25

    वो दोनो जैसे ही अंडर जाते हैं.. वैसे ही हैरान हो जाते है ......

  • एग्जाम ड्यूटी - 3

    दूसरे दिन की परीक्षा: जिम्मेदारी और लापरवाही का द्वंद्वपरीक्...

  • आई कैन सी यू - 52

    अब तक कहानी में हम ने देखा के लूसी को बड़ी मुश्किल से बचाया...

श्रेणी
शेयर करे

अदृश्य हमसफ़र - 26

अदृश्य हमसफ़र…

भाग 26

ममता की बात सुनकर देविका ने हामी भरते हुए गर्दन भी हिला दी।

अनुराग से रहा नही गया और पूछ बैठे-" मुंन्नी, यह क्या कानाफूसी चल रही है। मेरे खिलाफ क्या साजिश रची जा रही है? ह्म्म्म, बताओ तो। "

ममता और देविका दोनो ही अनुराग की बेचैनी पर खिलखिलाकर हंस पड़ी।

देविका हंसी को दबाते हुए कह उठी-" क्यों जी, क्या हर बात आपको बताना जरूरी है? "अरे...अरे...कहते हुए अनुराग बस विस्मय मिश्रित हंसी हँसकर रह गए।

देविका के साथ ममता वहाँ से चली गयी। जाते जाते अनुराग को भी जल्दी आने को कह गयी। उस वक़्त तो अनुराग ने हामी भर दी लेकिन उनके जाते ही सोच में गुम हो गए।

कितना हल्का महसूस हो रहा है आज । मन का सारा बोझ ही उतर गया हो जैसे। एक अपराधबोध जो हर पल सालता रहता था कि यूँ एकदम से मुंन्नी के सामने न आने के फैसले से कितनी दुखी हुई होगी वह। दुखी तो हुई लेकिन वह तो बहुत हिम्मती निकली। रोते पीटते रहने की बजाय खुद को सशक्त औऱ स्वावलम्बी बनाती चली गयी। उसका उठाया हर कदम उसे बेहतर से बेहतरीन बनाता चला गया। हर घड़ी हर एक छोटे छोटे से काम के लिए भी अनुराग की तरफ ताकने वाली मुंन्नी आज मनोहर जी के न रहने पर उनका बिजनेस भी सम्भाल रही थी। बच्चों की शादी भी कर चुकी थी। कितनी जिम्मेदारी से काम करती है कहीं भी जरा सी चूक की कोई गुंजाइश ही नही। खुद को बदलने के लिए जाहिर है उसने खूब संघर्ष किया होगा।

मुझे लगता था कि मुंन्नी प्रेम को नही समझती लेकिन वह तो इतनी गूढ़ ज्ञानी निकली जिसका मुझे कोई अंदाज ही नही था। मैं तो महज साधारण प्रेम में डूबा रहा और उसने तो प्रेम के चरम रूप को जीया। मेरे प्रेम का आधार तो केवल शारीरिक होकर रह गया उसके प्रेम ने तो वृहद होकर कितने विस्तृत रूप को छुआ। एक ही आत्मा में जब मनुष्य अपने हर रिश्ते को जी ले तो यह सांसारिक प्रेम नही अपितु उच्च कोटि का आध्यात्मिक प्रेम ही होता है। जो कहते हैं कि आध्यात्मिक होने के लिए ध्यान और समाधि जरूरी है कितना गलत कहते हैं। अपनी दिनचर्या की कार्यप्रणाली के साथ प्रेम के हर रूप को पवित्रता से जीना क्या किसी समाधि या ध्यान से कम है।

अनुराग अपनी विचार गंगा में गहरे और गहरे उतरते जा रहे थे। जितना गहरा गोता लगाते ममता के प्रति मन श्रद्धा से भर उठता। आज ममता पर बहुत गर्व महसूस कर रहे थे। इस गहरे मंथन ने उनके बीमारी से निस्तेज हुए चेहरे को भी गज्जब के तेज से ओत प्रोत कर दिया। ममता के प्रेम में आसक्त तो थे ही आज उसके प्रति मन श्रद्धा से भी भर उठा। ममता समझदारी से काम लेगी इतना यकीन तो था लेकिन इस कदर...इसका तो भान भी न था। तभी उन्हें याद आया कि नीचे सभी खाने के लिए इंतजार कर रहें होंगे। वह उठे और धीरे धीरे अपने कमरे से बाहर निकल चले।

नीचे बैठक में हंसी ठिठोली अपने चरम पर थी। लगभग सभी रात के भोजन से निवृत हो चुके थे। उन्हें कुछ पल ही हुए थे बैठक में पहुंचे कि देविका खाने की थाली लेकर हाजिर थी। अनुराग देविका के हाथ से थाली पकड़ते हुए प्यार से मुस्कुरा दिए। देविका भी अपनी मुस्कान को रोंक नही पायी। आज पहली बार नजर चुराकर थाली पकड़ने वाले अनुराग उसे देखकर मुस्कुराए। देविका के लब थरथरा कर रह गए और आंखे नम हो आयी। अनुराग के चेहरे की तरफ देखा तो वहां गहन सुकून व्याप्त था। हमेशा नजर बचाते रहने वाले अनुराग आज हर बार नजर मिलने पर मुस्कुरा रहे थे। देविका ने मन ही मन देवी माँ को लाख लाख धन्यवाद दिया और एक पल को आंखे बंद कर ली। अनुराग की मानसिक शांति उसके चेहरे पर साफ साफ परिलक्षित हो रही थी। जिसे देविका भी महसूस कर रही थी।

खाना खाने के बाद ममता देविका को इशारे से बताते हुए अपने कमरे में चली गयी। देविका ने भी इशारे से ही थोड़ी देर में आने की बात कही। धीरे धीरे बैठक में जमी महफ़िल भी बर्खास्तगी की ओर अग्रसर थी। एक एक करके सभी उठने लगे। किसी ने अपने कमरे की राह पकड़ी तो किसी ने पिछवाड़े में बने बगीचे की। देविका भी दोनो भाभियों के साथ मिलकर चौका समेटने में लग गयी। रात के दस बजने वाले थे। सभी की आंखों में थकान हावी थी। देविका भी थकान महसूस कर रही थी लेकिन ममता के आग्रह को टालना नही चाहती थी। काम खत्म होते ही सुस्त कदमों से चलती हुई ममता के कमरे में पहुंची।

ममता भी तकरीबन नींद के आगोश में जाने की तैयारी में थी। उसकी आंखे नींद से बोझिल हुई जा रही थी और ममता उन्हें जबरदस्ती जगाए रखना चाहती थी। देविका को आते देखकर अपने बिस्तर पर अधलेटी सी हो गयी। देविका से ममता की हालत न देखी गयी और कह उठी-" आप सो जाइये, मुझे भी थकान है। हम कल बात करेंगे जिज्जी। "

ममता-" अरे नही देविका, कल अनुष्का भी पगफेरे के लिए आएगी। सुबह से ही सभी तैयारियों में जुट जाएंगे। कल शायद वक़्त न मिले। "

देविका-" जिज्जी, आपकी तबियत खराब न हो जाये। देख रही हूँ न सिर्फ शारीरिक अपितु मानसिक थकान भी हावी है आप पर। "

ममता-" कह तो तुम ठीक रही हो देविका। "

देविका-" दरअसल आपने कभी सोचा भी नही होगा जो पिछले दो दिनों से जो भी बातें कहती सुनती आ रही हैं। "

ममता-" हाँ, ये भी सही है। "

देविका-" तभी कह रही हूँ कि आप आराम कीजिये। सुबह पांच बजे मैं खुद चाय लेकर हाजिर हो जाऊंगी। हम साथ में चाय पियेंगे और बातें करेंगें। "

ममता-" मैंने तो फिर भी दिन में थोड़ी नींद निकाल ली थी। देविका तुम तो दिन में भी आराम नही कर पाई होगी लेकिन फिर भी तुम्हारे चेहरे पर कितना तेज है। तुम्हे देखती हूँ तो सच में देवी माँ स्मरण हो आती हैं। "

देवीका-" अरे जिज्जी, आप भी न। जाने क्या क्या सोचती हैं और क्या क्या कह देती हैं। मुझे तो आपके परिवार का हिस्सा बनने का सौभाग्य मिला और उनके चरणों मे जगह। मुझसे ज्यादा भाग्यशाली और कौन होगा। "

ममता एक पल को सोचने लगी कि देविका से क्या कहे। यह तो पति के चरणों मे रहकर खुश है जबकि पति के ह्रदय में कोई और बसती है। कितना विशाल ह्रदय है देविका का।

ममता चुप न रह सकी और कह ही दिया-" सौभाग्य तुम्हारा नही देविका, हमारा है। अनुराग का है जो तुम सी पत्नी मिली। जितना तुमने सहा उतना कोई दूसरी महिला नही सहती। "

देविका-" जिज्जी, सच कहूंगी। अगर आपके मन मे भी उनके लिए वही भावनाएं होती जो उनके मन मे आपके लिए थी तो शायद मैं सहन न कर पाती। आपका क्या कसूर है कुछ भी तो नही। आपको पता नही और कोई आपको चाहता रहे तो इसमें आप क्या कर सकती थी। आपको देखा है मैंने, आप पूर्णतः अपने साथी के प्रति समर्पित रही। आज जब सब कुछ पता चला आपको तब भी कितनी सहजता और सरलता से बात को सुलझाया। सबसे बड़ी बात, उन पर आपके कहे का असर अभी से नजर आ रहा है। आपकी ऋणी रहूँगी । "

कहते कहते देविका ने हाथ जोड़ दिए।

देविका के अंतिम वाक़्य ने ममता की नींद उड़ा दी। एक झटके में उठ बैठी। रहा न गया और देविका से पूछ ही लिया-" देविका, क्या तुमने हमारी बातें सुनी। "

देविका-" नही नही जिज्जी, ऐसा अपराध कभी नही कर सकती। आज उन्होंने जिस तरह से मुझे मुस्कुरा कर देखा, पहले कभी नही। हम महिलाओं को ईश्वर ने अद्भुत शक्तियों से नवाजा है। कितनी बातें हैं ऐसी जो संवादों की मोहताज नही और अनकही होती हैं लेकिन हम समझ जाती हैं। यही कारण है कि मुझे भी अहसास है कि आपने जरूर उनसे कहा है मेरा ध्यान रखने के लिए तभी उनकी मोहक मुस्कान मुझे मिली। आपकी कही किसी बात को वह कभी नही टालेंगे। जिस प्रेम से उन्होंने मुझे देखा, भले ही आपके कहने से था लेकिन वह भी जबरदस्ती का नही था, निसन्देह दिल से ही था। "

अचानक से आशंकित हुआ ममता का मन देविका की बातों से तुरन्त ही शांत हो गया। वह उठ बैठी और देविका के जोड़े हुए हाथ अपने हाथों में ले लिए। उन्हें माथे से लगाया और फिर चूम लिया। आंखे नम हो चली थी ममता की। दोनो एक दूसरे की आंखों में अपलक देखे जा रही थी। दोनो की ही आंखों में निश्छल प्रेम का सागर हिलोरे ले रहा था।

ममता-" देविका, तुमने अपने नाम को सार्थक कर दिया। समझ नही पा रही किन शब्दों में तुम्हारी तारीफ करूँ। जीवन भर पीड़ा को सहते हुए मुस्कुराना, तुम ही कर सकती हो। कोटि कोटि नमन तुम्हे। । "

देविका, ..."जिज्जी"

ममता-" शशश, मुझे कहने दो। मैं कल अनुष्का के आने से पहले चली जाऊंगी। अभी रात को ही सुबह की पहली फ्लाइट की टिकट करा लूँगी। "

देविका ने कुछ कहने के लिए मुंह खोलना चाहा लेकिन ममता ने इशारे से चुप करा दिया।

ममता-" सुनो देविका, अभी मेरे जाने में 6 दिन बचे हैं। अनुराग पर मेरी कही बातों का असर आना शुरू तो हुआ है लेकिन अगर छह दिन उसके सामने रही तो सब व्यर्थ हो जाएगा।

जब तक बातें नही खुली थी तब तक बात और थी लेकिन अब हवाएं रुख बदल चुकी हैं। पुरुष मन चंचल होता है, प्रेयसी को सामने देखकर कब मचल उठे कह नही सकते। मेरी बात को गौर से समझो। जिस तरह अनुराग को दिन रात याद रखा मैने लेकिन फिर भी उसके प्रेम को स्वीकार नही कर पाई। उसी तरह अनुराग के सामने रही तो मेरी बातों का क्षणिक असर रहेगा और वह वापिस अपने पूर्व रूप में आ जायेगा। अगर चली गयी तो मेरी कही बातों का असर गहरे तक रहेगा और स्थायित्व लेगा। देखो मुझमें इतनी शक्ति भी नही है कि अनुराग की तरह एक ही छत के नीचे रहकर सामने न आऊं। इसीलिए मुझे जाना ही होगा इसी में सभी की भलाई है। "

देविका एकदम से स्तब्ध सी रह गयी ममता के फैसले से और जो कारण उसने दिया उससे सहमत भी थी । अचानक आशंकित हुई थोड़ी और पूछ बैठी थी।

देविका-" मगर जिज्जी सभी घरवाले क्या मान जाएंगे? कितने दिनों बाद आप दस दिन के लिए आई हो और अब इतनी जल्दी वापसी। "

ममता-" तुम उसकी चिंता न करो। सभी को मना लूँगी। अनुष्का की तो ससुराल ही मुम्बई में मेरे पड़ौस में है तो वहाँ मिलती रहेगी मुझसे। कल पगफेरे के बाद मुंबई ही तो जाना है उसे। वह आराम से मान जाएगी। बाकी घरवालों के सामने भी कोई न कोई मजबूत बहाना रख ही दूँगी। "

देविका, ...मेरी खातिर आप सभी को दुखी करेंगी?

ममता-" सिर्फ तुम्हारी खातिर नही देविका, हम तीनों के मान सम्मान की खातिर। अनुराग की बीमारी की वजह से उससे कुछ ज्यादा कह नही पाएंगे। अब जब सभी पर्दे हट चुके तो छह दिन उसके सामने रहना ठीक नही मेरा।

समझो मेरी बात को। "

कहते कहते ममता ने देविका के दोनो कंधे पकड़ लिए।

ममता-" आज तुम्हारे मुंह से अनुराग के बदलाव की खबर ने मुझे जो संतोष दिया है उसे शब्दों में बयान नही कर सकती । मुझे महसूस हो रहा है कि चलो अनजाने में हुए इस अपराध से कुछ तो मुक्ति मिलेगी। "

देविका ने कुछ कहने को मुंह खोला लेकिन ममता ने पहले तो अपना हाथ उसके मुंह पर रखा और फिर कसकर गले से लगा लिया।

देविका को गले से लगाये हुए ही ममता सुबह की भूमिका बनाने में जुट गई थी कि क्या कहकर सभी से विदा लेगी।

क्रमश

***