अदृश्य हमसफ़र - 3 Vinay Panwar द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अदृश्य हमसफ़र - 3

अदृश्य हमसफ़र

भाग 3

ममता अतीत की सुनहरी यादों में गहरे तक डूबती जा रही थी कि ड्राइवर ने तन्द्रा भंग की।

"दीदी, मैं आपका इंतजार करता हूँ। आप जाकर अनु बिटिया को ले आइये। "

ममता एक पल को गाड़ी की पिछली सीट पर टेक लगाए खुद को सम्भालती रही फिर गहरी सांस लेकर गाड़ी से उतर चली। कुछ पल में ही दुल्हन बनी अनुष्का उर्फ अनु का हाथ पकड़े उसके साथ चली आ रही थी।

ममता रह रह कर उसे निहार रही थी आखिर कह उठी-

"अनु बेटा, बहुत सुंदर लग रही हो। मन करता है देखती ही रहूँ। इतनी प्यारी और सुंदर दुल्हन मैंने आज तक नही देखी है। एक तो मेरी बिटिया है ही बेहद खूबसूरत दूजे खूब रंग चढ़ा है उबटन का। "
ममता एक सांस में अनु को निहारती हुई कह गयी।

ममता ने अनु की छिटकी ली-" देखना दूल्हे मियां तो ऐसे फ्लैट फिसलेंगे कि इधर उधर नजर भी नही घुमा पाएँगे। "

अनु का मुंह शर्म से लाल हो गया, नजरें झुक गयी और वह मुस्कुराने लगी।

यूँ तो बुआ भतीजी में गजब का तालमेल था और खूब जमती थी लेकिन आज दुल्हन बनी अनु कुछ कह नही पा रही थी और शर्म से लाल हुई जा रही थी। ऊपर से मेकअप की वजह से उसके खुल कर हँसने पर भी पाबंदी लगा दी गयी थी बस मुस्कुराने भर की इजाजत थी।

ममता ने अनु के माथे को चूम लिया और जी भर कर आशीर्वाद दिया। आंखे नम हो आयी थी दोनो की। मौके की नजाकत को समझते हुए ममता ने फिर चुहल शुरू कर दी थी। वापसी में ममता एक पल चुप नही बैठी, जानती जो थी कि चुप बैठी तो फिर से ख्यालों पर अतीत हावी हो जाएगा। अनु को बड़े प्यार से बातों बातों में अपने अनुभव से मोती के दाने चुन चुन कर उसे देती रही। अनु बड़े ध्यान से अपनी भूजी की बातें सुनती जा रही थी। उसके चेहरे से परिलक्षित था कि वह न सिर्फ सुन रही थी अपितु ग्रहण भी कर रही थी। दोनो की बातों में कब घर पहुंच गए कुछ पता भी नही चला। जाते समय जो रास्ता मीलों लम्बा लग रहा था वापसी में लगा जैसे पलक झपकते ही बीत गया।

ड्राइवर ने गाड़ी घर के पिछले दरवाजे पर ले जाकर खड़ी कर दी। अनु को लेकर ममता सीधे मुख्य ड्योढ़ी पर जयमाला के लिए पहुंच गई। मन के भारीपन को मन में छुपाती रही और हंसी ठिठोली और चुहलबाजी जी भर कर करती रही। मन में चलता द्वंद चेहरे पर आने में हर कदम असफल रहा था। एक एक पल को अनु के साथ भरपूर जी रही थी ममता।

अनु जब फेरों के लिए बैठ गयी तो ममता को भी कुछ पल बैठने को मिले। फेरों के हवन की अग्नि पर निगाह पड़ते ही अतीत की दहक तेज हो गयी। उसे याद आया कि कैसे विवाह की रस्मों से दूर भाग रही थी ममता तो दोनो भाभियों ने जबरदस्ती उसे पकड़ा था।

" जिज्जी, ऐसे काम न चलेगा। आप हम सभी में बड़ी हैं अतः सभी रस्में आप ही करेंगी। "

‌ममता हिचकिचाहट से दबी आवाज में कह उठी थी -" अब वह बात नही रही सुनीता। लोग क्या कहेंगे? शगुन की सभी रस्में एक विधवा निभा रही है? नही नही, अपनी अनु के साथ कभी कुछ बुरा हो मैं सोच भी नही सकती। मुझसे न होगा भाभी। "

सुनीता ने आगे बढ़कर उसके मुंह पर हाथ रख दिया। कह उठी थी-" नही जिज्जी, आपके प्यार और आशीर्वाद से अनु के जीवन में सब मङ्गलमय होगा,

यकीन है मुझे। प्यार और आशीर्वाद शगुन, अपशगुन को नही जानते। सुहागन और विधवा इनमें से कौन दे रहा है ये नही जानते । वह तो सच्चे दिल से निकली दुआ होती है बस और आपसे बढ़कर अनु का खैरख्वाह कौन हो सकता है। हम नही मानेगें। "

‌जमकर वाद विवाद हुआ था इस बात पर और अंत में फिर से बड़े भैया बीच में आये। ममता के सिर पर हाथ रखकर नम आंखों से और भर्राए गले से कहने लगे -" ममता, मनोहर जी के जाने का दुख हम सभी को है। इकलौती बहन हो तुम हमारी। तुम्हारी जगह किसी और को रस्में करते देख कर हमारा दुख और बढ़ेगा। और अनु, क्या अनु को राजी कर पाओगी तुम? हमारा प्यार शगुन अपशगुन का मोहताज नही। अरे तुम इसे भी हम सब की खुशनसीबी समझो कि घर की दोनो बहुएँ सुलझे विचारों की हैं। मोहल्ले की दकियानूसी महिलाओं की बातों पर कान नही धरती अन्यथा एक जंग ये भी चलती। मान जाओ मुन्नी, माना जिद्दी हो तुम लेकिन ये जिद जायज नही तुम्हारी। "

ममता ने गर्दन झुका ली फिर भी आंखों से टप टप बहती आसुंओं की धारा को न छुपा पाई। आखिर में ‌ममता की एक न चली भाई भाभी और अनु के सामने। नियति को स्वीकार कर उसने हथियार डाल दिये उनके सामने और फिर हर बात को भूलकर हर एक रस्म में बढ़चढ़ कर खुशी खुशी हिस्सा लिया। कई पल तो ऐसे आये कि मनोहर जी के न रहने को भी भूल गयी।

‌ममता के लबों पर मुस्कान थिरक उठी थी। उसकी मुस्कान से पूरा मायका खिल उठा था
‌ममता की नजरें तो फेरों की रस्मों पर थी और दिमाग रस्मों के लिए उसे तैयार करने की चली जंग में उलझा हुआ था। तभी बड़े भैया ने उसे आवाज लगाई-" ममता जिज्जी"

बड़े भैया की आवाज पर ममता ने पलट कर देखा तो उसका पूरा परिवार भैया के साथ खड़ा था। दोनो बेटे साथ में दोनो बहुएँ और पोती अमायरा उर्फ अमु।

ममता ने उनसे पूछा कि इतनी देर कैसे हुई आने में तो उनकी छोटी बहू ने जवाब दिया।

"मम्मा, मुंम्बई के मौसम को तो आप जानती हैं, बेमौसम बरसात शुरू हुई और हमारी फ्लाइट लेट हो गयी। हमारा प्लान तो आज सुबह पहुंचने का था लेकिन, you very well know मम्मा" और ममता के गले में बाहें डालकर झूल गयी।

ममता-" बस अब ऐसे मत बहलाओ मुझे। हँसी मिश्रित शिकायती अंदाज था ममता था। "

तभी बड़े भैया भी हंस पड़े-" ये नम्रता भी न, बच्ची ही रहेगी। और तुम मुन्नी, बच्चों के आते ही उन्हें डाँटना शुरू कर दिया। "

पास खड़े घरेलू नौकर रामू चाचा से बच्चों का सामान घर के अंदर ले जाने को कहकर भैया दूसरे कामों में व्यस्त हो गए।

***