अदृश्य हमसफ़र - 11 Vinay Panwar द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अदृश्य हमसफ़र - 11

अदृश्य हमसफ़र.....

भाग 11

जितनी देर भी ममता घर में थी बाबा ममता का सामना करने से बच रहे थे, उन्हें बखूबी अहसास था कि जैसे ही ममता से नजरें मिलेगी वह पकड़े जाएंगे। घरवाले चूंकि अनुराग का सच नही जानते थे तो उन्हें ममता से नजरें चुराने की जरूरत ही नही पड़ रही थी।

बाबा की बेरुखी ममता से ज्यादा देर छुपी न रह सकी। आखिर वही होने वाला था जिसका बाबा को डर था। ममता उठी और बाबा के सामने आकर खड़ी हो गयी। बाबा ऐसे अनजान बनकर बैठे रहे जैसे ममता वहाँ आकर क्यों खड़ी हो गयी उसका उन्हें कुछ भी अंदाज नही हो लेकिन ममता सब समझ रही थी। ममता कुछ पल खामोशी से बाबा को एकटक ताकती रही लेकिन जब नही रहा गया तो पूछ बैठी-" बाबा मैंने माना, अनु दा बहुत व्यस्त रहे लेकिन वह नही जानते थे कि उनसे मिले बिना मेरा ससुराल जाना दूभर हो जाएगा। आपके बाद किसी को करीबी माना तो अनु दा ही थे। बाबा, ऐसी भी क्या व्यस्तता कि दो पल मेरे लिए नही निकाल पाये। उस मुन्नी के लिए जिसकी एक हल्की सी आवाज पर दौड़े चले आते थे। मेरा दिल नही मानता। जरूर कोई विशेष कारण है इन बातों के पीछे। आपकी नजरें कह रही हैं कि आप जानते हैं। "

बाबा-" मुंन्नी, अरे बताया तो मेरी बच्ची। "

ममता-" नही, मेरा दिल नही मानता बाबा, असल बात कुछ और है। "

बाबा-" अरे जिद न कर मेरी बच्ची। कोई बात होती तो क्या तुझे नही बताता मैं। '"

ममता-" बाबा, आप मुझे बहला नही सकते। "

बाबा-" क्या बच्चों की तरह जिद पकड़ कर बैठ गयी। "

बाबा के स्वर में हल्की झुंझलाहट का पुट था। ममता समझ गयी कि बाबा मुंह नही खोलेंगे। बाबा ने उसे देखकर मुस्कुराने की कोशिश की लेकिन मुस्कुराहट का फीकापन ममता से छुपा न रह पाया।
ममता-" अब आप खुद ही नही बता रहे तो मैं भी नही पूछुंगी। आपके चेहरे और आपकी आंखों ने बहुत कुछ कहा है बाबा बस अभी मैं समझ नही पा रही हूँ। "

ममता धीरे धीरे वापस आकर माँ और काकी के पास बैठ गयी।

बाबा मनोहर जी से पूछने लगे थे-" मुंबई की वापसी कब है जमाई जी?"

मनोहर जी-" बस बाबा अगले हफ्ते ही। "

बाबा-" अरे इतनी जल्दी क्या है? कुछ दिन और ठहरते। "

मनोहर जी-" नही बाबा, मुश्किल है। व्यापारी हूँ। ज्यादा दिन अपने काम से दूर रहूंगा तो काम में नुकसान होने के अंदेसे रहते हैं। "

बाबा-" ठीक है बेटा, जैसा उचित लगे। जाने से पहले मुन्नी को एक बार हमसे मिला ले जाना। फिर न जाने कितने दिन बाद मिलना हो पाए। "

मनोहर जी-" जी, पूरी कोशिश रहेगी। "

बाबा और मनोहर जी की बातचीत को मुंन्नी बड़ी गौर से सुन रही थी। सामान्य तौर पर होने वाली बातचीत में भी मुंन्नी की तलाश जारी थी। उसे बुरा लग रहा था कि बाबा को उसे भेजने की इतनी जल्दी क्यों है? बाबा मनोहर जी से मुम्बई लौटने को दो चार दिन क्यों नही बढ़ा रहे? लगातार बाबा की तरफ देखे जा रही थी लेकिन बाबा पलट कर उसे नही देख रहे थे। बाबा का यूँ नजर चुराना उसके शक के दायरे को विस्तृत करता जा रहा था। समझ नही पा रही थी कि जो बाबा उसे पल पल निहारा करते थे वह उससे नजरें क्यों चुरा रहे हैं?

अंततः मुन्नी पगफेरे की रस्म के बाद ससुराल लौट चली। गाड़ी में बैठने से पहले मुड़कर उसने हवेली की तरफ देखा। उसकी आँखों के भाव देख कर बाबा का कलेजा छलनी हो गया। मुन्नी की आंखे भर आईं लेकिन रोने से खुद को रोक लिया।

माँ, काकी, बड़ी माँ, बाबा, काका और चारों भाई हाथ बाँधे खड़े रह गए और आंगन की चिड़िया फुर्र से उड़ गई।

गाड़ी में बैठी बैठी ममता अनु दा के ख्यालों में खोई रही। आखिर क्या कारण था जो अनु दा उससे मिले बिना ही चले गए। कोई साधारण बात नही है यह।

वर्तमान में लौटी जब सासू माँ, जेठानी और ननद उसे गाड़ी से लेने आये। उनकी चुहल से ममता के चेहरे की हंसी लौट आयी थी।

एक एक करके पूरा सप्ताह बीत गया। ससुराल में ब्याह के बाद की रस्मों में ममता ऐसी खोई कि एक सप्ताह कैसे बीत गया उसे पता भी नही चला। ममता के मुम्बई जाने का दिन भी आ गया। ससुराल में भरपूर मान सम्मान मिला था उसे। मायके की याद आती थी तो उसमें अनु दा के नाम से टीस उठती थी लेकिन ममता अपने मन को समझाने में कामयाब हो चुकी थी। समय की कमी को देखते हुए ससुर जी ने तय किया कि ममता मायके में मिलने नही जाएगी, मायके वाले एयरपोर्ट पर आकर ममता से मिल लेंगे।

पहली बार हवाई जहाज में बैठने जा रही थी मुन्नी। डर के साथ फिर अनु दा का सुरक्षा चक्र उसे याद आया। इस बार गर्दन झटक कर खुद को अनु दा की यादों से बाहर निकालते हुए बुदबुदाई-" अगर दा मुझसे मिले बिना जा सकते हैं तो मैं भी इतनी फालतू नही जो उन्हें बार बार याद करूँ। "एक बार फिर से बचपन की हठी मुंन्नी, पहली बार हवाई जहाज में बैठने जा रही डरी सहमी हुई सी नवविवाहित ममता पर भारी पड़ गयी। एक पल को आँखे बंद की और कसकर मनोहर जी की बाँह पकड़ ली। मनोहर जी को समझते हुए देर न लगी कि ममता डरी हुई है। उन्होंने ममता के हाथ को हौले से थपथपाते हुए प्रेम से कहा-" ममता, डरना नही बिल्कुल भी। कुछ नही होगा। तुम्हें पता भी नही चलेगा कि तुम जमीन पर नही आसमान की ऊंचाइयों पर उड़ चली हो। "

ममता ने आंखे बंद कर रखी थी। इतनी डरी हुई थी कि कुछ सुनना नही चाहती थी। मनोहर जी की बातें सुनकर मन को ठंडक तो मिली लेकिन उसका डर कम नही हुआ बस प्रत्युत्तर में हामी भरकर चुप ही रही और यथावत बाँह को कसकर पकड़े रही। ममता की मनोदशा मनोहर जी से छुपी नही थी अतः मन ही मन मुस्कुरा कर चुप रह गए।

वायुयान जब आकाश की ऊंचाइयों को छूने लगा और हलचल कुछ कम हुई तो ममता ने धीरे धीरे आंखें खोली। मनोहर जी ने उसे खिड़की से बाहर की तरफ देखने का इशारा किया। ममता की नजरों में अभी भी डर के साये मंडरा रहे थे। आंखों ही आंखों में मनोहर जी ने तसल्ली देते हुए गर्दन से ही इशारा किया कि तुम देखो तो सही मैं हूँ न।

ममता ने सहमी डरी नजरों से बाहर की तरफ देखा तो देखती रह गयी। आंखे आश्चर्य से फैल गयी। नीचे घर माचिस की डिब्बी जैसे दिखाई दे रहे थे। तभी बादलों के झुंड के झुंड नजर आने लगे। विमान अब बादलों के ऊपर से उड़ रहा था। वह खुशी से चिल्ला उठती लेकिन मनोहर जी ने एन वक़्त पर उसे सम्भाल लिया। पिछले एक सप्ताह में ममता मनोहर जी के इतने करीब नही आई थी जितना आज विमान में बैठकर आयी। कारण बस एक ही था कि ममता को आज मनोहर जी से वही सम्बल मिला जो अनु दा उसे दिया करते थे। उसके चेहरे से डर की लकीरें गायब हो गयी और वह बड़े प्यार से मनोहर जी को निहारने लगी। जब मनोहर जी ने उसकी तरफ देखा तो शैतानी किये बिना न रह सके। उन्होंने आस पास की सीट पर बैठे यात्रियों पर नजर डाली तो सभी को लगभग आंखे बंद किये आराम से अधलेटी अवस्था में पाया। उचित अवसर जानकर उन्होंने अपने होंठ ममता के होठों पर रख दिये। बन्द कमरे की हरकत जब दुनिया जहान के बीच में हुई तो ममता लाज से सिमट गई। उसे मनोहर जी से ऐसी शरारत की उम्मीद नही थी। जल्दी से खुद को सम्भाला और प्रेम से अभिभूत होकर अपना सिर मनोहर जी के कंधे पर रख दिया।

मुंबई आकर ममता अपनी गृहस्थी में रम गयी। चिट्ठियों का दौर जारी था। बाबा के इतर दोनो भाई भी हाल चाल पूछते रहते थे मगर अनुराग का न कोई जिक्र करता और न ही कोई उससे सम्बंधित खबर देता था। ममता की सुविधा के लिए मनोहर जी ने फोन भी लगवा लिया था। उधर ममता के दबाव से बाबा को भी फोन लगवाना पड़ा। अब तो मायका महज एक फोन की दूरी पर था। धीरे धीरे ममता के दिलो दिमाग से अनुराग की यादें हल्की होने लगी थी।

दो साल बाद ममता ने बेटे को जन्म दिया। मनोहर जी की माँ उसके पास पहली बार रहने आयी। मायके से बस बड़े भैया ही आ पाए। सभी ने कहा जब बेटे को लेकर ससुराल आओगी तभी मिलने आएंगे। ममता को प्रतीक्षा थी शायद अब अनु दा का फोन आये लेकिन अनु दा खुद को पत्थर कर चुके थे।

4 महीने के लिए आई थी ममता की सास, लेकिन सास बहू की ऐसी छनी कि अब पूरा साल हो गया था उन्हें आये हुए। ममता ने उन्हें बेटे के जन्मदिन के बाद जाने को राजी कर लिया था। मोटी मोटी आंखों में आंसू भरकर सास से कहा था, " क्या आप अपने पोते के पहले जन्मदिन पर भी नही होंगीं। कोई तो अपना साथ हो माँ "। मनोहर जी की माँ पिघल गयी और रुकी रही। मनोहर जी ने मां से सलाह मिलाकर बेटे का पहला जन्मदिन गांव में मनाना तय किया क्योकिं बाकी सभी परिवारजन तो गाँव में ही थे। ममता ने भी खुशी खुशी हामी भर दी क्योकिं इसी बहाने मायके जाने का अवसर भी मिलना तय था।

बहुत धूमधाम से जन्मोत्सव सम्पूर्ण हुआ। सभी आये लेकिन अनु दा अभी भी नदारद थे। ममता मायके वालों के साथ एक सप्ताह के लिए मायके आ गयी। उधर अनु दा का तबादला अपने जिले में हो गया था और फिर से सभी के साथ रहने लगे थे। जैसे ही ममता के एक सप्ताह के लिए मायके आने की खबर सुनी उन्होंने अपना बोरिया बिस्तर बांध लिया।

" एक सप्ताह के लिए जाना होगा बाबा"- अनुराग बाबा से कह रहे थे। "सरकारी काम है, मना भी तो नही कर सकता। "

बाबा-" अब मुझे धोखा नही दे सकता अनु बेटे। जानता हूँ मुन्नी के सामने न आने के लिए भाग रहे हो। लेकिन एक शर्त पर जाने दूंगा बस ये बता दो कि विवाह करने का इरादा कब का है। "
अनु दा-" बाबा, ये अत्याचार है मुझ पर। आपसे कितनी बार कहा कि मैं शादी नही करने वाला। "
बाबा-" ठीक है, मैं मुन्नी से कह दूंगा, तुम ब्याह के लिए राजी नही। " कहते कहते बाबा कमरे से बाहर जाने लगे।

अनुराग ने तेजी से बढ़कर उनका हाथ थाम लिया।

अनु दा-" बाबा उसके जेहन से उतरने लगा हूँ मैं। अब मुझे याद नही करती । मेरे बिना जीना आ चुका है उसे तो क्यों ऐसा कहते हो?"

बाबा-" मैं कुछ नही जानता अनुराग। या तो मेरे कहने से ब्याह के लिए राजी हो जाओ नही तो मुन्नी ही राजी करेगी फिर। "

एक पल को अनुराग चुप हो गए, फिर कहने लगे-" ठीक है बाबा मैं राजी हूँ। आप लड़की पसन्द कर लीजिए लेकिन मेरी एक शर्त है। "

बाबा के मन में खुशी की उमंगे तैरने लगी, झट से कह दिया-" मुझे तुम्हारी हर शर्त मंजूर है बेटे। बस तेरा घर बस जाए तो मैं सुकून से आंखे बंद कर सकूँगा। "

अनुराग ने गम्भीर होते हुए कहा-" बिना सुने ही ज़बान दी है आपने बाबा, शर्त सुनकर मुकर न जाना। "

बाबा-" मुझे तेरी हर शर्त मंजूर है बिना सुने ही। अंधा क्या चाहे दो आंखे। बस जुबान दी तुझे। बोल बेटे, क्या शर्त है तेरी?"

अनुराग-" मेरी शादी में मुन्नी को नही बुलाया जाएगा। आप चाहे जो बहाना करना लेकिन मुन्नी सम्मिलित नही होगी साथ ही ब्याह बहुत ही सादगी से होगा। "

बाबा को काटो तो खून नही जैसी हालत हो गयी। दर्द भरी आवाज में बस इतना ही कह पाये-" अनुराग "अनुराग ने तुरन्त उनके मुंह पर अपना हाथ रख दिया-" बाबा आप ज़ुबान दे चुके हैं। "

जिस कमरे में कुछ पल पहले खुशी की तरंगें नाच रही थी वहीं अब मरघट का सा सन्नाटा गुंजायमान था।

क्रमश

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