भूमिजा
मीना पाठक
(2)
फुलमतिया उर्मिला देवी की खास परजा थी | वह लगभग रोज ही आती और घर के अनेक छोटे बड़े कार्यों के साथ उनकी सेवा भी कर जाती बदले में ढेरों इनाम ले जाती |
भूधर राय के पास अपार संपत्ति तो थी; पर उनके बाद इस संपत्ति का कोई वारिस नहीं था | उन्होंने पत्नी उर्मिल देवी का इलाज लखनऊ, बनारस, इलाहाबाद सभी शहरों के बड़े डॉक्टरों से करा लिया था; पर निराशा ही हाथ लगी थी | ना जाने कितने नीम-हकीम, ओझा-सोखा और देवी-देवता मना चुके थे पर कुछ भी काम नहीं आया था | उर्मिला देवी उनसे दूसरा विवाह करने को बहुत दबाव बना रहीं थीं; पर अंत में जब अपने एक मित्र डॉक्टर के समझाने पर उन्होंने अपना परीक्षण कराया तो दोष उनमें ही निकला | अब तो दूसरे विवाह का प्रश्न ही नहीं था; पर ये बात उन्होंने पत्नी से छुपा लिया | हार मान कर वह पूजा-पाठ और धर्म-कर्म के कार्यों में मन लगाने लगे | तभी एक दिन भिन्सहरे ही द्वार खटका, जा कर देखा तो सामने फुलमतिया आँचल में कुछ छुपाये खड़ी थी | द्वार खुलते ही वह उर्मिला देवी के कक्ष की ओर भागी और जा कर उनकी गोद में वह शिशु डाल दी |
“ई का ह-अ रे !”
अचानक अपनी गोद में नन्हा शिशु देख कर वह चौंक पड़ीं थीं |
तब फुलमतिया ने उनको सारी बात बतायी |
“ई सब त ठीक बा, बाकिर हम का करब ई लइका के ?”
“त का करीं मलकिन, कहाँ फेकि आयीं हम एकरा के? रउरे बतायीं |”
“तें त हमके भारी धरम संकट में डाल दिहले ?”
उर्मिला देवी के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच आयीं, उन्होंने पति की तरफ देखा | भूधर राय जो अभी तक मूक बने सब कुछ देख सुन रहे थे | अब उनका दिमाग तेजी से काम कर रहा था | उन्होंने मन ही मन कुछ निर्णय लेते हुए फुलमतिया से कहा --
“ई जानि ले कि ई बाति हम तीनो के अलावा चउथा केहू ना जाने पावे |”
“नाहीं मालिक..केहू ना जानी, जियते हमरी जुबान पर ई बाति कब्बो ना आई |”
“त अब जो तें जल्दी |”
तभी उर्मिला देवी ने आँखों के संकेत से कुछ कहा | भूधर राय उसे रोक कर आलमारी से कुछ रूपये निकाल कर उसे देने लगे पर फुलमतिया ने लेने से इन्कार कर दिया |
वह हाथ जोड़ कर काँपते स्वर में बोली –“मालिक ! ई बच्चा के अपना के रउआ हमरी ऊपर बहुते बड़का उपकार कइनी हँ नाहीं त हमके बुझाते नाहीं रहल कि हम का करीं ? हमार मरद जानि जाइत त हमार एको करम ना छोड़ित कि तें काहें गइले पोखरा पर.. अउर ई बचवा के जउन होइत तउन त होइबे करित |” फुलमतिया उनका उपकार मनाते अपने आँसू पोछते हुए चली गयी |
“अब का होयी ? के से का कहल जायी ?” बच्चे को सीने से लगाए उर्मिला देवी बोलीं |
“जइसन भगवान जी के मर्जी, उहे रस्ता देखइहें |”
दोनों पति-पत्नी ने ऊपर वाले की इच्छा और धरती माँ का दिया हुआ उपहार समझ कर शिशु को बड़े स्नेह से अपने सीने से लगा लिया और उसको नाम दिया ‘भूमिजा’ |
***
दूसरे ही दिन फुलमतिया ने सुना कि मालिक मलकिन को ले कर दिल्ली चले गए | कुछ महीनों बाद ही खबर आई कि उर्मिला देवी ने बेटी को जन्म दिया है | यहाँ की देख-रेख मुनीम जी के कन्धों पर थी |
बच्ची धीरे-धीरे बड़ी होने लगी | अब भूधर राय और उर्मिला देवी को बच्ची के भविष्य की चिंता सताने लगी | भूधर राय ने एक बार फिर अपने उसी डॉ० मित्र से सलाह-मश्वरा किया | उनके कहने पर वह बच्ची को ले कर विदेश चले गए और वहीं पर एक छोटे से ऑपरेशन से उस बच्ची को पूरी तरह ठीक कर दिया गया | किसी को कानों-कान यह खबर नहीं हुई कि बच्ची एक सामान्य बच्ची नहीं थी | कुछ दिन वहीं रुक कर उसकी शिक्षा-दीक्षा की पूरी व्यवस्था कर वो दोनों गाँव वापस आ गए | आज बच्ची पूरे पच्चीस वर्ष की हो कर उच्च शिक्षा के साथ गाँव लौट रही है | ये सारी तैयारी उसी के लिए हो रही है | अचानक किशोरिया की आवाज सुन, वह चौंक कर अतीत से वर्तमान में आ जाती हैं |
“जल्दी चलीं मलकिन ! बीबी जी आ गयिलिन |”
उर्मिला देवी झट से उठ कर मुख्य द्वार की ओर भागती हैं, गाड़ी से पिता के साथ पुत्री को उतरते देख उर्मिला देवी की आँखे छलक पड़ीं, आज वर्षों बाद वह बेटी को देख रहीं थीं | बेटी की आरती उतार कर गले लगाती हैं | पूरा गाँव भूमिजा को देखने के लिए उमड़ पड़ा था |
सबसे हाथ जोड़ आशीर्वाद ले कर वह माँ के साथ भीतर चली आयी | शाम को पार्टी में भूधर राय सभी से बेटी भूमिजा को मिलवाते हैं और उसे अपना वारिस घोषित करते हैं |
***
गुजरे पच्चीस वर्षों में भूधर राय ने धार्मिक के साथ सामाजिक क्षेत्र में भी बढ़-चढ़ कर कार्य किया था | उन्होंने पूरे गाँव को गोद ले लिया और अपने आस-पास के कई खेतों में तालाब खुदवा दिया | गांव की सड़कें सही कराने के साथ-साथ उसके किनारे वृक्ष भी रोपवा दिया था | सबसे अहम कार्य, गाँव में सुलभ शौचालय का निर्माण भी करा दिया था भूधर राय ने ताकि किसी की बहू बेटी को ‘लौटने’ के लिए बाहर ना जाना पड़े और बागीचे के पास प्राइमरी स्कूल का निर्माण भी कराया | ये सभी कार्य उन्होंने अपने कोष से किया था, बिना सरकारी मदद के ! समय-समय पर वह अपने द्वार पर चौपाल लगा कर पूरे ग्रामवासियों को स्वच्छता के लिए जागरूक करते रहते थे | उनका गाँव अब एक हरा-भरा, स्वच्छ आदर्श गाँव है |
**
उधर उम्र बढ़ने के साथ फुलमतिया का आधा अंग सुन्न हो गया था | सही इलाज के अभाव में वह खटिया पकड़ ली थी | उसकी बहू अब उसके सारे काम देखती है | हालांकि उसके इलाज की सारी व्यवस्था भूधर राय ने कर रखी थी, उर्मिला देवी उसको देखने आती रहती थीं; पर उसके स्वस्थ्य में कोई सुधार नहीं हो रहा था | अचानक दरवाजे पर गाड़ी रुकने की आवाज सुन कर फुलमतिया की आँखे चमक उठी, वह समझ गयी कि उर्मिला देवी उससे मिलने आई हैं | कुछ पल बाद ही उर्मिला देवी भूमिजा के साथ उसकी कोठारी में दाखिल हुयीं और मुस्कुरा कर बेटी की ओर संकेत कर फुलमतिया से बोलीं -
“देखु त..के आइल बा तोके देखे खातिर ?”
फुलमतिया प्रश्न भरी निगाहों से देखती है भूमिजा की तरफ | बहुत ही सुन्दर नाक-नक्श, गोरा रंग और ऊंचा कद !
भूमिजा उसकी ओर देख कर मुस्कुरा रही थी |
“नाही चिन्हले ना ? ईहे नू भूमिजा हई..हमार बेटी..ई बहुत बड़का डॉ० बनि के अईली ह्-अ विदेश से....तोके देखे खातिर हम इनके लिया ले अयिनी हँ |”
फुलमतिया की आँखे आश्चर्य से फ़ैल गयी फिर खुशी के आँसू उसकी आँखों से छलक कर तकिये में समा गए | वह कुछ बोलती है पर उसकी आवाज स्पष्ट नहीं है | उसकी आँखों के आगे वर्षों पुराना दृश्य एक बार फिर साकार हो उठता है |
उर्मिला देवी समझ गयीं कि वह क्या कहना चाहती है “अरे ! ई एकदम तंदुरुस्त बाड़ी कौनो बाति के चिंता मति करु, तें जल्दी से ठीक हो जो कहे कि इनकी बियाहे में हरदी तेहिं लगइबे |”
फूलमतिया आश्चर्यचकित हो उनका मुंह ताकने लगी |
“बियाह ?”
उसके मन में अजीब अजीब से प्रश्न उठने लगे | उर्मिला देवी ने मुस्कुरा कर उसे अस्वस्त किया |
भूमिज बड़ी तन्मयता से उसका परीक्षण करने के बाद माँ से बोली -
“इनको इलाज के लिए लखनऊ ले जाना होगा |”
फुलमतिया ने एक हाथ से संकेत कर घर छोड़ने को मना किया | तब भूमिजा उसे बड़े स्नेह से समझाया –
“आप हस्पताल से जल्दी ही पूरी तरह से ठीक हो कर घर वापस आ जाएँगीं, मुझ पर भरोसा रखिए |”
उर्मिला देवी बोलीं, “ना फुलमतिया ! मना मति करू..आजु तोरी बदौलत ही भगवान जी हमके ई दिन देखवले हयीं..ई बाति हम कइसे भूल जायीं !!”
वह फुलमतिया के माथे पर स्नेह से हाथ फेरती हैं | दोनों की आँखों में एक दूसरे के लिए कृतज्ञता के भाव हैं |
**
उसी दिन रात में खाने की मेज पर भूमिजा, भूधर राय से कहती है –
“पापा ! आप से एक बात कहना चाहती हूँ |”
“तो इसमें इतना सोचने की क्या बात है ? फ़टाफ़ट बताओ क्या बात है ?”
“पापा..! आपने इस गाँव के लिए क्या कुछ नहीं किया है..अब मैं यहाँ पर एक हस्पताल बनवाना चाहती हूँ और यहीं रह कर लोगों की सेवा करना चाहती हूँ, ताकि यहाँ के लोगों को इलाज के लिए भटकना ना पड़े और समय पर उन्हें सही इलाज मिले |”
“तुमने तो मेरे दिल की बात कह दी बेटी..मैं यही तो चाहता था; पर तुमसे कह नहीं पा रहा था कि कहीं तुम ये ना सोचो कि पापा तुम्हें गाँव में रोक कर तुम्हारी उन्नति में बाधक बन रहे हैं |”
भूधर राय और उर्मिला देवी की आँखों में खुशी की चमक थी और भूमिजा के चेहरे पर सुकून के भाव |
**
अगले ही दिन एक एम्बुलेंस फुलमतिया को ले कर लखनऊ जाने वाली सड़क पर तेजी से दौड़ रही है | उससे भी तेज फुलमतिया का मन दौड़ रहा है, “वर्षों पहले मैंने उस रात को जिस शिशु को मलकिन की गोद में डाला था वह तो ‘खोजवा’ था फिर वह भूमिजा ! इतनी सुन्दर !! कहीं मेरी नजरें उस समय धोखा तो नहीं खा गयी थीं ? नहीं-नहीं मैंने बहुत अच्छे से देखा था, वह तो ‘खोजवा’ था ..तो यह भूमिजा ! ...कैसे ? मलकिन जो कह रहीं हैं वह कैसे सच हो सकता है ? बियाह..और खोजवा का !” एक लम्बी साँस भरती है |
“हे भगवान ! आपन लीला आपे जानी..रउआ त पथरे पर दूब जमा देईलें त ई कउन बड़का बाति बा |” वह अपने दिमाग में चल रहे द्वन्द्व को झटक कर बुदबुदाती है और मन ही मन भगवान को उनके चमत्कार के लिए आभार प्रकट कर प्रणाम करती है | उसे तनिक भी ज्ञात नहीं कि ये चमत्कार भगवान का नहीं, मेडिकल साइंस का किया हुआ था | जिसके लिए भूधर राय और निर्मला देवी भी बधाई के पात्र थे जिन्होंने समाज से निष्कासित वर्ग के एक शिशु को खुले हृदय से अपनाया था जिसके कारण एक जिंदगी बदल गयी थी, समाज में सम्मान से जीने के लिए !
गाड़ी हिचकोले खाती हुई चली जा रही थी, दिमागी कसरत करने के बाद फुलमतिया की आँखें बोझिल हो रही थीं, एक सुखद नींद लेने के लिए |
(खोजवा=किन्नर)
***