बारीश Raje. द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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बारीश

बरसात ! बरसात किसे पसंद नही होती?
अगर मै किसी टोले को कहु कि किसे-किसे बरसात पसंद है। शायद ही कोई ऐसा हाथ होगा जो उपर उठा न होगा।
हर किसी को पसंद होती है।
वैसे ही मुझेभी बारीश पसंद है।
एक सुबह ठीक बारीश के दिन मै बरसात का मजा लेने घर से बाहिर घुम रहा था। खुशी इतनी हो रही थी कि पता ही न चला की कब चार बज गये। ये तो और खबर ना होती लेकीन पेट ने जवाब दे दीया ओर चुहे अब मझे करने लगे थे।
दीलने कहा बारीश का मौसम है। हर आम आदमी की तरह मुझे भी वह खयाल आया जो, आपको आता। एक कप गरमा-गरम चाय और साथ मे पकोडो का नाश्ता। मेने इधर-उधर नजर दौडाई मगर कोई होटल नजर मे न लगी। मै भीगता हुआ आगे बढा।
अभी 5:45 शाम के बज रहे थे। भुख के मारे पैर जवाब दे रहे थै। ओर सुरज मानो अपनी टोर्च डीम कर रहा था, लगता है उसका चार्ज खतम हो चला था।
बही थोडी दूर एक स्टीट लाईट के खंबे के नीचे मुझे एक ठेला नजर आया। वैसे मै कोई ऐसी-वैसी जगह खाना खाता नही मगर आज बात कुछ और थी।

एक करीबन 13 साल का बच्चा ठेले पर बैठा था। उसने एक फटी सी बनयान पहन रखी थी, मगर नीचे अछ्छी पैन्ट थी और बगल मे संभाल कर एक सर्ट रखी थी। देखने से मालूम पडता था। वह उसका स्कूल ड्रेस था और जोडी मे वह पैन्ट भी जो उसने पहनी थी। लगता था उसके पास एक ही है।
मुझे देखकर संभलते हुए बोला, क्या दु साब ?
मै बोला एक कप चाय, और पुछते हुए पकोडे है क्या ?
वह बोला है साब मगर, ठंडे हो गये है।
मैने कहा: नये बना लो। कहा आटा खतम हो गया है।
मै: भूख ज्यादा लगने के कारण, ठिक है वही देदो।
वह: साब, कितने दु ?
मै: कितने है?
वह: साब, 500 ग्राम है।
मै : सभी देदो।
मैने नाश्ता खतम किया। और पुछा कितने रुपे हुए। वह कुछ दैर गीन कर बोला। साब, 20 रुपे।
मैने जट से पोकेट नीकाला और 50 रुपेकी नोट नीकाली। मैने जैसे ही असकी और बढाई बह बोला। साब, छुट्टे नही। वह तो मेरे पास भी नही थे।
मै: मेरे पास तो नही है, पास मे कही हो तो ला दोना।
वह: कुछ सोच कर बोला, पास मे मेरा घर है। माँ से कह कर दिलवा देता हु।
मै: ठिक है वैसे भी पेट पुजा हो चुकी थी। कुछ नही बारीश का मजा लीया जाए।
चलते-चलते मैने उससे बच्चे का नाम पुछा मालुम हुआ। कुबेर, संपती का देवता।
वह आगे से एक तंग गली मे मुडा, मै भी उसके पीछे चल दीया।
लेकीन ये क्या बारीश के कारण बह गली पुरी पानी से भरी हुई थी और लोगो के चलने से वह एक दग गंदी हो गई थी। जैसे किसी बैल को एक सीरे से बाध कर तेल नीकालने के लीए घुमाते है बैसे ही हो गया था।
मैने उत्सुकता वश कुबेर से पुछ लीया।

कुबेर, तुम्हे बारीश केसी लगती है ?
कुबेर: अपने चहरे पर गुस्से के भाव लाते हुए, वह बोला। बारीश का मौसम आता ही क्यू है।
अगर कभी मुझे भगवान मीले तो उनसे कहुगा, की भगवानजी इस मौसम को नीकाल दो।
मै: एक दम चौक गया। की कोई ऐसा भी है जीसे बारीश पसंद नही है।
मैने उससे पुछा एसा क्यू ?
कुबेर: एक तो बारीश की वजह से मेरा स्कूल ड्रेस भीग जाता है। तो मै उसे घर पर नही पहन पाता। तो मुझे घर पर एसे ही सोना पडता है मछ्छरो के बीचमे।
दुसरा ये सारे रास्ते कीचड वाले हो जाते है। आने जाने मे बहोत मुसकील होती है।
घर की छत पत्तोकी है तो टपकती है, सारी रात नीन्द नही आती।
बारीश मे माँ को कोई काम भी नही मीलता। छोडो ये सब बाते। वो देखो मेरा घर। मै पैसे ले आता हु।
उसका घर देखने मे एक टेन्ट सा लग रहा था। लेकीन कागज, पत्तो और लकडी से बना था। अगर जरा भी ज्यादा बारीश हुई , सारा पानी घर मे ही जाएगा।
छत को तो पुछो मत क्योकि पानी गीरेगा ही गीरेगा।
मै सोच ही रहा था की, यहा ये लोग कैसे रहते होगे। कि एक आवाज ने मेरा ध्यान उस और खीचा-

कुबेर अपनी माँ से कह रहा था :
देखो माँ आज मै सारे पकोडे बैच आया। आज मुझे कोई हरी सब्जी खीला दो, उसकी माँ बोली आज तो बारीश कि वजह से काम बंद था तो कोई काम न मीला। तो मै सब्जी कहा से लाती ?
आज मैने खीचडी बना दी है, तु खा ले।
मै कल सब्जी बना दुगी।
कुबेर बोला नही, मै रोज-रोज खीचडी नही खाउन्गा।
और बोला अरे मै तो भूल गया, साब के पैसे भी लोटाने है।
अपने खीचेमे से 50 की नोट नीकाली और कहा 30 वापस देदो।
माँ बोली बेटा छुट्टे तो घरमे भी नही है। एक काम कर साब का पता लेलो और कहना मै कल लेलूगा।
कुबेर: बहार आया और कहा साब, ये 50 रूपे लो मै कल आपसे लेलूगा।
मै: सोच रहा था, ऐसेभी लोग होते है और बारीश किसी को इतना परेशान कर सकती है।
मैने कुबेर से कहा तुम ये 50 रुपे रख लो।
वह बोला मै केसे, लेकीनी मेरे मनाने पर मान गया।
खुशी के मारे वह घरकी तरफ भागा। यह कहते हुए देखो माँ साब ने 50 रुपे दीए।

और मैं उसके खुले पैरो को किचड मे पडते और उडते कीचडको देखता रहा।
और सोचता रहा। क्या जींदगी......

-रेरा